वनों से प्राप्त होने वाले उत्पाद और भारतीय वनों का वर्गीकरण (Classification of Indian Forests & Forest Produce)
प्राकृतिक वनस्पतियों में विविधता के मामले में भारत विश्व के कुछ गिनती के देशों में शामिल है। हिमालय की ऊंचाइयों से लेकर पश्चिमी घाट और अंडमान तथा निकोबार दीप समूह पर पाई जाने वाली वनस्पतियां भारत के लोगों को अच्छा वातावरण उपलब्ध करवाने के अलावा कई प्रकार के फायदे पहुंचाती है। भारत में पाए जाने वाले जंगल भी इन्हीं वनस्पतियों की विविधताओं के हिस्से हैं।
क्या होते हैं जंगल/वन (Forest) ?
एक परिपूर्ण और बड़े आक्षेप में बात करें तो मैदानी भागों या हिल (Hill) वाले इलाकों में बड़े क्षेत्र पर, पेड़ों की घनी आबादी को जंगल कहा जाता है।
दक्षिण भारत में पाए जाने वाले जंगलों से, उत्तर भारत में मिलने वाले जंगल और पश्चिम भारत के जंगल में अलग तरह की विविधताएं देखी जाती है।
ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती ही सबसे श्रेयस्कर : ‘सूरत मॉडल’
भारत में पाए जाने वाले जंगलों के प्रकार :
जलवायु एवं अलग प्रकार की वनस्पतियों के आधार पर भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान (Forest Survey of India – FSI) के द्वारा भारतीय वनों को 5 भागों में बांटा गया है :
-
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forest) :
सामान्यतः भारत के दक्षिणी हिस्से में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन उत्तरी पूर्वी राज्य जैसे असम और अरुणाचल प्रदेश में भी फैले हुए हैं।
इस प्रकार के वनों के विकास के लिए वार्षिक वर्षा स्तर 200 सेंटीमीटर से अधिक होना चाहिए और वार्षिक तापमान लगभग 22 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।
इस प्रकार के वनों में पाए जाने वाले पौधे लंबी उचाई तक बढ़ते हैं और लगभग 60 मीटर तक की ऊंचाई प्राप्त कर सकते हैं।
इन वनों में पाए जाने वाले पेड़ पौधे वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं और इनकी पत्तियां टूटती नहीं है, इसीलिए इन्हें सदाबहार वन कहा जाता है।
भारत में पाए जाने वाले सदाबहार वनों में रोजवुड (Rosewood), महोगनी (Mahogany) और ईबोनी (ebony) जैसे पेड़ों को शामिल किया जा सकता है। उत्तरी पूर्वी भारत में पाए जाने वाले चीड़ (Pine) के पेड़ भी सदाबहार वनों की विविधता के ही एक उदाहरण हैं।
-
उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous Forest) :
भारत के कुल क्षेत्र में इस प्रकार के वनों की संख्या सर्वाधिक है, इन्हें मानसून वन भी कहा जाता है। इस प्रकार के वनों के विकास के लिए वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेंटीमीटर के बीच में होनी चाहिए।
पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के कुछ इलाकों के अलावा उड़ीसा और हिमालय जैसे राज्यों में पाए जाने वाले वनों में, शीशम, महुआ तथा आंवला जैसे पेड़ों को शामिल किया जाता है। पर्णपाती वन उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं, जिनमें तेंदू, पलाश तथा अमलतास और बिल्व तथा खैर के पेड़ों को शामिल किया जा सकता है।
इस प्रकार के वनों में पाए जाने वाले पेड़ों की एक और खास बात यह होती है, कि मानसून आने से पहले यह पेड़ अपनी पत्तियों को गिरा देते हैं और जमीन में बचे सीमित पानी के इस्तेमाल से अपने आप को जीवित रखने की कोशिश करते हैं, इसीलिए इन्हें पतझड़ वन भी कहा जाता है।
-
उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन (Tropical Thorn Forest) :
50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगने वाले कांटेदार वनों को सामान्यतः वनों की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि इनमें घास और छोटी कंटीली झाड़ियां ज्यादा होती है।
पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तथा गुजरात के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इन वनों को देखा जाता है। बबूल पेड़ और नीम तथा खेजड़ी के पौधे इस श्रेणी में शामिल किए जा सकते हैं।
-
पर्वतीय वन (Montane Forest) :
हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर उगने में सहज होते हैं, इसके अलावा दक्षिण में पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के कुछ इलाकों में भी यह वन पाए जाते हैं।
वनीय विज्ञान के वर्गीकरण के अनुसार इन वनों को टुंड्रा (Tundra) और ताइगा (Taiga) कैटेगरी में बांटा जाता है।
1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले यह पर्वतीय जंगल, पश्चिमी बंगाल और उत्तराखंड के अलावा तमिलनाडु और केरल में भी देखने को मिलते हैं।
देवदार (Cedrus Deodara) के पेड़ इस प्रकार के वनों का एक अनूठा उदाहरण है। देवदार के पेड़ केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही देखने को मिलते हैं। देवदार के पेड़ों का इस्तेमाल विनिर्माण कार्यों में किया जाता है।
विंध्या पर्वत और नीलगिरी की पहाड़ियों में उगने वाले पर्वतीय वनों को ‘शोला‘ नाम से जाना जाता है।
-
तटीय एवं दलदली वन (Littoral and Swamp Forest) :
वेटलैंड वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन उड़ीसा की चिल्का झील (Chilka Lake) और भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पार्क के आस पास के क्षेत्रों के अलावा सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र और राजस्थान, गुजरात और कच्छ की खाड़ी के आसपास काफी संख्या में पाए जाते हैं।
यदि बात करें इन वनों की विविधता की तो भारत में विश्व के लगभग 7% दलदली वन पाए जाते है, इन्हें मैंग्रोव वन (Mangrove forest) भी कहा जाता है।
वर्तमान समय में भारत में वनों की स्थिति :
भारतीय वन सर्वेक्षण के द्वारा जारी की गयी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 (Forest Survey of India – STATE OF FOREST REPORT 2021) के अनुसार, साल 2019 की तुलना में भारतीय वनों की संख्या में 1500 स्क्वायर किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है और वर्तमान में भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 21.67 प्रतिशत क्षेत्र में वन पाए जाते हैं। “इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021” से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें।
मध्य प्रदेश राज्य फॉरेस्ट कवर के मामले में भारत में पहले स्थान पर है।
पर्यावरण के लिए एक बेहतर विकल्प उपलब्ध करवाने वाले वन क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में सहयोग के अलावा किसानों के लिए भी उपयोगी साबित हो सकते है।
ये भी पढ़ें: कम उर्वरा शक्ति से बेहतर उत्पादन की तरफ बढ़ती हमारी मिट्टी
किसानों को वनों से मिलने वाले फायदे :
कृषि और वनों के सहयोग से मिलने वाले फायदों को कृषि वानिकी (Agroforestry) की श्रेणी में शामिल किया जाता है।
जंगलों में उगने वाले पेड़ों से मिलने वाले फायदे निम्न प्रकार के हैं :
- अलग-अलग और बहुउद्देशीय वृक्षों से किसान भाइयों को दैनिक प्रयोग के लिए इंधन और पशुओं के लिए चारा तथा फलियां प्राप्त हो सकती हैं।
- कृषि वानिकी की मदद से मृदा अपरदन (Soil Erosion) को रोका जा सकता है। यदि आप के खेत के आसपास काफी पेड़ उगे हुए हैं तो भूमि के कटाव से मिट्टी को आसानी से बचाया जा सकता है, जिससे मृदा की उर्वरता भी बरकरार रहती है।
- कृषि वानिकी का एक और फायदा यह है कि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में यदि सूखे की स्थिति आए, तो साथ में उगे हुए पेड़ों से कुछ ना कुछ उत्पाद प्राप्त करके काम चलाया जा सकता है।
कृषि वानिकी की मदद से मिलने वाले इन अप्रत्यक्ष फायदों के अलावा वनीय क्षेत्रों में रहने वाले कई किसान भाई जंगलों से प्राप्त होने वाले उत्पादों को सीधे ही बाजार में बेचकर भी मुनाफा कमा रहे है, इस प्रकार प्राप्त उत्पादों को लघु वनोपज (Minor forest product) बोला जाता है।
ये भी पढ़ें: Natural Farming: प्राकृतिक खेती में छिपे जल-जंगल-जमीन संग इंसान की सेहत से जुड़े इतने सारे राज
वनों से प्राप्त होने वाले लघु वनोपज (माइनर फॉरेस्ट प्रोडक्ट) :
वनीय क्षेत्रों में रहने वाले किसानों से जुड़ी सरकारी संस्था त्रिफेद यानि ‘भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ‘ (‘TRIFED’ – Tribal Co-Operative Marketing Development Federation of India Limited) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 10 करोड़ किसान जीवन यापन करने के लिए वनों में स्थित पेड़ों से सीधे उत्पाद प्राप्त कर मार्केट में बेच रहे हैं।
ऐसे ही कुछ उत्पाद निम्न प्रकार है :-
-
इमली (Tamarind) :
उत्तरी पूर्वी भारत के कुछ स्थानों एवं दक्षिणी भारत के वन्य क्षेत्रों में पाए जाने वाला इमली का पेड़ स्थानीय किसानों के द्वारा लघु वनोपज के रूप में इस्तेमाल किए जाते है। विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करने वाली इमली कि लगभग दो लाख मीट्रिक टन से ज्यादा की उपज भारत के वन्य क्षेत्रों से प्राप्त की जाती है।
-
महुआ के फल :
उष्णकटिबंधीय जंगलों में पाए जाने वाला महुआ उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में स्थित वनों से प्राप्त किया जाता है।
इस वृक्ष की खास बात यह है कि यह काफी तेजी से बढ़ता है और सदाबहार वनों की श्रेणी में आने की वजह से पूरे वर्ष भर इसके पेड़ से महुआ का उत्पादन किया जा सकता है।
-
तेंदू की पत्तियां :
भारत के पूर्वी राज्यों में कुछ वनीय क्षेत्र और तमिलनाडु के कोरोमंडल तट के जंगली क्षेत्रों में उगने वाला तेंदू का यह पौधा भारत और श्रीलंका के कुछ क्षेत्रों में पाया जाता है।
इस पौधे की पत्तियों को तोड़कर बीड़ी के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है।
ट्राईफेड की एक रिपोर्ट के अनुसार वनों के आसपास रहने वाले किसानों में से लगभग 70% किसान जंगलों से तेंदू की पत्तियां तोड़ वर्तमान में बेच रहे हैं।
-
बांस (Bamboo) :
पृथ्वी पर सबसे तेजी से बढ़ने वाला यह पेड़, हिमालय से सटे हुए उत्तरी और उत्तरी पूर्वी राज्यों के वनों में पाया जाता है।
असम राज्य भारत में उगाए जाने वाले बांस में पहला स्थान रखता है।
बोडोलैंड क्षेत्र के कई किसान भाई पेड़ों से प्राप्त बांस से अपना जीवन यापन कर रहे है।
-
चिरौंजी सूखा मेवा :
मीठे व्यंजनों में मिठाई में इस्तेमाल होने वाले इस ड्राई फ्रूट का आकार दाल के दानों के जैसा होता है। कई पोषक तत्व वाला चिरौंजी सर्दी-जुकाम और सिरदर्द में आराम और पाचन को बेहतर बनाने में लाभदायक साबित होता है।
दूसरे ड्राई फ्रूट की तुलना में चिरौंजी को पेड़ों से बहुत ही आसान विधि से प्राप्त किया जा सकता है और कुछ दिन धूप में सुखाने के बाद बाजार में बेचा जा रहा है।
-
जंगली शहद (Wild honey) :
पिछले 2 से 3 सालों में झारखंड के पलामू बाघ अभ्यारण के आसपास स्थित किसानों की मेहनत की वजह से जंगली शहद की उत्पादकता में काफी बड़े स्तर पर बढ़ोतरी हुई है।
केवल 240 रुपए प्रति किलो की लागत में तैयार होने वाला यह जंगली शहद वर्तमान में 400 रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में बेचा जा रहा है।
ट्राईफेड और दूसरी सरकारी संस्थाओं के सहयोग से इस प्रकार तैयार शहद की पैकेजिंग करके कई ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर भी बेचा जाता है।
ये भी पढ़ें: Natural Farming: प्राकृतिक खेती के लिए ये है मोदी सरकार का प्लान
2015 के बाद पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (Public-Private Partnership) की पॉलिसी अपनाने वाली भारतीय सरकार भी इन जंगलों में रहने वाले किसानों और जनजातीय लोगों को अलग-अलग योजनाओं के तहत कई तरह के लाभ उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा समय-समय पर सरकार लघु वनोपज की श्रेणी में आने वाले वन्य उत्पादों की संख्या लगातार बढ़ा रही है, जिससे इन क्षेत्रों में रहने वाली किसान भाई बिना किसी कानूनी समस्या के अपना जीवन यापन कर अच्छा मुनाफा कमा सकें।
आशा करते हैं हमारे किसान भाइयों को merikheti.com के द्वारा भारत में पाए जाने वाले वनों की इस श्रेणीवार वर्गीकरण के बारे में जानकारी पसंद आई होगी। आशा करते है हमारे किसान भाई भविष्य में भी जंगलों के महत्व को समझते हुए कृषि में अच्छी उन्नति कर पाएंगे।