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सीखें नादेप विधि से खाद बनाना

Published on: 22-Jun-2020

खाद कई तरीके से बनाया जाता है। इनमें से एक विधि है नादेप विधि। इस विधि का जन्मदाता महाराष्ट्र के नारायण देव राव पंढरी पांडे नामक किसान को माना जाता है। इस विधि में 75 किलोग्राम वनस्पति अवशेष फूल पत्ती आदि, 20 किलोग्राम हरी घास , 5 किलोग्राम गोबर, इसके अलावा 200 लीटर पानी में डालकर इसे अच्छे से मिलाया जाता है।इस विधि में 12 फीट लंबा 5 फीट चौड़ा एवं 3 फीट गहरा गड्ढा बनाया जाता है । इस टैंक में तल से 1 फीट ऊंचाई के बाद दीवार की प्रत्येक ईंट के बाद में करीब आधा इंच का स्थान छोड़कर चला जाती है ताकि निर्मित टेंट में वायु प्रवेश के लिए अवस्था बनी रहे।

जालीदार टैंक की अंदरूनी दीवाल को पतले गोबर से लीप दिया जाता है। इसमें पहली परत जैविक पदार्थों की बनाई जाती है। उसके बाद वनस्पतिक पदार्थ , इसके बाद करीब 4 किलोग्राम गोबर 100 लीटर पानी में घोल कर डाला जाता है। सबसे ऊपर मिट्टी की एक परत बना दी जाती है। किशन भाई साधारण भाषा में समझे तो टैंक में नीचे की परत चढ़े हुए गोबर की खाद की हो सकती है। 

इसके बाद पेड़ पौधों के जुड़े हुए पत्ते दबा दबा कर डाले जाते हैं।इसके ऊपर पानी और गोबर का घोल डाल दिया जाता है ताकि पत्तों को सड़ने में आसानी रहे। सबसे ऊपर मिट्टी की परत इसलिए बनाई जाती है ताकि नीचे गैस बनती रहे पत्ते जल्दी सड जाएं। इसी तरह से प्रत्येक टैंक में 10 से 12 परत बनती हैं टैंक के संपूर्ण भरने के बाद भी ढेर के रूप में टैंक के ऊपर तक नारियल रखा जाता है।

अंतिम परत को गोबर मिट्टी से ठीक से ढ़क दिया जाता है। 15 दिन से लेकर 1 महीने के भीतर सभी पदार्थ सड़ जाते हैं और टैंक तकरीबन 2 फिट नीचे धंस जाता है। इस टैंक में इसी तरीके से लगातार खाद बनाकर निकाली जाती है। यह क्रम पूरे साल चलता है। जरूरत पड़ने पर 1 हफ्ते से 15 दिन के अंतराल पर टैंक के ऊपर पानी का छिड़काव किया जाता है ताकि अंदर नमी बनी रहे और पत्तियां आदि सडने में आसानी रहे। वैज्ञानिकों ने इस विधि को अनुसंधान कर और आसान बना दिया है। इसमें वह 20% वानस्पतिक पदार्थ और चूल्हे की राख, 50% गोवर एवं 30% खेत की मिट्टी रखी जाती है। इस विधि से तैयार खाट बेहद फरवरी और पौष्टिक होती है। नर्सरी तैयार करने में यह खाट सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

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