Ad

IYoM

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये

दुनिया को समझ आया बाजरा की वज्र शक्ति का माजरा, 2023 क्यों है IYoM

पोषक अनाज को भोजन में फिर सम्मान मिले - तोमर भारत की अगुवाई में मनेगा IYoM-2023 पाक महोत्सव में मध्य प्रदेश ने मारी बाजी वो कहते हैं न कि, जब तक योग विदेश जाकर योगा की पहचान न हासिल कर ले, भारत इंडिया के तौर पर न पुकारा जाने लगे, तब तक देश में बेशकीमती चीजों की कद्र नहीं होती। कमोबेश कुछ ऐसी ही कहानी है देसी अनाज बाजरा की।

IYoM 2023

गरीब का भोजन बताकर भारतीयों द्वारा लगभग त्याज्य दिये गए इस पोषक अनाज की महत्ता विश्व स्तर पर साबित होने के बाद अब इस अनाज
बाजरा (Pearl Millet) के सम्मान में वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM) के रूप में राष्ट्रों ने समर्पित किया है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
मिलेट्स (MILLETS) मतलब बाजरा के मामले में भारत की स्थिति, लौट के बुद्धू घर को आए वाली कही जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। पीआईबी (PIB) की जानकारी के अनुसार केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जुलाई मासांत में आयोजित किया गया पाक महोत्सव भारत की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 लक्ष्य की दिशा में सकारात्मक कदम है। पोषक-अनाज पाक महोत्सव में कुकरी शो के जरिए मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा, अथवा मोटे अनाज पर आधारित एवं मिश्रित व्यंजनों की विविधता एवं उनकी खासियत से लोग परिचित हुए। आपको बता दें, मिलेट (MILLET) शब्द का ज्वार, बाजरा आदि मोटे अनाज संबंधी कुछ संदर्भों में भी उपयोग किया जाता है। ऐसे में मिलेट के तहत बाजरा, जुवार, कोदू, कुटकी जैसी फसलें भी शामिल हो जाती हैं। पीआईबी द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार महोत्सव में शामिल केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मिलेट्स (MILLETS) की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

ये भी पढ़ें: ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का
अपने संबोधन में मंत्री तोमर ने कहा है कि, “पोषक-अनाज को हमारे भोजन की थाली में फिर से सम्मानजनक स्थान मिलना चाहिए।” उन्होंने जानकारी में बताया कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष घोषित किया है। यह आयोजन भारत की अगु़वाई में होगा। इस गौरवशाली जिम्मेदारी के तहत पोषक अनाज को बढ़ावा देने के लिए पीएम ने मंत्रियों के समूह को जिम्मा सौंपा है। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने दिल्ली हाट में पोषक-अनाज पाक महोत्सव में (IYoM)- 2023 की भूमिका एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि, अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक कार्यक्रमों के आयोजन की विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई है।

बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की वज्र शक्ति का राज

ऐसा क्या खास है मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा या मोटे अनाज में कि, इसके सम्मान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरा एक साल समर्पित कर दिया गया। तो इसका जवाब है मिलेट्स की वज्र शक्ति। यह वह शक्ति है जो इस अनाज के जमीन पर फलने फूलने से लेकर मानव एवं प्राकृतिक स्वास्थ्य की रक्षा शक्ति तक में निहित है। जी हां, कम से कम पानी की खपत, कम कार्बन फुटप्रिंट वाली बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) की उपज सूखे की स्थिति में भी संभव है। मूल तौर पर यह जलवायु अनुकूल फसलें हैं।

ये भी पढ़ें: बाजरे की खेती (Bajra Farming information in hindi)
शाकाहार की ओर उन्मुख पीढ़ी के बीच शाकाहारी खाद्य पदार्थों की मांग में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हो रही है। ऐसे में मिलेट पॉवरफुल सुपर फूड की हैसियत अख्तियार करता जा रहा है। खास बात यह है कि, मिलेट्स (MILLETS) संतुलित आहार के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा में भी असीम योगदान देता है। मिलेट (MILLET) या फिर बाजरा या मोटा अनाज बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन और खनिजों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भंडार है।

त्याज्य नहीं महत्वपूर्ण हैं मिलेट्स - तोमर

आईसीएआर-आईआईएमआर, आईएचएम (पूसा) और आईएफसीए के सहयोग से आयोजित मिलेट पाक महोत्सव के मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि, “मिलेट गरीबों का भोजन है, यह कहकर इसे त्याज्य नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे भारत द्वारा पूरे विश्व में विस्तृत किए गए योग और आयुर्वेद के महत्व की तरह प्रचारित एवं प्रसारित किया जाना चाहिए।” “भारत मिलेट की फसलों और उनके उत्पादों का अग्रणी उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र है। मिलेट के सेवन और इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में जागरूकता प्रसार के लिए मैं इस प्रकार के अन्य अनेक आयोजनों की अपेक्षा करता हूं।”

ये भी पढ़ें: बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

मिलेट और खाद्य सुरक्षा जागरूकता

मिलेट और खाद्य सुरक्षा संबंधी जागरूकता के लिए होटल प्रबंधन केटरिंग तथा पोषाहार संस्थान, पूसा के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया। मुख्य अतिथि तोमर ने मिलेट्स आधारित विभिन्न व्यंजनों का स्टालों पर निरीक्षण कर टीम से चर्चा की। महोत्सव में बतौर प्रतिभागी शामिल टीमों को कार्यक्रम में पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया।

मध्य प्रदेश ने मारी बाजी

मिलेट से बने सर्वश्रेष्ठ पाक व्यंजन की प्रतियोगिता में 26 टीमों में से पांच टीमों को श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर चुना गया था। इनमें से आईएचएम इंदौर, चितकारा विश्वविद्यालय और आईसीआई नोएडा ने प्रथम तीन क्रम पर स्थान बनाया जबकि आईएचएम भोपाल और आईएचएम मुंबई की टीम ने भी अंतिम दौर में सहभागिता की।

इनकी रही उपस्थिति

कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री कैलाश चौधरी, कृषि सचिव मनोज आहूजा, अतिरिक्त सचिव लिखी, ICAR के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र और IIMR, हैदराबाद की निदेशक रत्नावती सहित अन्य अधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे। इस दौरान उपस्थित गणमान्य नागरिकों की सुपर फूड से जुड़ी जिज्ञासाओं का भी समाधान किया गया। महोत्सव के माध्यम से मिलेट से बनने वाले भोजन के स्वास्थ्य एवं औषधीय महत्व संबंधी गुणों के बारे में लोगों को जागरूक कर इनके उपयोग के लिए प्रेरित किया गया। दिल्ली हाट में इस महोत्सव के दौरान पोषण के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गईं। इस विशिष्ट कार्यक्रम में अनेक स्टार्टअप ने भी अपनी प्रस्तुतियां दीं। 'छोटे पैमाने के उद्योगों व उद्यमियों के लिए व्यावसायिक संभावनाएं' विषय पर आधारित चर्चा से भी मिलेट संबंधी जानकारी का प्रसार हुआ। अंतर राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYoM)- 2023 के तहत नुक्कड़ नाटक तथा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं जैसे कार्यक्रमों के तहत कृषि मंत्रालय ने मिलेट के गुणों का प्रसार करने की व्यापक रूपरेखा बनाई है। वसुधैव कुटुंबकम जैसे ध्येय वाक्य के धनी भारत में विदेशी अंधानुकरण के कारण शिक्षा, संस्कृति, कृषि कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष (IYoM)- 2023 जैसी पहल भारत की पारंपरिक किसानी के मूल से जुड़ने की अच्छी कोशिश कही जा सकती है।
IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार

IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार

भारत की पहल से यूएन में हुआ पारित

दो साल में 146% बढ़ी बाजरा की मांग

कुकीज, चिप्स का बढ़ रहा बाजार

“अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥” महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध महा कल्याण की भावना से परिपूर्ण यह महावाक्य भारतीय संसद भवन में भी सुषोभित है। इसका अर्थ है कि, यह अपना बन्धु है और यह अपना नहीं है, इस तरह का हिसाब छोटे चित्त वाले करते हैं। उदार हृदय वालों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही कुटुंब है। ”धरती ही परिवार है।” सनातन धर्म के मूल संस्कार एवं इस महान विचारधारा के प्रसार के तहत भारत ने अंतर राष्ट्रीय स्तर पर अन्न के प्रति भारतीय मनीषियों द्वारा प्रदत्त सम्मान के प्रति भी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। धरती मेरा कुटुंब है, प्राकृतिक कृषि से उदर पोषण कृषक का दायित्व है।, इन विचारों से भले ही दुनिया पहली बार परिचित हो रही हो, लेकिन भारत में यह पंक्तियां, महज विचार न होकर सनातनी परंपरा का अनिवार्य अंग हैं। भारत में कृषि का चलन बहुत पुराना है। हालांकि अंग्रेजी नाम वाली पैक्ड फूड डाइट (Packed Food Diet) के बढ़ते चलने के कारण युवा वर्ग अब इन यूनिवर्सल थॉट्स (सार्वभौमिक विचार) से दूर भी होता जा रहा है। कोदू, कुटकी, जौ, ज्वार, बाजरा जैसे पारंपरिक अनाज की पहचान को आज की पीढ़ी, हिंदी के अंकों, अक्षरों की तरह भुलाती जा रही है। संभव है, कुछ दिन में कॉर्न, सीड्स जैसे नामों के आगे मक्का, बीज जैसे नाम भी विस्मृत हो जाएं!

भारत सरकार की पहल

प्रकृति प्रदत्त अनाज की किस्मों में निहित जीवन मूल्यों की ओर ध्यान आकृष्ट कराने, भारत सरकार ने साल 2018 को ईयर ऑफ मिलेट्स के रूप में मनाने का निर्णय लेकर, देसी अनाज की किस्मों की ओर दुनिया का ध्यान आकृष्ट कराया। ईयर ऑफ मिलेट्स के तहत सरकारी स्तर पर मोटे अनाज की किस्मों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने तमाम प्रोत्साहन योजनाएं संचालित की गईं।

अब IYoM

इसके बाद
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) को, अनाज की बिसरा दी गईं किस्मों की ओर लौटकर, प्राकृतिक खेती से दोबारा जुड़ने का भारत का यह तरीका पसंद आया, तो वर्ष 2023 को अंतर राष्ट्रीय स्तर पर इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स - आईवायओएम (International Year of Millets - IYoM) अर्थात अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
नैचुरल फार्मिंग (Natural Farming) या प्राकृतिक खेती के दौर में ज्वार, बाजरा, कोदू, कुटकी जैसे मोटे अनाज अब मिलेट्स (MILLET) के रूप में सुपर फूड बनकर धीरे-धीरे फिर से चलन में लौट रहे हैं। क्या आप इक्षु, उर्वास के बारे में जानते हैं। इक्षु अर्थात गन्ना एवं उर्वास यानी ककड़ी, वे नाम हैं जो मिलेट्स (बाजरा, ज्वार) की तरह समय के साथ नाम के रूप में अपनी पहचान बदल चुके हैं।

इस बदलाव की वजह क्या है ?

आखिर क्या वजह है कि दुनिया को अब मोटा अनाज पसंद आने लगा है, करते हैं इस बात की पड़ताल। मोटे अनाज (मिलेट्स/MILLETS) के धरती, प्रकृति और मानव स्वास्थ्य से जुड़े फायदों पर अनुसंधान करने वाले भारत के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय एवं कृषि केंद्रों के शोध अंतर राष्ट्रीय स्तर पर विचार का विषय हैं। इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट्स (International Crops Research Institute for the Semi-Arid Tropics) भी मिलेट्स की उपयोगिता पर रिसर्च करने में व्यस्त हैं। भारत की ही तरह विश्व के तमाम कृषि अनुसंधान केंद्रों का भी यही मानना है कि, बाजरा, ज्वार, पसई का चावल जैसे मोटे अनाज अब वक्त की जरूरत बन चुके हैं। इनके मुताबिक अनाज की इन किस्मों को खाद्य उपयोग के चलन में लाने के लिए अंतर राष्ट्रीय स्तर पर IYoM जैसे साझा सहयोग की जरूरत है। मतलब मोटे अनाज की किस्मों की न केवल व्यापक स्तर पर खेती की जरूरत है, बल्कि उपजे अनाज के लिए विस्तृत बाजार नेटवर्क भी अपरिहार्य है। कृषि प्रधान देश भारत के नेतृत्व में आयोजित यूएन के IYoM 2023 मिशन के तहत लोगों को मोटे अनाज के लाभों के बारे में जागरूक किया जाएगा। इस तारतम्य के तहत हाल ही में भारत में मिलेट्स पाक उत्सव आयोजित किया गया। इसमें मोटे अनाज से बनने वाले व्यंजनों एवं उसके स्वास्थ्य लाभों के बारे में लोगों को जागरूक कर उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया गया।


ये भी पढ़ें: IYoM: मिलेट्स (MILLETS) यानी बाजरा को अब गरीब का भोजन नहीं, सुपर फूड कहिये
मिलेट्स फूड मेले में लोगों की मौजूदगी ने साबित किया कि, लोग मोटे अनाज के आहार के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। इससे पता चलता है कि, मिलेट्स फिर चलन में लौट रहे हैं। मोटे अनाज की फसलों के लिए इसे एक सार्थक संकेत कहा जा सकता है।

मोटे अनाज की कृषि उपयोगिता

मोटा अनाज या बाजरा (मिलेट्स/MILLETS) आम तौर पर किसी भी किस्म की गुणवत्ता वाली मिट्टी में पनप सकता है। इसके लिए किसी खास किस्म की खाद, या रसायन आदि की भी जरूरत नहीं होती। तुलनात्मक रूप से इन फसलों को कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं है।

इसलिए स्मार्ट फूड

मोटा अनाज तेजी से चलन में लौट रहा है। इसमें खेत, जमीन, पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य से जुड़े लाभ ही लाभ समाहित हैं। ये अनाज धरती, किसान और इंसान के लिए लाभकारी होने के कारण इन्हें सुपर फूड कहा जा रहा है। और अधिक खासियतों की यदि बात करें, तो मोटे अनाज को उपजाने के लिए किसान को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती। यह अन्न किस्में तेज तापमान में भी अपना वजूद कायम रखने में सक्षम हैं। मिलेट्स फार्मिंग किसानों के लिए इसलिए भी अच्छी है, क्योंकि दूसरी फसलों के मुकाबले इनकी खेती आसान है। इसके अलवा कीट पतंगों का भी मोटे अनाज की फसल पर कम असर होता है। कीट जनित रोगों से भी ये बचे रहते हैं। मोटे अनाज (मिलेट्स/MILLETS) मानव के स्वास्थ्य के लिए काफी सेहतकारी हैं। मिलेट्स में पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में मौजूद रहता है। अनुसंधान के मुताबिक, बाजरे से मधुमेह यानी शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है। कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) लेवल में भी इससे सुधार होता है। कैल्शियम, जिंक और आयरन की कमी को भी बाजरा दूर करता है।


ये भी पढ़ें: ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का
स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी मोटे अनाज को आहार में शामिल करने की सलाह लोगों को दे रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में डायबिटीज के लगभग 8 करोड़ मरीज हैं। देश में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इनमें से आधे से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित श्रेणी में आते हैँ। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) कुपोषण से मुक्ति के लिए मिलेट्स रिवोल्यूशन (Millets Revolution) की दरकार जता चुके हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार पौष्टिक आहार और अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए भारत को बाजरा क्रांति (Millets Revolution) पर काम करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों की मानें तो भारत के लिए मिलेट्स रिवोल्यूशन इसलिए कठिन नहीं है, क्योंकि मक्के की रोटी, बाजरे के टिक्कड़, खीर आदि के रूप में मोटा अनाज पीढ़ियों से भारतीय थाली का अनिवार्य हिस्सा रहा है। एक तरह से जौ और बाजरा को मानव जाति के इतिहास में खाद्योपयोग में आने वाला प्राथमिक अन्न कहा जा सकता है। सिंधु घाटी की सभ्यता संबंधी अनुसंधानों में बाजरा की खेती के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। भारत के 21 राज्यों में मोटे अनाज की खेती की जाती है। ये मोटे अनाज राज्यों में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार अपना स्थान रखते हैं। राज्यों में मोटे अनाजों (मिलेट्स/MILLETS) को उनकी उपयोगिता एवं जरूरत के हिसाब से उपजाया जाता है। गौरतलब है कि मोटे अनाज प्रकारों से जुड़ी अपनी-अपनी मान्यताएं भी हैं।

भारत में बाजरा पैदावार

भारत प्रतिवर्ष 1.4 करोड़ टन बाजरे की पैदावार करता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक देश माना जाता है। हालांकि बीते 50 सालों में इससे जुड़ी कृषि उत्पादक भूमि घटकर कम होती गई है। यह भूमि 3.8 करोड़ हेक्टेयर से घटकर मात्र 1.3 करोड़ हेक्टेयर के आसपास रह गई है। 1960 के दशक में उत्पन्न बाजरा की तुलना में आज बाजरा की पैदावार कम हो गई है। तब भारत खाद्य सहायता पर निर्भर था। भारत को उस समय देशवासियों के पोषण के लिए अनाज का आयात करना पड़ता था।


ये भी पढ़ें: बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

क्यों पिछड़ा सुपर फूड

खाद्य मामलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने एवं कुपोषण पर लगाम कसने के लिए भारत में हरित क्रांति हुई। इसके परिणाम स्वरूप 60 के दशक के उपरांत भारत में गेहूं एवं चावल की अधिक पैदावार वाली किस्मों को खेत में अधिक स्थान मिलता गया। भारत में 1960 और 2015 के बीच गेहूं का उत्पादन तीन गुना से भी अधिक हुआ। चावल के उत्पादन में इस दौरान 8 सौ फीसद वृद्धि हुई। गेहूं, चावल का दायरा जहां इस कालखंड में बढ़ता गया वहीं बाजरा, ज्वार जैसे मोटे अनाज की पैदावार का क्षेत्रफल सिमटता गया। गेहूं अनाज को प्रोत्साहन देने के चक्कर में बाजरा और उसके जैसे दूसरे पारंपरिक ताकतवर मोटे अनाज की अन्य किस्मों की उपेक्षा हुई। नतीजतन मिलेट्स की पैदावार कम होती गई। दरअसल बाजरा और मोटे अनाज को पकाना सभी को नहीं आता एवं उसको खाद्य उपयोगी बनाने के लिए भी काफी समय लगता है। इस कारण दशकों से इनका बेहद कम उपयोग किया जा रहा है। बाजार ने भी मोटे अनाज की उपेक्षा की है।

समझ आई उपयोगिता

प्राकृतिक अनाज आहार के प्रति जागरूक होती आज की पीढ़ी को अब समय के साथ-साथ मोटे अनाज की उपयोगिता समझ आ रही है। भुलाई गई अनाज की इन किस्मों को चलन में वापस लाने के लिए चावल और गेहूं की फसलों की ही तरह सरकारों को खास ध्यान देना होगा। भारतीय कृषि वैज्ञानिक ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाजों की किस्मों पर व्यापक शोध कर रहे हैं। इनके द्वारा दिए गए सुझावों से किसानों को लाभ भी मिल रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो सालों के दौरान बाजरा की मांग में उल्लेखनीय रूप से 146 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।

बाजरा में बाजरा

बाजार में अब बाजरा जैसे मोटे अनाज से बने तमाम प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं। मिलेट का आटा, कुकीज, चिप्स आदि पैक्ड आइटम्स की खुदरा बाजार, सुपर मार्केट एवं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर खासी डिमांड है।


ये भी पढ़ें: बाजरे की खेती (Bajra Farming information in hindi)

पीडीएस प्रोसेस

भारत में पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम - पीडीएस (Public Distribution Service - PDS) यानी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से हितग्राहियों को 1 रुपया प्रति किलो की दर से बाजरा प्रदान किया जा रहा है। कुछ राज्यों में मोटे अनाज से बने व्यजनों को दोपहर आहार (मिड डे मील - Mid Day Meal Scheme) योजना के तहत परोसा जा रहा है। मतलब सरकार और बाजार को बाजरे की मार्केट वैल्यू पता लगने पर इसकी हैसियत लगातार बढ़ती जा रही है। गरीब का भोजन बताकर किनारे कर दिया गया बाजरा जैसा ताकतवर अनाज, सुपर फूड मिलेट्स (MILLETS) के रूप में फिर नई पहचान बना रहा है।
बाजरे की खेती को विश्व गुरु बनाने जा रहा है भारत, प्रतिवर्ष 170 लाख टन का करता है उत्पादन

बाजरे की खेती को विश्व गुरु बनाने जा रहा है भारत, प्रतिवर्ष 170 लाख टन का करता है उत्पादन

बदलते परिवेश और खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए किसान लगातार इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि कौन सी फसल उगाएं। हालांकि, मोटे अनाज उगाना किसानों की चिंताओं को दूर करने का एक शानदार तरीका हो सकता है। मोटे अनाज की खेती, जैसे कि बाजरा (Pearl Millet), जब से संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को बाजरा वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023)) के रूप में घोषित किया है, बाजरे की खेती और मांग दोनों बढ़ गयी है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
[caption id="attachment_10437" align="alignleft" width="300"]बाजरे के बीज (Bajra Seeds) बाजरे के बीज[/caption] हैदराबाद में भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान (भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Millets Research), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत ज्वार तथा अन्य कदन्नों पर बुनियादी एवं नीतिपरक अनुसंधान में व्यस्त एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है) के अनुसार, भारत 170 लाख टन से अधिक मोटे अनाज का उत्पादन करता है। यह एशिया के 80 प्रतिशत और वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सा है। यह लगभग 131 देशों में उगाया जाता है और 600 मिलियन एशियाई और अफ्रीकी लोगों इसको भोजन के रूप मे उपयोग करते है । [caption id="attachment_10434" align="alignright" width="188"]बाजरा (Bajra) बाजरा (Pearl Millet)[/caption] सबसे पुराने खाद्य पदार्थों में से एक बाजरा भी है, किसान कई वर्षों से मिश्रित खेती के तरीकों का उपयोग करके बाजरा उगा रहे हैं। आंध्र प्रदेश के मेडक में किसान एक ही भूखंड पर 15 से 30 विभिन्न किस्मों की फसल की खेती करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के बाजरा, दाल और जंगली खाद्य पदार्थ शामिल हैं। हाल के वर्षों में लाखों के संख्या मे लोग इसको अपनी दैनिक आहार में अनाज के अनुपात में मोटे अनाज जैसे बाजरा के उपयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं। लोग रोगों से निपटने के लिए स्वास्थ्य जागरूकता में वृद्धि के परिणामस्वरूप बाजरे के सेवन को एक विकल्प के रूप मे तैयार कर रहे हैं। बाजरा को 'सुपरफूड' के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, क्योंकि इनमें फाइबर और प्रोटीन जैसे मैक्रोन्यूट्रिएंट्स के साथ-साथ कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे विटामिन और खनिजों की उच्च मात्रा होती है। ज्वार, बाजरा, फिंगर बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा आदि अनाज 'सुपरफूड' बाजरा के उदाहरण हैं। ये सुपरफूड मधुमेह, मोटापा और हृदय रोग जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों की मदद कर सकते हैं। यह पाचन में भी सहायता करता है और भी बहुत समस्याओं से निजात दिलाता है |

प्राचीन और पौष्टिक अनाज उत्पादन को बढ़ावा

केंद्र सरकार ने प्राचीन और पौष्टिक भारतीय अनाज के उपयोग को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। सरकार के अभियान से खेत मालिकों को लाभ होगा और खाने वालों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। 2023 के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्वव्यापी अनाज वर्ष घोषित किया गया है। भारत के नेतृत्व में और 70 से अधिक देशों द्वारा समर्थित संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का उपयोग इसे पारित करने के लिए किया गया था। यह बाजरा के महत्व, टिकाऊ कृषि में इसकी भूमिका और दुनिया भर में एक बढ़िया और शानदार भोजन के रूप में इसके लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगा। [caption id="attachment_10436" align="alignleft" width="300"]बाजरे की रोटी (Bajre ki roti) बाजरे की रोटी[/caption] 170 लाख टन से अधिक के बाजरे के उत्पादन के साथ, भारत एक वैश्विक बाजरा केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। एशिया में उत्पादित बाजरा का 80% से अधिक इस क्षेत्र में उगाया जाता है। ये अनाज भोजन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पहले पौधों में से एक थे और सिंधु सभ्यता में खोजे गए थे। यह लगभग 131 देशों में उगाया जाता है और लगभग 600 मिलियन एशियाई और अफ्रीकी लोगों का पारंपरिक भोजन है।

ये भी पढ़ें: IYoM: भारत की पहल पर सुपर फूड बनकर खेत-बाजार-थाली में लौटा बाजरा-ज्वार
भारत सरकार ने बाजरा उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने के लिए 2018 को राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया।  संयुक्त राष्ट्र (United Nations) महासभा ने हाल ही में सर्वसम्मति से 2023 को "अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष" घोषित करने के लिए बांग्लादेश, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, रूस और सेनेगल के सहयोग से भारत द्वारा शुरू किए गए एक प्रस्ताव को अपनाया। भारत ने 2023 पालन के लिए तीन प्राथमिक लक्ष्यों की पहचान की है:

i. खाद्य सुरक्षा और पोषण में बाजरा के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाना;

ii. बाजरे के उत्पादन, उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार की दिशा में काम करने के लिए राष्ट्रीय सरकारों सहित प्रेरक हितधारक;

iii. बाजरा अनुसंधान और विकास और विस्तार सेवाओं में निवेश में वृद्धि के लिए सुधार करना।

देश की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए बाजरा को वर्षों से भारत की खाद्य सुरक्षा लाभ योजनाओं में शामिल किया गया है। मोटे अनाज अफ्रीका में 489 लाख हेक्टेयर भूमि पर उगाए जाते हैं, वार्षिक उत्पादन लगभग 423 लाख टन है। केंद्र सरकार के अनुसार, भारत मोटे अनाज (138 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में) का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। ऐसी स्थिति में, किसानों को मोटे अनाज की खेती के विकल्पों के बारे में पता होना चाहिए, जैसे कि बाजरा की खेती, जिसका उपयोग आर्थिक लाभ उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।


ये भी पढ़ें: बाजरे की खेती
(Bajra Farming information in hindi)

बाजरा उत्पादन के प्रति जागरूकता

बाजरा के स्वास्थ्य लाभों को उजागर करने और जन जागरूकता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ 5 सितंबर को 'भारत का धन, स्वास्थ्य के लिए बाजरा' विषय के साथ एक पेंटिंग प्रतियोगिता शुरू हुई। प्रतियोगिता का समापन 5 नवंबर, 2022 को होगा। अब तक, सरकार का दावा है कि उसे बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। 10 सितंबर, 2022 को बाजरा स्टार्टअप इनोवेशन चैलेंज (Millet Startup Innovation Challenge) शुरू किया गया था। millet startup innovation challenge  
"अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष 2023 के उपलक्ष में वित्त एवं कृषि मंत्री व सीएम के आतिथ्य में कॉन्क्लेव
 (Millets Conclave 2022), और मिलेट स्टार्टअप इनोवेशन चैलेंज" 
से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए,
 यहां क्लिक करें : https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1854884
https://twitter.com/nstomar/status/1563471184464715779?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1563471184464715779%7Ctwgr%5E256261f5a04f0ab375ae464d14642d51ee55205a%7Ctwcon%5Es1_&ref_url=https%3A%2F%2Fpib.gov.in%2FPressReleaseIframePage.aspx%3FPRID%3D1854884
"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
 और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी
 प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
यह पहल युवाओं को मौजूदा बाजरा पारिस्थितिकी तंत्र की समस्याओं के लिए तकनीकी और व्यावसायिक समाधान प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह नवाचार प्रतियोगिता 31 जनवरी 2023 तक खुली रहेगी। बाजरा और इसके लाभों के बारे में प्रश्न पूछने वाले माइटी मिलेट्स क्विज (Mighty Millets Quiz) को हाल ही में लॉन्च किया गया था, और इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। क्विज का आयोजन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्विज में प्रवेश करने के इच्छुक प्रतिभागी यहाँ क्लिक करें। यह प्रतियोगिता 20 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी, इससे लोगों की बाजरे और मोटे अनाज के बारे में समझ बढ़ेगी। Mighty Millets Quiz बाजरे के महत्व के बारे में एक ऑडियो गीत और वृत्तचित्र फिल्म के लिए एक प्रतियोगिता भी जल्द ही शुरू की जाएगी। अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 लोगो और स्लोगन प्रतियोगिता पहले ही शुरू हो चुकी है। विजेताओं की घोषणा शीघ्र ही की जाएगी। भारत सरकार जल्द ही ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 के उपलक्ष्य में लोगो ( Logo ) और नारा जारी करेगी। लक्ष्य मोटे अनाज को किसी भी तरह से लोकप्रिय बनाना है।


ये भी पढ़ें: ओडिशा में बाजरे की खेती, नीति आयोग ने की जम कर तारीफ़

वेदों में भी बाजरा उत्पादन का चर्चा

यजुर्वेद में बाजरे के उपयोग के साक्ष्य मिले है। बाजरे की खेती से किसानों को काफी लाभ हो सकता है। बाजरा या मोटा अनाज भी आपकी सेहत के लिए अच्छा होता है, इसमें बाजरा सबसे लोकप्रिय है। [caption id="attachment_10440" align="aligncenter" width="1024"]भारत का राज्यवार बाजरा नक्शा (from https://agricoop.nic.in/sites/default/files/Crops.pdf) भारत का राज्यवार बाजरा नक्शा[/caption] बाजरा कई प्रकार की किस्मों में भी आता है। प्रियंगु (लोमड़ी की पूंछ वाला बाजरा, Priyangu ), स्यामक (काली उंगली बाजरा, shyamak) और अनु (बार्नयार्ड बाजरा) ये सब बाजरे की महत्वपूर्ण किस्म है। यजुर्वेद में भी उपमहाद्वीप के कई क्षेत्रों में बाजरा के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं। बाजरा 1500 ईसा पूर्व से बहुत पहले उगाया और खाया जाता था। मोटे अनाज खाने वालों के बीच लोकप्रिय बाजरे की किस्में रागी (मोती बाजरा), ज्वार (ज्वार उर्फ द ग्रेट बाजरा), और प्रियांगु (फॉक्स टेल बाजरा) हैं।
किसानों को 10 करोड़ 48 लाख की कमायी देने वाली फसल के बारे में जानें

किसानों को 10 करोड़ 48 लाख की कमायी देने वाली फसल के बारे में जानें

मिलेट्स के उत्पादन हेतु प्रोत्साहन देने के सन्दर्भ में छत्तीसगढ़ राज्य को राष्ट्रीय स्तर का पोषक अनाज अवार्ड २०२२ प्राप्त हो गया है। छत्तीसगढ़ मिलेट मिशन की वजह से राज्य में रागी, कोदो एवं कुटकी (मिलेट्स) के उत्पादन के मामले में किसानों की दिलचस्पी बहुत तेजी से बढ़ी है। बतादें कि पूर्व में अनाप-सनाप भाव में बिक्री होने वाला मिलेट्स अब छत्तीसगढ़ राज्य में काफी उचित मूल्य में बिक रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की देखरेख में राज्य के किसानों की करोड़ों रूपये की आमदनी होने लगी, क्योंकि मिलेट्स का अच्छा समर्थन मूल्य किसानों को प्रदान किया गया था। गुजरे हुए सीजन में किसानों द्वारा समर्थन मूल्य पर ३४२९८ क्विंटल मिलेट्स १० करोड़ ४५ लाख रूपए में बिक्री किया था। छत्तीसगढ़ राज्य देश का एकमात्र राज्य है, जहां रागी, कुटकी एवं कोदो की समर्थन मूल्य पर खरीद व साथ ही मूल्य में वृद्धि का काम भी किया जा रहा है।
ये भी पढ़े: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा
कोदो-कुटकी मिलेट्स के समर्थन मूल्य पर ३०० प्रति क्विंटल की दर से एवं रागी की खरीदी ३३७७ रूपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदी की जा रही है। छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था की सहायता और मार्गदर्शन से किसान कोदो के प्रमाणित बीज की पैदावार कर बेहतरीन लाभ कमाने लगे हैं। बीते एक वर्ष में प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों की संख्या में लगभग ५ गुना व इसके माध्यम से अर्जित होने वाली कमाई में चार गुना की बढ़ोत्तरी हुई है। बतादें कि वर्ष २०२१-२२ में प्रदेश के ११ जनपदों के १७१ किसानों ने ३०८९ क्विंटल प्रमाणित बीज की पैदावार की है। जिसे राष्ट्रीय बीज निगम द्वारा ४१५० रूपए प्रति क्विंटल के हिसाब से किसानों से खरीद कर उन्हें १ करोड़ २८ लाख १८ हजार रूपए से ज्यादा की धनराशि अदा की है। छत्तीसगढ़ के किसानों द्वारा उत्पादित प्रमाणित बीज, सहकारी समितियों के जरिये बीजारोपण हेतु दिया जा रहा है।

इतनी धनराशि की आमदनी हुई थी

बीज प्रमाणीकरण संस्था के उच्च संचालक ए.बी.आसना ने कहा कि साल २०२०-२१ में प्रदेश में ७ जनपदों के ३६ कृषकों ने सिर्फ ७१६ क्विंटल प्रमाणित बीज की पैदावार की गयी थी। बतादें कि, इससे पैदावार करने वाले किसानों को ३२ लाख ८८ हजार रूपए की आय हुई थी, जबकि २०२१-२२ में कोदो बीज पैदा करने वाले कृषकों की तादात एवं बीज विक्रय से प्राप्त लाभ कई गुना बढ़ गया है। बीते तीन वर्षो में कोदो प्रमाणित बीज उत्पादक किसानों द्वारा एक करोड़ ६५ लाख १८ हजार ६३३ रूपए का बीज, छत्तीसगढ़ बीज और विकास निगम को विक्रय किया है।
ये भी पढ़े: ओडिशा में आदिवासी परिवारों की आजीविका का साधन बनी बाजरे की खेती

कितने क्विंटल प्रमाणित बीज उत्पादित हुआ

अपर संचालक आसना ने कहा कि ऐसी कृषि भूमि जहां धान की पैदावार बहुत कम होती है। उस जगह पर कोदो की कृषि करना अधिक फायदेमंद है। कोदो की कृषि हेतु कम जल एवं कम खाद की आवश्यकता होती है, जिसकी वजह से इसकी खेती में व्यय बेहद कम होता है और उत्पादक किसानों को फायदा अधिक होता है। उन्होंने कहा कि वर्ष २०१९-२०२० में प्रदेश में सिर्फ १०३ क्विंटल प्रमाणित बीज की पैदावार हुई थी। मिलेट्स मिशन लागू होने के उपरांत से छत्तीसगढ़ राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अन्य शासकीय संस्थानों से तालमेल कर कोदो बीज पैदावार में वृध्दि हेतु हरसंभव प्रयास कर रहे हैं, जिससे बीज पैदावार में परस्पर बढ़ोत्तरी हो रही है।
नीति आयोग ने बताए किसानों की कमाई को बढ़ाने के मूलमंत्र, बताया किस तरह बढ़ सकती है कमाई

नीति आयोग ने बताए किसानों की कमाई को बढ़ाने के मूलमंत्र, बताया किस तरह बढ़ सकती है कमाई

नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी परमेश्वरन अय्यर ने कहा है, कि भारत में किसानों की आय बढ़ाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि किसानों को अब खेती के अलावा कृषि स्टार्टअप लगाने पर भी जोर देना चाहिए, जिससे किसानों के लिए रोजगार के नए साधन बन सकें। उन्होंने कहा कि फूड प्रोसेसिंग किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण सेक्टर साबित हो सकता है। जहां किसान निवेश करके प्रोसेस्ड प्रोडक्ट्स का निर्यात कर सकते हैं। उन्होंने एक सेमीनार को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में एंट्री के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा कि फूड प्रोसेसिंग सेक्टर किसानों की आय को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। साथ ही, यह भारत में कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में पोषण लक्ष्यों को हासिल करने में सहायक हो सकता है। सरकार ने इन चीजों को देखते हुए कई कदम उठाए हैं। जिससे खेतों के स्तर पर ही फूड प्रोसेसिंग उद्योग को बढ़ावा दिया जा सके। उन्होंने कहा कि आजकल खाद्य सुरक्षा के लिए बहुत ही ज्यादा कड़े मानक बनाए जा चुके हैं। इसलिए इसको वैश्विक स्तर पर बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। सरकार खाद्य सुरक्षा में सुधार को लेकर लगातार प्रयत्न कर रही है।

ये भी पढ़ें: केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने आसियान भारत बैठक में एलान किया है कि पोषक अनाज उत्पादों को प्रोत्साहित करेगा भारत
परमेश्वरन अय्यर ने कहा, साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र ने 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स' (IYoM) घोषित किया है जो एक महीने से भी कम समय में शुरू होने जा रहा है। इसमें संयुक्त राष्ट्र मोटे अनाज के उत्पादन, प्रोसेसिंग और खाने के ऊपर जोर देगा। मोटे अनाज की प्रोसेसिंग न केवल रोजगार के लिहाज से बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मोटे अनाज के प्रोसेसिंग में सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों को लाने की भी जरूरत है। ये उद्यम इस क्षेत्र में ढेर सारे रोजगार पैदा कर सकते हैं। इनसे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को ही फायदा होने वाला है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
अय्यर ने भारत में बनने वाले फूड प्रोसेस्ड उत्पादों के निर्यात पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इससे बाजार में कच्चे माल की मांग बढ़ेगी जिससे किसान ज्यादा उत्पादन करेंगे। इसके साथ ही मांग बढ़ने के साथ ही किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम भी मिल सकेगा। साथ ही उन्होंने भारत में खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अब भी दुनिया में ऐसे लोग हैं, जिनके पास खाने के लिए पर्याप्त खाना नहीं है और वो गंभीर कुपोषण के शिकार हैं।
लाखों किसानों को सिखाए जाएंगे उन्नत खेती के गुण, होगा फायदा

लाखों किसानों को सिखाए जाएंगे उन्नत खेती के गुण, होगा फायदा

उत्तर प्रदेश में किसानों की आर्थिक मदद के लिए अब उन्हें उन्नत खेती के गुण सिखाए जाएंगे. इतना ही नहीं इंटरनेशनल मिलेट ईयर को सफल बनाने के लिए यूपी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होने वाली है. साल 2023 में पूरी दुनिया इंटरनेशनल मिलेट ईयर पूरी दुनिया मना रही है. यह आयोजन भारत की पहल पर हो रहा है. इस आयोजन को सफल बनाने के लिए जोरों पर तैयारियां की जा रही हैं. हालांकि खेती उत्तर प्रदेश में ज्यादातर लोगों की रोजी रोटी का साधन है. उत्तर प्रदेश में दुनिया की सबसे ज्यादा उर्वरतम जमीन है. जोकि गंगेटिक बेल्ड का अधिकांश हिस्सा भी है. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में ना तो पानी की कमी है, और ना ही मानव संसाधन की, जिसके चलते यहां पर खेती की संभावना भी अच्छी है. उत्तर पदेश मात्र एक ऐसा राज्य है, जिसमें सिर्फ मात्र 11 रकबे का है, और 20 फीसद खाद्यान पैदा करता है. राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भी खेती बाड़ी में ज्यादा रूचि है. जिस वजह से अंतरराष्ट्रीय मिलेट को सफल बनाने के लिए यूपी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर तैयारियां

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्र निर्देश के हिसाब से तैयारियां की जा रही हैं. इसके अलावा कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के निर्देशों का पालन भी किया जा रहा है, उत्तर प्रदेश मिलेटस पुनरोद्धार कार्यक्रम को चलाने के पीछे की मंशा यही है कि, मिलेट्स से जुड़ी पोषण सम्बंधी खूबियों को लोगों तक पहुंचाएं. अच्छे स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग इनका किसी ना किसिया रूप से उपयोग उपभोग कर सकें.

ये भी पढ़ें:
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने आसियान भारत बैठक में एलान किया है कि पोषक अनाज उत्पादों को प्रोत्साहित करेगा भारत
इस योजना के तहत मिलेट्स फसलों में जैसे ज्वार, बाजरा, कोदो, सवा की खेती को बड़े पैमाने में बढ़ावा देने के लिए उचित प्रयास किये जा रहे हैं. यूपी सरकार मिलेट्स पुनरोद्धार कार्यक्रम में करीब 186.27 करोड़ रुपये खर्चा कर रही है. साल 2021 से 2022 में कुल 10.83 लाख हेक्टेयर की एरिया में खास मिलेट्स फसलों का उत्पादन किया जाता है. इसमें बाजरा , ज्वार, कोदो और सावा का रकबा क्यों लाख हेक्टेयर में फैला हुआ है. यूपी की योगी सरकार ने साल 2026 से 2027 तक इनकी बुवाई का रकबा बढाकर तकरीबन 25 लाख हेक्टेयर करने का लक्ष्य तय किया है.

सरकार देगी फ्री में बीज

यूपी सरकार ने आने वाले चार सैलून में ढ़ाई लाख किसानों को फ्री में बीज देने का फैसल किया है. जिसके लिए वो 11.86 करोड़ रुपये भी खर्च करने वाली है. इतना ही नहीं मिलेट्स बीजों के उत्पादन के लिए सरकार की तरफ से साल 2023 से 2024 और साल 2026 से 2027 तक कुल 180 कृषक उत्पादक संगठनों को चार लाख रुपये प्रति एफपीओ (FPO) के हिअब से सीड मनी दी जाएगी. जिससे भविष्य में राज्य में मिलेट्स की तरह तरह की फसलों के बीज को स्थानीय स्तर पर किसानों को उपलब्ध करवा सकेंगे. इतना ही नहीं इस कार्यक्रम के लिए चार सालों में 7 करोड़ से भी ज्यादा की धन राशि खर्च की जाएगी.