भिंड़ी की खेती को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीट एवं रोग

Published on: 11-May-2024

भारतीय किसान गेहूं कटाई के पश्चात अतिरिक्त आय करने के लिए सब्जियों की खेती करते हैं। इनमें सबसे ज्यादा खीरा, तोरई, बैंगन और भिंडी जैसी अन्य सब्जियों को उगाने में प्राथमिकता प्रदान करते हैं। लेकिन, भीषण गर्मी और निरंतर बढ़ते तापमान से सब्जियों की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग घेर लेते हैं। 

अगर हम गर्मी और बढ़ते तापमान से भिंडी की फसल को प्रभावित करने वाले रोगों की बात करें, तो इसमें चूर्णिल फफूंद रोग, पीला मोजैक, फल छेदक और कटुआ कीट इसकी फसल को बड़ी हानि पहुंचाते हैं। 

यदि इन पर समय से काबू नहीं किया गया, तो इससे पूरी फसल पूर्णतय बर्बाद हो सकती है। कम समयावधि में शानदार कमाई करने के लिए भिंडी की फसल काफी लाभदायक हो सकती है। परंतु, इसकी फसल में लगने वाले रोगों को काबू में रखना अत्यंत आवश्यक है। 

1. चूर्णिल फफूंद रोग

चूर्णिल फफूंद रोग का प्रभाव सूखे मौसम में पत्तियों पर होता है। भिंडी की फसल में इस रोग के लगने से पत्तियों पर सफेद रंग की परत जमनी प्रारंभ हो जाती है। 

साथ ही, पत्तियां धीरे-धीरे नीचे गिरने लग जाती हैं। इस रोग के संक्रमण के पश्चात टेढ़े-मेढ़े फल बनना शुरू हो जाते हैं। चूर्णिल फफूंद रोग को नियंत्रण में रखने के लिए प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम सल्फर पाउडर को घोल कर खेतों में इसके मिश्रण का स्प्रे करना चाहिए। 

इसके अतिरिक्त आप इस रोग पर नियंत्रण करने के लिए प्रति लीटर पानी में 6ml कैराथीन को घोलकर भिंडी की फसल पर छिड़काव कर सकते हैं।

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2. पीला मोजैक रोग

भिंडी की फसल में पीला मोजैक रोग सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है। इस रोग के चलते पत्तियों की शिराएं पीली पड़ने लग जाती हैं। 

यह रोग भिंडी की फसल में लगने के बाद फल के साथ-साथ पूरे पौधे को पीला कर देता है। किसान पीला मोजैक रोग से भिंडी की फसल को काबू में रखने के लिए प्रति लीटर पानी में 2ml इमिडाक्लोप्रिड को घोलकर खेतों में छिड़काव कर सकते हैं। 

इसके बाद, 15 दिन के अंतराल पर दोबारा से प्रति लीटर पानी में 2ml थाइमेट घोलकर फसलों पर छिड़काव कर देना है।

3. छेदक कीट

भिंडी की फसल में लगने वाले छेदक कीट काफी तीव्रता से फल को हानि पहुंचाते हैं। यह कीट भिंडी के फल के अंदर घुसकर इसमें अंडे दे देती है और तेजी से अपनी तादात बढ़ाती है। 

जब भिंडी की फसल में 5 से 10 प्रतिशत तक फूल निकल जाए, तो किसानों को उस समय प्रति 3 लीटर पानी में 1 ग्राम थियामेथोक्सम को घोलकर फसलों पर छिड़काव करना चाहिए। 

इसके 15 दिनों के पश्चात किसानों को बाकी रोगों से फसल को सुरक्षित रखने के लिए इमिडाक्लोप्रिड या क्युनालफॉस का स्प्रे करना चाहिए। 

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4. कटुआ कीट

कटुआ कीट भिंडी की फसल में लगने के पश्चात काफी तीव्रता से इसको हानि पहुंचाते हैं। ये कीट लगने के बाद भिंडी के पौधे के तने को काटने लग जाता है। 

वहीं, पौधा टूटकर नीचे गिरने लग जाता है। ऐसी स्थिति में किसान इस कीट को नियंत्रण में करने के लिए मिट्टी में मिलाने वाले कीटनाशकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

किसान भिंडी की फसल को कटुआ कीट से नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ में 10 किलोग्राम के हिसाब से थाइमेट-1 जी और कार्बोफ्यूरान 3जी को मृदा में मिला देना है।

किसान भिंडी की कटाई कब करें?

किसानों को भिंडी की फसल में इन सभी कीटनाशकों का छिड़काव करने के बाद कटाई में सावधानी बरतनी चाहिए। भिंडी की फसल पर कीटनाशक का छिड़काव करने के लगभग 5 से 7 दिनों बाद ही भिंडी की हार्वेस्टिंग करनी चाहिए। ऐसा करने से दवा का प्रभाव काफी कम हो जाता है और मानव स्वास्थ्य को भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है।

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