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सिंघाड़े की खेती की जिज्ञासा रखने वाले लोगों के लिए सिंघाड़े सम्बंधित जानकारी

सिंघाड़े की खेती की जिज्ञासा रखने वाले लोगों के लिए सिंघाड़े सम्बंधित जानकारी

सिंघाड़ा (Singhada; Water chestnut; सिंघारा, वॉटर चेस्टनट, वाटर कैलट्रॉप, सिंगडा) एक सुप्रसिद्ध फल है, जिसको ज्यादातर लोग बेहद पसंद करते हैं। इस मौसम में, उत्तर भारत में सिंघाड़ा प्रायः हर जगह बाजार में उपलब्ध रहता है। यह मौसमी फल होने के साथ साथ बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक होता है। सिंघाड़े का उपयोग सामान्य रूप से खाने के साथ ही फलहार एवं व्रत में उपयोग होने वाले आटे के रूप में भी होता है। सिंघाड़ा थोड़ा मीठा एवं स्वादिष्ट फल है, इसी वजह से लोग सिघाड़े को बेहद पसंद करते हैं, साथ ही बाजार में भी इसकी खूब मांग होती है। सिंघाड़ा नवंबर दिसम्बर के सीजन में आना शुरू हो जाता है, क्योंकि इसकी बुवाई जून जुलाई के समय होती है। इसकी पैदावार किसी तालाब पोखर जैसे अड़िग जलीय स्थानों पर ही होती है, मगर इसका उत्पादन जलभराव के लिए गड्डा खोदकर भी किया जा सकता है। सिंघाड़े की खेती करने वाले किसान इस विधि से भी सिंघाड़ा उत्पादन करते हैं। सिंघाड़े की फसल को पूर्ण रूप से तैयार होने में ५ से ६ माह का समय लगता है, जून जुलाई में सिंघाड़े की रोपाई के उपरांत नवंबर दिसम्बर में इसकी फसल तैयार होकर बाजार में आ जाती है।

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सिंघाड़ा काफी मशहूर एवं प्रचलित फसल है, इसकी अपने बाजार में अच्छी खासी मांग और उपयोगिता है। सिंघाड़ा उत्पादक किसान इसकी उत्तम पैदावार करके बेहतर मुनाफा अर्जित करते हैं, जिसकी एक वजह यह भी है कि सिंघाड़े का उपयोग भिन्न भिन्न रूप में किया जाता है। सिंघाड़े को कुछ दिनों धूप में सुखाने के उपरांत इसके अंदर के फल को पीसकर आटा निर्मित होता है, जिसको लोग उपवास के दौरान प्रयोग करते हैं। शीतकाल के दौरान सिंघाड़े की मांग आसमान छूने लगती है, इससे न केवल किसान को लाभ होता है, बल्कि अन्य ठेली व रेहड़ी वाले भी इसको विक्रय कर मुनाफा कमाते हैं। [caption id="attachment_11773" align="alignnone" width="750"]ताजा सिंघाड़ा व सूखा सिंघाड़ा ताजा सिंघाड़ा व सूखा सिंघाड़ा[/caption]

सिंघाड़े की उम्दा किस्मों के प्रकार एवं खेती का प्रबंधन

सिंघाड़े की मुख्यतया दो किस्म पायी जाती हैं, जिसमे पहली किस्म को लाल छिलके व दूसरी को हरे छिलके के नाम से जाना जाता है। लाल छिलके में सबसे प्रसिद्ध किस्म VRWC1 एवं VRWC 2 हैं, लेकिन हरे छिलके वाली किस्म VRWC 3 की अपेक्षा में लाल छिलके की किस्म को किसान कम पसंद करते हैं। जिसकी मुख्य वजह यह है कि लाल किस्म के सिंघाड़े की किस्में शीघ्रता से खराब हो जाती हैं और इसी कारण से बाजार में इसकी मांग काफी कम होती है। जबकि हरे छिलके वाली सिंघाड़े की बाजार में अत्यधिक मांग होती है, साथ ही यह काफी समय तक खराब भी नहीं होती।

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सिंघाड़े की फसल की तैयारी के लिए किसानों को सर्वप्रथम उम्दा एवं अच्छे बीजों को जनवरी एवं फरवरी माह में जल के अंदर डाल कर उनकी बेल अंकुरित होने तक संजोकर रखना होगा। साथ ही किसान सिंघाड़े की रोपाई मई जून के महीने में करें, क्योंकि इसकी फसल का वातानुकूलित समय वही होता है। सिंगाड़े की खेती एक स्थिर जलीय स्थान पर ही संभव होती है, फसल लगभग १ से २ फीट जल के अंदर निरंतर रहनी आवश्यक है।

सिंघाड़े के कुछ महत्वपूर्ण लाभ इस प्रकार हैं।

  • सिंघाड़े से व्रत में उपभोग करने हेतु आटा निर्मित होता है।
  • सिंघाड़ा खाने में भी अत्यंत स्वादिष्ट लगता है।
  • सिंघाड़े के प्रयोग से शरीर में विघमान खुश्की भी दूर हो जाती है, साथ ही पीड़ाजनक शारीरिक स्थानों पर यह एक सफल औषधी का कार्य करता है।
  • सिंघाड़ा महिलाओं को पीरियड्स के समय होने वाली दिक्कतों से निजात दिलाने में अहम भूमिका निभाता ही है, साथ ही गर्भवती होने के समय गर्भपात जैसे भय को खत्म करने की भी क्षमता रखता है।
  • सिंघाड़ा के इस्तेमाल से कई सारे रोगों से निजात मिल सकती है, जैसे की अस्थमा, बवासीर इत्यादि।
  • सिंघाड़े में केल्सियम प्रचूर मात्रा में होता है, जो कि हड्डियों की मजबूती एवं आँखों के लिए फायदेमंद होने के साथ साथ ही शारीरिक ऊर्जा भी प्रदान करता है।
  • सिंघाड़े की खेती करके किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। सिंघाड़े की प्रसिद्धि से बाजार में इसकी खूब मांग है, जिसके चलते इसका अच्छा भाव बाजार में मिल जाता है।
सब्जियों के साथ-साथ मसालों के बढ़ते दामों से लोगों की रसोई का बिगड़ा बजट

सब्जियों के साथ-साथ मसालों के बढ़ते दामों से लोगों की रसोई का बिगड़ा बजट

बेमौसम बारिश के चलते राजस्थान और गुजरात में जीरे की फसल को काफी क्षति पहुंची थी। ऐसी स्थिति में पैदावार प्रभावित होने से इसकी कीमतों में निरंतर वृद्धि हो रही है। भारत में महंगाई से हड़कंप मचा हुआ है। हरी सब्जियों से लगाकर खाने- पीने के ज्यादातर चीजें महंगाई की चरम सीमा पर हैं। परंतु, लोगों की निगाह सिर्फ टमाटर पर ही अटकी हुई है। आम जनता को को ऐसा लग रहा है, कि केवल टमाटर ही महंगा हुआ है। अन्य खाद्य पदार्थ पहले के भाव पर ही बिक रहे हैं। परंतु, इस तरह की कोई बात नहीं है। टमाटर के अलावा भी बहुत सारे ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिनकी कीमतों में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हुई है। ये खाद्य पदार्थ ऐसे हैं, जिसके बिना स्वादिष्ट एवं लजीज व्यंजन बन ही नहीं सकते हैं। अर्थात भोजन स्वादहीन हो जाएगा।

अदरक, टमाटर और हरी मिर्च के बढ़ते दामों से लोग परेशान

दरअसल, हम मसालों की बात कर रहे हैं।
अदरक, टमाटर और हरी मिर्च के बढ़ते दामों की वजह से महंगे हो रहे मसालों पर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है। जबकि, मसालों के भाव में भी काफी ज्यादा वृद्धि होने से रसोई का बजट ड़गमगा गया है। विशेष बात यह है, कि मसालों के अंतर्गत सर्वाधिक जीरा महंगा हो गया है। इसकी कीमत थोक भाव से लेकर रिटेल बाजार में भी महंगी हो गई है। इससे सब्जी एवं दाल में तड़का लगाने वालों का बजट ड़गमगा गया है। ये भी पढ़े: जानें अदरक की कीमत में इतना ज्यादा उछाल किस वजह से आया है

लोगों ने सब्जी व दाल में जीरे का तड़का लगाना तक बंद कर दिया है

हालांकि, जीरे के अतिरिक्त अजवाइन एवं सौंफ की कीमतें भी बढ़ गई हैं। ऐसी स्थिति में लोग इनकी खरीदारी करने से पूर्व एक बार भाव जरूर पूछ रहे हैं। वहीं, महंगाई की वजह से कई लोगों ने सब्जी और दाल में जीरे का तड़का लगाना भी बंद कर दिया है। जानकारों ने बताया है, कि विगत मार्च माह में हुई बेमौसम बारिश के चलते राजस्थान और गुजरात में जीरे की फसल को हानि पहुंची था। अब ऐसी स्थिति में पैदावार प्रभावित होने से इसकी कीमतों में निरंतर वृद्धि हो रही है। इसके अतिरिक्त काजू और बादाम भी काफी महंगे हो गए हैं।

मसाले कितने महंगे हो गए हैं

बतादें, कि पहले जीरे की कीमत 500 से 600 रुपये किलो थी। जो अब बढ़कर 700 से 750 रुपये हो गया है। इसी प्रकार अजवाइन 250 से 300 रुपये किलो बिकता था। लेकिन, फिलहाल इसकी कीमत 400 रुपये तक पहुँच गई है। साथ ही, सौंफ भी 100 रुपये तक महंगा हो गया है। अब एक किलो सौंफ का भाव 360 रुपये किलो तक पहुँच गया है, जो कि पहले 250 रुपये था।