Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

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आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उपज देने वाली आलू की किस्मों की समय से बोआई संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग समुचित कीटनाशक उचित जल प्रबंधन के जरिये आलू का अधिक उत्पादन कर अपनी आय बढ़ाई जा सकती है।

आलू एक प्रमुख नगदी फसल है। प्रत्येक परिवार में यह किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है। इसमें स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन-सी एवं खनिज लवण भरपूर मात्रा में विघमान रहते हैं। बतादें, कि अत्यधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों की समय से बुवाई, संतुलित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल, समुचित कीटनाशक, बेहतर जल प्रबंधन के माध्यम से आलू की ज्यादा पैदावार कर अपनी आमदनी बढ़ाई जा सकती है।

आलू की खेती के लिए मृदा एवं किस्में

आलू की खेती के लिए जीवांश की भरपूर मात्रा से युक्त दोमट एवं बलुई दोमट मृदा को उपयुक्त माना जाता है। मध्य समय की प्रजातियां – कुफरी लालिमा, कुफरी बहार, कुफरी पुखराज, कुफरी अरुण इत्यादि को नवंबर के पहले सप्ताह में बुवाई करने से अच्छी पैदावार होती है। विलंभ से बोने के लिए कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा और कुफरी बादशाह आदि की नवंबर के आखिरी सप्ताह तक बुवाई जरूर कर देनी चाहिए।

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आलू की बुवाई एवं खेत की तैयारी इस प्रकार करें

आलू एक शीतकालीन फसल है। इसके जमाव और शुरू की बढ़वार के लिए 22 से 24 डिग्री सेल्सियस और कंद के विकास के लिए 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। खेत की तैयारी हेतु तीन से चार गहरी जुताई करके मृदा को बेहतर तरीके से भुरभुरी बना लें और बुवाई से पूर्व प्रति एकड़ 55 किलो यूरिया, 87 किलो डीएपी अथवा 250 किलो सिंगल सुपर फास्फेट व 80 किलो एमओपी को मृदा में मिला दें।

आलू की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद का उपयोग

आज हम आपको आलू की खेती में खाद के विषय में जानकारी देंगे। आलू की बुवाई के 30 दिन पश्चात 45 किलो यूरिया खेत में डाल दें। खेत की तैयारी के दौरान 100 किलो जिप्सम प्रति एकड़ उपयोग करने से परिणाम मिलते हैं। शीतगृह से आलू निकालकर सात-आठ दिन छाया में रखने के पश्चात ही बोआई करें। अगर आलू आकार में बड़े हों तो उन्हें काटकर बुवाई करें। परंतु, आलू के प्रत्येक टुकड़े का वजन 35-40 ग्राम के आसपास रहे। प्रत्येक टुकड़े में कम से कम 2 स्वस्थ आंखें होनी चाहिए। इस तरह प्रति एकड़ के लिए 10 से 12 क्विंटल कंद की जरूरत पड़ेगी।

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बुवाई से पूर्व कंद को तीन फीसद बोरिक एसिड अथवा पेंसीकुरान (मानसेरिन), 250मिली/आठ क्विंटल कंद या पेनफ्लूफेन (इमेस्टो), 100 मिली/10 क्विंटल कंद की दर से बीज का उपचार करके ही बुवाई करें। बुवाई के दौरान खेत में पर्याप्त नमी रखें। एक पंक्ति की दूसरी पंक्ति 50 से 60 सेमी के फासले पर रखें। कंद से कंद 15 सेमी की दूरी पर बोएं। आलू की बुवाई के 7 से 10 दिन के पश्चात हल्की सिंचाई कर दें। खरपतवार नियंत्रण के दो से चार पत्ती आने पर मेट्रिब्यूजीन 70 प्रतिशत, डब्ल्यूपी 100 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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