कोरोना वायरस ने दूध की खपत को काफी कम कर दिया है। मावा, मिठाई और आइस्क्रीम में होने वाली खपत बंद है। चाय-कॉफ़ी में भी होटल, ढाबे और रेस्टोरेंट में दूध का उपयोग नहीं हो रहा है। दूध में मुनाफा खत्म हो गया है। लाभ की दृष्टि से कच्चे काम वाले दूध की सीधी बिकवाली के अलावा उसके प्रसंस्करण का काम तमाम हो गया है। दूध की खपत में 30 फीसदी से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है।
मिठाई बनाने वाले बड़े बड़े निर्माताओं को कारखाने बंद पड़े हैं। दूध से स्किम्ड मिल्क बनने का काम भी ठप हो चुका है। घरों में दूध की मांग लॉकडाउन के चलते बढ़ी है लेकिन इसके बाद भी दूध मारा मारा फिर रहा है। सहकारी और निजी दुग्ध उत्पादक संघों ने 6.5 फैट वाले जिस दूध की कीमत 48 रुपए लीटर थी वह अब घटकर 34 पर आ गई है। खुदरा बाजार में डेयरी संचालक अभी दूध की कीमतें गिराने को तैयार नहीं हैं लेकिन दूध के कारोबार में हाहाकार मचा है। डेयरियों पर दूध की खरीद नहीं है। इधर गांवों में अभी भी दूध 35 से 38 रुपए प्रति लीटर ही कढ़ाया जा रहा है।
यह हालत देश के दूरदराज के इलाकों में है क्योंकि देशव्यापी लॉकडाउन के कारण परिवहन सेवाएं बंद होने से निजी और सहकारी दुग्ध कंपनियां किसानों से दूध नहीं खरीद पा रही हैं। देश के प्रमुख दुग्ध उत्पादन राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और तमिलनाडु में कोविड-19 के पैर पसारने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। दूध का उत्पादन तो जारी है लेकिन खपत में कमी के कारण किसान आगामी सीजन के लिए निवेश से परहेज कर सकते हैं। दुनिया भर में लॉकडाउन के कारण निर्यात प्रभावित होने से स्किम्ड मिल्क पाउडर की कीमतों में भी गिरावट आई है लेकिन घरों में घी, मक्खन और दूध की खपत बढ़ी है।'
प्रशासन की अपनी दिक्कत है। कई डेयरी संचालक न तो सोस्यल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं और न ही मास्क आदि का प्रयोग कर रहे हैं। होना तो यह चाहिए कि दुकानों पर ग्राहकों को हाथ धोने के लिए सेनेटाइजर, लाल दवा, डिटौल आदि के घोल का इंतजाम प्रशासन को आवश्यक कराना चाहिए। ग्राहकों को भी ज्यादा भीड़ भाड़ वाली दुकानों की बजाय कम भीड़ वाली दूकानों से समान लेना चाहिए। दुकानदार और ग्राहक दोनों के लिए कोराना से बचाव हेतु सख्ती से बचाव के उपाय के पालन की दिशा में निर्देश जारी करने चाहिए।