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रायपुर

CG: छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड ऑनलाइन (Chhattisgarh Misal Bandobast Record) ऑनलाइन ऐसे देखें

CG: छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड ऑनलाइन (Chhattisgarh Misal Bandobast Record) ऑनलाइन ऐसे देखें

CG Misal Bandobast Record से जुड़े ऑनलाइन मंत्र

छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्रीय डिजिटल भारत मिशन के अंतर्गत छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड (Chhattisgarh Misal Bandobast Record) प्रक्रिया को पूर्णतः ऑनलाइन (Online) कर दिया है। CG मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड (CG Misal Bandobast Record) प्रक्रिया के ऑनलाइन होने से
छत्तीसगढ़ प्रदेश के नागरिकों को संबंधित रिकॉर्ड की वर्तमान स्थिति जानने में आसानी होगी। इस प्रक्रिया के तहत छत्तीसगढ़ शासन कार्यालय कलेक्टोरेट ने प्रदेश के सभी जिलों के लिए अलग-अलग जिलों के अनुसार मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड का डिजिटल ऑनलाइन खाका (फॉर्मेट) बनाकर उसको जिलेवार उपलब्ध कराया है। संबंधित नागरिक इस कार्य के लिए तैयार की गई आधिकारिक वेबसाइट www.cg.nic.in/ के माध्यम से मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड स्थिति का ऑनलाइन अध्ययन कर प्रतिलिपि प्राप्त कर सकते हैं।

नो दफ्तर, ऑनलाइन अवसर

छत्तीसगढ़ में मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड इंटरनेट पर मुहैया हो जाने के कारण आदिवासी बहुल प्रदेश के किसी भी जिले के निवासी अब ऑनलाइन तरीके से मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड की खाना तलाशी कर सकेेंगे।


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छत्तीसगढ़ में दुर्ग, धमतरी, जांजगीर, कोरबा, रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर जैसे प्रमुख शहर आधारित जिलों के साथ ही सुदूरवर्ती ग्रामीण अंचल से नाता रखने वाले जिलों का मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड तैयार कर ऑनलाइन उपलब्ध कराने से शासकीय प्रक्रिया में गति आएगी। छत्तीसगढ़ के नागरिकों को अब CG मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड की जानकारी प्राप्त करने के लिए सरकारी दफ्तर तक नहीं जाना पड़ेगा। छत्तीसगढ़ के नागरिक अब इंटरनेट की मदद से लगभग सभी जिलों से संबंधित मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड को प्राप्त कर सकते हैं। इस सुविधा से पटवारियों पर से भी काम का बोझ कम होगा।


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डाउनलोड एंड प्रिंट

छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड (Chhattisgarh Misal Bandobast Record) प्रक्रिया को पूर्णतः ऑनलाइन (Online) करने का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि, जानकारी हासिल करने के लिए लोगों की पटवारी पर निर्भरता अब समाप्त हो गई है। अतिरिक्त लाभ यह भी है कि इससे कागज, बिजली, स्याही की तक बचत होगी। वेबसाइट पर जिलों के रिकॉर्ड को डाउनलोड करने यानी कंप्यूटर, मोबाइल या फिर किसी मैमोरी में सेव करने का विकल्प भी प्रदान किया गया है। आवश्यक होने पर संबंधित जानकारी जुटाने वाला नागरिक सूचनाओं का प्रिंट भी इस वेबसाइट से ले सकता है। स्क्रीन शॉट से भी संबंधित जानकारी को अपने पास इमेज के रूप में सुरक्षित रखा जा सकता है।

CG मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड क्या है

छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड प्रदेश के नागरिकों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज है।


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ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में 1929-30 के दशक में संपूर्ण देश की भूमि संबंधी मूल रिकॉर्ड का दस्तावेजीकरण किया था। मिसल रिकॉर्ड को पी1 रिकॉर्ड भी कहा जाता है। इसे 1929-30, 1938-39, 1942-43 के वर्षों के दौरान रिकॉर्ड किया गया था। इस महत्वपूर्ण दस्तावेज में किसानों के नाम और उनकी मूल जाति का उल्लेख किया जाता है। अंग्रेजों द्वारा निर्मित यह दस्तावेजीकरण ही मिसल बंदोबस्त के नाम से पहचाना जाता है। यह वही रिकॉर्ड है जिसके आधार पर देश के राज्य एवं केंद्र सरकार जमीनों का प्रबंधन करती आई हैं। मध्यप्रदेश से विखंडित होकर छत्तीसगढ़ राज्य का सृजन भी मिसल बंदोबस्त के आधार पर ही हुआ था। नए राज्य के गठन के बाद छत्तीसगढ़ राज्य में कई जिलों के मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड न मिलने की शिकायतें भी सामने आईं। मिसल बंदोबस्त कई तरह के शासकीय कार्यों के लिए अति महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

जानिये ऑनलाइन प्रक्रिया के बारे में

छत्तीसगढ़ सरकार ने जिलों की जानकारी के मान से जिलेवार सूचनाओं का समंकन किया है। इस प्रक्रिया के तहत अलग-अलग जिलों के लिहाज से मिसल रिकॉर्ड के डिजिटल फॉर्म को ऑनलाइन प्रक्रिया के लिए तैयार किया गया है।

इस ऑनलाइन सुविधा का लाभ छत्तीसगढ़ प्रदेश के सभी नागरिक उठा सकते हैं।

छत्तीसगढ़ मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड (Misal Bandobast Records Chhattisgarh ) देखने के लिए पहले कुछ आसान प्रक्रिया को पूरा करना होगा। वेबसाइट www.cg.nic.in/ के होमपेज पर संबंंधित जिला, तहसील, राजस्व न., प.ह.नं, गांव, अभिलेख, CG मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड आदि के बारे में चयन करने के बाद सर्च (खोजें) विकल्प पर क्लिक करने से संबंधित उपयोगकर्ता को मिसल बंदोबस्त के बारे में इच्छित जानकारी प्राप्त हो सकती है। सर्च ऑप्शन को क्लिक करने के बाद स्क्रीन पर संबंधित क्रमांक के तहत शामिल गांव का संपूर्ण मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड नाम सहित दिखने लगेगा। इसी तरह अन्य विकल्पों के माध्यम से उपयोगकर्ता संबंधित रिकॉर्ड को डाउनलोड करने के साथ ही उसका प्रिंट भी प्राप्त कर सकता है।
दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान

दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान

विकास के लिए रायपुर में आज से जुटेंगे, देश भर के सौ से अधिक कृषि वैज्ञानिक

रायपुर। छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहनी फसलें ली जा रहीं है, जिनमें अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजमा एवं मटर प्रमुख हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में दलहनी फसलों पर अनुसंधान एवं प्रसार कार्य हेतु तीन
अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाएं - मुलार्प फसलें (मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा, मटर), चना एवं अरहर संचालित की जा रहीं है जिसके तहत नवीन उन्नत किस्मों के विकास, उत्पादन तकनीक एवं कृषकों के खतों पर अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का कार्य किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा अब तक विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील एवं रोगरोधी कुल 25 किस्मों का विकास किया जा चुका है, जिनमें मूंग की 2, उड़द की 1, अरहर की 3, कुल्थी की 6, लोबिया की 1, चना की 5, मटर की 4, तिवड़ा की 2 एवं मसूर की 1 किस्में प्रमुख हैं।


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छत्तीसगढ़ राज्य गठन के उपरान्त पिछले 20 वर्षों में प्रदेश में दलहनी फसलों के रकबे में 26 प्रतिशत, उत्पादन में 53.6 प्रतिशत तथा उत्पादकता में 18.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके बावजूद प्रदेश में दलहनी फसलों के विस्तार एवं विकास की असीम संभावनाएं हैं। इसी के तहत देश में दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास हेतु कार्य योजना एवं रणनीति तैयार करने, देश के विभिन्न राज्यों के 100 से अधिक दलहन वैज्ञानिक, 17 एवं 18 अगस्त को कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में जुटेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से यहां दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक का आयोजन किया जा रहा है। कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागृह में आयोजित इस कार्यशाला का शुभारंभ प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे करेंगे। शुभारंभ समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा, सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव शर्मा, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ. बंसा सिंह तथा भारतीय धान अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के निदेशक डॉ. आर.एम. सुंदरम भी उपस्थित रहेंगे। समारोह की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल करेंगे। इस दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला में चना, मूंग, उड़द, मसूर, तिवड़ा, राजमा एवं मटर का उत्पादन बढ़ाने हेतु नवीन उन्नत किस्मों के विकास एवं अनुसंधान पर विचार-मंथन किया जाएगा।


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भारत आज मांग से ज्यादा कर रहा अनाज का उत्पादन

उल्लेखनीय है कि भारत में हरित क्रांति अभियान के उपरान्त देश ने अनाज उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल कर ली है और आज हम मांग से ज्यादा अनाज का उत्पादन कर रहे हैं। लेकिन, आज भी हमारा देश दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सका है और इन फसलों का विदेशों से बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता हैै। वर्ष 2021-22 में भारत ने लगभग 27 लाख मीट्रिक टन दलहनी फसलों का आयात किया है। देश को दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लगातार प्रयास किये जा रहें हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा किसानों को दलहनी फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वैसे तो भारत विश्व का प्रमुख दलहन उत्पादक देश है और देश के 37 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में दलहनी फसलों की खेती की जाती है। विश्व के कुल दलहन उत्पादन का एक चौथाई उत्पादन भारत में होता है, लेकिन खपत अधिक होने के कारण प्रतिवर्ष लाखों टन दलहनी फसलों का आयात करना पड़ता है।

यह समन्वयक करेंगे चर्चा

इस दो दिवसीय कार्यशाला में इन संभावनाओं को तलाशने तथा उन्हें मूर्त रूप देने का कार्य किया जाएगा। कार्यशाला में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना चना के परियोजना समन्वयक डॉ. जी.पी. दीक्षित, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना मुलार्प के परियोजना समन्वयक डॉ. आई.पी. सिंह, सहित देश में संचालित 60 अनुसंधान केन्द्रों के कृषि वैज्ञानिक शामिल होंगे।