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पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

अपने जीवन में अपने कभी ना कभी हरित गृह प्रभाव या ग्रीनहाउस प्रभाव (greenhouse effect) के बारे में तो अवश्य सुना होगा, लेकिन इसी हरित ग्रह प्रभाव की मदद से कई भारतीय किसान अब पॉलीघर या पॉलीहाउस (Polyhouse) तकनीक का इस्तेमाल कर हाईटेक फार्मिंग या संरक्षित खेती करने में सफल हो रहे हैं।

क्या होता है पॉलीहाउस ?

पोली-हाउस हरित गृह प्रभाव पर काम करने वाली एक तकनीक होती है, जिसमें विशेष प्रकार की पॉलीथिन का इस्तेमाल फसलों को ढकने के लिए एक आवरण बनाकर किया जाता है। इस पोली हाउस की मदद से किसी भी जगह की कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों को नियंत्रित किया जाता है। कृषि में आई नई तकनीकों के शुरुआती दौर में हरित गृह प्रभाव के लिए लकड़ी के चेंबर बनाकर उसे कांच से ढका जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से पॉलीथिन और प्लास्टिक के निर्माण में आए सुधारों की वजह से अब प्लास्टिक अथार्त पॉलीथिन (Polyethylene या Polythene) का इस्तेमाल भी हरित गृह प्रभाव के लिए किया जा रहा है। [caption id="attachment_10755" align="alignnone" width="487"]पॉलीहाउस - बाहर से (Polyhouse) पॉलीहाउस - बाहर से[/caption]

पॉलीहाउस में किस फसल का हो सकता है सर्वश्रेष्ठ उत्पादन ?

वैसे तो पॉलीहाउस का इस्तेमाल दैनिक दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली सब्जी के उत्पादन और पौधे की छोटी नर्सरी तैयार करने में किया जाता है। वर्तमान में भारत के उत्तरी पूर्वी और हिमालय पर्वत से जुड़े राज्यों में कुकुम्बर (cucumber) और गुच्ची मशरूम (Gucchi Mushroom) के अलावा कई फसलें इसी विधि से तैयार की जा रही है। इसके अलावा सजावट और स्वास्थ्यवर्धक फायदे वाले कई प्रकार के फूल जैसे कि जरबेरा, गुलाब और ऑर्किड की खेती भी की जा रही है।


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कैसे लगाएं पॉलीहाउस ?

पॉलीहाउस की शुरुआत करने के लिए आपको लगभग 1000 स्क्वायर मीटर की जगह की आवश्यकता होगी। किसान भाई ध्यान रखें कि किसी भी पॉलीहाउस की संरचना बनाने से पहले उस जगह पर पानी की उपलब्धता और मार्केट की दूरी के बारे में पूरी जानकारी अवश्य प्राप्त कर लेवें। [caption id="attachment_3641" align="alignnone" width="750"]पॉलीहाउस निर्माण कार्य पॉलीहाउस निर्माण कार्य[/caption] इसके अलावा पॉलीहाउस को हमेशा समतल धरातल पर ही बनाना चाहिए और पॉलीहाउस का स्थान अपने आसपास के समतल धरातल से थोड़ा ऊपर उठा हुआ होना चाहिए। इसके लिए या तो आप कोई ऐसी जगह निश्चित कर सकते हैं जो ऊपर उठी हुई हो, या फिर अपने खेत की ही समतल जगह पर मिट्टी का जमाव कर स्थान को ऊपर उठा सकते है।

क्या है पॉलीहाउस फार्मिंग के फायदे ?

भारतीय किसानों के लिए मुख्यतः मौसम की मार कई बार उनके खेतों में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इसी मौसम के बदलते स्वरूप से होने वाले नुकसान से बचने के लिए, कठोर वातावरण वाले जगहों पर कृषि करने वाले किसान भाई, धीरे-धीरे पॉलीहाउस फार्मिंग की तरफ बढ़ रहे हैं। जलवायुवीय बदलाव जैसे की हवा की तेजी और बारिश का कम या ज्यादा होना जैसे नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों से पोली हाउस की मदद से बचा जा सकता है। पॉलीहाउस का एक और सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसके इसके अंदर उगाई जाने वाली कोई भी फसल को उसकी आवश्यकता अनुसार तापमान और नमी की मात्रा उपलब्ध करवाई जा सकती है, जिससे उसकी वृद्धि दर तेज हो जाती है और उत्पाद जल्दी तथा अधिक प्राप्त होता है।


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[caption id="attachment_2895" align="alignnone" width="666"]ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी पॉलीघर या पॉलीहाउस -भीतर से (Polyhouse - inside view)[/caption] कृषि वैज्ञानिकों की राय में पोली हाउस में कार्बन डाइऑक्साइड के अधिक सांद्रण की वजह से उत्पाद अधिक तैयार होते हैं और परंपरागत तरीके से की जाने वाली खुली खेती की तुलना में पॉलीहाउस में लगभग 2 गुना तक उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं। वर्तमान में पॉलीहाउस में मशीनीकरण के बेहतर इस्तेमाल की वजह से फर्टिलाइजर का छिड़काव और पानी की नियमित सिंचाई स्वचालित रूप से ही हो रही है, इसी वजह से किसान भाइयों की मजदूरी में लगने वाली लागत कम खर्च होती है। हालांकि इन सभी फायदों के अलावा पॉलीहाउस फार्मिंग के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं, जैसे कि पॉलीहाउस को बनाना और पूरी तरह सेट अप करना काफी खर्चीला होता है। इसके अलावा पॉलीहाउस विधि से होने वाली कृषि की निरंतर निगरानी रखनी होती है और तापमान या नमी में थोड़े से बदलाव होने की वजह से ही फसल का नुकसान हो सकता है। पॉलीहाउस को चलाने के लिए किसी स्किल्ड सुपरवाइजर की आवश्यकता होती है और किसान भाइयों को कई प्रकार का तकनीकी ज्ञान हासिल करना होता है। खुले पर्यावरण से मिलने वाले कई पोषक तत्व और हवा में उपलब्ध कई सूक्ष्म पोषक तत्व पॉलीहाउस फार्मिंग में पौधे तक नहीं पहुंच पाते हैं, इसीलिए इस विधि में उर्वरक और कीटनाशक का अधिक इस्तेमाल किया जाता है जो कि जैविक खेती की तरफ बढ़ते भारतीय किसानों की सोच के लिए नकारात्मक असर देता है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=KiHbtPNAyUg[/embed]

सामान्यतः पूछे जाने वाले सवाल (FaQs) :

सवाल :- क्या पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए सरकार किसी तरह की कोई सहायता उपलब्ध करवाती है ?

जवाब :- वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकार के अलावा कई स्थानीय पंचायती सरकारें भी किसान भाइयों के लिए कई प्रकार की सब्सिडी और तकनीकी ज्ञान के लिए ट्रेनर की सुविधा उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार अपनी हॉर्टिकल्चर ट्रेंनिंग स्कीम के तहत अलग-अलग जगह पर सेंटर खोल कर पॉलीहाउस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कोशिश कर रही है।

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सवाल :- क्या किसी भी पॉलीहाउस को बनाने से पहले पूरी प्लानिंग करना आवश्यक है ?

जवाब :- जी हां, किसी भी अन्य व्यवसाय की तरह ही पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए भी पहले से पूरी प्लानिंग बनाएं और इसके लिए किसान भाई एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करें। इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में आप अपने पॉलीहाउस को संचालित करने के लिए काम में आने वाले तकनीकी ज्ञान और वित्तीय सहायता के अलावा बाजार से जुड़ी संबंधित जानकारियों के बारे में लिस्ट तैयार करके ही फार्मिंग की शुरुआत करें।

सवाल :-  क्या पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए किसी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता होती है ?

जवाब :- वर्तमान में कृषि मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है, हालांकि किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि पॉलीहाउस बनाने के दौरान बची हुई पॉलीथिन को खुले में ना फेंके। आशा करते हैं कि हमारे सभी किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा पॉलीहाउस फार्मिंग से जुड़ी यह जानकारी पसंद आई होगी और भविष्य में बदलती जलवायुवीय परिस्थितियों से बचने के लिए आप भी कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन की राह पर चलते हुए पॉलीहाउस फार्मिंग में जरूर हाथ आजमाना चाहेंगे।
इस राज्य के किसानों को ग्रीन हाउस के लिए मिल रहा है, 70 फीसद तक अनुदान

इस राज्य के किसानों को ग्रीन हाउस के लिए मिल रहा है, 70 फीसद तक अनुदान

बागवानी फसलों को मौसमिक प्रभाव से संरक्षित करने हेतु राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राजस्थान राज्य के कृषकों को ग्रीन हाउस के निर्माण के व्यय पर 50 से 70 फीसद तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है। आधुनिक तकनीकों द्वारा फिलहाल कृषि को बहुत गुना सुगम कर दिया है। विगत समय में किसान खेतों में मौसमिक आधार पर बागवानी फसल यानी सब्जियां-फलों का उत्पादन किया करते थे। परंतु फिलहाल ग्रीन हाउस, लो टनल एवं पॉलीहाउस जैसे संरक्षित ढांचों में गैर-मौसमी सब्जियों का उत्पादन करके सामान्य से ज्यादा पैदावार ली जा सकती है। यदि हम बात करें ग्रीनहाउस की तब इस संरक्षित ढांचे में उत्पादित की जा रही बागवानी फसलें जैसे सब्जियां-फल सर्दियों में पाले एवं गर्मियों में धूप के भयंकर ताप से सुरक्षित रहती है। इसकी सहायता से मौसमिक मार एवं कीट-रोग से उत्पन्न समस्याओं को काफी हद तक कम कर सकते हैं। यही कारण है, कि फिलहाल सरकार भी कृषकों को ग्रीन हाउस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। इसी क्रम में राजस्थान के किसान भाइयों के लिए भी ग्रीन हाउस निर्मित करने हेतु अनुदान प्रदान किया जा रहा है।

किसानों के लिए कितने फीसद अनुदान प्रदान किया जा रहा है

  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत राजस्थान के किसान भाइयों को ग्रीनहाउस के लिए किए जाने वाले निर्माण व्यय पर 50 से 70 फीसद तक अनुदान प्रदान किया जा रहा है।
  • सामान्य वर्गीय कृषकों को ग्रीन हाउस के इकाई व्यय पर 50 फीसद अनुदान दिया जाएगा।
  • लघु, सीमांत, एससी, एसटी वर्ग के किसान भाइयों को इकाई व्यय पर 20 फीसद ज्यादा मतलब 70% अनुदान प्रदान किया जाएगा।
  • इस अनुदान योजना का फायदा उठाने के लिए किसान भाइयों को न्यूनतम 4000 वर्ग मीटर का ग्रीन हाउस निर्मित करना पड़ेगा।
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जानें किन किसानों को मिल पाएगा लाभ

ग्रीन हाउस पर अनुदान योजना का फायदा प्रति पात्र किसान तक पहुंच पाए। इस वजह से योजना की पात्रता तय की गई है, जिसके अंतर्गत किसान के पास स्वयं की कृषि लायक भूमि का होना अति आवश्यक है। ध्यान रहे कि आवेदन करते वक्त कृषकों को स्वयं का मूल निवास प्रमाण पत्र भी लगाना होगा। किसान भाई खेत में सिंचाई संबंधित उत्तम व्यवस्था रखें। मृदा-जलवायु की जांच रिपोर्ट एवं एससी-एसटी की पहचानने हेतु जाति प्रमाण पत्र भी जोड़ना होगा।

किसान भाई योजना का लाभ लेने के लिए यहां आवेदन करें

राजस्थान राज्य में किसान भाइयों के लिए जारी ग्रीन हाउस पर अनुदान योजना का फायदा उठाने हेतु राज किसान ऑफिशियल पोर्टल rajkisan.rajasthan.gov.in पर आवेदन करना पड़ेगा। यदि किसान भाई चाहें तो अपने आसपास किसी जन सेवा केंद्र अथवा ई-मित्र केंद्र पर भी आवेदन कर सकते हैं। इस योजना से जुड़ी जानकारी राजस्थान सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग की आधिकारिक वेबसाइट https://dipr.rajasthan.gov.in/ पर विस्तृत रूप से प्रदान की गई है। ज्यादा जानकारी हेतु किसान अपने जनपद के कृषि या बागवानी विभाग के कार्यालय में जाकर संपर्क करें।
सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

अगर आप सफेद बैंगन की बिजाई करते हैं, तो इसके तुरंत उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अधिक जल की जरुरत नहीं पड़ती। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि प्रत्येक क्षेत्र में लोग लाभ उठाने वाला कार्य कर रहे हैं। 

उसी प्रकार खेती-किसानी के क्षेत्र में भी वर्तमान में किसान ऐसी फसलों का पैदावार कर रहे हैं। जिन फसलों की बाजार में मांग अधिक हो और जो उन्हें उनके खर्चा की तुलना में अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकें। 

सफेद बैंगन भी ऐसी ही एक सब्जी है, जिसमें किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित हो रहा है। काले बैंगन की तुलनात्मक इस बैंगन की पैदावार भी अधिक होती है। 

साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी अधिक मिल पाता है। सबसे मुख्य बात यह है, कि बैंगन की यह प्रजाति प्राकृतिक नहीं है। इसे कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के माध्यम से विकसित किया है।

बैंगन की खेती कब और कैसे होती है

सामान्यतः सफेद बैंगन की खेती ठण्ड के दिनों में होती है। परंतु, आजकल इसे टेक्नोलॉजी द्वारा गर्मियों में भी उगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद बैंगन की दो किस्में- पूसा सफेद बैंगन-1 और पूसा हरा बैंगन-1 को विकसित किया है। 

सफेद बैंगन की यह किस्में परंपरागत बैंगन की फसल की तुलना में अतिशीघ्र पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि इसका उत्पादन करने हेतु सबसे पहले इसके बीजों को ग्रीनहाउस में संरक्षित हॉटबेड़ में दबाकर रखा जाता है। 

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साथ ही, इसके उपरांत इसकी बिजाई से पूर्व बीजों का बीजोपचार करना पड़ता है। ऐसा करने से फसल में बीमारियों की आशंका समाप्त हो जाती है। 

बीजों के अंकुरण तक बीजों को जल एवं खाद के माध्यम से पोषण दिया जाता है और पौधा तैयार होने के उपरांत सफेद बैंगन की बिजाई कर दी जाती है। यदि अत्यधिक पैदावार चाहिए तो सफेद बैंगन की बिजाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए।

सफेद बैंगन की खेती बड़ी सहजता से कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें कि सफेद बैंगन की रोपाई यदि आप करते हैं, तो इसके शीघ्र उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

यही कारण है, कि टपक सिंचाई विधि के माध्यम से इसकी खेती के लिए जल की जरूरत बड़े आराम से पूरी हो सकती है। हालांकि, मृदा में नमी को स्थाई रखने के लिये वक्त-वक्त पर आप सिंचाई करते रहें। 

सफेद बैंगन की पैदावार को बढ़ाने के लिए जैविक खाद अथवा जीवामृत का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इससे बेहतरीन पैदावार मिलने में बेहद सहयोग मिल जाता है। 

इस फसल को कीड़े एवं रोगों से बचाने के लिये नीम से निर्मित जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बैंगन की फसल 70-90 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।

भारत के किसान खेती में इजराइली तकनीकों का उपयोग कर बेहतरीन उत्पादन कर रहे हैं

भारत के किसान खेती में इजराइली तकनीकों का उपयोग कर बेहतरीन उत्पादन कर रहे हैं

कृषि क्षेत्र में इजराइल की तकनीक का उपयोग कर भारतीय किसान भी काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इजराइली तकनीक के माध्यम से खेती करने के चलते जमीन की उत्पादकता में भी काफी वृद्धि हो रही है।​ इजराइल अपनी तकनीक को लेकर सदैव चर्चा में बना रहता है। अब चाहे फिर वो डिफेंस सिस्टम आयरन डोम हो अथवा फिर खेती में इस्तेमाल होने वाली विभिन्न नवीन-नवीन प्रणालियां। यही वजह है, कि भारत के किसानों को भी इजराइल की तकनीक का उपयोग करने के लिए कहा जाता है। भारत के अधिकांश किसान इजराइली तकनीक का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। साथ ही, शानदार मुनाफा भी हांसिल कर रहे हैं। आइए आगे हम आपको इस लेख में उन तकनीकों के विषय में बताऐंगे जिनका उपयोग कर भारतीय किसान काफी शानदार आमदनी कर रहे हैं।

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इजराइल में बागवानी हेतु विभिन्न प्रोजेक्ट जारी किए जा रहे हैं

इजराइल में फल, फूल और सब्जियों की आधुनिक खेती के लिए बहुत सारे प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। कृषि के क्षेत्र में मदद करने के लिए भारत एवं इजराइल के बीच बहुत सारे समझौते भी हुए हैं। इन समझौतों में संरक्षित खेती पर विशेष तौर पर ध्यान दिया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजराइल से भारत के किसानों ने जो संरक्षित खेती के तौर तरीके सीखे हैं, उनकी वजह से क‍िसी भी सीजन में कोई भी फल खाने को म‍िल जाता है। इस टेक्निक की सहायता से वातावरण को नियंत्रित किया जाता है। साथ ही, एक बेहतरीन खेती भी की जाती है।

वातावरण फसल के अनुरूप निर्मित किया जाता है

इसके अंतर्गत कीट अवरोधी नेट हाउस, ग्रीन हाउस, प्लास्टिक लो-हाई टनल एवं ड्रिप इरीगेशन आता है। बाहर का मौसम भले ही कैसा भी हो, परंतु इस तकनीक के माध्यम से फल, फूल और सब्जियों के मुताबिक वातावरण निर्मित कर दिया जाता है। इसके चलते किसान भाई बहुत सी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। साथ ही, उन्हें बेहतरीन कीमतों में बेच रहे हैं। किसानों को बहुत सारी फसलों के दाम तो दोगुने भी मिल जाते हैं। जानकारों के मुताबिक, तो इस खेती को विश्व की सभी प्रकार की जलवायु जैसे शीतोष्ण, सम शीतोष्ण कटिबंधीय, उष्णकटिबंधीय इत्यादि में अपनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त संरक्षित खेती के चलते जमीन की उत्पादकता में भी काफी बढ़ोतरी होती है।