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हाइड्रोपोनिक्स

हाइड्रोपोनिक्स - अब मृदा की जगह पोषक तत्वों वाले पानी में उगाएँ सब्ज़ी और फ़सलें, उपज जानकर हो जाएंगे हैरान

हाइड्रोपोनिक्स - अब मृदा की जगह पोषक तत्वों वाले पानी में उगाएँ सब्ज़ी और फ़सलें, उपज जानकर हो जाएंगे हैरान

आप सभी ने बचपन में एक कहावत तो सुनी ही होगी की: विज्ञानकेबिनामानवजीवनअधूराहै आज इसी विचारधारा पर आगे बढ़ते हुए कृषि क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिक इस स्तर पर पहुँच गए हैं कि अब फसलों को उगाने के लिए मृदा की भी आवश्यकता नहीं है, 

इससे पहले हमने आपको बिना मिट्टी के एयरोपोनिक्स तकनीक से आलू उगाने की तकनीक के बारे में जानकारी उपलब्ध करवायी थी। 

आज हम आपको बिना मृदा के केवल पानी के एक विलियन (Solution) से किसी भी फसल की छोटी पौध और सब्ज़ी उगाने के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे, जिसे जल संवर्धन या हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक के नाम से जाना जाता है।

क्या होती है हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक और कब हुई थी इसकी शुरुआत ?

इस तकनीक की शुरुआत अमेरिकन आर्मी के कुछ सैनिकों के द्वारा की गई थी, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब उन्हें प्रशांत महासागर के एक टापू पर कुछ समय के लिए रहना पड़ा था। 

इसी दौरान उनके पास खाने की कमी हो गई थी, तो उन्होंने उसी टापू पर बिना मिट्टी के ही सब्ज़ी की छोटी पौध उगाने की शुरुआत कर अपने खाने की व्यवस्था की। 

इस तकनीक में किसी भी फ़सल की छोटी पौध की जड़ों को ऑक्सीजन और कई मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर पानी में डुबोकर रखा जाता है, इन्हीं पोषक तत्वों को ग्रहण कर यह पौधा वृद्धि करता है।

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हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक से होने वाले फ़ायदे :

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल कर अब भारत में रहने वाले कुछ युवा किसान भी अच्छा ख़ासा मुनाफ़ा कमा रहे हैं, क्योंकि इस तकनीक की मदद से निम्न प्रकार के फ़ायदे हो सकते हैं, जैसे कि :

  • बिना मृदा के फ़सल का उत्पादन :

इस तकनीक के इस्तेमाल का यह सबसे बड़ा फ़ायदा है। इसी वजह से भारत में पाई जाने वाली कुछ ऐसी जगहें, जहाँ की मृदा फसल उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं है, अब उन स्थानों पर भी अच्छी-ख़ासी खेती की जा रही है।

  • फ़सल की वृद्धि दर पर बेहतर नियंत्रण :

इस तकनीक के इस्तेमाल की वजह से फ़सल की वृद्धि दर को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है, क्योंकि फसल की पौध को दिए जाने वाले पानी के विलयन में पोषक तत्वों की मात्र आसानी से कम या अधिक की जा सकती है। 

इसी वजह से सही समय पर वृद्धि दर को नाप कर पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाकर वृद्धि दर को भी बढ़ाया जा सकता है।

  • अधिक उत्पादन प्राप्त करना और पर्यावरण जनित रोगों का कम प्रभाव :

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की मदद से फसल और सब्ज़ी की उपज को आसानी से बढ़ाया जा सकता है, इसके अलावा फसल की छोटी पौध में लगने वाले रोगों से भी आसानी से बचा जा सकता है।

केरल के एर्नाकूलम ज़िले में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करने वाले किसान विजयराज बताते हैं कि पिछले दो वर्षों से इस तकनीक की मदद से उनकी वार्षिक उपज में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है और अब उर्वरकों पर होने वाले ख़र्चे में भी कमी देखने को मिली है। 

इसके अलावा कीटनाशक और दूसरे प्रकार के रोगों के निदान में ख़र्च होने वाली लागत को भी बचाया जा रहा है।

  • मृदा में उगाई जाने वाली फसलों की तुलना में कम पानी का इस्तेमाल :

कम बारिश और कम भूजल स्तर वाली जगहों पर पानी की उपलब्धता कम होती है, ऐसे स्थानों पर इस तकनीक का इस्तेमाल कर आसानी से बेहतर फसल उत्पादन किया जा सकता है।

पिछले 3 वर्षों से तमिलनाडु के मदुरई क्षेत्र में रहने वाले कुछ युवा किसान कम पानी के बावजूद भी बेहतर फसल उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

हालांकि ऊपर बताए गए फायदों के अलावा, हाइड्रोपोनिक तकनीक के इस्तेमाल से किसानों पर अधिक आर्थिक दबाव पड़ता है, क्योंकि इसके प्लांट को सेट अप करना काफी महंगा पड़ सकता है। 

इसके अलावा वर्तमान में कुछ युवा और डिजिटल तकनीक का ज्ञान रखने वाले किसान भाई ही इस विधि के प्रयोग में सफलता हासिल कर पाए हैं। इस तकनीक को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए हर समय इलेक्ट्रिसिटी (Electricity) की आवश्यकता होती है, जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसान भाइयों के लिए अभी संभव नहीं है।

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हाइड्रोपोनिक तकनीक के प्लांट में इस्तेमाल आने वाले उपकरण और अन्य माध्यम :

मुख्यतः इस तकनीक में एक 'सयंत्र' सेटअप किया जाता है, जिसके अंदर ही पौधे को लगाया जाता है और  ऑक्सीजन तथा बेहतर पोषक तत्वों से घुलित पानी के मिश्रण को प्रवाहित किया जाता है, 

बेहतर प्रवाह के लिए इलेक्ट्रिक पंप तथा एयरस्टोन जैसे उपकरणों की आवश्यकता होती है। वर्तमान में हाइड्रोपोनिक तकनीक के लिए भारत में इस्तेमाल किए जा रहे 'सयंत्र' : वर्तमान में केरल और तमिलनाडु में रहने वाले भारतीय युवा किसान, हाइड्रोपोनिक तकनीक में इस्तेमाल आने वाले दो तरह के संयंत्रों का प्रयोग कर रहे हैं, जो कि निम्न प्रकार है :

  • निरंतर पोषक तत्व प्रवाहित होने वाला सयंत्र (Continuous flow Nutrient Film Technique (NFT)) :

हाइड्रोपोनिक संयंत्र में पानी से भरपूर पोषक तत्व का निरंतर प्रवाह किया जाता है और एक बार प्रवाहित होने के बाद पानी को वापस इलेक्ट्रिक पंप की सहायता से दोबारा से पाइप लाइन से गुजारा जाता है।

हाइड्रोपोनिक्स जनित पत्तेदार सब्जियां। लेखक-रयान सोमा; (Hydroponics with leafy vegetables. Author-Ryan Somma) हाइड्रोपोनिक्स जनित पत्तेदार सब्जियां (Hydroponics with leafy vegetables. Source: Wiki; Author-Ryan Somma (रयान सोमा))[/caption]

इस तकनीक की मदद से पौधे की जड़ों को आसानी से ऑक्सीजन और पानी की आपूर्ति की जाती है और पोषक तत्व का प्रबंधन भी बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

हाल ही में केरल के अर्नाकुलम और कोच्चि क्षेत्र के किसान भाई इस तकनीक की मदद से टमाटर उगाने में सफल हुए हैं।

  • गहरे पानी में लगाया जाने वाला संयंत्र (Deep Water Culture (DWC) system) :

इस प्रकार के संयंत्र की मदद से आसानी से फसल की अधिक मात्रा का उत्पादन किया जा सकता है और आसानी से बड़े प्लांट को सेटअप किया जा सकता है।

गहरे पानी में होने की वजह से तापमान का बेहतर नियंत्रण किया जा सकता है और इलेक्ट्रिक वाल्व की मदद से पानी के प्रभाव को भी कम या अधिक किया जा सकता है।

डीप वाटर कल्चर से लेट्यूस उत्पादन (Deep water culture (DWC) in lettuce production (Source:Wiki; Author -ArcadiYay) डीप वाटर कल्चर से लेट्यूस उत्पादन (Deep water culture (DWC) in lettuce production (Source:Wiki; Author -ArcadiYay))[/caption]

आंध्र प्रदेश और केरल राज्य के तटीय इलाकों में रहने वाले कई किसान भाई इस संयंत्र की मदद से अच्छा खासा उत्पादन कर पा रहे हैं।

वर्तमान में हाइड्रोपोनिक तकनीक की मदद से टमाटर, कुकुंबर और स्ट्रॉबेरी तथा कई आयुर्वेदिक उत्पाद प्राप्त किए जा रहे हैं। इस तकनीक के इस्तेमाल में प्रत्येक फसल के लिए अलग तरह के पोषक तत्वों का प्रयोग करना पड़ता है।

वर्तमान में कृषि क्षेत्र से जुड़ी कई भारतीय स्टार्टअप कम्पनियाँ और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां हाइड्रोपोनिक तकनीक के लिए इस्तेमाल आने वाले पोषक तत्वों को बाजार में उपलब्ध करवा रही है। 

आशा करते हैं कि किसान भाइयों को बिना मृदा के फसल उत्पादन करने की इस नई 'हाइड्रोपोनिक तकनीक' के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। यदि आपके क्षेत्र में पाई जाने वाली मर्दा की उर्वरा शक्ति कमजोर है तो इस तकनीक का इस्तेमाल कर बेहतर वैज्ञानिक विधि से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

बागवानी लगाने के लिए बिहार सरकार किसानों को दे रही है 25000 रुपया

बागवानी लगाने के लिए बिहार सरकार किसानों को दे रही है 25000 रुपया

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हाल के दिनों में युवाओं का खेती के तरफ काफी रुझान बढ़ा है, जिससे खेती के क्षेत्र में भी काफी नए-नए प्रयोग और नए नए तकनीकी प्रयोग भी हो रहे हैं। इसी नए तकनीक के क्रम में जो आज इस लेख में जो मैं बताने जा रहा हूं, उसको जानकर आप काफी आश्चर्य में पड़ जाएंगे कि अब किसान बिना जमीन के भी अच्छा कमा सकते हैं। हाल फिलहाल के कुछ वर्षों में आप देख रहे होंगे कि लोग छत पर काफी तरीके का खेती और बागवानी लगा रहे हैं। इसके लिए सरकार भी काफी सुविधाएं दे रही है, क्योंकि इसमें वैसे किसान भी हिस्सा ले रहे हैं जिनके पास जमीन नहीं है। आपको बता दें कि इस तकनीक के कारण घर की महिलाएं भी अब खेती कर कमाने लगी हैं। जिन किसानों के पास जमीन की समस्याएं थी उनके लिए यह तकनीक वरदान की तरह साबित होते दिख रहा है।


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आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि, सिर्फ किसान ही नहीं इसमें अच्छे खासे बड़े बड़े पैसे वाले लोग भी इस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं, क्योंकि इस तकनीक के कारण वह अपने से उगाए हुए सब्जी का आनंद ले सकें। यह तकनीक खासकर कोरोना जैसी महामारी में लोगों को काफी मदद की है, जिस समय आम लोग बाहर नहीं निकल सकते थे, वह अपने छत पर इस तरीके के तकनीकों का उपयोग कर सब्जियां उगा सकते थे। आपको बता दें कि इस खेती के लिए सरकार भी काफी मदद कर लोगों को सब्सिडी दे रही है। आपको बता दें कि इस तरीके का प्रयोग कर शहरी क्षेत्रों के लोग अपने छत पर सब्जी टमाटर धनिया आदि को उपजा कर काफी मुनाफा कमा सकते हैं। इस तकनीक का प्रयोग दो तरीके से हो रहा है, पहला तरीका जिसमें लोग अपने घर की छतों पर गमला में मिट्टी के साथ कुछ ऑर्गेनिक खाद का प्रयोग कर आसानी से सब्जी उगा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर हाइड्रोपोनिक्स तरीके से किसान सब्जी और फल उगा रहे हैं, जिसमें मिट्टी की कोई आवश्यकता ही नहीं है। इस तकनीक में आप सिर्फ पानी का प्रयोग कर फल और सब्जी उगा सकते हैं। आपको बता दें कि हाइड्रोपोनिक्स तरीके से सब्जी और फल उगाने में जलवायु नियंत्रण जैसे किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। इस तरीके से सब्जी उगाने के लिए 30 डिग्री सेल्सियस तक तापमान की आवश्यकता होती है। इस हाइड्रोपोनिक्स तरीके की खेती में आद्रता ज्यादा से ज्यादा होने पर भी फसल अच्छी होती है।


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सरकार भी दे रही है सब्सिडी

इस तरह की खेती को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार लोगों को छत पर बागवानी मिशन के तहत ₹५०००० तक लोन तथा ५०% सब्सिडी देने की योजना बनाई है। अगर ठीक से देखा जाए तो इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार लोगों को ₹२५००० रुपए देने की योजना बनाई है।

अप्लाई करने का तरीका

जो भी व्यक्ति इस तरीके की खेती करना चाहते हैं वह बिहार सरकार के हॉर्टिकल्चर के वेबसाइट पर जाकर वहां अपना आवेदन कर सकते हैं। साथ ही आपको यह भी बता दें कि, इस योजना में आवेदन की शुरुआत 26 अक्टूबर से ही कर दी गई है। अगर आप भी चाहते हैं छत पर बागवानी लगाना और पैसा कमाना तो तो जल्द से जल्द करें आवेदन कहीं ए मौका आपके हाथों से निकल ना जाए।
इस तकनीक से किसान सिर्फ पानी द्वारा सब्जियां और फल उगा सकते हैं

इस तकनीक से किसान सिर्फ पानी द्वारा सब्जियां और फल उगा सकते हैं

किसान भाइयों आपको खेती करने के लिए भूमि की कोई आवश्यकता नहीं है। अब किसान भाई पानी पर ही फल और सब्जियां पैदा कर सकते हैं। जो कि पोषण तत्वों से भरपूर होंगी। विश्व भर में खेती को सुगम करने के लिए नवीन तकनीक विकसित की जा रही हैं। 

इन समस्त तकनीकों की सहायता से संसाधनों की बचत एवं मेहनत की खपत भी कम होती है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक भी इसी में शुमार है। जहां पारंपरिक खेती में कृषि यंत्रों, खेत, उर्वरक, खाद एवं सिंचाई की बड़ी मात्रा में जरूरत पड़ती है।

वहीं, इको फ्रेंडली-हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से बेहतरीन फसल कम पानी में पैदा की जा सकती है। हाइड्रोपोनिक्स खेती में मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इस वजह से इसको संरक्षित ढांचे में करना चाहिए। 

इसमें पानी के अतिरिक्त खनिज पदार्थ एवं पोषक तत्व बीजों एवं पौधों को मिलते हैं। बतादें, कि इनमें कैल्शियम, पोटाश, जिंक, सल्फर, आयरन, फास्फोरस, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम और अन्य बहुत सारे पोषक तत्व शामिल हैं, जिससे फसल की पैदावार 25–30 प्रतिशत बढ़ती है।

हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से संसाधनों के साथ परिश्रम की खपत भी कम है

दुनिया भर में खेती को सुगम बनाने के लिए नवीन तकनीक तैयार की जा रही हैं। इससे संसाधनों की बचत एवं परिश्रम की खपत कम होती है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक भी इसके अंतर्गत शम्मिलित हैं। 

जहां पारंपरिक खेती में कृषि यंत्रों, खेत, उर्वरक, खाद और सिंचाई की बड़ी मात्रा में जरूरत पड़ती है। उधर इको फ्रेंडली-हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के माध्यम से बेहतरीन फसल कम पानी में पैदा की जा सकती है।

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हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से उगाए सब्जियां

इस तकनीक में प्लास्टिक की पाइपों में बड़े छेद निर्मित किए जाते हैं। जहां पर छोटे-छोटे पौधे भी लगाए जाते हैं। पानी से 25-30 प्रतिशत ज्यादा विकास होता है। इन पौधों को बीज बोकर ट्रे में बड़ा किया जाता है। 

बतादें, कि ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका और सिंगापुर में हाइड्रोपॉनिक का इस्तेमाल हो रहा है। यह तकनीक भारतीय किसानों एवं युवा लोगों में भी काफी हद तक लोकप्रिय हो रही है। 

हाइड्रोपोनिक खेती में बड़े-बड़े खेत की जरूरत नहीं पड़ती है। किसान भाई कम भूमि के हिस्से पर भी खेती कर सकते हैं।

इस तकनीक से ये सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक सब्जियों की खेती के अंतर्गत सफल हो चुकी है। भारत में बहुत सारे किसान इस तकनीक का इस्तेमाल करके छोटे पत्ते वाली सब्जियों की खेती कर रहे हैं, जैसे कि खीरा, मटर, मिर्च, करेला, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूज, अनानास, गाजर, शलजम, ककड़ी, मूली, अनानास, शिमला मिर्च, धनिया, टमाटर और पालक।

हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक के जरिए पोषण से भरपूर सब्जियां उगती हैं

हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक के माध्यम से उगने वाली सब्जियां पोषण से भरपूर होती हैं। इसलिए इनकी हमेशा मांग बनी रहती है। 100 वर्ग फुट के इलाके में इसे निर्मित करने की लागत 50,000 से 60,000 रुपये हो सकती है। 

साथ ही, 100 वर्ग फुट इलाके में 200 सब्जी पौधे लगाए जा सकते हैं। कमाई के संदर्भ में यह तकनीक ज्यादा रकबे में किसानों को मुनाफा दिला सकती है। हाइड्रोपॉनिक्स को ज्यादा धन कमाने के लिए कम क्षेत्रफल में अनाजी फसलों के साथ पौधे लगाए जा सकते हैं।