आमतौर पर अधिकाँश किसान पुत्र अपने पिता से ही खेती-किसानी के गुड़ सीखते हैं। यही बात किशोर राजपूत ने कही है, किशोर पिता को खेतों में अथक परिश्रम करते देखता था, जो उसके लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत साबित हुआ। युवा का विद्यालय जाते समय रास्ते में पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, हरियाली बहुत आकर्षित करती थी। किशोर ने कम आयु से ही खेतों की पगडंडियों पर मौजूद जड़ी-बूटियों के बारे में रुचि लेना और जानना शुरू कर दिया। बढ़ती आयु के दौरान किशोर किसी कारण से 12वीं की पढ़ाई छोड़ पगडंडियों की औषधियों के आधार पर वर्ष २००६ से २०१७ एक आयुर्वेदित दवा खाना चलाया। आज किशोर राजपूत ने औषधीय फसलों की खेती कर भारत के साथ साथ विदेशों में भी परचम लहराया है, इतना ही नहीं किशोर समाज कल्याण हेतु लोगों को मुफ्त में औषधीय पौधे भी देते हैं।
किशोर ने कितने रूपये की लागत से खेती शुरू की
वर्ष २०११ में स्वयं आधार एकड़ भूमि पर किशोर नामक किसान ने प्राकृतिक विधि के जरिये औषधीय खेती आरंभ की। इस समय किशोर राजपूत ने अपने खेत की मेड़ों पर कौच बीज, सर्पगंधा व सतावर को रोपा, जिसकी वजह से रिक्त पड़े स्थानों से भी थोड़ा बहुत धन अर्जित हो सके। उसके उपरांत बरसाती दिनों में स्वतः ही उत्पादित होने वाली वनस्पतियों को भी प्राप्त किया, साथ ही, सरपुंख, नागर, मोथा, आंवला एवं भृंगराज की ओर भी रुख बढ़ाया। देखते ही देखते ये औषधीय खेती भी अंतरवर्तीय खेती में तब्दील हो गई व खस, चिया, किनोवा, गेहूं, मेंथा, अश्वगंधा के साथ सरसों, धान में बच व ब्राह्मी, गन्ने के साथ मंडूकपर्णी, तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंगा, चना इत्यादि की खेती करने लगे। प्रारंभिक समय में खेती के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, आरंभ में बेहतर उत्पादन न हो पाना, लेकिन समय के साथ उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।
अश्वगंधा का उपयोग औषधियां तैयार करने में किया जाता है
भारत के विभिन्न राज्यों में किसान अश्वगंधा की खेती कर रहे हैं। किसान भाई अश्वगंधा की उपज से बेहतरीन आमदनी भी कर रहे हैं। निश्चित तौर पर इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आएगा। सबसे बड़ी बात अश्वगंधा एक जड़ी-बूटी होती है। जिसका इस्तेमाल औषधियां निर्मित करने में किया जाता है। जानकारी के लिए बतादें, कि अश्वगंधा का सेवन करने से शरीर के गंभीर रोग भी ठीक हो जाते हैं। साथ ही, इसको दूध में घोलकर सेवन करने से शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अधिक हो जाती है।
यह भी पढ़ें: सुगंधित फसलों को उगाने के लिए सरकार दे रही है ट्रेनिंग, होगा बंपर मुनाफा
खारे पानी में भी अश्वगंधा का उत्पादन किया जा सकता है
अश्वगंधा की खेती किसान भाई खारे पानी में भी सहजता से कर सकते हैं। अश्वगंधा की यह अद्भुत विशेषता इसको और खास बनाती है। अश्वगंधा की खेती के लिए सितंबर से अक्टूबर माह का समय उपयुक्त माना जाता है। अश्वगंधा की खेती करने वाली भूमि पर सर्व प्रथम अच्छी तरह जुताई करलें। उसके पश्चात खेत में जैविक खाद अथवा वर्मी कंपोस्ट डाल दें पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें। विशेष बात यह है, कि अश्वगंधा की बुवाई करने से पूर्व खेत में नमी अवश्य होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में अश्वगंधा की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 7.5 से 8 के मध्य उपयुक्त माना गया है।
अश्वगंधा में कितने किलो बीज की आवश्यकता होती है
यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में अश्वगंधा की खेती करना चाहते हैं, तो 10 से 12 किलो अश्वगंधा के बीज की आवश्यकता होगी। बुवाई करने के एक सप्ताह पश्चात बीज अंकुरित हो जाएंगे। अश्वगंधा पौधों की उच्चतम प्रकार से प्रगति के लिए 25 से 35 डिग्री के मध्य तापमान होना जरूरी है। साथ ही, 750 एमएम तक वर्षा आवश्यक होती है। माना गया है, कि इसकी खेती में धान एवं गेहूं की भांति परंपरागत फसलों की तुलना में 50 प्रतिशत ज्यादा लाभ होता है। यही कारण है, कि बिहार के अंदर किसान अश्वगंधा का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रहे हैं।
यह भी पढ़ें: जानें सर्वाधिक धान उत्पादक राज्य कौन-सा है और धान का कटोरा किस राज्य को कहा जाता है
किस वजह से इस जड़ी-बूटी का नाम अश्वगंधा पड़ा है
अश्वगंधा की जड़ों से घोड़े की भांति सुगंध आती है। यही वजह है, जो इसका नाम अश्वगंधा रखा गया है। संस्कृत में घोड़े को अश्व कहा जाता है। अश्वगंधा का पौधा झाड़ी की भांति दिखाई देता है। फिलहाल बाजार में 100 ग्राम अश्वगंधा की कीमत 80 रुपए से 200 रुपए के मध्य है। ऐसे में इसकी खेती करके किसान भाई लाखों रुपए की आमदनी कर सकते हैं।
अश्वगंधा की खेती अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट अथवा हल्की लाल मिट्टी में अच्छी रहती है। भारत में इस वक्त इसकी खेती गुजरात, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पंजाब के बहुत सारे किसान कर रहे हैं। अश्वगंधा उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश और राजस्थान का नाम सबसे ऊपर है। यहां मनसा, नीमच, जावड़, मानपुरा, मंदसौर और राजस्थान के नागौर और कोटा में इसकी खेती बेहद बड़े स्तर पर की जाती है।
ये भी पढ़े: Ashwgandha Farming: किसान अश्वगंधा की खेती से अच्छी-खासी आमदनी कर रहे हैं
अश्वगंधा की खेती किस प्रकार की जाती है
अश्वगंधा की खेती रबी और खरीफ दोनों ही सीजनों में की जाती है। हालांकि, खरीफ सीजन में मानसून की बारिश के पश्चात इसकी रोपाई करने से अच्छा अंकुरण होता है। साथ ही, कृषि विशेषज्ञों की मानें तो मानसून की बारिश के दौरान इसकी पौध तैयार करनी चाहिये। वहीं, अगस्त अथवा सितंबर के मध्य खेत की तैयारी करके अश्वगंधा की पछेती खेती करना लाभदायक रहता है। आपको बतादें, कि अश्वगंधा के खेतों में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें। क्योंकि, अत्यधिक पानी अश्वगंधा की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं।
जैविक विधि से खेती करके मिट्टी में पोषण और अच्छी नमी बरकरार रखने से ही बेहतरीन उत्पादन मिल जाता है। प्रति हेक्टेयर फसल में अश्वगंधा की खेती करने पर आपको 4-5 किलेग्राम बीजों की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही, रोपाई, सिंचाई और देखभाल के उपरांत 5 से 6 महीने में अश्वगंधा की फसल पूर्णतय तैयार हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार, प्रति हेक्टेयर भूमि में अश्वगंधा की खेती करने पर तकरीबन 10,000 की लागत आती है। परंतु, फसल का प्रत्येक भाग बिकने के बाद आपको इससे 70 से 80 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है।