अच्छे दूध के लिए जरूरी उन्नत चारा किस्में

By: MeriKheti
Published on: 14-Jan-2020

हरा चारा साल भर दुधारू पशुओं को मिलना डेयरी कारोबार के लिए बेहद जरूरी है। इससे पशुओं को विटामिन्स आदि की जरूरत हर समय पूरी होती रहती है। हरे चारे की अनेक किस्में मौजूद हैं लेकिन किसान केवल ज्वार और बरसीम जैसी फसलों पर ही निर्भर रहता है। चारे वाली उन्नत किस्मों का चयन करके उन्हें साल भर हरे चारे का जुगाड़ रखना चाहिए। 

उन्नत किस्में  

1. ज्वारः- पी. सी.-6, 9, 23, एम.पी.चरी, पुसा चरी, हरियाणा चरी 

2. मक्काः- गंगा सफेद 2, 3,5, जवाहर, अम्बर, किसान, सोना, मंजरी, मोती 

3. बाजराः- जाइन्ट हाईब्रिउ, के-674, 677, एल-72, 74, टी-55, डी-1941, 2291 

4. जईः- एच.एफ.ओ.-14, ओ.एस.-6 एवं 7, वी.पी.ओ.-94 

5. लोबियाः- एस-450,457,रष्यिनजाइन्ट,यू.पी.सी.-287, 286,एन.पी., एच.एस.पी.-42-1,सी.ओं-1,14 

6. ग्वारः- दुर्गापुरा सफेद, आई.जी.एफ.आर.आई.-212 

7. बरसीमः- मैस्कावी, बरदान, बुन्देला, यू.पी. 

8. रिजकाः- टाईप-8,9, आनंद-द्वितीय, आई.जी.एफ.आर.आई.-एस-244,54, एल.एल.सी.-5 बी.-103 

9. हाइब्रिउ नेपियरः- पूसा जाइन्ट नेपियर, एन.बी.-21, ई.बी.-4, गजराज, कोयमबटूर 

10. सुडान घासः- एस.एस-59-3, जी-287, पाईपर, जै-69 

11. दीनानाथ घासः- टाईप-3, 10,15 आई.जी.एफ.आर.आई.-एस 3808, जी-73-1, टी-12 

12. अंजन घासः- पूसा जाइन्ट अंजन, आई.जी.एफ.आर.आई.-एस 3108, 3133, सी-357, 358 

13. सरसों- जापानी रेप, आ एम-98, 100, लाही-100, चाईनीज कैबेज एफ 2-902, 916

चारा बोने व उगाने की तकनीकी  

 दूसरी फसलों की तरह चारे की फसल के लिये अच्छी निकासी वाली उपजाऊ दोमट से लेकर रेतीली परन्तु समतल भूमि अच्छी रहती है। सबसे अधिक मुख्य रूप से चार चीजें पानी, हवा, सूर्य का प्रकाश व अच्छी उपजाऊ भूमि सफल चारा उत्पादन के लिए जरूरी है। पहली तीन जलवायु से सम्बन्ध रखती है जो कि लाभकारी उत्पादन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। सफल व असफल उत्पादन मौसम की अनुकूल व प्रतिकूल दशओं पर निर्भर करता है।

खरीफ में 25 से 350 सेंटीग्रेड तापक्रम फसलों के लिए उपयुक्त माना जाता है। परन्तु क्षेत्र की जलवायु के अनुसार चारे की किस्मों का बोना ही उचित है। मुख्य चारे की फसलें मुख्यतः लाईन में ड्रील, पोरा, केरा विधि से बोई जाती है। परन्तु छोटे आकार के बीज वाली फसलें जैसे बरसीम, रिजका, सरसों, बाजरा आदि बराबर मात्रा में मिट्टी आदि मिलाकर छिट्टा विधि से भी बोते हैं। दूसरी विधि है जड़ों व तनों की कटाई करके जैसे हाथी घास (रोपण समय मार्च से जून तक) 50 से.मी. लम्बा तना लेकर जिसमें 2-3 कली हो आधा भाग जमीन में तथा आधा भाग भूमि के ऊपर रखकर लाईन में गाढ़ कर बोते हैं। 

 खेत में 30 से 40 टन गोबर की खाद (कम्पोस्ट) प्रति हैक्टेयर वर्ष में एक बार डाले। सीड ड्रिल का प्रयोग करके मक्का, ज्वार, बाजरा, ग्वार आदि फसलें बोये। एक दाल व दो दाल वाली चारे की फसलों को मिश्रण में बोये जैसे मक्का़ लोबिया़ ग्वार, बरसीम ़जई सरसों, बरसीम़ लूर्सन ताकि अधिक पैदावार अच्छा पौश्टिक चारों के साथ भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहे। सिंचाई हल्की तथा अन्तिम सिंचाई कटाई से गर्मियों में 5-6 दिन पूर्व कर दें ताकि बची नमी पर अगली फसल बोई जा सके। 

कई कटाई वाली फसलें चक्र में अवष्य रखें जैसे बरसीम, रिजका, मीठा सुडान, हाथी-घास, बाजरा, चरी आदि। परन्तु इनकी कटाई भूमि सतह से 4-5 से.मी. ऊपर से करें ताकि अगली कटाई में शीघ्र फुटवार वा बढ़ोतरी हो। यदि हाथी घास मिश्रण में बोया हो तो इसकी प्रत्येक कटाई विशेषकर गर्मियों में 3 सप्ताह के क्रम में कर लें ताकि दूसरी मिश्रित फसल रिजके आदि को प्रकाश संष्लेशण के लिए पर्याप्त सूर्य की रोषनी मिल सके। यदि बरसीम बोयें तो पहली कटाई में अधिक पैदावार लेने के लिए चाइनीज कैबेज अथवा सरसों अवश्य बोयें। पानी की भरी बाल्टी में बीज डालकर चिकोरी खरपतवार को बरसीम से पहले ही अलग कर दें। कटाई लगातार करते रहे देरी से करने पर विशेषकर मार्च में चने का कैटरपिलर बरसीम में आ जाता है। 

यदि इन्डोसल्फान आदि छिड़काव करना पड़े तो बरसीम को इसके छिड़काव से 15 दिन पूर्व ही काट कर खिला दें। वैसे पेस्टीसाईड अगर न छिड़के तो ही अच्छा रहेगा और बरसीम को तुरन्त काटकर खिला देना चाहिए। अधिक चारा उत्पादन देने वाली प्रमाणिक बीजों को ही बोना चाहिए तथा सन्तुलित उर्वरक एन. पी. के. का प्रयोग करना चाहिए। मानसून घासों की कटाई पर्याप्त पौश्टिकता बने रहने पर करे या हे बनाकर संरक्षित कर लें। मुख्यतः पशुओं को हरा चारा 4 महीने पर्याप्त व 4 महीने आधा सूखा हरा ही पर्याप्त होता हैं। सारे वर्ष हरा चारा खिलाने के लिए साईलेज या हे बनाने का प्रावधान भी रखें।

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