Brinjal Farming: बैंगन की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी

By: Merikheti
Published on: 04-Nov-2023

कृषक भाई बैंगन का उत्पादन करके काफी शानदार मुनाफा उठा सकते हैं। इसके लिए उनको कुछ विशेष बातों का ख्याल अवश्य रखना पड़ेगा। बैंगन में लौह, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन ए-बी-सी भी होते हैं। बैंगन की मुख्य तौर पर सब्जी के लिए खेती की जाती है। बतादें कि इन उन्नत वैज्ञानिक क्रियाओं के साथ फसल की जाती है, तो बेहतर उत्पादन मिलता है। किसान इससे काफी अच्छा लाभ कमाते हैं। बैंगन का एक वर्ष में तीन बार सेवन किया जा सकता है। नर्सरी तैयार करने के लिए जून-जुलाई एवं रोपाई के लिए जुलाई-अगस्त बिल्कुल उपयुक्त महीने हैं। बैंगन की फसल को समुचित जल निकासी एवं बलुई दोमट मृदा चाहिए।

बैंगन का खेत तैयार करना

खेत की प्रथम जुताई मृदा पलटने वाले हल से करनी चाहिए। उसके पश्चात 3-4 बार हैरो अथवा देशी हल चलाकर पाटा लगाएं। रोपाई से दस से पंद्रह दिन पूर्व खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद मिश्रित करनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 120 ग्राम नत्रजन, 60 ग्राम फास्फोरस एवं 80 ग्राम पोटाश मिलाकर आखिरी जुताई में आधी नत्रजन, पूरी फास्फोरस एवं पोटाश मिलानी चाहिए।

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बैंगन उत्पादन के लिए नर्सरी बनाना अत्यंत आवश्यक

बतादें, कि एक हेक्टेयर बैंगन की फसल के लिए 400-500 ग्राम बीज और संकर प्रजातियों का 300 ग्राम बीज उपयुक्त माना जाता है। बुवाई से पूर्व बीज का ट्राइकोडरमा से उपचार करें। जहां नर्सरी तैयार है, उस जगह बेहतर ढ़ंग से खुदाई करें। खरपतवारों को निकालकर सड़ी हुई गोबर की खाद को डालनी चाहिए, ताकि जिससे जमीन में जीवांश पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहें। 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडमर प्रति वर्ग मीटर में मिलाकर भूमि जनित रोगों को मार डालें। 15 से 20 क्यारियां (एक मीटर चौड़ी और तीन मीटर लंबी) पौध तैयार करने के लिए निर्मित की गईं। बीज को पांच सेमी के फासले पर एक सेमी की गहराई पर पंक्तिबद्ध तरीके से बुवाई करें।

बैंगन की तुड़ाई तथा उत्पत्ति

फल को उस वक्त तोड़ना चाहिए जब वह पूर्ण आकार और रंग प्राप्त कर लें। बैंगन की पैदावार मौसम एवं प्रजाति पर निर्भर करती है। दरअसल, 250-500 कुंतल प्रति हेक्टेयर का औसत उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

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बैंगन का रोपण

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 12-15 सेमी लंबी चार पत्तियों वाली पौध रोपाई के लिए उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही, शाम के समय रोपाई करनी चाहिए। पौधे से 60 गुणा 60 सेमी का फासला रखना चाहिए। रोपाई करने के पश्चात हल्की बारिश करें। फसल की प्रत्येक 12-15 दिन में सिंचाई करते रहनी चाहिए। फसल की समाप्ति से पूर्व निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।

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