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ड्रिप-मल्चिंग तकनीक क्या है और इससे किसानों को क्या लाभ है ?

ड्रिप-मल्चिंग तकनीक क्या है और इससे किसानों को क्या लाभ है ?

ड्रिप मल्चिंग तकनीक (Drip Mulching Technology) आज के समय में बागवानी किसानों के लिए काफी लाभदायक साबित हो रही है। ऐसे में इस तकनीक की मदद से बिहार के किसान अपने बागों में तरबूज और खरबूजे की उन्नत खेती कर रहे हैं। 

किसानों को कम समय में ज्यादा पैदावार लगाने के लिए बाजार में विभिन्न प्रकार की बेहतरीन तकनीक आ चुकी हैं, जिसकी सहायता से किसानों को फसल की उपज तो शानदार मिलती ही है। 

इसके साथ ही लागत में भी कमी आती है। इन्हीं तकनीक में ड्रिप मल्चिंग तकनीक/Drip Mulching Technology है। इस तकनीक से बागवानी फसलों से किसानों को उच्चतम पैदावार मिल रही है। 

इसके अतिरिक्त इस तकनीक से पानी की कमी वाली जगहों पर भी फसल करना काफी सुगम हो गया है। 

ड्रिप-मल्चिंग तकनीक क्या होती है ?

ड्रिप-मल्चिंग तकनीक एक प्रकार की प्रौद्योगिकी है, जिसमें पौधे को बेहतर ढ़ंग से तैयार किया जाता है। आसान भाषा में कहा जाए तो इस तकनीक के जरिए से पौधों को सही प्रकार से जल और पोषक तत्वों की आपूर्ति करने में सहायता मिलती है। 

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किसान इस तकनीक की सहायता से सीधे पौधों के नीचे पानी और पोषक तत्वों की छिद्रांकित आपूर्ति करते हैं। किसानों तक इस तकनीक को पहुंचाने का प्रमुख उद्देश्य पौधों को समय पर और ठीक मात्रा में पोषण प्रदान करके उनके विकास को प्रोत्साहन देना, जिससे कि किसानों का परिश्रम और समय दोनों की बचत हो सके।

ड्रिप-मल्चिंग तकनीक कौन-सी फसलों पर की जा सकती है ? 

वैसे तो ड्रिप-मल्चिंग तकनीक का उपयोग Use of Drip-Mulching Technique विभिन्न फसलों में किया जा सकता है। परंतु, ड्रिप मल्चिंग मुख्यत: बागवानी फसलों में काफी ज्यादा लाभदायक मानी जाती है। 

जैसे कि बैंगन, शिमला मिर्च, गोभी, तोरई, बैंगन, टमाटर, आलू, प्याज और गाजर आदि। इसके अतिरिक्त किसान ड्रिप मल्चिंग तकनीक को फलों की खेती में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। 

इनके नाम आम, सेब, अंगूर, संतरा, अनार आदि। इस तकनीक से किसान बागवानी में उन पौधों की खेती भी कर सकते हैं, जो सब्जियों और हर्बल पौधे की सूची में शामिल होते हैं। किसान चाहें तो इस तकनीक का उपयोग गेहूं, चावल, मक्का, धान और अन्य कई फसलों में भी कर सकते हैं।

ड्रिप-मल्चिंग तकनीक स्थापित करने में कितना खर्चा होता है ?

ड्रिप-मल्चिंग तकनीक लगाने में खर्च किसान की जरूरतों पर निर्भर करता है. जैसे कि किसान के खेत का आकार, खेत में किन-किन फसलों को लगाया गया हैं और खेत में लगने वाले ड्रिप सिस्टम की गुणवत्ता क्या है. 

अगर देखा जाए तो बड़े खेतों में ड्रिप मल्चिंग सिस्टम/ Drip Mulching System लगाने के लिए किसानों को अधिक खर्च करना पड़ता है. वही, छोटे क्षेत्रों के खेतों के लिए कम खर्च आता है.

अगर हिसाब लगाया जाए तो करीब एक एकड़ खेत पर ड्रिप सिस्टम/Drip System की स्थापना के लिए 50-60 हजार रुपये की लागत आती है। हालांकि, इस प्रणाली को खेत में लगाने के लिए अब सरकार से भी शानदार अनुदान की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है।

ड्रिप सिस्टम की स्थापना हेतु इन योजनाओं से मिलेगा अनुदान

अगर आप भी सरकार की सब्सिडी की सुविधा की मदद से अपने खेत में ड्रिप सिस्टम लगाकर खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको पीएम कृषि सूक्ष्म सिंचाई योजना/ Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana (PMKSY) में आवेदन कर इस सुविधा का लाभ उठाना होगा, जिसमें किसानों को खेत में ड्रिप सिस्टम लगवाने के लिए लगभग 80% प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है।

मृदा संरक्षण की विधि एवं इससे होने वाले फायदे

मृदा संरक्षण की विधि एवं इससे होने वाले फायदे

मृदा का संरक्षण हमारे पौधों की सेहत की वृद्धि, कार्बन भंडारण, जल निस्पंदन और विभिन्न जीवों के लिए आवास प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बढ़ते शहरीकरण के वजह से मृदा का संरक्षण करना बेहद कठिन होता जा रहा है। मृदा संरक्षण का अर्थ मिट्टी को क्षरण होने से बचाना और इसे खेती लायक भूमि बनाए रखना होता है। खेती की मृदा की सुरक्षा करने का मकसद भविष्य की पीढ़ियों के लिए मृदा की उत्पादकता, उर्वरता एवं स्वास्थ्य को संरक्षित करना है। जल निस्पंदन, कार्बन भंडारण, मृदा की सेहत, पौधों की वृद्धि और विभिन्न जीवों के लिए आवास प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आज हम इसके संरक्षण एवं लाभ के संबंध में आपको जानकारी देने जा रहे हैं।

मृदा संरक्षण की विधि

समुचित ढ़ंग से जुताई

खेती की मिट्टी की समोच्च रेखा में जुताई करने से इसमें जल के बहाव को कम होने से मृदा का कटाव कम होने से इसमें नमी बरकरार रहती है। इस तकनीक में मृदा का उपजाऊपन बढ़ता है एवं तीव्र हवाओं में भी इसकी सुरक्षा हो पाती है।

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टेरेसिंग

टेरेसिंग तकनीक को खड़ी ढलान वाली मृदा पर चौड़े, समतल पट्टियों का निर्माण किया जाता है। यह तरीका खेती में जल के बहाव को धीमा कर देता है। साथ ही मिट्टी के पोषक तत्व भी बह नहीं पाते हैं।

विंडब्रेक

विंडब्रेक माध्यम में पेड़ों की बड़ी कतारों को खेतों के किनारों पर लगाया जाता है। यह पेड़ हवा की गति को कम करते हैं, जिससे मृदा का कटाव भी कम होता है। इसके अतिरिक्त यह वन्यजीवों को आवास भी प्रदान करता है। साथ ही, जैव विविधता में योगदान प्रदान करता है।

मृदा संरक्षण के फायदे

मृदा संरक्षण के अंतर्गत हमारे पर्यावरण एवं खेती पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आइये इसके कुछ संरक्षण के तरीकों के विषय में जानते हैं।

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उत्पादकता में इजाफा

मृदा संरक्षण मिट्टी की उर्वरता, संरचना एवं सेहत को बढ़ाता है, जिस वजह से मिट्टी की कृषि उत्पादकता लगातार बनी रहती है। मृदा में होने वाले कटाव, पोषक तत्वों की कमी एवं मृदा के क्षरण को कम करके किसान उच्च गुणवत्ता वाली फसलों की पैदावार कर पाते हैं।

मृदा क्षरण से बचाव

दरअसल, शहरीकरण के चलते मृदा क्षरण एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। इससे मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। संरक्षण के लिए मृदा में समोच्च जुताई, सीढ़ीदार खेती एवं कवर क्रॉपिंग के तरीकों को अपनाकर खेत की मृदा के कटाव को कम किया जाता है, जो खेत में बढ़ रही फसलों की मांग को पूर्ण करने में सहायता करता है।

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जलवायु परिवर्तन से संरक्षण

मृदा संरक्षण से कार्बन पृथक्करण को बढ़ावा मिलता है। साथ ही, यह जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी योगदान देता है। स्वस्थ मिट्टी कार्बन सिंक के तौर पर कार्य करती है। साथ ही, वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर इसको संग्रहीत करती है। जो हमारी फसलों की पैदावार में अहम भूमिका निभाता है।