मूंगफली खरीफ की मुख्य फसल है। उत्तर प्रदेश के कई इलाकों के अलावा इसकी खेती गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक में होती है। अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी इसकी खेती प्रमुखता से होने लगी है। इसकी औसत उपज करीब 20 कुंतल प्रति हैक्टेयर है। इसके दानों में 22 से 28 प्रतिशत प्रोटीन, 12 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट एवं 48 से 50 प्रतिशत बसा पाई जाती है। मूंगफली जमीन और किसान दोनों को लाभ पहुंचाने वाली खेती हैं ।
मूंगफली की उन्नत किस्में
मूंगफली किस्में 115 से 130 दिन का समय लेती हैं। चित्रा में एक से दो दाने होते है। उक्त किस्म का उत्पादन 30 कुंतल प्रति हैक्टेयर तक मिलता है। अम्बर दो दाने वाली बंपर उजप वाली किस्म है। इससे 35 से 40 कुंतल तक उपज मिलती है। प्रकाश असिंचित अवस्था वाली किस्म है। उपज 25 कुंतल तक मिलती है। उत्कर्ष, एचएनजी 10, 69 व 123, जीजी 14 व 21, गिरनार 2, टीजी 37 आदि उत्तर प्रदेश के लिए अनेक किस्में हैं। उत्तराखण्ड के लिए वीएल 1, राजस्थान हेतु एचएनजी 10, गिरनार, प्रकाश, उत्कर्ष, टीजी 37, जीजी 14 व 21, एचएनजी 69 व 23, राज 1, टीवीजी 39, प्रताप 1 व दो किस्में हैं। पंजाब हेतु एम 548, गिरनार 2, एचएनजी 10, 69 एवं 123, प्रकाश, टीजी 37, जीजी 14 एवं 21 आदि किस्में हैं। झारखण्ड के लिए बीएयू 13, गिरनार 3, विजेता आदि किस्में हैं।
जमीन की तैयारी
मूंगफली की खेती के लिये अच्छे जल निकास वाली, भुरभुरी दोमट व बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। अच्छी पैदावार के लिए खेतों को कम्प्यटर मांझे से समतल करा लेना चाहिए ताकि खेत के किसी हिस्से में पानी जमा न हो। जमीन में दीमक व विभिन्न प्रकार के कीड़ों से फसल के बचाव हेतु क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टयर की दर से अंतिम जुताई के साथ जमीन में मिला देना चाहिए।
बीज दर
मूंगफली के बीज की मात्रा किसान कम रखते हैं। इससे जल भराव आदि होने पर उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है। बीज की मात्रा उसके दानों के छोटे—बड़े आकार के अनुरूप् रखें। बुवाई प्रायः मानसून शुरू होने के साथ ही हो जाती है। उत्तर भारत में यह समय सामान्य रूप से 15 जून से 15 जुलाई के मध्य का होता है। कम फैलने वाली किस्मों के लिये बीज की मात्रा 75-80 एवं ज्यादा फैल्ने वाली किस्मों के लिये 60-70 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर बीज का उपयोग करना चाहिए।
बोने से 10-15 दिन पहले गिरी को फलियों से अलग कर लेना चाहिए। बीज को बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेण्डिजिम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। दीमक और सफेद लट से बचाव के लिये क्लोरोपायरिफास (20 ई.सी.) का 12.50 मि.ली. प्रति किलो बीज का उपचार बुवाई से पहले कर लेना चाहिए। मूंगफली को कतार में बोना चाहिए। कम फैलने वाली किस्मों के लिये कतारों के मध्य की दूरी 30 से.मी. तथा फैलने वाली किस्मों के लिये 45 से.मी.रखें । पौधों से पौधों की दूरी 15 से. मी. रखनी चाहिए। बीज 5-6 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
उर्वरक प्रबंधन
उर्वरकों का प्रयोग भूमि की किस्म, उसकी उर्वराशक्ति, मूंगफली की किस्म, सिंचाई की सुविधा आदि के अनुसार होता है। मूंगफली दलहन परिवार की तिलहनी फसल होने के नाते इसको सामान्य रूप से नाइट्रोजनधारी उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती, फिर भी हल्की मिट्टी में शुरूआत की बढ़वार के लिये 15-20 किग्रा नाइट्रोजन तथा 50-60 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टर के हिसाब से देना लाभप्रद होता है। अधिक उत्पादन के लिए अंतिम जुताई से पूर्व भूमि में 250 कि.ग्रा.जिप्सम प्रति हैक्टर के हिसाब से मिला देना चाहिए। नीम की खल के प्रयोग का मूंगफली के उत्पादन में अच्छा प्रभाव पड़ता है। अंतिम जुताई के समय 400 कि.ग्रा. नीम खल जुताई में मिलाना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन
इसमें सिंचाई की जरूरत बरसाती सीजन होने के नाते नहीं पड़ती। यदि पौधों में फूल आते समय सूखे की स्थिति हो तो उस समय सिंचाई करना जरूरी है। फलियों के विकास एवं गिरी बनने के समय भी भूमि में पर्याप्त नमी जरूरी है। मूंगफली की फलियों का विकास जमीन के अन्दर गुच्छोें में होता है। अतः खेत में बहुत समय तक जल भराव न रहे।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण हर फसल के उत्पादन पर बेहद असर डालता है चूंकि यदि खेत में खरपतवार बने रहते हैं तो वह पौधे के हिस्से की खराक चट कर जाते हैं और मुख्य फसल कमजोर रह जाती है। इनसे बचाव के लिए कम से कम दो बार निराई गुड़ाई करें। पहली फूल आने के समय दूसरी बार 2-3 सप्ताह बाद। जिन खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या हो तो बुवाई के 2 दिन बाद तक पेन्डीमेथालिन नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
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