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इस राज्य में जामुन की खेती करने पर मिल रहा 50 प्रतिशत अनुदान

इस राज्य में जामुन की खेती करने पर मिल रहा 50 प्रतिशत अनुदान

जामुन को एक औषधीय फल माना जाता है। इससे विभिन्न प्रकार की औषधियां भी निर्मित की जाती हैं। मुख्य बात यह है, कि जामुन की खेती भी लीची, अमरूद और आम की भांति ही की जाती है। जामुन का सेवन करना प्रत्येक व्यक्ति को पसंद है। यह एक एंटीऑक्सिडेंट फल है, जिसका सेवन करने से शरीर की इम्युनिटी बढ़ जाती है। इसमें पोटेशियम, विटामिन सी, आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह माना जाता है, कि जामुन का सेवन करने से हड्डियां काफी मजबूत होती हैं। यही वजह है, कि जामुन का भाव आम एवं अमरूद से भी ज्यादा होता है। अगर किसान भाई जामुन की खेती करते हैं, तो अमरूद की तुलना में ज्यादा आमदनी कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि विभिन्न राज्यों में राज्य सरकारें जामुन की खेती करने पर कृषकों को अनुदान भी देती हैं।

यह राज्य सरकार जामुन की खेती पर 50 प्रतिशत अनुदान देती है

फिलहाल, बिहार सरकार जामुन की खेती चालू करने वाले किसान भाइयों को अनुदान दे रही है। बिहार सरकार प्रदेश में जामुन समेत बहुत सारी फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाना चाहती है। यही वजह है, कि वह मुख्यमंत्री बागवानी मिशन एवं राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना के अंतर्गत किसानों 50 फीसद अनुदान प्रदान कर रही है। यदि किसान भाई जामुन की खेती करना चाहते हैं, तो कृषि विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर http://horticulture.bihar.gov.in पर जाकर अनुदान के लिए आवेदन कर सकते हैं।

जामुन के खेत में समुचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए

जामुन एक औषधीय फल है और इससे विभिन्न प्रकार की दवाइयां भी निर्मित की जाती हैं। विशेष बात यह है, कि जामुन की खेती भी लीची, अमरूद और आम की तरह ही की जाती है। इसके लिए सर्वप्रथम खेत को जोता जाता है। इसके पश्चात पाटा चलाकर खेत को एकसार कर लिया जाता है। यदि आप चाहें, तो इसके खेत में जैविक खाद के तौर पर गोबर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके उपरांत समान फासले पर जामुन के पौधे लगा सकते हैं। जामुन के खेत में जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

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एक हेक्टेयर भूमि में कितने जामुन के पौधे लगाए जा सकते हैं

जामुन के पौधे लगाने पर 4 से 5 साल के अंदर फल आने चालू हो जाते हैं। परंतु, 8 साल के पश्चात पौधे पूरी तरह से पेड़ का रूप धारण कर लेते हैं। इसके उपरांत जामुन का उत्पादन बढ़ जाता है। मतलब कि 8 साल के पश्चात आप जामुन के वृक्ष से 80 से 90 किलो तक फल तुड़ाई कर सकते हैं। यदि आप एक हेक्टेयर में जामुन की खेती करना चाहते हैं, तो 250 से अधिक पौधे लगा सकते हैं। इस प्रकार 8 साल के उपरांत आप 250 जामुन के पेड़ से 20000 किलो तक फल अर्जित कर सकते हैं। फिलहाल, बाजार में जामुन 140 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। इस प्रकार आप एक हेक्टेयर भूमि में जामुन का उत्पादन कर 20 लाख रुपये से अधिक की आमदनी कर सकते हैं।
जानें बकरियों की टॉप पांच दुधारू प्रजातियों के बारे में

जानें बकरियों की टॉप पांच दुधारू प्रजातियों के बारे में

बकरियों की ये टॉप पांच दुधारू प्रजातियां जमुनापारी बकरी, बीटल, सिरोही, उस्मानाबादी एवं बरबरी बकरी नस्ल रोजाना कम खर्चा में चार लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती हैं। ऐसी स्थिति में यदि पशुपालक इन टॉप पांच बकरियों की दुधारू प्रजाति का पालन करते हैं, तो आप कम वक्त में ही मोटी आय अर्जित कर सकते हैं। किसानों के लिए बकरी पालन का कारोबार काफी ज्यादा मुनाफे का सौदा साबित होता है। हमारे भारत के अधिकांश किसान खेती के साथ-साथ बकरी पालन भी करते हैं। क्योंकि इसमें गाय-भैंस के मुकाबले में किसानों को काफी ज्यादा मुनाफा हांसिल होता है। साथ ही, बकरी पालन में किसानों का ज्यादा खर्चा भी नहीं होता है। यदि आप भी बकरी पालन से शानदार मुनाफा हांसिल करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको बकरियों की दुधारू प्रजातियों का चयन करना चाहिए। इसी कड़ी में आज हम आपको बकरियों की टॉप पांच दुधारू नस्लें जमुनापारी बकरी, बीटल,सिरोही, उस्मानाबादी और बरबरी बकरी नस्ल की जानकारी देने वाले हैं।

बकरियों टॉप पांच दुधारू नस्लें

बरबरी बकरी

यह नस्ल अलीगढ़, आगरा तथा एटा जिलों में पाई जाती है। बतादें कि इस बकरी का आकार छोटा होता है और रंग की भिन्नता होती है। इसके कान का आकार नली की भांति मुड़ा हुआ होता है। इस नस्ल की बहुत सारी बकरियां सफेद होती हैं। इसके साथ ही उनके शरीर पर भूरे धब्बे होते हैं। बरबरी बकरी नस्ल की बकरी रोजाना डेढ़ लीटर तक दूध देती है।

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बीटल बकरी

बीटल नस्ल की बकरी पंजाब के पशुपालक के द्वारा सर्वाधिक पाली जाती है। इस नस्ल की बकरी का आकार बड़ा होता है और रंग काला होता है। शरीर पर सफेद या फिर भूरे धब्बे पाए जाते है, बाल भी छोटे तथा चमकीले होते हैं। इसके कान लम्बे और नीचे को लटके हुए तथा सर के अंदर मुड़े हुए होते हैं। वहीं, बीटल बकरी रोजाना ढाई लीटर तक दूध देती है।

कच्छी बकरी

कच्छी नस्ल की बकरी गुजरात के कच्छ जनपद में पाई जाती है। इसका आकार दिखने में काफी बड़ा होता है और इसके बाल लंबे और नाक थोड़ी उभरी हुई होती है। इसके सींग मोटे, नुकीले और बाहर की ओर हल्के उठे हुए होते हैं। इसके थन भी काफी विकसित होते हैं। कच्छी बकरी रोजाना चार लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है।

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गद्दी बकरी

गद्दी नस्ल की बकरी मूलतः हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में सर्वाधिक देखने को मिलती है। यह अधिकांश पश्मीना इत्यादि के लिए पाली जाने वाली प्रजाति है। इस बकरी के कान 8.10 सेमी. लम्बे एवं सींग काफी नुकीले होते हैं। कुल्लू घाटी में इसको ट्रांसपोर्ट के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। गद्दी बकरी रोजाना 3.5 लीटर तक दूध देती है।

जमुनापारी बकरी

जमुनापारी नस्ल की बकरी अधिकांश इटावा, मथुरा इत्यादि जगहों पर देखने को पाई जाती है। पशुपालक इसका पालन कर दूध हांसिल करते हैं। साथ ही, यह वजन में भी काफी सही होती है। जमुनापारी नस्ल की बकरी सफेद रंग की होती है। वहीं, इसके शरीर पर हल्के भूरे रंग के धब्बे उपस्थित होते हैं, कान का आकार भी काफी लम्बा होता है। वहीं, सींग 8 से 9 से.मी. लम्बे और ऐंठन लिए होते हैं। इसके साथ ही यदि हम इस नस्ल की बकरी की दूध पैदावार की बात करें, तो यह 2 से 2.5 लीटर रोजाना देती है।