कम उपजाऊ जमीन में औषधीय पौधों की खेती - मेरीखेती

कमजोर जमीन में औषधीय पौधों की खेती

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खुशबूदार औषधीय पौधों की समूचे विश्व में मांग रहती है। इसका कारण यह है कि इनका प्रयोग कई तरह की औषधियों एवं मेकअप आदि के सामान बनाने में होता है। बाजार में इनकी मांग के चलते किसानों को इनकी खेती से अच्छी आय होती है। ध्यान रखने वाली बात यह है कि किसान उन्हीं फसलों का चयन करें जिसका बाजार उनके आस-पास की मण्डी में हो। भारत में करीब अस्सी लाख एकड़ जमीन बंजर है। इसमें औषधीय पौधों की खेती बड़ी आसानी से हो सकती है। इससे किसानों की आय तो होगी ही देश की अर्थ व्यवस्था में भी कृषि की हिस्सेदारी बढ़ेगी।

बंजर जमीन को सुधारने पर अच्छी खासी रकम खर्च होती है। यदि किसान उन फसलों की खेती करें जिन्हें बंजर जमीन में किया जा सकता है तो उन्हें दोहरा फायदा हो। उन्हें जमीन सुधारने में लगने वाली कीमत भी नहीं लगानी होती साथ ही फसल से अतिरिक्त आय भी हो जाएगी।

क्षारीय यानी नमकीन जमीन में भी कई तरह के खुशबूदार औषधीय पौधे लगाए जा सकते हैं। इनसे पारंपरिक फसलों से ज्यादा पैसा भी किसानों को मिल सकता है। पामरोज, नींबूघास, गंदा, विटीवर घास खुशबूदार पौधों की श्रेणी में आते हैं। इनकी खेती कमजोर जमीन में हो सकती है।

पामरोज तेल वाली बारहमासी घास होती है। इसमें 90 प्रतिशत तक जिरेनियाल अंश वाला तेल पाया जाता है। यह गरम एवं ठंडे इलाकों में भी आसानी से उगाई जा सकती है। नींबूघास भी बारहमासी होती है। इससे भी तेल निकलता है। इसे ठंडी एवं कम ठंडी आबोहवा में आसानी से उगाया जा सकता है। इससे भी 90 प्रतिशत तेल प्राप्त किया जा सकता है।

इसकी सुगंधी, प्रगति, प्रधान, कावेरी एवं ओडी 19 किस्में बेहद अच्छी हैं।

गेंदा की टी मिनाट, टी पेचुएल व टी इरेक्टा किस्म का इस्तेमाल भोजन, स्वाद व मेकअप का सामान बनाने के लिए किया जाता है। इससे तेल व इत्र आदि भी हासिल किया जाता है।

विटीवर घास मिट्टी को बेहतर करने की कूबत रखती है। इसकी खेती जमीन को सुधारने के लिए की जाती है। यह हर तरह से लाभदायक भी है।

 

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