किसान करे कैवेंडिश केले समूह के केले की खेती, शानदार कमाई के बाद भूल जायेंगे धान-गेहूं उपजाना
केले की खेती (Kele ki kheti / Banana Farming) एक ऐसी चीज है जिस पर आपको विचार करना चाहिए। यदि आप कम जमीन होने के बावजूद भी महत्वपूर्ण लाभ कमाना चाहते हैं, तो कैवेंडिश (Cavendish banana) समूह के केलों की खेती करना शुरू कर दें। केले की खेती कभी दक्षिण भारत तक सीमित थी, लेकिन अब यह उत्तर भारत में व्यापक रूप से प्रचलित हो रही है। एक हेक्टेयर में केले की खेती से करीब 8 लाख रुपये का मुनाफा कमाया जा सकता है। बाजार में सुपरफूड की मांग काफी बढ़ गई है। किसान अब धान-गेहूं और अन्य फसलों कि जगह फल और फूलों की खेती करने लगे हैं, ऐसे में केले की खेती कर किसान अपनी उपज पर अधिक फायदा प्राप्त कर सकते हैं। केले विटामिन, खनिज, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होते हैं, और इनमें वसा की मात्रा भी कम होती है। किसान केले कि खेती में अधिक रुचि ले रहे हैं क्योंकि बाजार में इसकी मांग बहुत ही तेजी से बढ़ रहीं हैं।ये भी पढ़ें: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा कॉवेंडिश या कैवेंडिश समूह का केला, जो ड्रिप सिंचाई और अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से प्रति इकाई क्षेत्र में उपज पर काफ़ी ज्यादा लाभ देता है। किसानों द्वारा कैवेंडिश केले को अब लगभग 60% क्षेत्र में उगाया जा रहा है, इसका मुख्य कारण पनामा विल्ट रोग (Panama disease or Fusarium wilt or Bana Wilt) के प्रति इसकी प्रतिरोध क्षमता है और यह अन्य केलों के समूह की तुलना में कहीं अधिक उत्पादन करता है। भारत में केले की लगभग 20 प्रजातियां उगाई जाती हैं।
ये भी पढ़ें: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत राज्य सरकारों को 4000 करोड़ रुपये आवंटित केले की लगभग 1000 से अधिक किस्मों को दुनिया भर में उगाया जाता है। कॉवेंडिश समूह का केला अपने छोटे तनों के कारण, तूफान से होने वाले नुकसान जैसे पर्यावरणीय कारकों के प्रति कम संवेदनशील होते हैं और प्रति हेक्टेयर उच्च पैदावार देते हैं। कॉवेंडिश केले के पौधे प्राकृतिक आपदाओं से तेजी से उबरने के लिए भी प्रसिद्ध है। कैवेंडिश केले का वार्षिक वैश्विक उत्पादन लगभग 50 बिलियन टन है। आम के बाद केला भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फलों में से एक है, लगभग 14.2 मिलियन टन के वार्षिक उत्पादन के साथ, भारत केले के उत्पादन में दुनिया में सबसे आगे है। कॉवेंडिश समूह का केले की इस प्रजाति को पारंपरिक रूप से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर-पूर्वी राज्यों में उगाया जाता है।
कैवेंडिश समूह की किस्म ग्रैंड नैने (एएए) की करें खेती
केले के प्रसिद्ध कैवेंडिश समूह की एक किस्म को "ग्रैंड नैने (एएए)" कहा जाता है। यह एक उच्च उपज देने वाली किस्म है। इसका पौधा 6.5 से 7.5 फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है। ग्रैंड नैन केले किस्म के फल खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं और इसकी फलों की गुणवत्ता हमारी देशी किस्मों के केलों की तुलना में अधिक होती है।ये भी पढ़ें: इस तरह लगाएं केला की बागवानी, बढ़ेगी पैदावार 1990 के दौरान यह प्रजाति भारत में आई थी, इस प्रजाति के आते ही बसराई और रोबस्टा प्रजाति का विस्थापन होना शुरू हो गया। कैवेंडिश किस्म का यह केला महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों के बीच बेहद पसंद किया जाता है, इस प्रजाति के पौधे 12 महीनों में परिपक्व हो जाते हैं और 2.2 से 2.7 मीटर की ऊंचाई तक पहुंचते हैं। इसकी खेती कर किसान कम समय में अधिक मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। केले पहले केवल दक्षिण भारत में उगाए जाते थे, लेकिन अब वे उत्तर भारत में भी उगाए जा रहे हैं। केले की खेती करने वाला किसान पारंपरिक खेती जैसे गेहूं-धान-गन्ना की खेती करना छोड़ ही देता है, क्योंकि केले की खेती से एक वर्ष में होने वाले लाभ को कई वर्षों तक गेहूं-धान-गन्ना के खेती से पूरा नहीं किया जा सकता है।
केले कब और कैसे उगाए जाते हैं?
जून-जुलाई का महीना केले लगाने का सबसे अच्छा समय है, कुछ किसान इसे अगस्त तक लगाते हैं। इसे जनवरी और फरवरी में भी उगाया जाता है। यह फसल 12-14 महीने में पूरी तरह से पक जाती है। केले के पौधे को लगभग 8*4 फीट की दूरी पर लगाना चाहिए और ड्रिप सिंचाई का उपयोग करना चाहिए। एक हेक्टेयर में 3000 तक केले के पौधे लगाए जाते हैं। केले के पौधे नम वातावरण में पनपते हैं और उनमें अच्छी तरह विकसित होते हैं। जब केले में फल लगने लगे तो फलों की सुरक्षा के लिए सावधानी बरतनी चाहिए ताकि वे गंदे न हों और कीड़े नही लगे इसका ध्यान रखना चाहिए, केला बीजों से नहीं बल्कि पौधे को लगा कर इसकी खेती की जाती है। केले के पौधे आपको कई जगहों पर मिल जाएंगे आप इसे नर्सरी कृषि विज्ञान केंद्र से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं, दूसरा आप केले की उन्नत किस्में प्रदान करने वाली कंपनियों से सीधे बात कर सकते हैं, जो आपके घर तक केले के पौधे पहुंचाएगी।ये भी पढ़ें: Gardening Tips: अगस्त में अमरूद, आँवला, केला से जुड़ी सावधानियां एवं देखभाल वहीं सभी राज्य सरकारें भी केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए पौधे उपलब्ध कराती हैं इसलिए आप अपने जिले के कृषि विभाग से भी संपर्क कर सकते हैं, तो आप यदि एक नया कृषि व्यवसाय शुरू करने के इच्छुक हैं और अन्य फसलों के उपज पर मुनाफा अर्जित नही होने से परेशान हैं तो केले की खेती आपके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है। यह उपजाने में आसान और मुनाफे के मामले में गजब फायदा देने वाला है। अन्य कृषि व्यवसायों की तरह वाणिज्यिक केले की खेती के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता भी नहीं होती है।
एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry)[/caption]
आधा स्ट्रॉबेरी आंतरिक संरचना दिखा रहा है (Half cut strawberry view)[/caption]
खेती विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रॉबेरी की खेती को ज्यादा पानी की जरुरत भी नहीं होती है। यह भारतीय किसानों के लिए एक शुभ संकेत है क्योंकि भारत में आजकल हो रहे दोहन के कारण भूमिगत जल लगातार नीचे की ओर जा रहा है, जिसके कारण ट्यूबवेल सूख रहे हैं और सिंचाई के साधनों में लगातार कमी आ रही है। इसलिए भारतीय किसान अन्य खेती के साथ स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भी पानी का उचित प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सिंचाई के लिए उपयुक्त मात्रा में पानी की उलब्धता बनाई जा सके।
एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (Strawberries in a nursery pot)[/caption]
उत्तर प्रदेश के बागवानी अधिकारियों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में एक एकड़ जमीन में लगभग 22,000 पौधे या एक एक हेक्टेयर जमीन में लगभग 54,000 पौधे लगाए जा सकते हैं। इस खेती में किसान भाई लगभग 200 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज ले सकते हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती में लाभ का प्रतिशत 30 से लेकर 50 तक हो सकता है। यह फसल के आने के समय, उत्पादन, डिमांड और बाजार भाव पर निर्भर करता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती सितम्बर और अक्टूबर में शुरू कर दी जाती है। शुरूआती तौर पर स्ट्रॉबेरी के पौधों को ऊंची मेढ़ों पर उगाया जाता है ताकि पौधों के पास पानी इकठ्ठा होने से पौधे सड़ न जाएं। पौधों को मिट्टी के संपर्क से रोकने के लिए प्लास्टिक की मल्च (पन्नी) का उपयोग किया जाता है। स्ट्रॉबेरी के पौधे जनवरी में फल देना प्रारम्भ कर देते हैं जो मार्च तक उत्पादन देते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में भारत में स्ट्रॉबेरी की तेजी से डिमांड बढ़ी है। स्ट्रॉबेरी बढ़ती हुई डिमांड भारत में इसकी लोकप्रियता को दिखाता है।
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स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry)[/caption]
उत्तर प्रदेश के बागवानी विभाग ने बताया कि सरकार स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके अंतर्गत सरकार किसानों को स्ट्रॉबेरी के पौधे 15 से 20 रूपये प्रति पौधे की दर से मुहैया करवाने जा रही है। सरकार की कोशिश है कि किसान इस खेती की तरफ ज्यादा से ज्यादा आकर्षित हो ताकि किसान भी इस खेती के माध्यम से ज्यादा मुनाफा कमा सकें। सरकार के द्वारा सस्ते दामों पर उपलब्ध करवाए जा रहे पौधों को प्राप्त करने के लिए प्रयागराज के जिला बागवानी विभाग में पंजीयन करवाना जरूरी है। जिसके बाद सरकार किसानों को सस्ते दामों में पौधे उपलब्ध करवाएगी। पंजीकरण करवाने के लिए किसान को अपने साथ आधार कार्ड, जमीन के कागज, आय प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, बैंक की पासबुक, पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ इत्यादि ले जाना अनिवार्य है।
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पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries)[/caption]
जानकारों ने बताया कि कुछ सालों पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में खास तौर पर सहारनपुर और पीलीभीत में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की गई थी। वहां इस खेती के बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। सबसे पहले इन जिलों के किसानों की ये खेती करने में सरकार ने मदद की थी लेकिन अब जिले के किसान इस मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुके हैं। इसको देखते हुए सरकार प्रयागराज में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने को लेकर बेहद उत्साहित है। सरकार के अधिकारियों का कहना है, चूंकि इस खेती में पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है और पानी का प्रबंधन भी उचित तरीके से किया जा सकता है, इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के साथ लगभग 2 दर्जन जिलों में किया जा रहा है और अब कई जिलों में तो प्रयोग के बाद अब खेती शुरू भी कर दी गई है।