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इन नस्लों की गायों का पालन करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

इन नस्लों की गायों का पालन करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

हमारे देश का किसान हमेशा से ही खेती के साथ मुनाफा कमाने के लिए पशुपालन भी करता आ रहा है। लेकिन कई किसानों को पता नहीं होता कि कौन से नस्ल के पशु चुनने होते हैं, ताकि वह उन से अच्छा मुनाफा कमा सके। 

ज्यादातर हमारे देश के किसान विदेशी नस्ल की गाय पालते हैं, ये गाय दूध तो ज्यादा देती है पर इन के दूध का रेट किसान को कम मिलता है। क्योंकि इन के दूध में फैट कम होता है और बीटा-कैसिइन A1 पाया जाता है, जो हमारे शरीर में कई बीमारियाँ उत्पन करता है। 

इसलिए आजकल लोगों का रुझान देसी गाय की तरफ हो रहा है। क्योंकि देसी गाय का दूध बहुत अच्छा होता है, इस में बीटा-कैसिइन A2 पाया जाता है और ये हमारे शरीर में ऊर्जा पैदा करता है। 

जिससे हम कम बीमार होते हैं, तभी आज कल देसी गाय के दूध का मूल्य 120 रूपये प्रति किलो हो गया है। इसलिए अगर किसान देसी नस्ल की गाय पालन करे तो उन का अच्छा मुनाफा हो सकता है।

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देसी गायों की प्रमुख नस्ले इस प्रकार हैं -

साहीवाल

ये नस्ल भारत की सब से ज्यादा दूध देने वाली देसी नस्ल है। इस का रंग लाल भूरे रंग से लेकर अधिक लाल तक हो सकता है। ये एक दिन में 18 लीटर तक दूध दे सकती है। 

दूध दुहते समय साहीवाल बहुत शांत होती है, इस की गर्मी सहनशीलता और उच्च दूध उत्पादन के कारण उन्हें अन्य एशियाई देशों के साथ-साथ अफ्रीका और कैरिबियन में निर्यात किया जाता है।

गिर

ये नस्ल गुजरात की नस्ल है। इस नस्ल की गाय बहुत सहनशील होती है और अच्छा दूध उत्पादन करती है। गिर दिखने में विशिष्ट है, आमतौर पर एक गोल और गुंबददार माथे, लंबे पेंडुलस कान और सींग जो बाहर और पीछे मुड़े होते हैं। 

गिर आमतौर पर लाल से लेकर पीले से लेकर सफेद तक के रंग के साथ धब्बेदार होते हैं। इस नस्ल की गायें रोग प्रतिरोधी होती हैं। गायों का वजन औसतन 385 किलोग्राम और ऊंचाई 130 सेमी होती है। 

140 सेमी की ऊंचाई के साथ बैल का वजन औसतन 545 किलोग्राम होता है। जन्म के समय बछड़ों का वजन लगभग 20 किलो होता है। इसके दूध में 4.5% फैट होता है और ये एक दिन में 15 से 16 लीटर तक दूध दे सकती है।

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देसी / हरियाणा

यह हरियाणा राज्य के रोहतक, करनाल, कुरुक्षेत्र, जींद, हिसार, भिवानी, चरखीदादरी और गुरुग्राम जिलों में ज्यादा मिलती है। मवेशी मध्यम से बड़े आकार के होते हैं और आम तौर पर सफेद से भूरे रंग के होते हैं। 

इसके दूध में फुर्ती बहुत होती है, ये गाय एक दिन में 10 - 15 लीटर तक दूध दे सकती है | इस नस्ल के बैल बहुत अच्छे बनते हैं, ये नस्ल गर्मी के मौसम में भी अच्छा दूध उत्पादन करती है। 

गाय का दूध विटामिन डी, पोटेशियम एवं कैल्शियम का अच्छा स्रोत है, जो कि हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। इसके साथ ही गाय के दूध में कैरोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह कैरोटीन मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता को 115 प्रतिशत तक बढ़ाता है। 

गाय का दूध, देशी घी को श्रेष्ठ स्रोत माना गया है, गौ, मूत्र, गैस, कब्ज, दमा, मोटापा, रक्तचाप, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, कैंसर आदि अनेक बीमारियों की रोकथाम के लिए बहुत उपयोगी होता है। 

गाय के दूध में विटामिन ए पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जो आँखों में होने वाले रतोंधी रोग की रोकथाम के लिए आवश्यक है। इसके साथ विटामिन बी 12 व राइबोफ्लेविन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।

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थारपारकर

ये नस्ल राजस्थान, हरियाणा में ज्यादा पाली जाती है। इसका रंग सफेद होता है और लटकती हुई नाभि और गलकम्बल होता है। इस नस्ल की गाय दूध ज्यादा देती है। 

15 लीटर तक दूध एक दिन में देती है, माना जाता है कि ये गाय राजस्थान में थार का रेगिस्तान पार कर के आयी थी। इसलिए इस का नाम थारपारकर पड़ गया।

ICAR ने विकसित की नींबू की नई किस्म, तीसरे ही साल लग जाते हैं फल

ICAR ने विकसित की नींबू की नई किस्म, तीसरे ही साल लग जाते हैं फल

बागवानी खेती करने वाले किसानों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च यानि ICAR) एक अच्छी खबर लेकर आया है। पिछले कई सालों से ICAR नींबू (Lemon) की नई किस्में विकसित करने की कोशिश कर रहा था, जिसमें इस संस्थान को अंततः सफलता मिल गई है। ICAR के कृषि वैज्ञानिकों ने नींबू के फल में एसिड और रस की मात्रा को ध्यान में रखते हुए नींबू की एक नई किस्म विकसित है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस नई किस्म को 'थार वैभव' (Thar Vaibhav) नाम दिया है। थार वैभव नींबू की किस्म को सेंट्रल हॉर्टिकल्चरल एक्सपेरिमेंट स्टेशन (Central Horticultural Experiment Station (ICAR-CIAH)), वेजलपुर, गोधरा, गुजरात में विकसित किया गया है।

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कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इस थार वैभव नींबू की किस्म की कई विशेषताएं हैं-

सिर्फ 3 साल बाद ही आने लगते हैं पेड़ में फल

नींबू की यह किस्म एक तरह की एसिड लाइम किस्म है, इसके पौधे को लगाने के बाद मात्र 3 साल में ही फल लगने शुरू हो जाते हैं। नींबू के इस पेड़ में बेहद पास-पास फल लगते हैं, जिससे उत्पादन ज्यादा होता है। इसके फल गोलाकार होते हैं, साथ ही आकर्षक पीले और चिकने छिलके वाले होते हैं, एक फल में 6 से 8 बीज होते हैं।

एक पौधे में होगा इतना उत्पादन

यह पेड़ अन्य नींबू के पेड़ों के मुकाबले जल्द ही फल देने लगता है, इसके एक गुच्छे में 3 से 9 नींबू तक लगते हैं। 'थार वैभव' किस्म के नींबू के फल में रस की मात्रा 49 प्रतिशत तक हो सकती है, साथ ही अम्लता 6.84 प्रतिशत तक होती है। नींबू की इस किस्म का एक पेड़ एक मौसम में कम से कम 60 किलो नींबू का उत्पादन कर सकता है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस फल के बारे में बताया है कि ये फल गर्मियों में तैयार हो जाते हैं। इन दिनों भारत में एसिड लाइम के उत्पादक ऐसे फलों की मांग करते हैं, उनकी मांग को देखते हुए बाजार में ऐसे फलों की डिमांड बढ़ सकती है।

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कोरोना काल में बढ़ी थी ऐसे नींबू की मांग

देश में जब कोरोना चरम पर था तब डॉक्टरों ने लोगों को ज्यादा से ज्यादा Vitamin C के सेवन की सलाह दी थी, क्योंकि Vitamin C लोगों के भीतर इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में कारगर होता है, और इसलिए लोगों ने इस दौरान Vitamin C का भरपूर सेवन किया, चाहे वह गोली के रूप में हो या नींबू और संतरे जैसे फलों के रूप में। कोरोना के बाद से लोगों के बीच Vitamin C को लेकर जागरूकता आई है और बाजार में नींबू की खपत बढ़ गई है। ऐसे में यदि किसान इस नई किस्म की खेती करते हैं तो वो 3 साल में ही उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और 'थार वैभव' नींबू को बेचकर अपनी आमदनी तेजी से बढ़ा सकते हैं। 'थार वैभव' के साथ ही ICAR के वैज्ञानिक नींबू की और भी नई किस्में विकसित करने पर काम कर रहे हैं, जिनमें नींबू का उत्पादन भी ज्यादा मात्रा में हो और नींबू में रस की मात्रा भी ज्यादा हो, ताकि इस प्रकार की नई किस्म से मार्केट में बढ़ी हुई डिमांड को पूरा किया जा सके। फिलहाल कृषि वैज्ञानिक 'थार वैभव' को लेकर भी विश्लेषण करेंगे कि यह किस्म किसानों के बीच लोकप्रिय हो पाती है या नहीं।
किसान भाई बेल की इन प्रजातियों को उगाकर सूखे में भी मुनाफा कमा सकते हैं

किसान भाई बेल की इन प्रजातियों को उगाकर सूखे में भी मुनाफा कमा सकते हैं

अगर आप सूखे वाले स्थान पर रहते हैं और साथ ही आप अपनी फसल से अच्छा उत्पादन नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं, तो आपके लिए बेल की बागवानी सबसे अच्छा विकल्प मानी जाती है। इसके लिए आज हम आपको नीचे दी गई किस्मों को अपने बगीचे में लगा सकते हैं। यह सभी किस्म वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार की गई बेहतरीन किस्म हैं।

बेल की बागवानी कृषकों के लिए सबसे अच्छी है

बागवानी करने वाले किसान भाइयों के लिए
बेल की बागवानी (Wood Apple Gardening) सबसे बेहतर होती है। दरअसल यह हर एक तरह की परिस्थिति में अपना विकास करने में सक्षम हैं. इसके लिए किसान को अधिक मेहनत करने की कोई खास जरूरत नहीं होती है। अगर आप कम पानी वाले स्थान पर रहे रहे हैं, तो आपने यहां के ज्यादातर किसानों को बेल की खेती करते हुए देखा होगा। क्योंकि यह कम जल में भी अच्छा उत्पादन देती है। तो आइए आज हम अपने इस लेख में सूखे वाले स्थान पर बेल की बागवानी कैसे करें इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

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बेल की लगभग सभी प्रजातियों को एक ही जगह पर आसानी से उगा सकते हैं

वैसे देखा जाए तो बेल की तकरीबन सभी किस्मों को किसान एक एक क्षेत्र में सहजता से उगा सकते हैं। परंतु, अगर आप सूखे वाली जगह पर रहते हैं और बेल की बागवानी से अच्छा खासा उत्पादन अर्जित करना चाहते हैं, तो आपको अपने खेत और बगीचे में इन किस्मों का चयन करना चाहिए। जिनके नाम कुछ इस प्रकार से हैं। थार नीलकंठ, गोमायशी और थार दिव्य जैसी बेहतरीन किस्मों को अपने घर लगा सकते हैं। यह सभी किस्म केंद्रीय बागवानी परीक्षण केंद्र वेजलपुर गुजरात में तैयार की गई हैं।

बेल की फसल के रोपण के दौरान आवश्यक काम

बेल की फसल से अच्छा फल प्राप्त करने के लिए किसानों को इसकी रोपण से लगाकर बाकी बहुत सारी जानकारियों पर ध्यान रखना होता है। बतादें, कि 2 माह पूर्व ही 1 घन मी. आकार के गड्ढेखोद कर खुला छोड़ दें। इसमें आपको न्यूनतम 3-4 टोकरी सड़ी हुई गोबर खाद और मिथाइल पैराथियान इत्यादि को डालना चाहिए। उसके बाद आपको खेत की बेहतर ढ़ंग से सिंचाई करनी है। ऐसा करने के 1 माह पश्चात आपको पौधा का रोपण करना है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बेल की रोपाई जुलाई-अगस्त माह में की जाती है और वहीं सिंचाई सुविधा होने पर फरवरी-मार्च के महीने में भी किसान रोपण कर सकते हैं।