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लेमनग्रास

पशुओं के सूखे चारे के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है लेमनग्रास

पशुओं के सूखे चारे के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है लेमनग्रास

किसान भाइयों लेमनग्रास वास्तव में एक चमत्कारिक पौधा है। इस सगंध पौधे की खेती इसके तेल बेचने के लिए की जाती है। ऊसर,बंजर, रेतीली जमीन में आसानी से लगने वाले लेमन ग्रास की खेती में बहुत कम लागत आती है। 

इसकी खेती की खास बात यह है कि एक बार इसको लगाने के बाद आप 5  से 6 साल तक प्रतिवर्ष 6 से 7 बार कटाई करके लाभ कमा सकते हैं। 

इस लेमनग्रास का एक चमत्कार हाल ही में खोजा गया है कि इसका तेल निकालने के बाद बची हुई पत्तियों से सूखा चारा बनाया जा सकता है, जो पशुओं के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है।

किसान भाइयों व पशुपालकों को मिलेगा फायदा

कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के धमतरी इलाके में लेमनग्रास की खेती करने वाले किसानों ने इसको पशुओं के चारे का परीक्षण किया है। इसके काफी अच्छे परिणाम मिलने से किसानों में नया उत्साह देखा गया है। 

इसके साथ ही यह विश्वास हो गया है कि तेल निकालने के बाद लेमन ग्रास से जिस ताह से सूखा चारा बनाया जा रहा है उससे भविष्य में पशुपालकों को काफी लाभ होगा।

पहाड़ी, पठारी क्षेत्रों के पशुपालकों के लिए साबित होगा वरदान

लेमन ग्रास

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लेमनग्रास का तेल निकालने के बाद बची पत्तियों को सूखा चारा बनाये जाने से उन किसान भाइयों व पशुपालकों को काफी लाभ मिल सकता है जहां पर सिंचाई की कमी की वजह से चारा आदि की हमेशा कमी रहती है। 

देश के पहाड़ी और पठारी क्षेत्रों में जहां पर खेती कुदरती वर्षा पर निर्भर करती है। वहां पर लेमनग्रास की खेती करके किसान पहले तो उससे तेल निकाल कर कमाई कर सकते हैं और उसके बाद बची हुई पत्तियों को सूखे चारे के रूप में इस्तेमाल करके अपने पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल भी कर सकेंगे। 

इन क्षेत्रों में पशुओं के चारे का हमेशा संकट रहता है। जब इन क्षेत्रों में पानी के अभाव में खेती नहीं हो पाती है तब चारे का सवाल नहीं उठता है। 

इसके अलावा दूरदराज के गांवों में पशुओं के पालकों को न तो गेहूं का भूंसा और न ही धान की पुआल ही मिल पाती है। इसके लिए खरपतवार आदि को चारे के रूप में इस्तेमाल करना पड़ता है। इन क्षेत्रों में लेमन ग्रास की पत्तियां पशुपालकों के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है।

पौष्टिक आहार का एक हिस्सा है लेमनग्रास

दूसरा यह है कि इन क्षेत्रों के आसपास के शहरी इलाकों में पशुओं के लिए जो चारा मिलता है वो काफी महंगा होता है जो किसान भाइयों की खरीदने के क्षमता के बाहर होता है। 

इससे किसान भाई अपने पशुओं को पौष्टिक आहार की पूरी खूराक नहीं दे पाते हैं। इससे पशु कमजोर होते हैं, जिनकी दूध देने की क्षमता तो घटती ही है 

साथ ही उनके प्रजनन की क्षमता व आयु भी घटती है। ऐसी स्थिति में लेमन ग्रास किसानों को बहुत सहायक साबित होगा।

पशुओं के लिए लाभप्रद है लेमन ग्रास की पत्तियां

लेमन ग्रास

लेमनग्रास के बारे में कहा जाता है कि हरी पत्तियों बहुत कड़वी और खट्टी होती हैं तथा इनसे निकलने वाले सुगन्ध भी पशुओं को नही भाती है। 

इसलिये पशु लेमन ग्रास की हरी पत्तियों को नहीं खाते हैं। लेकिन जब इनका तेल निकाल लिया जाता है। तब बची हुई पत्तियों में न तो कड़वा स्वाद ही रहता है और न ही उसमें उस तरह की सुगंध ही रहती है, जिससे पशु परहेज करते हैं। इसलिये इसको सूखे चारे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। 

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कौन-कौन से गुण होते हैं लेमन ग्रास में

लेमन ग्रास के गुणो के बारे में कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि नींबू की सुगंध वाली यह घास एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-सेप्टिक, एंटी एंफ्लेमेंटरी और विटामिन सी से भरपूर है। 

इसके अलावा इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस, प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल, पोटेशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर, विटामिन बी-6, विटामिन-ए आदि पाये जाते हैं।

औषधि के रूप में प्रयोग होने वाला पौधा है लेमन ग्रास

इन गुणों के आधार पर लेमन ग्रास को लोग औषधीय पौधा मानते हैं। इसका इस्तेमाल चाय बनाने में मुख्य तौर पर किया जाता है। 

इसके प्रयोग से कोलेस्ट्रोल नियंत्रित होता है, जिससे हृदय रोग का खतरा नहीं रहता है, पाचन शक्ति बढ़ाता है, किडनी के लिए फायदेमंद है, कैंसर के लिए रामबाण मानी जाती है, वजन कम करने या चर्बी घटाने में भी फायदेमंद है, रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक है, कोरोना काल में लोगों ने तुलसी की जगह लेमन ग्रास की चाय को अधिक प्रयोग किया। 

इससे उन्हें काफी लाभ भी मिला है। अनिद्रा की बीमारी में भी लेमन ग्रास फायदेमंद है। गठिया की बीमारी में भी इससे फायदा मिलता है। अस्थमा के लिए भी यह काफी लाभप्रद है। 

स्ट्रेस यानी तनाव के क्षणों में यह पौधा काफी लाभ पहुंचाता है। मधुमेह यानी डायबिटीज और मुंहासों यानी पिंपल की बीमारी में भी लेमन ग्रास काफी लाभ पहुंचाता है। 

इसी लिये लेमन ग्रास से निकले तेल की कास्मेटिक इंडस्ट्री, मेडिकल इंडस्ट्री, सोप इंडस्ट्री आदि मेंं बहुत अधिक डिमांड है। इसलिये इसके तेल के दाम काफी अधिक रहते हैं।

किसानों को खुश करने वाली है ये खबर

इतनी खूबियों वाले लेमन ग्रास को जब पशुओं के सूखे चारे के प्रयोग किये जाने की खबर किसान भाइयों को खुश करने वाली खबर है। 

इससे किसान भाई लेमन ग्रास की खेती के बारे में रुचि ले सकते हैं। इससे किसानों को अनेक तरह के फायदे होते हैं। किसान भाइयों को कौन-कौन से फायदे हो सकते हैं

  1. जिन किसान भाइयों के पास ऊसर, बंजर और पठारीय क्षेत्रों में भूमि है, वे इसका सही इस्तेमाल लेमन ग्रास की खेती करके अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  2. लेमन ग्रास की खेती में कोई अधिक लागत नहीं लगती है। कम लागत में तैयार होने वाली इसकी खेती एक बार बोने के बाद 5 से 6 साल तक इसकी कटाई की जा सकती है। इसकी साल में 6 या 7 बार कटाई किये जाने से किसान भाइयों को अच्छा खासा मुनाफा मिल सकता है।
  3. इसकी खेती में साल में बहुत कम सिंचाई की आवश्यकता होती है और निराई गुड़ाई भी बहुत कम करनी होती है। इसमें कोई कीट न लगने से किसान भाइयों को कीटनाशकों पर खर्च नहीं करना पड़ता है।
  4. उर्वरक और खाद भी बहुत कम दी जाती है। इससे खेती की लागत बहुत कम आती है।
  5. किसान भाइयों को खेती के साथ ही रोजगार मिल सकता है, जिसको वे स्वयं कर सकते हैं और कई लोगों को भी रोजगार में लगा सकते हैं।
  6. सबसे बड़ी बात यह है कि जब किसान भाई इसकी पत्तियों का तेल निकाल लेंगे और उसकी बची हुई पत्तियों को पशुओं के सूखे चारे के रूप में प्रयोग करके अपने पशुओं को पौष्टिक आहार दे सकते हैं।
  7. इन सभी गुणों से भरपूर लेमन ग्रास का तेल निकालने के बाद जो पत्तियां बचतीं हैं तो उनमें भी काफी ऐसे तत्व मौजूद रह जाते हैं जो चारे के रूप में पशुओं को पोषक तत्व देंगे। इस तरह से ये सूखा चारा पशुओं के लिए लाभकारी होता है।
  8. लेमन ग्रास की पत्तियों का तेल निकालने के बाद जब उनका पशु चारे के रूप में प्रयोग करें तो उसे संतुलित आहार के एक हिस्से के रूप में भी इस्तेमाल करें। इसके अलावा किसान भाई चाहें तो इस लेमन ग्रास की सूखी पत्तियों को पशुओं को खिलाने से पहले यूरिया से शोधित कर लें तो इससे और अधिक लाभ मिलेगा।
  9. पशुओं को सूखे चारे के रूप में देने से उनका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। उनके पेट में लगने वाले सारे हानिकारक बैक्टीरिया मर जायेंगे। इससे उनकी खुराक बढ़ेगी, पाचन शक्ति बढ़ेगी तो उनका दुग्ध उत्पादन भी बढ़ेगा तथा दूध में फैट भी बढुेगा।

भारत में लेमन ग्रास का उत्पादन

भारत में लेमन ग्रास के तेल का उत्पादन लगभग 1000 टन प्रतिवर्ष होता है। भारत के तेल में किट्रल की गुणवत्ता काफी अच्छी रहती है। इसलिए पूरे विश्व में भारतीय लेमन ग्रास के तेल की मांग रहती है। 

किसान भाइयों को तेल बेचने के लिए किसी तरह के बड़े प्रयास नहीं करने होते हैं बल्कि इंडस्ट्री वाले स्वयं इसके खरीदने की व्यवस्था करते हैं। 

भारत में लेमन ग्रास, कर्नाटक, तमिलनाडु,केरल, आंध्र प्रदेश के तटीस क्षेत्रों में अच्छी खासी खेती होती है। इसके अलावा इसकी खेती राजस्थान, महाराष्टÑ, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी की जाती है। 

अब जब लेमन ग्रास की पत्तियों से सूखा चारा बनाया जा सकता है। इसकी जानकारी के बाद अन्य राज्यों के किसान भाई भी अपने बाग-बगीचों व बेकार पड़ी जमीनों में लेमनग्रास की खेती करने में रुचि दिखायेंगे और उससे दोगुना लाभ उठायेंगे।

किसान भाइयों को मिलती है सब्सिडी

राज्य सरकारों ने लेमन ग्रास की खेती करने वाले किसानों को सब्सिडी देने का फैसला किया है। जानकार लोगों का कहना है कि लगभग सभी राज्य सरकारों ने अपने-अपने हिसाब से किसानों को सब्सिडी देने का निर्णय किया है।

जानकार होग बताते हैं कि राज्य सरकारों ने किसानों को लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रति एकड़ दो हजार रुपये देने का निश्चय किया है। 

इसके अलावा सरकारी स्तर पर इसकी डिस्टलरी लगाने के लिए 50 फीसदी सब्सिडी देने का भी प्रावधान किया गया है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि इसकी खेती करके अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करना चाहिये।

खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

हम जानते हैं कि खरीफ की फसल बोने का समय चल रहा है। इस मौसम में किसान खरीफ की विभिन्न फसलों से काफी लाभ कमाते हैं और बारिश के मौसम में किसान सिंचाई की लागत से बच सकते हैं। जून का आधा महीना बीत चुका है और जुलाई आने वाला है। ऐसे में यह समय खरीफ की फसलें बोने के लिए उपयुक्त माना जाता है। किसान इस समय में औषधीय पौधों की खेती करके भी अधिक लाभ कमा सकते हैं। क्योंकि यह मौसम औषधि पौधों के लिए उपयुक्त माना जाता है। अभी खरीफ की फसलें बोने का समय चल रहा है। इसमें किसान धान, मक्का, कपासबाजरा और सोयाबीन जैसी विभिन्न फसलों की खेती में करते हैं। मानसून आने के साथ ही इन फसलों की रोपाई बुवाई में तेजी आई है। ऐसे में कुछ किसान उपरोक्त खरीफ की फसलें उगा रहे हैं और कुछ किसान इससे हटकर कई औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। ऐसा करने का किसानों का उद्देश्य केवल कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त करना है। औषधीय पौधों की खेती करने से किसान को अधिक लाभ मिलता है। वही सरकार के द्वारा किसानों को मदद भी दी जाती है। इस वजह से किसानों का ध्यान औषधीय पौधों की खेती करने की और अग्रसर हो रहा है।

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देश के किसान इस समय मेडिसिनल प्लांट्स की खेती भी कर रहे हैं। इनकी मांग बाजार में अधिक होने के कारण किसानों को इनकी अच्छे दाम मिलते हैं। वहीं किसानों को सरकारी मदद भी मिलती है। इस समय जिन औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है, उनमें सतावर, लेमन ग्रास, कौंच, ब्राह्मी और एलोवेरा प्रमुख रूप से हैं।

कौंच की खेती करने से फायदा :-

कौंच एक झाड़ीनुमा पौधा होता है, जो कि मैदानी क्षेत्र में पाया जाता है। इस पौधे की खेती किसान 15 जून से लेकर 15 जुलाई के बीच में कर सकते हैं। 1 एकड़ में कौंच की खेती करने में करीब 50 से 60 हजार रुपए का खर्च आता है जबकि कमाई प्रति एकड़ 2 से 3 लाख रुपए तक होती है। इसकी बुवाई के लिए प्रति एकड़ 6 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है।

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ब्राह्मी की खेती की जानकारी :

ब्राह्मी का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की दवाएं बनाने में किया जाता है। यह एक लोकप्रिय औषधीय पौधा है। इसकी खेती करने के लिए बारिश कम समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह एक ऐसा पौधा है जिसकी डिमांड हाल ही के वर्षों में काफी बढ़ी है। किसान इस वक्त ब्राह्मी के साथ एलोवेरा की खेती भी कर सकते हैं। इसकी खेती जुलाई से लेकर अगस्त के बीच में की जाती है। कई कंपनियां इस पौधे की खेती करने के लिए किसानों को सीधे कॉन्ट्रैक्ट देती हैं।

सतावर की खेती से किसानों को लाभ :

खरीफ के मौसम में किसान सतावर और लेमनग्रास जैसे औषधीय पौधों की खेती कर सकते हैं। दोनों की खेती अलग अलग समय पर की जाती है। लेमनग्रास की खेती के लिए फरवरी से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। लेकिन शतावर के लिए अगला पखवाड़ा सबसे उपयुक्त माना जाता है। सतावर की खेती से किसान काफी अधिक फायदा कमाते हैं। वहीं लेमनग्रास की खेती करने से यह फायदा होता है कि इसे एक बार लगाने पर किसान इससे कई साल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।