सरगुजा की खेती से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां

झारखण्ड के छोटा नागपुर एवं संथालपरगना इलाके में सरगुजा की खेती खरीफ में देर से की जाती है। बतादें कि स्थानीय बोलचाल की भाषा में लोग इसको गुंजा कहते हैं। यह इस क्षेत्र की प्रिय फसल मानी जाती है। इसकी खेती बहुधा कम उपजाऊ ऊपरी भूमि में की जाती है। आदिवासी लोग इस फसल का उत्पादन पुरातन काल से खाने एवं लगाने के लिए करते चले आ रहे हैं। समस्त प्रकार की तिलहनी फसलों जैसे कि तिल, तीसी, सरसों, राई और मूंगफली इत्यादि में सरगुजा का स्थान इस क्षेत्र में सबसे ऊपर है। बतादें, कि जिस ऊपरी जमीन में सरगुजा की खेती की जाती है, उसकी मृदा हल्की बनावट वाली, अम्लीय एवं अल्प नमी धारण क्षमता वाली होती है। यह फसल स्वभावत: काफी ज्यादा कठोर होती है, जो कि नमी के अभाव को बेहतर ढ़ंग से सह लेती है। क्योंकि यह गहरी जडों वाली होती है। इस फसल की खेती संथालपरगना, रांची, गुमला, पलामू, हजारीबाग, गिरिडीह और धनबाद जनपदों में बड़े पैमाने पर की जाती है। झारखण्ड के पठारी इलाकों में फसल के अंतर्गत रकबा और इसकी उत्पादकता को बढ़ाने की प्रबल संभावनाएं हैं। इसकी खेती उन समस्त ऊपरी भूमि में की जा सकती है, जो कि गोड्डा धान और रागी फसलों की कटनी के पश्चात रिक्त हो जाती है। इसके अलावा रबी सरगुजा की भी संभवनाएं उत्तम हैं। अत: ज्यादातर इलाकों, जिसमें मुख्यतः एक ही फसल हो पाती है और सर्दियों में रिक्त ही पड़ी रहती है, उसमें सरगुजा की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

सरगुजा की बुवाई का समय

सरगुजा की बुवाई का सर्वोत्तम समय मध्य अगस्त से अंतिम अगस्त तक होता है।

सरगुजा की खेती हेतु बीज दर और बुवाई

5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई हल के पीछे पंक्तियों में 30 से. मी. के फासले पर करनी चाहिए। पौधों के थोड़ा बड़े होने पर पौधे की दूरी लगभग 15 से. मी.रखकर अनावश्यक पौधों को निकाल देना चाहिए।

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सरगुजा की खेती के लिए भूमि की तैयारी

भूमि की तैयारी दो जुताई में हो जाती है। अंतिम जुताई के समय 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 5% एल्ड्रिन धूल या 10% बी.एच.सी. धूल को मृदा में बेहतर ढ़ंग से जरूर डालना चाहिए।

सरगुजा की खेती के लिए उर्वरक

बुवाई के दौरान 20 किलोग्राम यूरिया, 1 क्विंटल सिंगल सुपर फास्फेट तथा 15 किलोग्राम म्यूरियट ऑफ पोटाश का व्यवहार हल द्वारा खोदी गयी नालियों में करना चाहिए। साथ ही, बुवाई के एक महीने पश्चात टॉप ड्रेसिंग के तौर पर 20 किलोग्राम यूरिया का व्यवहार करना चहिये।

सरगुजा की निराई व गुड़ाई

खेतों को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए आवश्यकतानुसार दो-तीन निराई-गुडाई करनी चाहिये। प्रथम गुडाई बुवाई के 25 से 28 दिनों के पश्चात करनी चाहिए।

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सरगुजा का पौध-संरक्षण

सरगुजा एक सख्त फसल है, जिसमें किसी रोग संक्रमण की संभावना बहुत ही कम होती है। कभी-कभी यह पाउडरी मिल्डयू से आक्रांत होता है, जिसके नियंत्रण के लिए अलोसाल नामक दवा का छिड़काव दवा की 200 ग्राम मात्रा को 1000 लीटर में घोलकर करना चाहिए। इस फसल का प्रमुख कीट रोग भुआ पिल्लू है। ये पिल्लू पत्तियों को खाना शुरू कर देते हैं। परिणामस्वरूप पौधों का विकास बाधित हो जाता है। आक्रमण के शुरूआती चरण में इसकी रोकथाम पत्तियों पर बैठे कीटों को पैर से मसलकर अथवा इन्हे किरासन तेल में डालकर नष्ट करके किया जा सकता है। जब आक्रमण भयंकर तोर पर हो जाये तब नुवान दवा की 300 मि.ली. मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

सरगुजा की कटनी, दौनी, भंडारण और उत्पादन

यह फसल दिसंबर महीने के दौरान पक जाती है। पौधों को जड़ से काटकर धूप में एक हफ्ते तक सुखाया जाता है और उसके पश्चात डंडों से पीटकर फसल की दौनी की जाती है। सूखे हुए बीज का भण्डारण मृदा के बर्तनों अथवा कोठियों में किया जाता है। उपरोक्त उन्नत कृषि विधि को अपनाने से फसल का औसतन उत्पादन 5 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक अर्जित हो सकता है।