पांच वर्षों में विकसित होंगे 200 ‘नगर वन’

Published on: 06-Jun-2020

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सरकार ने आज वन विभाग, नगर निकायों, गैर सरकारी संगठनों, कॉर्पोरेट्स और स्‍थानीय नागरिकों के बीच भागीदारी और सहयोग पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करते हुए अगले पांच वर्षों में देश भर में 200 शहरी वन विकसित करने के लिए नगर वन योजना के कार्यान्वयन की घोषणा की।विश्व पर्यावरण दिवस (डब्‍ल्‍यूईडी) हर साल 5 जून को मनाया जाता है।पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा घोषित थीम पर ध्यान केंद्रित करते हुए डब्‍ल्‍यूईडीमनाता है और कई कार्यक्रम आयोजित करता है। इस वर्ष का विषय 'जैव विविधता' है। 

कोविड-19 महामारी के कारण जारी हालात के मद्देनजर मंत्रालय ने इस वर्ष के थीम नगर वन (शहरी वन) पर ध्यान केंद्रित करते हुए विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन वर्चुअल रूप से किया। शहरी वनों पर सर्वोत्तम प्रथाओं पर एक विवरणिका का विमोचन और नगर वन योजना की घोषणा करते हुएकेंद्रीय पर्यावरण मंत्रीश्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि ये वन शहरों के फेफड़ों के रूप में काम करेंगे और मुख्य रूप से शहर की वन भूमि पर या स्थानीय शहरी निकायों द्वारा प्रस्तावित किसी अन्य खाली जगह पर होंगे। 

इस वर्ष के थीम अर्थातजैव विविधता पर विशेष ध्यान देने के साथ "टाइम फॉर नेचर" पर जोर देते हुएश्री जावड़ेकर ने कहा, "प्रधान नियम यह है कि यदि हम प्रकृति की रक्षा करते हैं, तो प्रकृति हमारी रक्षा करती है"। पर्यावरण दिवस समारोह के दौरान आज एक फिल्म प्रदर्शित की गई, जिसमें दिखाया गया कि वन विभाग और स्थानीय निकाय के साथ मिलकर की गई पुणेवासियों की पहल ने 16.8 हेक्टेयर बंजर पहाड़ी क्षेत्र को हरे-भरे जंगलों में बदल दिया। आज, यह जंगल पौधों की 23 प्रजातियों, 29 पक्षी प्रजातियों, 15 तितली प्रजातियों, 10 सरीसृप प्रजातियों और 3 स्तनपायी प्रजातियों के साथ जैव विविधता से समृद्ध है। 

यह शहरी वन परियोजना अब पर्यावरण और सामाजिक आवश्यकताओं दोनों की पूर्ति करते हुए पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में मदद कर रही है। वारजे शहरी वन अब देश के बाकी हिस्सों के लिए एक रोल मॉडल है। इस वर्ष के फोकस जैव विविधता पर जोर देते हुए पर्यावरण मंत्री ने कहा, “भारत में दुनिया का केवल 2.5 प्रतिशत भूखंड होने, उस पर मानव आबादी का 16 प्रतिशत होनेके साथ-साथ मवेशियों की आबादी और केवल 4 प्रतिशत ताजा जल स्रोत होने जैसे अनेक अवरोधों के बावजूद, दुनिया की 8 प्रतिशत जैव विविधता विद्यमान है;हमारे पास जो विशाल जैव विविधता है, वह प्रकृति के साथ तालमेल बैठाने वाले भारतीय लोकाचारों का परिणाम है।”

भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डालते हुएश्री जावड़ेकर ने कहा कि “भारत संभवतः एकमात्र ऐसा देश है जहां पेड़ों की पूजा की जाती है, जहां जानवरों, पक्षियों और सरीसृपों की पूजा कीजाती है और यह पर्यावरण के लिए भारतीय समाज का सम्मान है। उन्‍होंने कहा कि हमारे पास युगों से गांव के जंगल की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा हुआ करती थी, अब शहरी वन संबंधी इस नई योजना से इस खाई को भरा जा सकेगा क्योंकि शहरी क्षेत्रों में उद्यान तो हैं लेकिन जंगल बहुत ही कम हैं; शहरी वन बनाने की इस गतिविधि के साथ हम अतिरिक्त कार्बन सिंक भी तैयार करेंगे। 

इस अवसर पर मौजूद केंद्रीय राज्य मंत्री श्री बाबुल सुप्रियो ने कहा कि वृक्षारोपण और मृदा नमी संरक्षण एक मुख्य रणनीति के रूप में देश में जैव विविधता संरक्षण की दिशा में काम करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नदी के घाटों पर मिट्टी के क्षरण, गाद और पानी के कम प्रवाह की समस्याओं को दूर करने के लिए सभी को सामूहिक रूप से काम करना होगा। इस कार्यक्रम में मरुस्थलीकरण रोकथाम संयुक्‍त राष्‍ट्र अभिसमय(यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन-यूएनसीसीडी) केकार्यकारी निदेशक, श्री इब्राहिम थियाव और संयुक्‍त राष्‍ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की कार्यकारी निदेशक सुश्री इंगेर एंडरसन ने भी वर्चुअल रूप से भागीदारी की। 

यूएनसीसीडी के कार्यकारी निदेशक, श्री थियाव ने कहा कि "क्या अब समय नहीं आ गया हैकि हमें इस बात का एहसास हो कि यदि प्रकृति को हमारी जरूरत है भी, तो भी उससे कहीं ज्यादा हमें प्रकृति की जरूरत है। क्या अब समय नहीं आ गया हैकि हममें इतनी विनम्रता हो कि हम प्रकृति के साथ अपने संबंधों के बारे में नए सिरे से सोचे और उन्‍हें पुनर्परिभाषित करें। शायद अब समय आ गया है कि मानवता प्रकृति के लिए एक नया सामाजिक अनुबंध करे।” इस वर्ष के थीम पर जोर देते हुए सुश्री एंडरसन ने कहा कि प्रकृति के लिए क्रियाओं का आशय - भविष्य में महामारियों का कम जोखिम, सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करना, जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करना, स्वस्थ जीवन, बेहतर अर्थव्यवस्थाएं, ताजी हवा में सांस लेना या अपने आप में जीवन की रक्षा करने वाले जंगलों में विचरण करना है।

कोविड के बाद की दुनिया मेंहमें बेहतर निर्माण करने की आवश्यकता है, हमें खुद को बचाने के लिए ग्रह की रक्षा करने की आवश्यकता है। इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र सरकार के वनमंत्री श्री संजय राठौड़, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में नवनियुक्त सचिव श्री आरपी गुप्ता, महानिदेशक वन और विशेष सचिवश्री संजय कुमार, पर्सिस्टन्ट सिस्‍टम के आनंद देशपांडे और टीईआरआरई पॉलिसी सेंटर, पुणे की निदेशकडॉ. विनीता आप्टेने भी भाग लिया और अपने विचारों को साझा किया। 

 भारत पशुओं और पौधों की कई प्रजातियों से समृद्ध जैव विविधता से संपन्न है और जैव-विविधता से युक्‍त 35 वैश्विक हॉटस्पॉट्स में से 4 का मेजबान है, जिनमें अनेक स्थानिक प्रजातियां मौजूदहै। हालांकिबढ़ती जनसंख्या, वनों की कटाई, शहरीकरण और औद्योगीकरण ने हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव डाल दिया है, जिससे जैव विविधता की हानि हो रही है। जैव विविधता इस ग्रह पर सभी जीवन रूपों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है और विभिन्न पारिस्थितिकीय सेवाएं प्रदान करने की कुंजी है। पारंपरिक रूप से जैव विविधता संरक्षण को दूरस्थ वन क्षेत्रों तक ही सीमित माना जाता रहा है, लेकिन बढ़ते शहरीकरण के साथ शहरी क्षेत्रों में भी जैव विविधता को सुरक्षित रखने और बचाने के लिए आवश्यकता उत्पन्न हो गई है। शहरी वन इस अंतर को मिटाने का सबसे अच्छा तरीका है।

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