कोरोना महामारी में विश्व के काम आई किसानों की मेहनत [ Corona mahamari mei vishv ke kaam ai kisano ki mehnat

कोरोना महामारी में विश्व के काम आई किसानों की मेहनत

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सैकड़ों तरह के व्यंजन, हजारों तरह के मसाले, मेवा और कोस्टल क्राप भारत की समृद्ध जैव विविधता की निशानी हैं। विदेशी आक्रांता भी यहां के व्यंजनों का आनंद लेने और अनेक तरह की फसलों को लूटने आते रहे। उनके आक्रमण भी उसी समय होते जबकि फसलों की कटाई हो चुकी होती और किसान के अन्न भंडार भरे होेते। कोरोना टाइम में कृषि निर्यात की रफ्तार ने खेती की उपयोगिता को एकबार फिर सिद्ध ​कर दिया है।

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कृषि निर्यात में भारत उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है। कोविड टाइम में भी कृषि क्षेत्र ने भारतीय अर्थव्यवस्था की बागडोर संभाले रखी। विश्व ट्रेड आर्गनाइजेशन की वैश्विक कृषि रुझान रिपोर्ट 2021 के मुताबिक दुनियां में भारत नौवें स्थान पर खड़ा है। देश के कुल निर्यात में 11 प्रतिशत हिस्सेदारी अकेल कृषि की है। खेती ने कोरोना जैसी महामारी के दौर में भी देश को जो संबल प्रदान किया वह हर तरह से संतोशजनक है।

हमारी समृद्ध कृषि परंपरा ने कोरोना जैसी महामारी के काल में भी समूचे विश्व को अनेक तरह के अनाज, चावल, बाजरा, मक्का, फल एवं सब्जियों की आपूर्ति की। यूरोपीय महाद्वीप में मौसम की प्रतिकूलता कई तरह की चीजों के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर करती है। इस निर्भरता को हमारे किसानों की फसलों ने पूरा किया। अमेरिका, चीन, नेपाल, मलेशिया, ईरान जैसे अनेक देशों की खाद्य जरूरतों को हमारे किसानों की फसलों ने पूरा किया। भारत का चावल कभी 1121 तो कभी 1509 गल्फ देशों के अलावा कई देशों में पसंद किया जाता है। यहां के मसालों की सुगंध भी समूचे विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुकी है। वित्तीय वर्ष 2020—21 में करीब साढे 29 हजार करोड़ रुपए की विदेशी मु्द्रा अकेल मसालों से प्राप्त हो चुकी है। सरकार भी विदेशी मांग के अनुुरूप फसलों के उत्पादन की दिशा में किसानों को ट्रेन्ड करने को अनेक प्रोग्राम चला चुकी हैं।

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इसका प्रयोजन यह है कि किसान सुरक्षित कीटनाशी का उपयोग करें ताकि विदेशों को निर्यात आसान हो सके। जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, एफपीओ आदि के माध्यम से सांगठनिक खेती का विचार खेती को नई दिशामें ले जाने का काम कर रहा है।

निर्यात की दिशा में इजाफे का ग्राफ काफी बढ़ा है। साल 2020—21 में कृषि उत्पाद करीब सवा 41 अरब डालर के निर्यात हुुए। यानी हमारे उत्पादों का बाजार बढ़ रहा है। अब हमारे किसानों, कृषि इनपुट विक्रेताओं की जिम्मेदारी भी बनती है कि वह किसानों को सेफ दवाएं दें। फसलों में जिनका प्रभाव तो हो लेकिन दानों तक उनका अंश न रहे। कीटनाशी कंपनियां व वैज्ञानिक इस तरह की तकनीकों को आसान बनाएं ताकि किसानों को फसलों से कीट एवं बीमारियों के नियंत्रण के लिए दूरगामी प्रभाव वाले जहरों के छिड़काव से बचना पड़े। हेल्दी फूड हेल्दी सोसायटी के विचार को आगे बढ़ाते हुए विश्व की जरूरतों को पूरा करने की संकल्पना को किसान, वैज्ञानिक, कंपनियां और सरकार सभी को मिलकर पूरा करना होगा।

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