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अल-नीनो

आखिर क्या होता है अल-नीनो जो लोगों की जेब ढ़ीली करने के साथ अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है

आखिर क्या होता है अल-नीनो जो लोगों की जेब ढ़ीली करने के साथ अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है

आजकल आप बार-बार 'अल-नीनो' का नाम सुन रहे होंगे। क्या आपको मालूम है, कि यह कैसे आपकी और हमारी जेब पर प्रभाव डालता है। कैसे देश में खेती-किसानी और अर्थव्यवस्था को चौपट करता है। 

आगे हम आपको इस लेख में इसके विषय में बताने वाले हैं। आजकल ‘अल-नीनो’ का जिक्र बार-बार किया जा रहा है। इसकी वजह से महंगाई में इजाफा, मानसून खराब होने और सूखा पड़ने की संभावना भी जताई जा रही है। 

ऐसी स्थिति में क्या ये जानना आवश्यक नहीं हो जाता है, कि आखिर ‘अल-नीनो’ होता क्या है ? यह कैसे देश की अर्थव्यवस्था और आपकी हमारी जेब का पूरा हिसाब-किताब को प्रभावित करता है? 

सरल भाषा में कहा जाए तो ‘अल-नीनो’ प्रशांत महासागर में बनने वाली एक मौसमिक स्थिति है, जो नमी से भरी मानसूनी पवनों को बाधित और प्रभावित करती हैं। 

इस वहज से विश्व के भिन्न-भिन्न देशों का मौसम प्रभावित होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि भारत, पेरू, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और प्रशांत महासागर से सटे विभिन्न देश इसके चंगुल में आते हैं।

अल-नीनो अपनी भूमिका शादी में ‘नाराज फूफा’ की तरह अदा करता है

भारत में आम लोगों के मध्य ‘शादी में नाराज हुआ फूफा’ का उलाहना दिया जाता है। बतादें, कि ‘अल-नीनो’ को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता हैं। अंतर केवल इतना है, कि इस ‘फूफा’ को स्पेनिश नाम से जानते हैं। 

यह भारत की सरजमीं से दूर प्रशांत महासागर में रहता है। यह देश में शादी होने से पहले यानी ‘मानसून आने से पहले’ ही अपना मुंह फुला कर बैठ जाता है। 

ये भी देखें: जानें इस साल मानसून कैसा रहने वाला है, किसानों के लिए फायदेमंद रहेगा या नुकसानदायक 

दरअसल, जब प्रशांत महासागर की सतह सामान्य से भी अधिक गर्म हो जाती है। जब ऑस्ट्रेलिया से लेकर पेरू के मध्य चलने वाली पवनों का चक्र प्रभावित होता है। 

इसी मौसमी घटना को हम ‘अल-नीनो’ कहते है। सामान्य स्थिति में ठंडी हवाएं पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर चलती हैं। वहीं गर्म पवन पश्चिम से पूर्व की दिशा में चलती हैं। 

वहीं ‘अल-नीनो’ की स्थिति में पूर्व से पश्चिम की बहने वाली गर्म हवाएं पेरू के आसपास ही इकट्ठा होने लगती हैं अथवा इधर-उधर हो जाती हैं। इससे प्रशांत महासागर में दबाव का स्तर डगमगा जाता है। 

इसका प्रभाव हिंद महासागर से उठने वाली दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं पर दिखाई देता है। इन्हीं, पवनों से भारत में घनघोर वर्षा होती है।

अल-नीनो खेती-किसानी की ‘बैंड’ बजाकर रख देता है

बतादें, कि जब चर्चा शादी की हो और उसमें कोई ‘बैंड’ ना बजे तो शादी में मजा ही नहीं आता। दरअसल, ‘अल-नीनो’ से भारत में सबसे ज्यादा खेतीबाड़ी का ही बैंड बजता है। 

भारत में खेती आज भी बड़े स्तर पर ‘मानसूनी बारिश’ पर आधीन रहती है। ‘अल-नीनो’ के असर के चलते भारत में मानसून का विभाजन बिगड़ जाता है, इसी वजह से कहीं सूखा पड़ता है तो कहीं बाढ़ आती है।

अल-नीनो से अर्थव्यवस्था और जेब का बजट दोनों प्रभावित होते हैं

फिलहाल, यदि सीधा-सीधा देखा जाए तो ‘अल-नीनो’ का भारत से कोई संबंध नहीं, तो फिर आपकी-हमारी जेब पर असर कैसे पड़ेगा ? परंतु, अप्रत्यक्ष तौर पर ही हो, ‘अल-नीनो’ आम आदमी की जेब का बजट तो प्रभावित करता ही है। 

साथ ही, देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर डालता है। खेती पर प्रभाव पड़ने से उत्पादन भी प्रभावित होता है। इसके साथ-साथ खाद्य उत्पादों की कीमतें भी बढ़ती हैं। 

इसका सीधा सा अर्थ है, कि महंगाई के चलते आपकी रसोई का बजट तो प्रभावित होना तय है। अन्य दूसरे कृषकों की आमदनी प्रभावित होने से भारत में मांग की एक बड़ी समस्या उपरांत होती है। 

साथ ही, महंगाई में बढ़ोत्तरी आने से लोग अपनी लागत को नियंत्रित करने लगते हैं। इसका परिणाम अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ता है। भारत में मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को इसका काफी बड़ा नुकसान वहन करना पड़ता है।

मानसून की धीमी रफ्तार और अलनीनो बढ़ा रहा किसानों की समस्या

मानसून की धीमी रफ्तार और अलनीनो बढ़ा रहा किसानों की समस्या

आपकी जानकरी के लिए बतादें, कि विगत 8 जून को केरल में मानसून ने दस्तक दी थी। इसके उपरांत मानसून काफी धीमी गति से चल रही है। समस्त राज्यों में मानसून विलंभ से पहुंच रहा है। केरल में मानसून के आने के पश्चात भी फिलहाल बारिश औसत से कम हो रही है। साथ ही, मानसून काफी धीरे-धीरे अन्य राज्यों की ओर बढ़ रही है। पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा समेत बहुत से राज्यों में लोग बारिश के लिए तरस रहे हैं। हालांकि, बिहार एवं झारखंड में मानसून की दस्तक के उपरांत भी प्रचंड गर्मी पड़ रही है। लोगों का लू एवं तेज धूप से हाल बेहाल हो चुका है। यहां तक कि सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता में गर्मी की वजह से फसलें सूख रही हैं। ऐसी स्थिति में किसानों के मध्य अलनीनो का खतरा एक बार पुनः बढ़ चुका है। साथ ही, जानकारों ने बताया है, कि यदि मौसम इसी प्रकार से बेईमान रहा तो, इसका असर महंगाई पर भी देखने को मिल सकता है, जिससे खाद्य उत्पाद काफी महंगे हो जाऐंगे।

अलनीनो की वजह से महंगाई में बढ़ोत्तरी हो सकती है

मीडिया खबरों के अनुसार, अलनीनो के कारण भारत में खुदरा महंगाई 0.5 से 0.6 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। मुख्य बात यह है, कि अलनीनो की वजह से आटा, गेहूं, मक्का, दाल और चावल समेत खाने-पीने के समस्त उत्पाद भी महंगे हो जाऐंगे। साथ ही, अलनीनो का प्रभाव हरी सब्जियों के ऊपर भी देखने को मिल सकता है। इससे
शिमला मिर्च, खीरा, टमाटर और लौकी समेत बाकी हरी सब्जियों की कीमतों में काफी इजाफा हो जाऐगा।

मानसून काफी आहिस्ते-आहिस्ते चल रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि केरल में 8 जून को मानसून का आगमन हुआ था। जिसके बाद मानसून काफी आहिस्ते-आहिस्ते चल रही है। यह समस्त राज्यों में विलंब से पहुँच रहा है। विशेष बात यह है, कि मानसून के आगमन के उपरांत भी अब तक बिहार समेत विभिन्न राज्यों में वर्षा समान्य से भी कम दर्ज की गई है। अब ऐसी स्थिति में सामान्य से कम बारिश होने से खरीफ फसलों की बिजाई पर प्रभाव पड़ सकता है। अगर मानसून के अंतर्गत समुचित गति नहीं आई, तो देश में महंगाई में इजाफा हो सकता है। यह भी पढ़ें: मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

2023-24 में इतने प्रतिशत महंगाई होने की संभावना

भारत में अब तक बारिश सामान्य से 53% प्रतिशत कम दर्ज की गई है। सामान्य तौर पर जुलाई माह से हरी सब्जियां महंगी हो जाती हैं। साथ ही, ब्रोकरेज फर्म ने फाइनेंसियल ईयर 2023-24 में महंगाई 5.2 प्रतिशत रहने का अंदाजा लगाया है। उधर रिजर्व बैंक ने कहा है, कि चालू वित्त वर्ष में महंगाई 5 प्रतिशत अथवा उससे कम भी हो सकती है।

चीनी की पैदावार में इस बार गिरावट देखने को मिली है

बतादें, कि भारत में सामन्यतः चीनी की पैदावार में विगत वर्ष की अपेक्षा कमी दर्ज की गई है। साथ ही, चावल की हालत भी ठीक नहीं है। इस्मा के अनुसार, चीनी की पैदावार 3.40 करोड़ टन से घटकर 3.28 करोड़ टन पर पहुंच चुकी है। साथ ही, यदि हम चावल की बात करें तो अलनीनो के कारण इसका क्षेत्रफल इस बार सिकुड़ सकता है। वर्षा कम होने के चलते किसान धान की बुवाई कम कर पाऐंगे, क्योंकि धान की फसल को काफी ज्यादा जल की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में धान की पैदावार में गिरावट आने से चावल महंगे हो जाएंगे, जिसका प्रभाव थोक एवं खुदरा बाजार में देखने को मिल सकता है।
अलनीनों का खतरा होने के बावजूद भी चावल की बुवाई का रकबा बढ़ता जा रहा है

अलनीनों का खतरा होने के बावजूद भी चावल की बुवाई का रकबा बढ़ता जा रहा है

किसान सामान्य तौर पर खरीफ सीजन में सोयाबीन, गन्ना, मूंगफली, चावल, मक्का और कपास समेत अन्य फसलों की रोपाई और बुवाई चालू करते हैं, जो जुलाई एवं अगस्त महीने तक जारी रहती है। बतादें कि मानसून के आगमन के साथ आरंभ हुई प्रचंड बारिश से भले ही सब्जी और बागवानी फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा हो। परंतु, खरीफ फसलों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है। विशेष कर जुलाई के आरंभिक हफ्तों में हुई मूसलाधार बारिश से धान की खेती करने वाले किसानों के चेहरे खिल उठे हैं। पानी की बेहतरीन व्यवस्था होने की वजह से वे बहुत ही तीव्रता से धान की रोपाई कर रहे हैं। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में अब तक 23.7 मिलियन हेक्टेयर में धान की बिजाई की गई है, जो कि इसी अवधि में विगत वर्ष के तुलनात्मक 1.71% ज्यादा है।

चावल के रकबे को लेकर कृषि विशेषज्ञों ने क्या कहा है

अब ऐसी स्थिति में कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि यदि इसी प्रकार से वर्षा होती रही और किसान धान की रोपाई करते रहें, तो चावल के उत्पादन में भी विगत वर्ष के मुकाबले अच्छी खासी बढ़ोतरी हो सकती है। इससे महंगाई को नियंत्रित करने में सरकार को काफी हद तक सहायता मिलेगी। हाल ही, में भारत सरकार ने चावल के बढ़ते भावों पर नियंत्रण पाने के लिए सभी प्रकार के गैर- बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। फिलहाल, इस खरीफ सीजन में धान के क्षेत्रफल में वृद्धि की खबर, केंद्र सरकार के लिए किसी सहूलियत से कम नहीं है।

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बारिश में आमतौर पर कितने प्रतिशत की गिरावट हुई है

किसान सामान्यतः 1 जून से सोयाबीन, गन्ना, मूंगफली, चावल, मक्का, कपास सहित अन्य फसलों की रोपाई और बिजाई आरंभ करते हैं, जो जुलाई और अगस्त महीने तक चलती रहती है। इन महीनों के दौरान भारत में मानसून सक्रिय रहता है। अगस्त तक समस्त राज्यों में रूक- रूक कर वर्षा होती रहती है, जिससे खरीफ फसलों को वक्त पर सिंचाई के लिए पानी मिलता रहता है। ऐसे इस बार जून में भारत के अंदर सामान्य से 10% प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई। वहीं, कुछ राज्यों में बारिश की कमी औसत से 60% प्रतिशत तक कम थी।

मक्के की बुवाई कितने मिलियन हेक्टेयर हुई

मौसम विभाग द्वारा इस बार अलनीनो को लेकर भविष्यवाणी की गई थी। उसने कहा था, कि जुलाई महीने में अलनीनो की स्थिति मजबूत हो सकती है, जिससे बरसात में बहुत कमी होगी। परंतु, ऐसा नहीं हुआ जुलाई महीने में विभिन्न राज्यों में आवश्यकता से अधिक बारिश हुई। विशेष कर पंजाब और हरियाणा में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए थे। हालांकि, इस साल मानसून ने आने में अपने तय समय से काफी विलंभ किया। इससे दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्यों में ग्रीष्मकालीन फसलों की बुआई में बहुत ही कमी दर्ज हुई है। ऐसा कहा जा रहा है, कि किसानों ने 17.1 मिलियन हेक्टेयर में सोयाबीन सहित तिलहन की बुआई की, जो पिछले साल की तुलना 2.3% ज्यादा है। मक्के की बुवाई 6.9 मिलियन हेक्टेयर में की गई है। इसी तरह कपास के रकबे में थोड़ी सी गिरावट आई है।