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जानें वन करेला की सम्पूर्ण जानकारी

जानें वन करेला की सम्पूर्ण जानकारी

वन करेला की खेती हमारे देश के बहुत से राज्यों में की जाती है। इसे अलग अलग जगहों पर अलग अलग नामो से जाना जाता है, जैसे : मीठा करेला ,जंगली करेला , कंटीला परवल , करोल ,भाट करेला ,आदि। यह मानसून में मिलने वाली एक तरह की सब्जी है। इस सब्जी के बाहरी सतह पर कांटेदार रेशे उगे हुए होते है। वन करेला आकर में बहुत छोटा रहता है। इसका वैज्ञानिक नाम मोमोरेख डाइगोवा है। 

वन करेले की खेती 

वन करेले ज्यादातर बारिश के मौसम में होते है। बारिश होने पर वन करेला की बेले अपने आप उगने लग जाती है। यह सब्जी अन्य सब्जियों की तुलना में काफी महंगी होती है। इसके बीज आसानी से न मिलने के कारण इसकी खेती नहीं की जा सकती है। बारिश का सीजन ख़त्म होने के बाद वन करेले के बीज जमीन पर गिर जाते है। पहली बारिश के होते ही वन करेले की बेले उगने लगती है। 

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वन करेले की किस्में

वन करेला की दो किस्में होती है ,जो खेती के रूप में उगाई जाती है। जैसे : छोटे आकर वाले वन करेले और इंदिरा आकर ( आर एम एफ 37 )। वन करेले का प्रबंधन कंद या बीजो के द्वारा किया जाता है। इसीलिए किसानों द्वारा अच्छी वैरायटी वाले बीजो का उपयोग करना चाहिए। बुवाई से पहले बीजो की अच्छे से जांच कर ले ,कही बीज रोगग्रस्त तो नहीं है। 

वन करेला के बीजो की बुवाई 

वन करेले की खेती के लिए मिट्टी का पीअच स्तर 6-7 माना जाता है। इसकी बुवाई का काम दोमट और बलुई मिट्टी में किया जा सकता है। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को ज्यादा उपयोगी माना जाता है। वन करेले के पौधे को अच्छे से पनपने के लिए  गर्म आद्र जलवायु की आवश्यकता रहती है। 

वन करेले की बुवाई के लिए किसी खास तकनीक की आवश्यकता नहीं रहती है। वन करेले के बीजो को रात में गर्म पानी में भिगोकर रख दे। इससे बीजो का अच्छा अंकुरण होता है। इसकी बुवाई 3-4 इंच की दूरी पर की जाती है। आवश्यकता अनुसार इसमें पानी देते रहना चाहिए। बुवाई के कुछ दिन बाद ही इसमें नन्हे नन्हे पौधे देखने को मिलते है। 

वन करेला का आहार करने से हो सकते है ,ये लाभ 

वन करेला में बहुत से विटामिन ,कैल्शियम ,जिंक ,कॉपर और मैग्नीशियम जैसे तत्व पाए जाते है। इसके उपयोग से बहुत सी बिमारियों में तो आराम मिलता है ,लेकिन ये स्वास्थ के लिए भी बेहद लाभकारी होती है ,जानिए कैसे :

कार्बोहायड्रेट से परिपूर्ण 

वन करेले में अधिक मात्रा में कार्बोहायड्रेट पाया जाता है। कार्बोहायड्रेट का सेवन करने से शरीर में फुर्ती और ताकत आती हैं ,जो की किसी भी काम को करने के लिए बेहद आवश्यक रहती है। दिन प्रतिदिन होने वाले कामो के लिए शरीर में ताकत रहना जरूरी है ,बिना ताकत के कोई भी काम नहीं हो पायेगा। 

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विटामिन से भरपूर 

वन करेले के अंदर बहुत से विटामिन पाए जाते है, इसमें विटामिन ए और विटामिन बी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। वन करेले का सेवन करने से शरीर के अंदर विटामिन्स की जो कमी रहती है उसे कम करता है। महंगी महंगी दवाइयों के सेवन से भी कोई फायदा न मिलने पर भी आहार में वन करेले का उपयोग करके देख सकते है। इसके उपयोग से आपको शरीर में विटामिन की कमी महसूस नहीं होगी। 

प्रोटीन और फाइबर की उचित मात्रा 

वन करेले में प्रोटीन और फाइबर की उचित मात्रा पायी जाती है।  प्रोटीन जो शरीर के अंदर कोशिकाओं की मरम्मत करने में सहायक रहता है। और फाइबर जो शरीर की पाचन किर्यो को स्वस्थ रखने में मददगार रहता है। यह पाचन किर्याओ को सुचारु रूप से कार्य करने के लिए मदद करता है। 

वन करेले की खेती ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में की जाती है। वन करेले की तासीर गर्म रहती है, साथ ही ये खाने में भी बहुत स्वादिष्ट लगती है। 

वन करेला बरसात के मौसम में होने वाली खुजली , पीलिया और बेहोशी में भी लाभदायक साबित हुआ है।  इसके अलावा वन करेला का आहार करने से आँखों की समस्या ,बुखार और इन्फेक्शन जैसे समस्याओं से भी राहत मिलती है। इसके खाने से ब्लड शुगर लेवल भी संतुलित रहता है।

करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा - करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी

करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा - करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी

करेले की खेती भारत में गर्मी और बरसात दोनों मौसम में की जाती है. करेले को शुगर के मरीजों के लिए राम बाण ओषधि बताया गया है, ये उच्च रक्तचाप वाले मरीज के लिए भी बहुत उपयोगी है. करेले को सब्जी, जूस और अचार के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. इसको काट कर सुखा लेते है जिससे की इसकी सब्जी बेमौसम भी बनाई जा सकती है. सबसे अहम बात यह है कि इसकी खेती करना आवारा पशुओं की समस्या से भी मुक्ति का एक अच्छा जरिया है। 

करेले की फसल को जंगली एवं आवारा पशु भी कड़वा होने के कारण नहीं खाते। करेले का जूस, अचार, सब्जी बहुताय में प्रयोग में लाई जाने लगी है। इसके चलते इसकी मांग भी बढ़ रही है। करेले की खेती उन ​इलाकों में भी की जा सकती है जहां अवारा पशुओं का आतंक है। करेले को पशु कड़वाहट और गंध के चलते नहीं खाते। इसकी पूसा संस्थान ने कई उन्नत किस्में विकसित की हैं।

करेले के लिए खेत की तैयारी और उपयुक्त मिटटी

करेले के खेत के लिए दोमट बलुई मिटटी बहुत उपयोगी होती है इसको भुरभुरी मिटटी में भी किया जा सकता है. इसके खेत में पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की करेले की बेल को पर्याप्त नमी के साथ सूखे का भी होना जरूरी है.जिससे की बेल गल न जाये। इसके खेत को पहले मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके ऊपर से हेरों से जुताई करके सुहागा/ पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत का लेवल सही बना रहे।

करेले की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

जैसा की सभी फसलों के लिए सादी गोबर की खाद बहुत उपयोगी होती है तो करेला के लिए भी हमें बनी हुई गोबर की खाद को पहली जुताई के बाद खेत में अच्छे से मिला दें बाद में नाइट्रोजन और दीमक की दवा मिला दें जिससे की पौधे में रोग न लगे। फूल आने के समय इथरेल 250 पी. पी. एम. सांद्रता का उपयोग करने से मादा फूलों की संख्या अपेक्षाकृत बढ़ जाती है,और परिणामस्वरूप उपज में भी वृद्धि होती है.250 पी. पी. एम. का घोल बनाने हेतु (0.5 मी. ली.) इथरेल प्रति लीटर पानी में घोलना चाहिए करेले की फसलों को सहारा  देना अत्यंत आवश्यक है. जिससे की इसकी बेल को ऊपर चढाने में मदद मिलती है उससे इसके फल पीले नहीं पड़ते हैं.

करेले की मुख्य किस्में

ग्रीन लांग, फैजाबाद स्माल, जोनपुरी, झलारी, सुपर कटाई, सफ़ेद लांग, ऑल सीजन, हिरकारी, भाग्य सुरूचि , मेघा –एफ 1, वरून –1 पूनम, तीजारावी, अमन नं.- 24, नन्हा क्र.–13

बीज की मात्रा और नर्सरी डालने का तरीका

खेत में बनाये हुए हर थाल या बैड में चारों तरफ 4–5 बीज 2–3 से. मी. गहराई पर बो देना चाहिए। गर्मी की फसल हेतु बीज को बुवाई से पूर्व 12–18 घंटे तक पानी में रखना चाहिए इससे बीज को उगने में आसानी रहती है. पौलिथिन बैग में एक बीज/प्रति बैग ही बोते है। बीज का अंकुरण न होने पर उसी बैग में दूसरा बीज पुन बुवाई कर देना चाहिए. इन फसलों में कतार से कतार की दूरी 1.5 मीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 60 से 120 से. मी. रखना चाहिए।

करेले के कीट, रोग और उसके उपचार

रेड बीटल

यह एक हानिकारक कीट है, जो कि करेला के पौधे पर प्रारम्भिक अवस्था पर आक्रमण करता है. यह कीट पत्तियों का भक्षण कर पौधे की बढ़वार को रोक देता है। इसकी सूंडी काफी खतरनाक होती है, जोकि करेला पौधे की जड़ों को काटकर फसल को नष्ट कर देती है।

इलाज एवं रोकथाम

रेड बीटल से करेला की फसल सुरक्षा हेतु पतंजलि निम्बादी कीट रक्षक का प्रयोग अत्यन्त प्रभावकारी है. 5 लीटर कीटरक्षक को 40 लीटर पानी में मिलाकर, सप्ताह में दो बार छिड़काव करने से रेड बीटल से फसल को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

पाउडरी मिल्ड्यू रोग

यह रोग करेला पर एरीसाइफी सिकोरेसिएटम की वजह से होता है. इस कवक की वजह से करेले की बेल एंव पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल फैल जाते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं। इस रोग में पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं।

घरेलू या जैविक उपचार

इस रोग से करेला की फसल को सुरक्षित रखने के लिए 5 लीटर खट्टी छाछ में 2 लीटर गौमूत्र तथा 40 लीटर पानी मिलाकर, इस गोल का छिड़काव करते रहना चाहिए। प्रति सप्ताह एक छिड़काव के हिसाब से लगातार तीन सप्ताह तक छिड़काव करने से करेले की फसल पूरी तरह सुरक्षित रहती है.रोग की रोकथाम हेतु एक एकड़ फसल के लिए 10 लीटर गौमूत्र में 4 किलोग्राम आडू पत्ते एवं 4 किलोग्राम नीम के पत्ते व 2 किलोग्राम लहसुन को उबाल कर ठण्डा कर लें, 40 लीटर पानी में इसे मिलाकर छिड़काव करने से यह रोग पूरी तरह फसल से चला जाता है।

एंथ्रेक्वनोज रोग

करेला फसल में यह रोग सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों पर काले धब्बे बन जाते हैं, जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण क्रिया में असमर्थ हो जाता है. फलस्वरुप पौधे का विकास पूरी पूरी तरह से नहीं हो पाता।

करेले की फसल की तुड़ाई

फसल की तुड़ाई करते समय याद रखें की फल को एकदम हरे समय पर ही तोड़ें यानि कच्चा फल ही तोड़ें जिससे की मंडी में ले जाते समय आपके फल का रंग कुदरती इतना चमकदार होगा की सबसे पहले आपके फसल को लोग तरजीह देंगें। सामान्य किस्मों में पूसा विशेष किस्म प्रति हैक्टेयर करीब 200 कुंतल उपज देकर 70 हजार का शुद्ध मुनाफा दे जाती है। 

इसके अलावा पूसा मौसमी एवं पूसा औषधि भी तकरीबन इतना ही उत्पादन देती हैं। पूसा संस्थान की शंकर किस्मों में पूूूसा हाइब्रिड 1 450 कुंतल उपज एवं 90 हजार का लाभ देती है। इसके अलावा  पूसा हाइ​ब्रिड 2550 कुंतल उपज देकर सवा लाख रुपए तक शुद्ध लाभ दे जाती है। लगाने के लिए बीजों को गीले कपड़े में भिगोकर रखें। इसके बाज प्रभावी फफूंदनाशक से उपचारित करने के बाद बोएंं। 

बीजों को नाली बनाकर उसकी मेढों पर ही लगाएं ताकि पानी लगाने पर ज्यादा खर्चा न करना पड़े। अहम बात यह है कि करेले की बेल की लम्बाई और बढ़वार को ध्यान मेें रखते हुए ही एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी तय करें।

गर्मियों की हरी सब्जियां आसानी से किचन गार्डन मे उगाएं : करेला, भिंडी, घीया, तोरी, टिंडा, लोबिया, ककड़ी

गर्मियों की हरी सब्जियां आसानी से किचन गार्डन मे उगाएं : करेला, भिंडी, घीया, तोरी, टिंडा, लोबिया, ककड़ी

गर्मियों का मौसम हालांकि हर किसी को पसंद नहीं आता है लेकिन गर्मी के मौसम मे बनने वाली कुछ ऐसी सब्जियां हमें जरूर पसंद आती हैं। भारत के कई ऐसे इलाके हैं जहां पर गर्मियों के समय मे इन सभी सब्जियों की बड़े पैमाने पर खेती की जाती हैं और गर्मियों के मौसम मे इनकी बिक्री भी काफी तेजी पर होती है। गर्मियों की हरी सब्जियां हर जगह उपलब्ध भी नहीं हो पाती हैं। ऐसे मे हर समय गर्मी के मौसम मे बाजार से इन सब्जियों को लाने मे हम सभी को कई परेशानियां होती हैं। इन सभी परेशानियों का समाधान आप अपने घर के किचन के गार्डन के अंदर ही इन सभी सब्जियों को आसानी से लगा सकते हैं। तो आज हम आपको ऐसी ही कुछ अच्छी सब्जियों के बारे मे बताने वाले है, जिन्हें आप गर्मियों के समय मे अपने घर के गार्डन मे बड़ी ही आसानी से लगा सकते है । साथ ही साथ स्वादिष्ट ताजा सब्जी खाने का लुत्फ भी उठा सकते है । तो आईये जानते हैं गर्मियों की हरी सब्जियां जो आसानी से उगाई जा सकती हैं। 

किचन गार्डन में उगाई जाने वाली सब्जियां:

  1. करेला :

kerala करेले को तो आप सभी जानते ही होंगे लेकिन ,जितना यह कड़वा होता है अपने स्वाद मे उतना ही हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होता है। गर्मियों के मौसम मे आप किचन के गार्डन मे करेले को बड़ी ही आसानी से उगा सकते है, इसे या तो आप बीज के द्वारा लगवा सकते है या फिर आप सीधे पौधे की रोपाई भी कर सकते है। 

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 तो चलिए चलिए अब हम आपको बताते है, की आप किस प्रकार गर्मियों की हरी सब्जियां में प्रथम करेली की सब्जी को अपने गार्डन मे उगा सकते है: -

  • सबसे पहले आपको मिट्टी तैयार करनी होगी करेले को उगाने के लिए।
  • इसके लिए आप 50% मिट्टी 30% खाद और 20% रेत डाल दीजिए।
  • उसके बाद आप अपने हाथों से बीज की बुवाई कर सकते है या फिर सीधे पौधे की रोपाई।
  • करेले को उगाने के लिए सबसे अच्छा समय फरवरी से लेकर मार्च माह तक का होता है।
  • किचन के गार्डन मे करेले को लगाने के लिए आप एक बड़े आकार के गमले का इस्तेमाल करें क्योंकि यह बेलदार सब्जी है।
  • करेले को गर्मी का मौसम सबसे ज्यादा पसंद आता है ऐसे मे आप ज्यादा पानी की सिंचाई ना करे।
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करेले को हमेशा कम पानी की आवश्यकता होती है,चाहे गर्मी का मौसम हो या सर्दी का आप केवल दो-तीन दिन में एक बार पानी जरूर सींचे। 

  1. गर्मियों की हरी सब्जियां : भिंडी

bhindi 

 हर घर मे एक ऐसी सब्जी होती है, जो सबकी पसंदीदा होती है और वह है भिंडी। भिंडी हमारे शरीर को कई सारी बीमारियों से बचाती है और हमारे इम्यूनिटी सिस्टम को मजबूत बनाए रखती है। भिंडी को भी आप अपने किचन के गार्डन मे काफी आसानी से लगा सकते है, जिसके लिए आपको कुछ टिप्स को जानना जरूरी होगा। भिंडी मे बहुत सारे विटामिन और कार्बोहाइड्रेट भी पाए जाते है जो हमारे शरीर मे कोलेस्ट्रॉल और मधुमेह जैसी बीमारियों को कंट्रोल करने के काम आते हैं। 

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तो चलिए जानते है आप किस प्रकार भिंडी को अपने किचन के बाग बगीचे मे लगा सकते है :-

  • भिंडी को यदि आप गमले मे उगाना चाहते है तो इसके लिए आपको बड़ी साइज का गमला लेना होगा।
  • इसके बाद आप अच्छी क्वालिटी के भिंडी के बीजों को 3 इंच की गहराई तक गमले के अंदर बुवाई कर दें।
  • भिंडी के पौधे का बीज बोने के बाद आप गमले को ज्यादा देर तक कभी भी धूप मे ना रखें क्योंकि यह ज्यादा धूप सहन नहीं कर पाता है और पौधा मुरझा कर नष्ट हो जाता है।
  • जब भिंडी का पौधा थोड़ा बड़ा हो जाए तो नियमित रूप से इसकी सिंचाई करें और पानी की बिल्कुल भी कमी ना आने दे।
  • कीड़े मकोड़ों और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए भिंडी के पौधों पर समय समय पर कीटनाशकों का छिड़काव अवश्य करें।
  • भिंडी के पौधों को खाद देने के लिए आप अपने घर के अच्छी क्वालिटी वाले खाद का ही इस्तेमाल करें।
  • बीजों को अच्छे से अंकुरित होने के लिए आप थोड़ी देर पानी मे जरूर भिगो दें ताकि पौधे को विकसित होने मे ज्यादा समय ना लगे।
  1. घीया

गर्मियों की हरी सब्जियां : घीया [ghiya] 

 लौकी जिसे कई जगहों पर गिया के नाम से भी जाना जाता है। लौकी की सब्जी खाने मे बहुत ही स्वादिष्ट होती है। इसलिए हर किसी की पसंद यही होती है कि वह ताजा और फ्रेश लौकी की सब्जी खाएं। ऐसे मे लौकी हमारे शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद होती हैं। 

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लौकी खाने से हमारा मस्तिष्क तनाव मुक्त रहता है और हृदय रोगी यानी कि मधुमेह रोगियों के लिए भी यह काफी लाभदायक साबित होती है। इसके अलावा लड़कियों में लौकी खाने से उनके बाल काले मोटे और घने होते हैं और सफेद बालों से भी छुटकारा मिल जाता। तो चलिए आज हम आपको बताते है ,की आप किस प्रकार लौकी को अपने घर के गार्डन में किस प्रकार लगा सकते हैं: -

  • इसके लिए सबसे पहले आप बड़े कंटेनर या गमले के अंदर मिट्टी का भराव कर लें और बीज को आधे इंच से ज्यादा गहराई मे ना लगाए।
  • आधे इंच की गहराई मे बीज को लगाने के बाद आप नियमित रूप से मिट्टी को पानी देते रहें और नमी बनाए रखें।
  • लौकी का बीज चार-पांच दिनों मे अंकुरित होने लगता है और इसके बाद पौधे मे विकसित होता है।
  • जब पौधा लग जाए तो उसके बाद आप यह जरूर ध्यान रखें कि लौकि को ज्यादा पानी ना डालें क्योंकि यह ज्यादा पानी के साथ सड़ने लगता है।
  • लौकी को ऊगाने के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर से फरवरी के बीच मे होता है।
  • लौकी के पौधे को समय-समय पर अच्छी खाद और कीटनाशकों का अवश्य से छिड़काव करें।
  • पौधे की समय समय पर जरूर जांच कर देखें क्योंकि इन पर कीट पतंगे बहुत जल्दी लगने लग जाते हैं।
  1. तोरई :toori गर्मियों की हरी सब्जियां : तोरी

भारत के कई इलाकों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में तोरई की सब्जी बहुत ही चाव से बनाई और परोसी जाती है। तोरी की सब्जी बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट और लाभदायक भी होती हैं। इसके अंदर विटामिन ए, विटामिन सी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और मिनरल फाइबर जैसे कई सारे फायदेमंद पोषक तत्व होते है। हालांकि तोरई की खेती पूरे देश मे होती हैं लेकिन इसे आप अपने घर के गार्डन बगीचे मे भी बड़ी ही आसानी से लगा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि, आप किस प्रकार तोरी की सब्जी को अपने घर मे लगा सकते हैं :-
  • इसके लिए आप सबसे पहले एक बड़ा गमला लेवे और उसके अंदर खाद ,उर्वरक और मिट्टी को अच्छे से डाल दें।
  • अब बीजों को आधे से 1 इंच के भीतर भीतर मिट्टी के अंदर इसकी बुवाई कर दें।
  • तोरई के पौधे को फलदार बनने में 40 से 45 दिनों का समय लगता है , ऐसे मे आप इसकी नियमित रूप से सिंचाई करना ना भूलें।
  • घर के बगीचे मे लगाने वाले पौधे जैसे तोरी के लिए आप कभी भी रासायनिक खाद उर्वरकों का इस्तेमाल ना करें।
  • कीटों और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए सप्ताह मे दो तीन बार अच्छे से छिड़काव करें।
  • एक बार तोरई का पौधा बड़ा हो जाने के बाद आप इसे ज्यादा पानी ना देवे क्योंकि ज्यादा पानी के प्रति तोरई का पौधा काफी संवेदनशील माना जाता है।
  • तोरई को उगाने के लिए सबसे अच्छा समय फरवरी से मार्च माह के मध्य मे होता है।
  1. गर्मियों की हरी सब्जियां : टिंडा

गर्मियों की हरी सब्जियां : टिंडा [tinda] 

 उत्तरी भारत के कई सारे इलाकों मे टिंडे गर्मियों की सबसे अच्छी सब्जी मानी जाती है ,और काफी स्वादिष्ट भी होती है। हम आपको बता देते है, कि टिंडे का मूल स्थान भारत ही है। भिंडी की सब्जी बनाने के लिए इसके कच्चे फलों का इस्तेमाल किया जाता है ना कि इसके पके हुए फलों का। टिंडे के पके हुए फलों मे बीज काफी बड़े और अंकुरित होते हैं ।लेकिन आप इसे अपने घर के बगीचे में बड़े ही आसानी से लगा सकते हैं और ताजा और फ्रेश सब्जी का लुफ्त उठा सकते हैं। तो चलिए जानते तो चलिए जानते है, कि आप किस प्रकार टिंडे की सब्जी को लगा सकते हैं :-

  • टिंडे को लगाने के लिए सबसे अच्छी मिट्टी रेतीली दोमट मिट्टी मानी जाती है, जिसे आप अपने बड़े से गमले मे खाद के साथ तैयार कर लेवे।
  • इसके बाद बीजों को 2 इंच की गहराई तक अंदर बुवाई कर ले और चार-पांच दिन तक पानी की सिंचाई करते रहे।
  • टिंडे का पौधा 1 सप्ताह के भीतर - भीतर अंकुरित हो जाता है।
  • एक बार पौधा बड़ा हो जाने पर आप इसकी नियमित रूप से अच्छे से सिंचाई करना ना भूलें और इसी के साथ-साथ कीटनाशकों का छिड़काव जरूर करें।
  • टिंडे की बीमारियों से बचने के लिए आप खाद्य उर्वरक का इस्तेमाल जरूर करें और साथ ही साथ समय-समय पर इसकी जांच भी करें।
  • टिंडे की सब्जी को लगाने के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से अप्रैल माह के बीच मे होता है।
  1. गर्मियों की हरी सब्जियां : लोबिया

Lobia 

 लोबिया की फली बहुत ही ज्यादा स्वादिष्ट होती है, जिसे भारत के कई इलाकों मे सब्जी के रूप मे भी बनाते है। भारत के कई राज्यों में लोबिया की खेती बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन यदि आप अपने घर पर छोटी सी बागबानी करना चाहते हैं, तो आप बड़ी ही आसानी से लोबिया को अपने घर के गार्डन मे लगा सकते है। यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ हमारे शरीर के लिए काफी लाभदायक भी होती है। यह हमें कई प्रकार की हृदय संबंधी और जोड़ों मे दर्द होने जैसी परेशानियों से छुटकारा दिलाती है। इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि इसे आप कहीं पर भी लगा सकते है अपने घर के आंगन मे छत मे।

ये भी पढ़े: कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..) तो चलिए जानते हैं, कि आप किस प्रकार लोबिया की सब्जी को अपने घर मे लगा सकते हैं :-

  • इसको लगाने के लिए सबसे पहले आप मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार कर लीजिए खाद और उर्वरक के साथ।
  • अब इसके अंदर लोबिया के बीजों को लगा दीजिए और इसकी नियमित रूप से सिंचाई करते रहे।
  • जब लोबिया का पौधा विकसित हो जाए तो उसको प्रति सप्ताह दिन मे दो से तीन बार पानी जरूर डालें।
  • लोबिया मे कई सारी अलग-अलग बीमारियां होती हैं जो मौसम के परिवर्तन और कीट पतंगों के कारण लग जाती हैं।
  • इन बीमारियों और कीट पतंगों से बचने के लिए आप समय-समय पर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव अवश्य करें।
  • जब इसकी फलियां पूर्ण रूप से विकसित हो जाती हैं तो इसे आप अपने हाथों द्वारा तोड़ लें और उसके बाद आप इसकी सब्जी या फिर किसी भी प्रकार की औषधि रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • सबसे अच्छा समय लोबिया को लगाने के लिए सितंबर से नवंबर माह के बीच का होता है।
  1. गर्मियों की हरी सब्जियां : ककड़ी

गर्मियों की हरी सब्जियां ककड़ी kakdi 

 दरअसल, ककड़ी की उत्पत्ति हमारे देश भारत से ही हुई है और यह तोरई के समान सब्जी बनाने के काम मे आती हैं। खासकर गर्मियों के समय मे ककड़ी का सेवन करना हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है, क्योंकि यह हमारे शरीर में डिहाइड्रेशन की कमी को पूर्ण करती हैं। इसी के साथ साथ यह हमारे मस्तिष्क को तनावमुक्त रखती है, और  कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप को भी सामान्य रखती है। ककड़ी की स्वादिष्ट सब्जी हर किसी की पसंदीदा होती है, ऐसे में हर कोई इसे अपने घर के अंदर बगीचे में लगाना जरूर पसंद करेगा। तो चलिए जानते हैं, कि आप किस प्रकार ककड़ी की सब्जी को अपने बगीचे में लगा सकते हैं :-

  • ककड़ी को लगाने के लिए आप सबसे पहले एक बड़े आकार का गमला लें और उसमें ककड़ी के बीजों के अंकुरण के लिए अच्छी खाद और मिट्टी तैयार कर लेवे।
  • मिट्टी तैयार हो जाने के बाद आप इसमें ककड़ी के बीज को लगा देवें और उसको चार-पांच दिनों तक नियमित रूप से थोड़ा-थोड़ा पानी देवे।
  • ककड़ी के बीज को अंकुरित होने मे 1 सप्ताह का समय लगता है उसके बाद आप ककड़ी को नियमित रूप से पानी जरूर देवे।
  • ककड़ी की बेल थोड़ी लंबी हो सकती हैं इसके लिए आप इसे किसी दीवार या फिर घर की छत पर भी लगा सकते हैं।
  • इसमें कई सारी बीमारियां और फलियों के सड़ने की परेशानी आ सकती हैं ऐसे मे आप इस पर समय-समय पर कीटनाशकों और उर्वरकों का छिड़काव करें।
  • ककड़ी को जरूरत से ज्यादा पानी ना देवे क्योंकि यह कम पानी में भी अच्छे से विकसित हो जाती हैं।
  • पौधे के पूर्ण रूप से विकसित होने के बाद ककड़ी को 40 से 50 दिन का समय लगता है फलियों को तैयार करने मे।
अतः जैसा कि हमने आपको ऊपर इन सात सब्जियों के बारे मे बताया है जिन्हें आप गर्मियों के मौसम मे बड़ी ही आसानी से लगा सकते हैं। इन सब्जियों को लगाने के लिए आपको जितनी भी जानकारियां जाननी थी वह सभी हमने ऊपर बता दी हैं और इसके अलावा आप इसे अपने घर पर आसानी से लगा सकते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि सुझाई इस वैज्ञानिक तकनीक से करें करेले की बेमौसमी खेती

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि सुझाई इस वैज्ञानिक तकनीक से करें करेले की बेमौसमी खेती

करेले की खेती करने वाले किसान भाई यह तो जानते ही हैं कि इसकी फसल का उत्पादन गर्मियों के मौसम में किया जाता है, लेकिन स्वास्थ्य के लिए जागरूक होती जनसंख्या भारतीय बाजार में करेले की मांग को पूरे वर्ष भर बनाए रखती है। 

इसीलिए अब विश्व भर के वैज्ञानिकों के साथ भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने भी पॉली-हाउस तकनीकी की मदद से बिना मौसम के ही फल और सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कमर कस ली है। 

करेला (Karela; Bitter Gourd or Bitter Melon) एक व्यावसायिक फसल है जो किसान को बेहतर आय देने के अलावा कई स्वास्थ्यवर्धक फायदे भी उपलब्ध करवाती है। पॉली-हाउस तकनीकी की मदद से अब सर्दियों के मौसम में भी करेले की वैज्ञानिक खेती की जा सकती है। दो आधा और दो क्रॉस सेक्शन के साथ एक पूर्ण करेला (मोमोर्डिका चारेंटिया) 

दो आधा और दो क्रॉस सेक्शन के साथ एक पूर्ण करेला (मोमोर्डिका चारेंटिया)। (Bitter_gourd (Momordica_charantia); Source-Wiki; Author-Salil Kumar Mukherjee)[/caption]

कैसे करें करेले के लिए पॉलीहाउस में भूमि की तैयारी ?

एक बार पॉलीहाउस को सेट-अप करने के बाद उसमें बड़ी और थोड़ी ऊंचाई वाली क्यारियां बनाकर उन्हें पूरी तरीके से समतल कर देना चाहिए। 

जैविक खाद का इस्तेमाल कर इन क्यारियों में डाली गई मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बनाया जाना चाहिए, इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट खाद को भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 

रासायनिक उर्वरकों पर विश्वास रखने वाले किसान भाई फार्मेल्डिहाइड का छिड़काव कर क्यारियों को पुनः पॉलिथीन से ढककर कम से कम 2 सप्ताह तक छोड़ देना चाहिए। 

इस प्रक्रिया की मदद से खेत की मिट्टी में पाए जाने वाले कई सूक्ष्म कीटों को नष्ट किया जा सकता है, इस प्रकार तैयार मिट्टी भविष्य में करेले के बेहतर उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।   

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पॉलीहाउस की जलवायु को कैसे करें निर्धारित ?

किसी भी पॉली-हाउस के अंदर फसल की आवश्यकता अनुसार तापमान को कम या अधिक किया जा सकता है। करेले की खेती में रात के समय तापमान को 15 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में रखना चाहिए, जबकि दिन में इसे 22 से 26 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य रखना चाहिए। 

इसके अलावा किसी भी फसल की बेहतर वृद्धि के लिए आर्द्रता की आवश्यकता होती है, पॉली-हाउस के अंदर आद्रता को कम से कम 30% रखना चाहिए। 

ऊपर बताई गई जानकारी से आर्द्रता या तापमान का स्तर कम होने पर फसल की वृद्धि दर पूरी तरीके से रुक सकती है और फलों का आकार अनियमित होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। 

करेले के बीज करेले के बीज 

कैसे करें करेले के बीज की रोपाई और दो पौध के मध्य की दूरी का निर्धारण:

यदि कोई किसान भाई मैदानी क्षेत्र वाले इलाकों में सर्दियों के समय में करेले की फसल का उत्पादन करना चाहता है तो, बीज का रोपण सितंबर महीने के आखिरी सप्ताह या अक्टूबर के शुरुआती दिनों में किया जा सकता है। 

करेले की दो पौध के मध्य कम से कम 50 सेंटीमीटर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए और दो अलग-अलग कतारों के 60 से 70 सेंटीमीटर दूरी रखना अनिवार्य है।

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करेले की फसल के बड़ी होने के समय रखें इन बातों का ध्यान :

एक बार बीज के रोपण हो जाने के बाद पौध 15 से 20 दिनों में बड़ी होनी शुरू हो जाती है। करेले की खेती करने वाले किसान भाई जानते होंगे कि फसल के बड़े होने के समय शाखाओं की कटाई-छंटाई करना अनिवार्य होता है। 

शुरुआती दिनों में एक या दो शाखाओं को काट कर हटा दिया जाना चाहिए, इसके अलावा शाखाओं को काटते समय पोषक तत्वों वाली शाखाओं को काटने से बचना चाहिए और केवल पुरानी शाखा को ही काटना चाहिए। 

उसके बाद किसी पौध के मुख्य तने और अलग-अलग शाखाओं को रस्सी की सहायता से उसके निचले हिस्से में बांधकर छत की दिशा में ले जाकर बांध दिया जाता है। 

पौधे के तने और ऊपर के हिस्से को छत से बांधने के लिए किसी कठोर तार का इस्तेमाल करना चाहिए अन्यथा बड़े होने पर पौधे का वजन अधिक होने से रस्सी के टूटने का खतरा बना रहता है। 

पौधे के चारों तरफ रस्सी बांधते समय किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि हाल ही में पल्वित हुए छोटे फूल और तने को नुकसान नहीं पहुंचाए, नहीं तो उत्पादन में भारी कमी देखने को मिल सकती है।  

पॉलीहाउस में कैसे करें सिंचाई का बेहतर प्रबंधन :

आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए वर्तमान युवा किसान पॉलीहाउस में उत्पादन के लिए बून्द-बून्द सिंचाई विधि (Drip irrigation) को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। 

शुरुआत के दिनों में करेले के पौधे को कम पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए सीमित मात्रा में ही पानी दिया जाना चाहिए, अधिक पानी देने पर उसमें कई प्रकार के रोग लगने की संभावना होती है। डंपिंग ऑफ (Damping off) रोग भी पानी के अधिक इस्तेमाल से ही होता है। [caption id="attachment_11411" align="alignnone" width="675"]करेले के पौधे में पुष्प व फल (Bitter Gourd-habitus with flowers and fruits; Source Wiki; Author H Zell)

करेले के पौधे में पुष्प व फल    (Bitter Gourd-habitus with flowers and fruits; Source Wiki; Author H Zell)[/caption]

कैसे करें करेले के उत्पादन में उर्वरकों का बेहतर तरीके से प्रबंधन :

शुरुआती दिनों में जैविक खाद का इस्तेमाल करने के बाद मिट्टी की जांच करवा कर कमी पाए जाने वाले पोषक तत्वों का ही उर्वरक के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। 

यदि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा पर्याप्त है तो यूरिया और डीएपी खाद का इस्तेमाल ना करें, किसी भी मिट्टी में पहले से उपलब्ध पोषक तत्व को बाहर से उर्वरक के रूप में डालने से उगने वाली फसल की उत्पादकता तो कम होती ही है, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी काफी नुकसान होता है।

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तैयार हुए करेले के फलों को तोड़ने की विधि :

एक बार बीज बुवाई के बाद लगभग 60 से 70 दिनों में करेला लगना शुरू हो जाता है। पूरी तरह से पक कर तैयार हुए करेले जल्दी ही लाल रंग के हो जाते हैं, इसलिए इन्हें तुरंत तोड़ना आवश्यक होता है। 

फलों को तोड़ने के लिए चाकू या कैंची का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी फलों को खींचकर नहीं तोड़ना चाहिए, इससे पौधे का भी नुकसान हो सकता है। 

करेले के फल जब कोमल और हरे रंग के होते हैं तभी तोड़ना अच्छा होता है, नहीं तो इन्हें मंडी में पहुंचाने के दौरान परिवहन में ही यह पककर लाल हो जाते हैं, जो कि पूरी तरह से स्वादहीन हो जाते हैं।

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई इस पॉलीहाउस तकनीक का इस्तेमाल कर किसान भाई प्रति हज़ार वर्गमीटर पॉलीहाउस में 100 क्विंटल तक करेले की सब्जी का उत्पादन कर सकते हैं आशा करते हैं merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को इस तकनीक के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और आप भी भविष्य में ऊपर दी गई जानकारी का सही फायदा उठाकर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें करेले की खेती, होगा ज्यादा मुनाफा

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें करेले की खेती, होगा ज्यादा मुनाफा

सरकार लगातार किसानों की आय बढ़ाने पर फोकस कर रही है। जिसके तहत सब्जियों की फसल लगाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि किसनों के हाथ में नियमित रूप से पैसे आते रहें। इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। अब तो सरकार सब्जियों की खेती ले लिए किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करवा रही है। गेहूं, चना, सरसों आदि की तुलना में सब्जियों की फसल जल्दी तैयार हो जाती है। ऐसे में उसी जमीन पर अगली फसल लगाने के लिए किसानों को समय मिल जाता है, जिससे किसान अच्छे से खेत तैयार करके किसी अन्य फसल को अपने खेत में लगा सकते हैं। वैसे तो बाजार में कई सब्जियां हैं जिनकी गर्मियों में भारी मांग रहती है। लेकिन करेले का एक अलग ही स्थान है। जिसकी खेती करके किसान भाई कम समय में अच्छा खासा लाभ काम सकते हैं। यह भी पढ़ें: करेला देगा नफा, आवारा पशु खफा – करेले की खेती की संपूर्ण जानकारी करेला अपने औषधीय गुणों के कारण सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली सब्जी है। यह शुगर और डायबिटीज के मरीजों के लिए वरदान है। इसलिए डॉक्टर डायबिटीज के मरीजों को करेले का ज्यूस पीने की सलाह देते हैं। साथ ही यह शुगर कंट्रोल करने में भी सहायक होता है इसलिए डॉक्टर करेले की सब्जी खाने के लिए कहते हैं। करेला कई विटामिन और पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसमें विटामिन ए, बी और सी की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता रहती है। इसके अलावा करेले में कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आइरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम और मैगनीज जैसे फ्लावोन्वाइड जैसे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। इन पोषक तत्वों के कारण यह त्वचा रोग में बेहद लाभकारी होता है। इसके सेवन से पाचन शक्ति बढ़ती है, इसलिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी उच्च होती है। मोटापा कम करने के लिए और पीलिया ठीक करने के लिए भी करेले का सेवन किया जाता है।

ऐसे करें मिट्टी का चुनाव

करेले की खेती बलुई दोमट या दोमट मिट्टी में करना चाहिए। इसके साथ ही नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी भी इसके लिए उत्तम मानी गई है। करेले के खेत में उचित जल निकास की जरूरत होती है, नहीं तो पेड़ सड़ जाएंगे। करेले को गर्मियों से साथ-साथ वर्षा ऋतु में भी उगाया जा सकता है। अगर 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होता है तो यह फसल के विकास के लिए सर्वोत्तम है। बीजों के जमाव के लिए खेत का तापमान 22 से 30 डिग्री सेल्सियस के मध्य होना चाहिए।

ऐसे करें खेत की तैयारी

खेत में करेले की फसल की बुवाई करने से पहले खेत की 2 से 3 बार अच्छे से जुताई कर लें। बुवाई से 20 दिन पहले 25-30 टन गोबर की खाद या कम्‍पोस्‍ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं। इसके बाद कतारबद्ध रूप से बेड बना लें। बुवाई के पहले मिट्टी के बेड के बगल से बनी नालियों में 50 किलोग्राम डीएपी, 50 किलो म्‍यूरेट आफ पोटास का मिश्रण प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। बुवाई के बाद यूरिया का भी प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए शाम का समय चुनें, ताकि उतने समय खेत में नमी बरकार रहे। बुवाई के 20 से 25 दिन के बाद 30 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। इसके बाद करेले के पुष्‍पन व फलन के समय भी यूरिया का प्रयोग करना चाहिए। इससे पौधे को पोषण मिलता है और उत्पादन अधिक होता है।

ये हैं करेले की उन्नत किस्में

वैसे तो बाजार में करेले की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। जिनको आप बुवाई के के लिए चुन सकते हैं। इनमें कल्याणपुर बारहमासी, पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1 आदि किस्में शामिल हैं। जिन्हें किसान भाई अपने खेतों  में लगाना पसंद करते हैं।

ऐसे करें करेले की बुवाई

अब बाजार में ऐसी हाइब्रिड किस्में आ गई हैं जिससे करेले की खेती अब हर मौसम में की जाती है। आमतौर पर करेले को दो तरीकों से लगाया जाता है। पहला, खेत में सीधे बुवाई के माध्यम से और दूसरा, इसकी नर्सरी तैयार करके। नर्सरी के पौधे जब बोने लायक हो जाते हैं तब इनको खेत में स्थानांतरित कर दिया जाता है। बुवाई करने के लिए खेत में 2 फीट की दूरी पर बेड बना लें। इसके बाद बेड पर 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर बीजों की रोपाई करें। बीजों को हमेशा 2 से 2.5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। अगर करेले की पौध की रोपाई कर रहे हैं तो नाली से नाली की दूरी 2 मीटर रखनी चाहिए। साथ ही पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर और मिट्टी के बेड की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए। यह भी पढ़ें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer) एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करेले के 500 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। अगर पौध के माध्यम से करेले की बुवाई करना है तो बीज की मात्रा में कमी भी की जा सकती है। बुवाई से पहले बीजों को बाविस्‍टीन के घोल में उपचारित करना चाहिए। इससे पेड़ों पर कीटों का आक्रमण नहीं होता है।

करेले की फसल की सुरक्षा और निराई गुड़ाई

करेला बेल के रूप में उगता है। ऐसे में करेले की बेल को सहारा देना जरूरी हो जाता है नहीं तो बेल खराब हो जाएगी। जब करेले का पौधा थोड़ी बड़ा हो जाए तो उसे लकड़ी या बांस का सहारा देना चाहिए। ताकि यह एक निश्चित दिशा में वृद्धि कर सके। इसके अलावा पौधे को रस्सी के सहारे से बांधा भी जा सकता है। करेले की फसल के शुरूआती समय में निराई गुड़ाई की जरूरत होती है। ऐसे में फसल की निराई गुड़ाई करें ताकि खेत में खरपतवार न पनपने पाएं। अगर शुरूआती दौर में खरपतवार पर नियंत्रण कर लेते हैं तो करेले की अच्छी फसल प्राप्त होती है।

करेले की फसल में सिंचाई

वैसे तो करेले की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। फिर भी खेत में हल्की सिंचाई करते रहें, ताकि खेत में नमी बरकरार रहे और पौधे सूखें नहीं। फूल व फल बनने की अवस्था में फसल की सिंचाई जरूर करें। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि खेत में पानी जमा न होने पाए। खेत में पानी जमा होने की स्थिति में पानी की उचित निकासी की व्यवस्था करें ताकि फसल खराब न होने पाए।

करेले की तुड़ाई

आमतौर पर करेले की फसल 60 यह 70 दिनों में तैयार हो जाती है। करेले के कठोर होने के पहले ही इसकी तुड़ाई कर लेना चाहिए। करेले को तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखें की करेले के डंठल की लंबाई 2 सेंटीमीटर से ज्यादा न हो। इससे करेले ज्यादा समय तक तरोताजा बने रहते हैं। करेले की फसल कि तुड़ाई हमेशा सुबह के समय करनी चाहिए।

करेले की फसल का उत्पादन

एक एकड़ की फसल में किसान भाई आराम से 50 से 60 क्विंटल तक करेले का उत्पादन कर सकते हैं। जबकि प्रति एकड़ इसकी खेती में मात्र 30 हजार रुपये की लागत आती है। इस हिसाब से बड़ी मात्रा में करेले की खेती करके किसान भाई ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं।
किसान भाई इस विधि से करेले की खेती करने पर लाखों का मुनाफा उठा सकते हैं

किसान भाई इस विधि से करेले की खेती करने पर लाखों का मुनाफा उठा सकते हैं

करेला बागवानी के अंतर्गत आने वाली फसल है। विभिन्न राज्यों में करेले की खेती करने पर कृषकों को अनुदान भी दिया जाता है। करेले की विशेषता यह है, कि इसकी खेती चालू करने में खर्चा बहुत ही कम आता है। वहीं, मुनाफा काफी ज्यादा होता है। पूरे भारत में करेला की खेती की जाती है। करेले के अंदर भरपूर मात्रा में विटामिन्स और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इसी वजह से चिकित्सक करेले के रस का सेवन करने की सलाह देते हैं। करेले को लोग भुजिया और सब्जी, भरता के तौर पर उपयोग करते हैं। चिकित्सकों की माने तो करेले का जूस पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है। करेले में विटामिन ई, कैल्शियम, आयरन, विटामिन सी और विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यही कारण है, कि इसकी मांग सालों रहती है। ऐसी स्थिति में किसान भाई आधुनिक विधि से इसका उत्पादन कर मोटी आमदनी कर सकते हैं।

करेला बागवानी के अंतर्गत आने वाली एक फसल है

करेला एक प्रकार की बागवानी फसल है। विभिन्न राज्यों में करेले का उत्पादन करने पर किसानों को अनुदान भी प्रदान किया जाता है। करेले की एक ऐसी विशेषता है, कि इसकी खेती चालू करने में बहुत कम खर्चा आता है। जबकि लाभ काफी ज्यादा होता है। यदि किसान भाई करेले की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो बलुई दोमट मृदा में ही इसकी बुवाई करें। क्योंकि बलुई दोमट मृदा करेले की फसल के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। यदि आप चाहें तो नदी के किनारे भी करेले का उत्पादन कर सकते हैं। जलोढ़ मृदा में इसकी बेहतरीन पैदावार होती है।

करेले की खेती के लिए कितने डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है

करेले की फसल गर्म मौसम में तीव्रता के साथ विकास करती है। इसके लिए 20 डिग्री से 40 डिग्री तक का तापमान सबसे अच्छा माना गया है। अब ऐसी स्थिति में करेले की फसल को समुचित सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। हालाँकि, करेले की खेती वर्ष भर की जा सकती है। परंतु, वर्ष में तीन बार इसकी बुवाई की जाती है। यदि किसान भाई जनवरी से मार्च माह के मध्य इसकी बुवाई करते हैं, तो अप्रैल से करेले का उत्पादन शुरू हो जाएगा। यदि किसान भाई बारिश के मौसम में इसकी बुवाई करना चाहते हैं, तो जून से जुलाई माह इसके लिए अच्छा रहेगा। लेकिन, पहाड़ी क्षेत्रों के किसान मार्च से जून माह के मध्य करेले की बुवाई कर सकते हैं।

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बुवाई करने के 70 दिनों में फसल तोड़ने लायक तैयार हो जाती है

करेले की बुआई चालू करने से पूर्व खेत की बेहतर ढ़ंग से जुताई कर लें। उसके बाद खेत को एकसार कर लें। इसके बाद क्यारियां तैयार करके बीज की बुवाई करें। बीज सदैव 2 से 2 .5 सेमी गहराई में ही बोयें। विशेष बात यह है, कि बुवाई करने से पूर्व 24 घंटे तक बीज को पानी में भिगोकर रख दें। इससे बीज अतिशीघ्र अंकुरित होते हैं। जब करेले के पौधे बड़े हो जाएं, तब उसे लकड़ी अथवा बांस की मदद से उंचाई पर ले जाएं। इससे बेहतरीन उत्पादन हांसिल हो पाऐगा। इसी विधि को वर्टिकल फार्मिंग कहा जाता है। इस विधि से खेती करने पर बारिश होने की स्थिति में भी फसल की बर्बादी नहीं होती है। विशेष बात यह है, कि बुवाई करने के 70 दिनों के समयांतराल में फसल पककर तोड़ने हेतु तैयार हो जाती है।