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जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई

जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई

भारत में किसान परंपरागत खेती से इतर अब नई तरह ही खेती पर भी फोकस कर रहे हैं, ताकि वो भी समय के साथ अपने व्यवसाय से अच्छी खासी कमाई कर सकें। इसलिए इन दिनों किसान भाई अब बागवानी से लेकर फूलों की खेती करने लगे हैं। भारत में फूल हर मौसम में पाए जाते हैं जो किसानों के लिए पूरे साल भर आमदनी का स्रोत बने रहते हैं। ऐसी ही एक फूल की खेती के बारे में हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं। जिसे जरबेरा के फूल के नाम से जाना जाता है। इसका उपयोग सजावट के साथ-साथ औषधीय कामों में भी होता है। यह हर मौसम में पाया जाने वाला फूल है। इसके फूल पीले, नारंगी, सफेद, गुलाबी, लाल रंगों के साथ कई अन्य रंगों में भी पाए जाते हैं। इससे यह फूल बेहद आकर्षक लगते हैं। इस फूल के लंबे डंडे होने के कारण इसका उपयोग शादी समारोह में सजावट के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा देश की फार्मेसी कंपनियां भी इसके पौधे का उपयोग दवाइयां बनाने के लिए करती हैं। सुंदर फूल होने के कारण बाजार में इन फूलों का जबरदस्त मांग रहती है। लोग फूलों का उपयोग मंदिरों में सजावट के लिए भी करते हैं।

इस प्रकार की जलवायु में उत्पादित होता है जरबेरा

जरबेरा के लिए सामान्य तापमान वाले मौसम की जरूरत होती है। मतलब सर्दियों में जहां इसके पौधे को धूप की जरूरत होती है वहीं गर्मियों में इसके पौधे को छांव की जरूरत होती है। अगर ये परतिस्थियां नहीं मिलती तो जरबेरा का उत्पादन कम हो सकता है। इसलिए इसकी खेती को पॉलीहाउस में ही सफलतापूर्वक किया जा सकता है। ये भी पढ़े: पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

इस तरह से करें खेत की तैयारी

वैसे तो जरबेरा की खेती हर मिट्टी में हो सकती है लेकिन रेतीली भुरभुरी मिट्टी इस खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। इस खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.0-7.2 के बीच होना चाहिए। खेत तैयार करने के पहले खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। इसके बाद एक बेड तैयार कर लें जिसकी चौड़ाई 1 मीटर होनी चाहिए, साथ ही ऊंचाई 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसके साथ ही मिट्टी में जैविक खाद भी डालें।

इस समय करें पौधों की बुवाई

जरबेरा के पौधों की बुवाई फरवरी से लेकर मार्च तक की जा सकती है, इसके साथ ही दूसरे मौसम में इसकी बुवाई सितंबर से लेकर अक्टूबर तक की जा सकती है। बुवाई करते समय ध्यान रहे कि पौधे का ऊपरी भाग मिट्टी से 3 सेंटीमीटर ऊपर होना चाहिए। साथ ही एक पौधे से दूसरे पौधे की की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए और कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर हिनी चाहिए। मिट्टी के एक बेड पर पौधों की 2 कतारें आसानी से लगाई जा सकती हैं।

ऐसे करें सिंचाई

जैसे ही जरबेरा के पौधों की बेड पर रोपाई करें उसके तत्काल बाद पानी देना चाहिए। इसके बाद एक माह तक लगातार सिंचाई करते रहना चाहिए। इससे पौधे की जड़ों की पकड़ मिट्टी में बन सकेगी। शुरुआत में जरबेरा के पौधों को प्रतिदिन सिंचाई की जरूरत होती है।

ऐसे करें जरबेरा के फूलों की तुड़ाई

खेती शुरू करने के करीब 12 सप्ताह बाद जरबेरा में फूल आने लगते हैं। लेकिन फूलों की तुड़ाई 14 सप्ताह के बाद करना चाहिए। सुबह या शाम के समय तुड़ाई करने पर फूलों की गुणवत्ता बनी रहती है। इसलिए फूलों की तुड़ाई के लिए इसी समय का चुनाव करें। जरबेरा के फूलों को डंठल के साथ तोड़ना चाहिए। इसके डंठल की लंबाई 50-55 सेंटीमीटर तक होती है। एक पौधा एक साल में करीब 45 फूल तक उत्पादित कर सकता है। तुड़ाई के ठीक बाद फूलों को पानी से भारी बाल्टी में रखना चाहिए ताकि फूल मुरझाने न पाएं।
ऐसे करें रजनीगंधा और आर्किड फूलों की खेती, बदल जाएगी किसानों की किस्मत

ऐसे करें रजनीगंधा और आर्किड फूलों की खेती, बदल जाएगी किसानों की किस्मत

रजनीगंधा और ऑर्किड (orchids) दोनों खूबसूरत फूल हैं जो विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं। इन फूलों की खेती देश के हर प्रदेश में संभव है और इससे किसान भाई जबरदस्त पैसे कमा सकते हैं। राजस्थान का नेशनल पार्क रणथंभौर इन फूलों से महक रहा है। यह नेशनल पार्क बाघों के संरक्षण के लिए जाना जाता है। अब बाघों के संरक्षण के साथ-साथ राज्य का उद्यानिकी विभाग यहां पर फूलों की खेती को भी प्रोत्साहित कर रहा है। इसके लिए उद्यानिकी विभाग ने आस पास के किसानों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दी है। यह ट्रेनिंग रणथंभौर के आस पास के किसानों के साथ-साथ पूरे सवाई माधोपुर जिले के किसानों को दी जा रही है। इस जिले में पहले से फूलों की खेती की जाती रही है। पहले यह जिला गुलाब की खेती के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन अब पूरे जिले में गुलाब की खेती बंद हो गई है। इस बीच उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि सरकार के द्वारा फूलों की खेती से आस पास के किसानों की आमदनी बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।

सरकारी नर्सरी में उगाए जा रहे हैं कई तरह के फूलों के पेड़

जिले की सरकारी नर्सरी "फूल उत्कृष्टता केंद्र" में इन दिनों डच रोज, रजनीगंधा, जरदरा , हजारा, गुलाब, गुलदाउदी जैसे फूलों के पेड़ उगाए जा रहे हैं। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि नर्सरी में खुले में तैयार होने वाले फूलों के पेड़ों के साथ टनल एवं शेडनेट में तैयार होने वाले फूलों के पेड़ों की खेती भी की जा रही है। इनके साथ ही कई विदेशी फूलों के बीज भी मंगवाए गए हैं जिनकी यहां पर खेती की जायेगी। ये भी पढ़े: ग्लैडियोलस फूलों की खेती से किसान भाई होंगे मालामाल

बाजार में है रजनीगंधा की जबरदस्त डिमांड

रणथंभौर एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक स्थल है यहां पर दुनिया भर के पर्यटक आते हैं। इसलिए यहां के होटल संचालक विदेशी पर्यटकों को खुशनुमा माहौल देने के लिए रजनीगंधा और आर्किड जैसे फूलों का इस्तेमाल करते हैं। इन फूलों का इस्तेमाल होटल के कमरों को सजाने में किया जाता है। इसके अलावा होटल में होने वाली अन्य गतिविधियों में भी फूलों का जबरदस्त इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए सवाई माधोपुर से उत्पादित होने वाले फूलों की लोकल मार्केट में जबरदस्त मांग रहती है। इसके पहले इस मांग को गुलाब के फूलों के द्वारा पूरा किया जाता था। लेकिन अब गुलाब के फूलों की जगह रजनीगंधा और आर्किड के फूलों ने ले ली है। सवाई माधोपुर जिले में पहले 5 प्रकार के गुलाब के पेड़ उगाए जाते थे। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि पहले इस सरकारी नर्सरी का रेवेन्यू शून्य था। लेकिन अब इस नर्सरी का रेवेन्यू 10 लाख रुपये के पार जा चुका है। स्थानीय लोग इस नर्सरी से फूलों के पौधों के साथ-साथ अन्य पौधे भी ले जाते हैं। जिससे नर्सरी में बिकवाली बढ़ती है और नर्सरी को अतिरिक्त आमदनी होती है। ये भी पढ़े: जरबेरा के फूलों की खेती से किसानों की बदल सकती है किस्मत, होगी जबरदस्त कमाई सजावट के अलावा फूलों का उपयोग बहुत सारे उत्पादों को तैयार करने में किया जाता है। फूलों की मदद से गुलाब जल, गुलकंद, शर्बत, इत्र, अगरबत्ती आदि तैयार किए जाते हैं। इससे बाजार में फूलों की मांग बढ़ती है। जिससे किसान भाई ज्यादा से ज्यादा मात्रा में फूलों की खेती करके अच्छा खास लाभ कमा सकते हैं।