Ad

पुष्प

गर्मियों के मौसम मे उगाए जाने वाले तीन सबसे शानदार फूलों के पौधे

गर्मियों के मौसम मे उगाए जाने वाले तीन सबसे शानदार फूलों के पौधे

गर्मी का समय भारत मे बहुत सारी फसलों और पौधों को उगाने के लिए काफी अच्छा माना जाता है। ऐसे मे यदि आप भी अच्छे फूलों वाले और अपने बाग/बगीचों को रंगीन बनाना चाहते है, तो यह समय बहुत ही अच्छा है, फूलों वाले पौधों को लगाने के लिए। दर - असल गर्मी के समय मे ज्यादा वस्पीकरण होने के कारण जलवायु मे परिवर्तन होता है जिससे पौधों का विकास अच्छे से होता है। आइये जानते हैं गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे की जानकारी। इन पौधों को लगाने के लिए आप सबसे अच्छा समय मार्च माह से लेकर अप्रैल माह तक मान सकते है। क्योंकि इस समय ना ही तेज हवाएं चलती हैं और ना ही ज्यादा गर्मी होती है ऐसे मे आप एक शांत दिन चुनकर जीनिया , सदाबहार और बालसम जैसे पौधों की बुवाई रोपाई करना शुरू कर सकते हैं। ऐसे मे आज हम आपको तीन ऐसे गर्मी की ऋतु में लगाए जाने वाले पौधों के बारे मे बताएंगे :- जीनिया सदाबहार और बालसम

जीनिया (Zinnia)

Zinnia ke phool जीनिया बहुत ही खूबसूरत और रंगीन फूलों वाला बगीचे की शान बढ़ाने वाला फूल होता है। जीनिया काफी तेज गति से उगता है और इसे उगाने मे किसी भी प्रकार की ज्यादा परेशानी भी नहीं होती है। जीनिया पौधे को हम वैज्ञानिक जोहान ट्वीट जिन के नाम से भी जान सकते हैं। जीनिया मे खूबसूरत फूल लगने के कारण यह सबसे ज्यादा तितलियों और अन्य कीड़ों मकोड़ों को बहुत ही ज्यादा लुभाता है। ऐसे मे कई सारी बीमारियां और पौधों मे फूल झड़ने और पौधों के मुरझाने का भी डर सताया रहता है। ये भी पढ़े: गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी जीनिया की उत्पत्ति सबसे पहले उत्तरी अमेरिका मे हुई थी उसके बाद यह अन्य सभी देशों मे वितरित होने लगा। तो चलिए जानते हैं जीनिया पौधे की खेती हम किस प्रकार कर सकते हैं :-

1.जीनिया पौधे की सिंचाई इस प्रकार करें :-

जीनिया पौधे की सिंचाई हमेशा उसकी जड़ों पर की जाती हैं ना कि उसकी टहनियों शाखाओं और पत्तियों पर। क्योंकि यह पौधा बहुत कम समय में विकसित होने लगता है और ऐसे मे अगर हम पत्तियों पर पानी डालेंगे तो अन्य प्रकार के कीड़े मकोड़े और बीमारियां लगने का डर रहता है। प्रति सप्ताह दो से तीन बार जीनिया की सिंचाई अवश्य रूप से करनी चाहिए। गर्मी की ऋतु में वाष्पीकरण से बचने के लिए जब जीनिया का पौधा बड़ा हो जाता है तो हम उसके आसपास पत्तियां और घास फूस डाल सकते हैं।

2. जीनिया पौधे की कटाई और बीजों का सही संग्रह इस प्रकार करें :-

जीनिया पौधे के बीजों को एकत्रित करने के लिए सबसे पहले आपको इस पौधे के बड़े-बड़े फूलों को नहीं काटना होगा। यदि आप इस पौधे के फूलों को काटना बंद नहीं करेंगे तो फिर बीज नहीं आएंगे। जब फूल एक बार बीज देना शुरू करें तब आप अपने हाथों द्वारा धीरे से मसलकर बीजों को किसी भी बर्तन मैं धूप में रख कर सुखा दें। इस प्रकार आप जीनिया पौधे की कटाई और बीजों को एकत्रित कर पाएंगे।

3. जीनिया पौधे मे लगने वाले कीड़े और बीमारियों का समाधान इस प्रकार करें :-

पौधों में कीड़े लगना आम बात हैं चाहे वह जीनिया हो सदाबहार हो या फिर बालसम लेकिन जीनिया के पौधों में अक्सर कीड़े बहुत ही कम समय में पड़ने शुरू हो जाते हैं। ऐसे में आप अच्छे से अच्छे कीटनाशकों का छिड़काव करें सप्ताह मे दो-तीन बार। ये भी पढ़े: जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें जीनिया के पौधों मे पढ़ने वाले कीट पतंगों को हम अपनी आंखों से आसानी से देख सकते हैं ऐसे में आप सुबह सुबह जल्दी कीटनाशकों का छिड़काव करें और समय-समय पर पौधों को झाड़ते रहे।

गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे : सदाबहार

sadabahar phool सदाबहार जिसका मतलब होता है हर समय खीलने वाला पौधा। सदाबहार एकमात्र ऐसा पौधा है जो भारत मे पूरे 12 महीना खिला रहता है। भारत मे इसकी कुल 8 जातियां हैं और इसके अलावा इसकी बहुत सारी जातियां बाहरी इलाकों जैसे मेडागास्कर मे भी पाई जाती हैं। सदाबहार बहुत सारी बीमारियों जैसे जुखाम सर्दी आंखों में होने वाली जलन मधुमेह और उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में करने के लिए भी किया जाता है। यह बहुत ही लाभदायक और फायदेमंद पौधा होता है। भारत में इसे बहुत सारे इलाकों में सदाबहार और सदाफुली भी कहते हैं।

1. सदाबहार पौधे की बुवाई ईस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधे की बुवाई करने के लिए सबसे पहले आप कम से कम 6 इंच की गहरी क्यारी तैयार करें। इससे पौधे को अच्छे से उगने में काफी सहायता होती हैं और इसकी जड़े भी मजबूत रहती हैं। जब आप इसकी रोपाई करें उससे पहले आप यह तय कर लें कि 1 इंच मोटी परत की खाद को मिट्टी के अंदर अच्छे से मिलाएं। सदाबहार पौधे की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर माह से फरवरी माह के बीच में होता है। इस समय सदाबहार पौधे को ना ही ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती हैं और ना ही ज्यादा खाद उर्वरक की। ये भी पढ़े: सूरजमुखी खाद्व तेलों में आत्मनिर्भरता वाली फसल

2. सदाबहार पौधे की सिंचाई और खाद व्यवस्था इस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधे की रोपाई करने के कम से कम 3 महीने के बाद आपको 20-20 दिनों के अंतराल से सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। सदाबहार पौधे को कम पानी की आवश्यकता होती हैं ऐसे मे अगर आप ज्यादा सिंचाई करेंगे तो यह इतना ज्यादा पानी सहन नहीं कर पाएगा और नष्ट होने की संभावना ज्यादा रहेगी। इसके आसपास किसी भी प्रकार के खरपतवार को ना रहने दे। अप्रैल माह से लेकर जुलाई माह तक सदाबहार पौधे की अच्छे से सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक होता है क्योंकि इस समय गर्मी की ऋतु में बहुत ज्यादा वाष्पीकरण होता है। ऐसे मे पौधों को ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं। समय समय पर खाद और कीटनाशकों का छिड़काव करें ताकि पौधों मे किसी भी प्रकार का रोग या बीमारी ना लगने पाए।

3. सदाबहार पौधे की कटाई छटाई इस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधा कम से कम 1 साल के समय के अंतराल में पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। सदाबहार पौधे के रोपाई के एक साल बाद आप तीन-तीन महीने के अंतराल में इसकी टहनियां पत्तियां और बीज और फलों को आप अलग-अलग तरीकों से एकत्रित करें। सबसे पहले आप इसके फलों को एकत्रित करें और अवांछित शाखाओं और टहनियों को हटा दें। फूलों से निकाले गए बीजों को आप गर्मी के मौसम में धूप में रख कर अच्छे से अंकुरित करना ना भूले।

बालसम

balsam phool ki kheti बालसम यानि की पेरू जिसका आमतौर पर सबसे ज्यादा उपयोग बवासीर की समस्या से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। बालसम की खेती संपूर्ण भारत मे की जाती है और सबसे ज्यादा इन राज्यों में कर्नाटक, बंगाल , उतर प्रदेश ,हरियाणा ,बिहार और पंजाब शामिल है। इसकी पैदावार इन राज्यों में सबसे ज्यादा होती है।यह कैंसर और यूरिन से संबंधित बीमारियों के लिए बहुत ही ज्यादा फायदे मंद है। साथ ही साथ बुखार , सर्दी , ठंडी और अन्य सर्द ऋतू की बीमारियों के लिए भी लाभदायक है। बलसम की खेती के लिए सबसे अच्छा समय गर्मियों का होता है। मई और जुलाई माह के अंदर अंदर बालसम के पौधों की बुवाई कर दी जाती है। बलसाम के पौधों के बीजों को संपूर्ण रूप से विकसित यानी की अंकुरित होने मैं 10-12 दिनों का समय लगता है। ये भी पढ़े: ईसबगोल की खेती में लगाइये हजारों और पाइए लाखों

1. बाल सम के पौधे की बुवाई इस प्रकार करे :-

बालसम के पौधे को उगाने के लिए सबसे पहले आप यह देख ले कि मिट्टी उपजाऊ हो और अच्छी हो। प्रत्येक बालसम के पौधे को उगाने के लिए उनके बीच में कम से कम 30 से 40 सेंटीमीटर का अंतराल अवश्य रखें। इनकी बुआ जी आप अपने हाथों द्वारा भी कर सकते हैं या फिर हल द्वारा या ट्रैक्टर के द्वारा बड़े पैमाने पर भी कर सकते हैं। बुवाई से पहले बीजों को अंकुरित करना ना भूलें इससे कम समय में बीज विकसित होना शुरू हो जाते हैं।

2. बाल सम के पौधे की सिंचाई और उर्वरक व्यवस्था इस प्रकार करें :-

बालसम के पौधों की शुरुआती दिनों मे सिंचाई करना इतना ज्यादा आवश्यक नहीं होता है। जब इनके फूल आना प्रारंभ हो जाता है उसके बाद आप सप्ताह मे तीन चार बार अच्छे से सिंचाई करें। इसकी सिंचाई करते समय आप साथ में कीटनाशक भी डाल सकते हैं ताकि पौधे को कीट से बचाया जा सके। इसकी सिंचाई आप ड्रिप् माध्यम के द्वारा कर सकते हैं इससे पौधे की जड़ों में पानी जाएगा और ज्यादा वाष्पीकरण भी नहीं होगा। बालसम के पौधे के फूल लगने में लगभग 30 से 40 दिनों का समय लगता है।

3. बालसम के पौधों को कीट पतंगों और बीमारियों से इस प्रकार बचाएं :-

सूरज की रोशनी सभी पौधों को पूर्ण रूप से विकसित होने में काफी लाभदायक होती हैं और ऐसे मे बाल सम के पौधों को भी उगने के लिए सूर्य की धूप की बहुत आवश्यकता होती है। जितने भी कीड़े मकोड़े जो कि फूलों के अंदर टहनियों में छुपे रहते हैं वेद धूप के कारण नष्ट हो जाते हैं। यदि पौधे में कमजोरी यहां पर पत्तियां और टहनियां मुरझाने लगती हैं तो ऐसे में आप समझ जाइए कि किसी भी प्रकार की बीमारी लग चुकी है। ऐसे में आप कीटनाशक और खा दुर्गा सप्ताह में दो-तीन बार छिड़काव अवश्य करें। ऐसा करने से सभी कीट पतंग और अन्य बीमारियां पौधे को विकसित होने से नहीं रोक पाती हैं और पौधे का संपूर्ण रूप से विकास होता है। आशा करते हैं की गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे की जानकारी आपके लिए उपयोगी हो ।
श्रावण मास में उगाएंगे ये फलफूल, तो अच्छी आमदनी होगी फलीभूत

श्रावण मास में उगाएंगे ये फलफूल, तो अच्छी आमदनी होगी फलीभूत

श्रावण मास में रहती है इन चीजों की मांग : उद्यान/किसान कमा सकते हैं तगड़ा मुनाफा

भगवान
शिव की सेवा में समर्पित श्रावण मास के दौरान खास किस्म के पुष्पों, पौधों, प्रसाद की मांग बढ़ जाती है। ऐसे में कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के लिए पूर्व नियोजित तैयारी की मदद से, सावन की रिमझिम फुहार के बीच, किसान आमदनी की बौछार में तरबतर हो सकते हैं।

कांवड़ यात्रा के दौरान रहेगी इनकी मांग

भगवान शिव को अर्पित होने वाली फूल व पौधों की खेती के बारे में जानकारी, जिससे श्रावण मास (Shraavana) में कांवड़ यात्रा के माह में फलीभूत होती है तगड़ी कमाई। सावन के महीने में भगवान शिव को बिल्व (Indian bael) या बेल पत्र, भांग-धतूरा, आंकड़ा या मदार के पुष्प एवं पत्ते आदि चढ़ाना शुभ माना जाता है। इन फूल पौधों की खेती व दूध-दही के उत्पाद से किसानों के साथ-साथ पशु पालकों को भी श्रावण मास में आमदनी का प्रसाद मिल जाता है।

क्या उगाएं किसान

भगवान शिव को फल-फूल-सब्जी एवं अनाज चढ़ाने के अपने महत्व हैं। भगवान भोले को शमी एवं बिल्व के पत्र, बेला का फूल विशिष्ट रूप से अर्पित किया जाता है। भगवान शिव की आराधना में अलसी के फूलों का भी खास महत्व है। कनेर का फूल भगवान शिव के साथ अन्य देवी-देवताओं को भी अर्पित किया जा सकता है। भगवान शिव को प्रिय चमेली के फूलों की खेती करके भी किसान बेहतर कमाई का जरिया तलाश सकते हैं। बेला, कनेर, चमेली के पुष्प ऐसे फूल हैं जिनकी मांग साल भर धार्मिक अनुष्ठानों एवं पुष्प प्रेमियों के बीच बनी रहती है। भगवान शिव को हरसिंगार का पुष्प भी चढ़ाया जाता है। हरसिंगार को पारिजात या शिउली के पुष्प के नाम से भी पुकारा जाता हैा। नारंगी डंडी वाला सफेद रंग का यह पुष्प रात्रि में खिलता है। अपराजिता का फूल भी भोलेनाथ को चढ़ाया जाता है, अपराजिता के फूलों यानी तितली मटर (butterfly pea, blue pea, Aprajita, Cordofan pea, Blue Tea Flowers or Asian pigeonwings) की पहचान, उसके औषधीय गुणों के कारण दुनिया भर में है। यह तो हुई सुगंध एवं सुंदरता से लैस पुष्पों से जुड़े किसानों के लिए कमाई के अवसर की बात, अब बात करते हैं भगवान वैद्यनाथ को अर्पित की जाने वाली उन चीजों की, जो अपनी प्रकृति के कारण औषधीय गुणों से भी भरपूर हैं।


ये भी पढ़ें: कीचड़ में ही नहीं खेत में भी खिलता है कमल, कम समय व लागत में मुनाफा डबल !

अकौआ, आंकड़ा या मदार

अकौआ जिसे आंकड़ा या मदार भी कहा जाता है, इसके लाल एवं सफेद रंग के पुष्प भगवान शिव की उपासना में अर्पित किए जाते हैं। इसके पुष्प एवं पत्ते भी भगवान शिव को चढ़ाने का विधान है। मान्यताओं के अनुसार आंकड़े के पुष्प चढ़ाने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके फूलों का इलाज में भी उपयोग होता है। खांसी आदि में इसका लौंग आदि से वैद्य द्वारा तैयार मिश्रण खासा मददगार साबित होता है।

बिल्व पत्र एवं फल

भगवान शिव को बिल्व पत्र एवं बिल्व फल चढ़ाकर शिवभक्त पूजन करते हैं। किसान मित्र, नर्सरी में मिलने वाले बिल्व जिसे आम बोलचाल की भाषा में बेल भी कहते हैं, का पौधा खेत या बगीचे में लगाकर सावन के अलावा अन्य माह में भी अपनी आय सुनिश्चित कर सकते हैं। बिल्व पत्र की मांग जहां साल भर रहती है, वहीं इसके फल खाने के साथ ही शरबत के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं। कृषि उत्पाद के तौर पर बेल की जैली, मुरब्बा की भी बाजार में खासी मांग है।

शिव प्रिय फल के रामबाण इलाज

औषधीय उपयोग में भी बेल के फल, छाल, जड़ों को उपयोग में लाया जाता है। कब्ज आदि के उपचार में शिव प्रिय बेल का फल रामबाण इलाज माना जाता है।


ये भी पढ़ें: घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां

इन चीजों की जरूरत

शिवभक्त भगवान शिव की आराधना के दौरान भांग, धतूरा, ऋतुफल भी चढ़ाए जाते हैं।

भांग-धतूरा

भांग की खेती जहां, सरकारी अनुमति से की जाती है, वहीं धतूरे की खेती करते समय किसान को कुछ सावधानियां बरतना अनिवार्य है। आम तौर पर दोनों ही चीजें मानवीय मस्तिष्क तंत्र को प्रभावित करती हैं। इसका प्रयोग एलोपेथिक दवाओं के साथ ही आयुर्वेद आदि में प्रचुरता से किया जाता है। इनकी शासकीय नियमानुसार खेती कर किसान न केवल श्रावण मास, बल्कि साल के अन्य दिनों में भी अपना लाभ पक्का कर सकते हैं। (लेख में वर्णित भांग, धतूरा आदि के बगैर चिकित्सक की सलाह के प्रयोग से बचें। इनका गलत मात्रा में प्रयोग प्राणघातक हो सकता है।)
बारह महीने उपलब्ध रहने वाले इस फूल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान

बारह महीने उपलब्ध रहने वाले इस फूल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान

उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद मिर्जापुर में भदोही निवासी किसान नजम अंसारी गुलाब और जरबेरा के फूलों का उत्पादन करके अच्छा खासा लाभ उठा रहा है। जरबेरा के फूलों मांग अधिकांश बड़े शहरों में होती है और किसान इसके फूलों की आपूर्ति भी करता है। किसान इन फूलों की खेती पाली हाउस की सहायता से तैयार करता है। इन फूलों के उत्पादन से बहुत सारे जरूरतमंदों को रोजगार का अवसर प्राप्त होता है। जरबेरा एवं गुलाब के फूलों की विशेष बात यह है कि इनका प्रयोग खुशनुमा समारोह में अधिकतर होता है जैसे जन्मोत्सव, विवाह समारोह एवं अतिथि गृह को सजाने इत्यादि। इस वजह से कई सारे किसान फूल की खेती की तरफ अपना रुख कर रहे हैं।

नजीम अंसारी कितनी भूमि में कर रहे हैं, जरबेरा की खेती

बतादें कि उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद मिर्जापुर में भदोही निवासी किसान नजम अंसारी ने तकरीबन ३ बीघे भूमि पर गुलाब एवं जरबेरा के पुष्पों का उत्पादन किया है। जरबेरा एवं गुलाब के फूलों का उत्पादन करने हेतु पाली हाउस तकनीक की सहायता ली जा रही है। फूलों के उत्पादन के लिए १५ से २० लोग कार्यरत हैं। जरबेरा के फूलों की आपूर्ति प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर लखनऊ समेत और भी बहुत सारे जिलों की जाती है। यदि इनकी कीमत की बात की जाये तो जरबेरा का एक फूल ८ से १० रूपये में बिकता है। समारोह कार्यक्रमों के दौरान इसकी मांग के साथ साथ इसकी कीमत में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है।


ये भी पढ़ें:
फूलों की खेती से कमा सकते हैं लाखों में
प्रत्येक फूल अपने आप में मूल्यवान होता है, जरबेरा फूल की खेती भी किसानों को धनवान बनाने में सक्षम है। जरबेरा के फूलों को पाली हाउस में निर्धारित तापमान में ही रखा जाता है। भदोही किसान नजम अंसारी का कहना है, कि जरबेरा फूलों का उत्पादन उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व ही की थी, परंतु अब इसकी सहायता से बेहद अच्छा खासा लाभ अर्जित कर रहे हैं। इन फूलों के उत्पादन में पाली हाउस एक अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि पालीहाउस में २० से २५ डिग्री सेल्सियस तापमान स्थिरता रखने में मदद करता है, जो कि इन फूलों के बेहतर उत्पादन में बेहद सहायक साबित होता है। हालाँकि, ठंड के समय इसके उत्पादन में घटोत्तरी होती है।

जरबेरा का फूल कितने दिन तक ज्यों का त्यों रह सकता है

जरबेरा एक बहुत ही सुंदर और आकर्षक पुष्प है, इसकी रंग बिरंगी पंखुड़ियों को निहारने से बेहद आन्तरिक सुकून और चैन मिलता है। इसी वजह से जरबेरा के पुष्पों का इस्तेमाल कार्यालयों, भोजनालयों, विश्रामालयों, गुलदस्ते बनाने एवं वैवाहिक समारोहों में सजावट हेतु इत्यादि में इस्तेमाल होता है। यह सफेद, गुलाबी, लाल पीला, नारंगी एवं और भी रंगों वाला जरबेरा वर्ष के १२ माह उपलब्ध होता है। बतादें कि जरबेरा के फूल से आयुर्वेदिक औषधियां भी निर्मित होती हैं। जरबेरा पुष्प की एक विशेषता यह भी है, कि पानी के बोतल में इसे रखने पर यह दो सप्ताह तक से भी ज्यादा ज्यों का त्यों रह सकता है।