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Petha

पेठा की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

पेठा की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

पेठा की खेती कद्दू वर्गीय फसल के रूप में की जाती है। इसको कुम्हड़ा, कूष्माण्ड और काशीफल के नाम से भी जानते हैं। इसके पौधे लताओं के रूप में फैलते हैं। इसकी कुछ प्रजातियों में फल 1 से 2 मीटर लंबे पाए जाते हैं और फलों पर हल्के सफेद रंग की पाउडर नुमा परत नजर आती है। 

पेठा के कच्चे फलों से सब्जी और पके हुए फलों को पेठा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। पेठा (कद्दू) का मुख्य रूप से उपयोग पेठा बनाने के लिए ही किया जाता है। सब्जी के लिए इसका काफी कम उपयोग किया जाता है।

अब इसके अतिरिक्त इससे च्यवनप्राश भी निर्मित किया जाता है, जिसका सेवन करने से मानसिक ताकत बढ़ती है, और छोटी -मोटी बीमारियां भी आसपास नहीं फटकती हैं। 

पेठा कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है, जिस वजह से किसान भाई पेठा की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं। अगर आप भी पेठा की खेती करने की सोच रहे हैं, तो इस लेख में आपको पेठा की खेती कैसे होती है (Pumpkin Farming in Hindi) इसके बारे में जानकारी दी जा रही है।

भारत में पेठा (कद्दू) की खेती कहाँ की जाती है ? 

भारत में पेठा की खेती मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश राज्य में की जाती है। इसके अलावा पेठा की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान सहित लगभग भारत भर में ही की जा रही है।

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पेठा की खेती के लिए उपयुक्त मृदा, जलवायु एवं तापमान

पेठा की खेती किसी भी उपजाऊ मृदा में आसानी से की जा सकती है। इसकी शानदार पैदावार के लिए दोमट मृदा को उपयुक्त माना जाता है। उचित जल निकासी वाली जमीन में इसकी खेती बड़ी सहजता से की जाती है। इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए।

पेठा की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की जरूरत होती है। गर्मी और वर्षा का मौसम इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होता है। लेकिन, ज्यादा ठण्डी जलवायु इसकी खेती के लिए अच्छी नहीं होती है। क्योकि, ठंड के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास नहीं कर पाते है।

पेठा के पौधे शुरू में सामान्य तापमान पर अच्छे से विकास करते हैं तथा 15 डिग्री तापमान पर बीजों का अंकुरण ठीक प्रकार से होता है। बीज अंकुरण के पश्चात पौध विकास के लिए 30 से 40 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। ज्यादा तापमान में पेठा का पौधा अच्छे से विकास नहीं कर पाता है।

पेठा की उन्नत प्रजातियां निम्नलिखित हैं 

कोयम्बटूर

कोयम्बटूर किस्म के पौधों को पछेती फसल के लिए उगाया जाता है। इसके फलों से सब्जी और मिठाई दोनों ही बनायी जाती हैं। इसके पौधों में निकलने वाले फल का औसतन वजन 7KG से 8KG के करीब होता है। 

बतादें, कि यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 क्विंटल तक की उपज प्रदान करती है।

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सी. ओ. 1

पेठा की इस किस्म को तैयार होने में 120 दिन का समय लग जाता है। इसके एक फल का औसतन वजन 7 से 10 KG तक होता है। इस हिसाब से यह प्रति हेक्टेयर में 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है। 

काशी धवल

पेठा की यह किस्म बीज रोपाई के 120 दिन के बाद उत्पादन देना चालू कर देती है। इस प्रजाति के पौधों को ज्यादातर गर्मियो के मौसम में उगाया जाता है, जिसमें निकलने वाले फल का वजन 12 KG तक होता है। 

यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500 से 600 क्विंटल का उत्पादन दे देती है।

पूसा विश्वास

पेठा की इस क़िस्म का पौधा अधिक लम्बा पाया जाता है, जिसे तैयार होने में 120 दिन का समय लग जाता है। इसका एक फल तक़रीबन 5 KG का होता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 से 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है।

काशी उज्ज्वल

इस किस्म को तैयार होने में 110 से 120 दिन का समय लग जाता है। इसमें निकलने वाले फल गोल आकार के होते है, जिसका वजन 12KG के आसपास होता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 550 से 600 क्विंटल का उत्पादन दे देती है।

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अर्को चन्दन

अर्को चन्दन क़िस्म के पौधों को कटाई के लिए तैयार होने में 130 दिन का समय लग जाता है। इसके कच्चे फलों को सब्जी बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 350 क्विंटल का उत्पादन देने के लिए जानी जाती है। 

इसके अतिरिक्त भी पेठा की विभिन्न उन्नत क़िस्मों को भिन्न-भिन्न जलवायु और अलग-अलग क्षेत्रों पर ज्यादा उपज देने के लिए विकसित किया गया है, जो इस प्रकार है :- कोयम्बटूर 2, सी एम 14, संकर नरेन्द्र काशीफल- 1, नरेन्द्र अग्रिम, पूसा हाइब्रिड, नरेन्द्र अमृत, आई आई पी के- 226, बी एस एस- 987, बी एस एस- 988, कल्यानपुर पम्पकिन- 1 आदि।

पेठा के खेत की तैयारी एवं उवर्रक की मात्रा 

बतादें, कि सर्वप्रथम खेत की मृदा पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूर्णतय समाप्त हो जाते हैं। जुताई के उपरांत खेत को ऐसे ही खुला छोड़ दें। 

इससे खेत की मृदा में सूर्य की धूप बेहतर रूप से लग जाती है। खेत की प्रथम जुताई के बाद उसमें प्राकृतिक खाद के तौर पर 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के मुताबिक देना होता है। 

खाद को खेत में डालने के बाद दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मृदा में गोबर की खाद अच्छी तरीके से मिल जाती है। इसके पश्चात खेत में पानी लगा दिया जाता है। 

जब खेत का पानी सूख जाता है, तो उसकी एक बार फिर से रोटावेटर लगाकर जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मृदा काफी भुरभुरी हो जाती है। 

मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत को एकसार कर दिया जाता है। इसके पश्चात खेत में पौध रोपाई के लिए 3 से 4 मीटर की दूरी पर धोरेनुमा क्यारियों को निर्मित कर लिया जाता है। 

इसके अतिरिक्त यदि आप रासायनिक खाद का उपयोग करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको 80 KG डी.ए.पी. की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के मुताबिक खेत की अंतिम जुताई के वक्त करना होता है। 

इसके बाद 50 KG नाइट्रोजन की मात्रा को पौध सिंचाई के साथ देना होता है।

क्यों है मार्च का महीना, सब्जियों का खजाना : पूरा ब्यौरा ( Vegetables to Sow in the Month of March in Hindi)

क्यों है मार्च का महीना, सब्जियों का खजाना : पूरा ब्यौरा ( Vegetables to Sow in the Month of March in Hindi)

मार्च का महीना किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। किसान इस महीने विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई करते है तथा धन की उच्च दर पर प्राप्ति करते हैं। 

इस महीने किसान तरह तरह की सब्जियों की बुवाई करते है जैसे: खीरा, ककड़ी, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजे, तरबूजे, भिंडी, ग्वारफल्ली आदि। मार्च के महीने में बोई जाने वाली सब्जियों की जानकारी:

खीरे की फसल कि पूर्ण जानकारी ( Cucumber crop complete information) in Hindi

खीरे की सब्जियों की टोकरी Cucumber crop

खीरे की खेती के लिए खेतों में आपको क्यारियां बनानी होती है। इसकी बुवाई लाइन में ही करें।  लाइन की दूरी 1.5 मीटर रखें और पौधे की दूरी 1 मीटर। 

बुवाई के बाद 20 से 25 दिन बाद गुड़ाई करना चाहिए। खेत में सफाई रखें और तापमान बढ़ने पर हर सप्ताह हल्की सिंचाई करे, खेत से खरपतवार हटाते रहें।

ककड़ी की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Cucumber crop complete information) in Hindi

ककड़ी सब्जियां की बेल kakdi ki kheti

ककड़ी की फसल आप किसी भी उपजाऊ जमीन पर उगा सकते हैं।ककड़ी की बुवाई के लिए मार्च का समय बहुत ही फायदेमंद होता है। या सिर्फ 1 एकड़ भूमि में 1 किलो ग्राम बीज के आधार पर उगना शुरू हो जाती है। 

खेत को आपको तीन से चार बार जोतना होता है ,उसके बाद आपको खेतों में गोबर की खाद डालनी होती है। ककड़ी की बीजों को किसान 2 मीटर चौड़ी क्यारियों में किनारे किनारे पर लगाते है। इनकी दूरी लगभग 60 सेंटीमीटर होती है।

करेले की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Bitter gourd crop complete information) in Hindi

karele ki kheti

करेले की खेती दोमट मिट्टी में की जाती है। करेले को आप दो तरह से बो सकते हैं। पहले बीच से दूसरा पौधों द्वारा ,आपको करेले की खेती के लिए दो से तीन दिन की जरूरत पढ़ती है। 

इसकी बीच की दूरियों को 2.5 से लेकर 5 मीटर तक की दूरी पर रखना चाहिए।किसान करेले के बीज को बोने से पहले  लगभग 24 घंटा पानी में डूबा कर रखते हैं। ताकि उसके अंकुरण जल्दी से फूट सके। 

पहली जुताई किसान हल द्वारा करते हैं उसके बाद किसान तीन से चार बार हैरो या कल्टीवेटर द्वारा खेत की जुताई करते हैं।

लौकी की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Gourd crop complete information) in Hindi

lauki ki kheti

लौकी की खेती आप हर तरह की मिट्टी में कर सकते हैं लेकिन दोमट मिट्टी इसके लिए बहुत ही उपयोगी है। लौकी की खेती करने से पहले आपको इसके बीज को 24 घंटे पानी में डूबा कर रखना है अंकुरण आने तक, एक हेक्टेयर में आपको 4.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।

तुरई फसल की पूर्ण जानकारी ( Full details of turai crop) in Hindi

turai ki fasal

तोरई की फसल को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना चाहिए। किसानों द्वारा प्राप्त जानकारियों से यह पता चला है।कि नदियों के किनारे वाली भूमि पर खेती करना बहुत ही अच्छा होता है। 

खेती करने से पहले जमीन को अच्छे से जोत लेना चाहिए। पहले हल द्वारा उसके बाद दो से तीन बार हैरो या कल्टीवेटर  से जुताई करना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि में कम से कम 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

पेठा फसल की पूर्ण जानकारी( Complete information about Petha crop)

पेठा सब्जियों की बेल Petha crop

पेठा यानी कद्दू को दोमट मिट्टी में बोना बहुत ही  फायदेमंद होता है। पेठा की खेती के लिए दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें। मिट्टियों को भुरभुरा बनाएं तथा खेतों की अच्छे ढंग से जुताई करें। एक हेक्टेयर में लगभग 7 से 8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 

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खरबूजे की फसल (melon crop) in Hindi

melon crop

मार्च के महीने में खरबूजा बहुत ही फायदेमंद तथा पसंदीदा फलों में से एक है। किसान इसकी खेती नदी तट पर करते हैं। खेती करने से पहले बालू में एक थाला बनाते हैं और बीज बोने से थोड़ी देर पहले खेत को अपने हल के जरिए जोतते हैं। खरबूजे की फसल बोने के बाद इसकी सिंचाई को कम से कम 2 या 3 दिन बाद से करना शुरू कर देना चाहिए।

तरबूजे की फसल ( watermelon crop) in Hindi

watermelon crop

गर्मी में तरबूज को बहुत ही शौक से खाया जाता है।तरबूज में पानी की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है, इसको खाने से आप ताजगी का अनुभव करते हैं। इस फसल में लागत बहुत कम लगती है लेकिन मुनाफा उससे कई गुना होता है। 

तरबूज की फसल बहुत ही कम समय में उग जाती है, जिससे किसानों को काफी मुनाफा भी मिलता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें ,कि तरबूज में कीट और रोग का प्रकोप काफी बड़ा रहता है। किसानों को चाहिए कि वैज्ञानिकों के मुताबिक तरबूज की फसलों की देखरेख करें। तरबूज की फसलें 75 से 90 दिनों के अंदर पूर्ण रुप से तैयार हो जाती है।

भिंडी की फसल( okra harvest) in Hindi

भिंडी सब्जियां bhindi ki kheti

किसान भिंडी की फसल फरवरी से मार्च के दरमियान जोतना शुरू कर देते हैं। भिंडी की खेती हर तरह की मिट्टी में की जाती है। खेती से पूर्व दो तीन बार खेतों की जुताई करें। 

जिससे मिट्टियों में भुरभुरा पन आ जाए, जमीन को समतल कर दे। खेतों में लगभग 15 से 20 दिन पहले इनकी निराई-गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण रहे इसके लिए कई प्रकार का रासायनिक प्रयोग भी किसान करते हैं।

ग्वार फली की फसल( guar pod crop) in Hindi

गुआर सब्जियों की फसल guar ki kheti

ग्वार फली किसानों कि आय का बहुत महत्वपूर्ण साधन होता है। किसान ग्वार फली का इस्तेमाल हरी खाद ,हरा चारा ,हरी फली , दानों आदि के लिए करते है। ग्वार फली में प्रोटीन तथा फाइबर का बहुत ही अच्छा स्त्रोत होता है। 

इनके अच्छे स्त्रोत के कारण इनको पशुओं के चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। जिससे पशुओं को विभिन्न प्रकार के प्रोटीन की प्राप्ति हो सके। किसान ग्वार फली की खेती दो मौसम में करते हैं पहला बहुत गर्मी के मौसम में तथा दूसरा  बारिश के मौसम में। 

ग्वार फली की बुवाई किसान मार्च के महीने में 15 से लेकर 25 तारीख के बीच खेती करना शुरू कर देते हैं। ग्वार फली की फसलें 60 से 90 दिन के अंदर पूर्ण रूप से तैयार हो जाती है तथा यहां कटाई के लायक़ हो जाती हैं। 

ग्वार फली में बहुत तरह के पौष्टिक तत्व भी मौजूद होते हैं इनका उपयोग विभिन्न प्रकार की सब्जियों को बनाने तथा सलातो के रूप में किया जाता है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट द्वारा मार्च के महीने में उगाई जाने वाली सब्जियों की पूर्ण जानकारी पसंद आई होगी। 

आपने इन सब्जियों के विभिन्न प्रकार के लाभ को जान लिया होगा। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं तो आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया पर शेयर करें धन्यवाद।

गर्मियों में ऐसे करें पेठा की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

गर्मियों में ऐसे करें पेठा की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

पेठा को भारत में सफेद कद्दू या धुंधला ख़रबूज़ा भी कहा जाता है। यह शुरुआती दौर में दक्षिण-पूर्व एशिया में उगाया जाता था, बाद में इसे भारत में उगाया जाने लगा। इसका प्रयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही इससे कई तरह की मिठाइयां भी बनाई जाती हैं। इसमें शुगर की मात्रा बेहद कम होती है, इसलिए इसे मरीजों के लिए एक अच्छा आहार माना जाता है। यह चर्बी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और रेशे से भरपूर होता है। इसलिए इसे दवाई बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। साथ ही इसका प्रयोग कब्ज़ और एसिडिटी के उपचार में भी किया जाता है। पेठा एक ऐसी फसल है जो बहुत कम लागत में अच्छा खास मुनाफा दे सकती है। इसलिए भारत के किसान पेठा की खेती करना पसंद करते हैं।

गर्मियों में पेठा की खेती

इन राज्यों में की जाती है पेठा की खेती

भारत में पेठा की खेती वैसे तो पूरे देश में की जाती है। लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में इस खेती की प्रचलन ज्यादा है। भारत में सबसे ज्यादा पेठा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। जहां इसका प्रयोग ज्यादातर मिठाई बनाने में किया जाता है।

पेठा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं तापमान

उष्णकटिबंधीय जलवायु में पेठा की खेती के अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। इसकी खेती ज्यादातर गर्मियों और बरसात में की जाती है। पेठा की खेती सर्दियों के मौसम में संभव नहीं है, क्योंकि सर्दियों के मौसम में इसके पेड़ अच्छे से विकसित नहीं हो पाते। जिसके कारण खर्च अधिक आता है और पैदावार अपेक्षा के अनुरूप नहीं होती है। पेठा के खेती के लिए 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान जरूरी होता है। इससे ज्यादा तापमान पेठा की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता। पेठा के बीज 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर आसानी से अंकुरित हो जाते हैं।

पेठा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

पेठा की खेती किसी भी मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन यदि किसान भाइयों के पास दोमट मिट्टी के खेत हैं तो इसकी पैदावार ज्यादा हो सकती है। पेठा के लिए जमीन का चुनाव करते वक्त ध्यान रखें कि खेत में पानी की उचित निकासी की व्यवस्था हो। खेत में पानी भरने की स्थिति में पौधे पानी में डूबकर नष्ट हो जाएंगे। ये भी पढ़े: छत पर उगाएं सेहतमंद सब्जियां

पेठा की प्रसिद्ध किस्में

सी. ओ. 1 :

यह किसानों द्वारा पसंद की जाने वाली उत्तम किस्म है। इसकी फसल 120 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म के फल का वजन 7 से 10 किलो तक हो सकता है। अगर पैदावार की बात करें यह किस्म एक हेक्टेयर खेत में 300 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।

कोयम्बटूर :

पेठा की इस किस्म के फलों का उपयोग सब्जी बनाने के साथ मिठाई बनाने में भी किया जाता है। इस किस्म के फल का औसत वजन 8 किलो के आस पास होता है। इस किस्म की खेती करने पर किसान 250 से 300 क्विंटल तक का उत्पादन ले सकते हैं।

काशी धवल :

पेठा की यह किस्म भी बुवाई एक 120 दिन के भीतर तैयार हो जाती है। इस किस्म के फल का वजन लगभग 5 किलो होता है। यह किस्म भी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 से 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

अर्को चन्दन :

यह किस्म बुवाई के 130 दिनों के बाद तैयार होती है। इसके फलों का उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। इससे भी किसान एक हेक्टेयर खेत में 350 क्विंटल का उत्पादन ले सकते हैं ।

काशी उज्ज्वल :

पेठा की यह किस्म 110 से 120 दिनों में आसानी से तैयार हो जाती है। इसके फल बेहद बड़े होते हैं। इनका वजन 12 से 13 किलो तक हो सकता है। यह किस्म एक हेक्टेयर खेत में 600 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है। इनके अलावा भी पेठा की बहुत सारी किस्में बाजार में उपलब्ध हैं जो अलग-अलग जलवायु के हिसाब से उपयुक्त होती हैं।

पेठा की फसल एक लिए खेत की तैयारी

सबसे पहले 1 से 2 बार खेत की गहरी जुताई करें, जिससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएं।  जुताई के दौरान खेत में सड़ी गोबर की खाद अवश्य डालें। इसके बाद खेत में सिंचाई करें। खेत का पानी सूखने के बाद एक बार फिर से खेत की जुताई करें। जुताई के बाद खेत को खुली धूप में 15 दिनों  के लिए छोड़ दें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी। इसके बाद खेत में मिट्टी के बेड तैयार कर लें। प्रत्येक बेड के बीच 3 से 4 मीटर की दूरी होनी चाहिए।

पेठा के बीजों की रोपाई

पेठा के बीजों की रोपाई गर्मियों और बरसात में करनी चाहिए। रोपाई के पहले बीजों को थीरम या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लें। पेठा की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 8 किलो बीजों की जरूरत होती है। रोपाई करते वक्त ध्यान रखें कि बीज से बीज की दूरी डेढ़ फुट होना चाहिए, जबकि गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर होनी चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में पेठा की रोपाई अप्रैल के बाद की जाती है।

पेठा की सिंचाई

वैसे तो पेठा के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। लेकिन फिर भी तेज गर्मियों के मौसम में सप्ताह में दो बार सिंचाई अवश्य करें। इससे पौधों का विकास तेजी से होगा। अगर पेठा की फसल बरसात में लगाई गई तो सिंचाई न करें।

खरपतवार नियंत्रण

पेठा की फसल के साथ खरपतवार तेजी से खेत में फैलता है। इसलिए इसे नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। खरपतवार नियंत्रित न कर पाने की स्थिति में फसल को हानि पहुंचेगी। इसके नियंत्रण के लिए बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद निराई गुड़ाई करें। इसक बाद हर 15 दिन में निराई गुड़ाई करते रहें।

फसल में लगने वाले कीट

इस फसल में कीटों का हमला होता है, जिससे फसल को सुरक्षित करना बेहद जरूरी होता है। नहीं तो फसल का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होगा। पेठा की खेती में आमतौर पर लाल कद्‌द भृंग, सफेद मक्खी, चेपा, फल मक्खी और चूर्णिल आसिता कीटों का हमला होता है। जिनसे निपटने के लिए फेनवेलिरेट, क्लोरपाइरीफोस, सायपरमेथ्रिन, इमिडाक्लोप्रिड और एन्डोसल्फान का छिड़काव किया जा सकता है।

फसल की तुड़ाई

पेठा के फल को पकने के ठीक पहले तोड़ लेना चाहिए। इसके बाद इसे गाड़ी में लोड करके मंडी भेज दें। यह फल आमतौर पर जल्दी खराब नहीं होता है, इसलिए इसे वातानुकूलित वाहन में रखने की जरूरत नहीं होती है। इस फल से बहुत सारी चीजें बनाई जाती हैं, इसलिए किसान भाइयों को इस फल का अच्छा खासा भाव मिलता है।