टिड्डी के हमले से बचें किसान

By: MeriKheti
Published on: 11-Feb-2020

हरियाणा-राजस्थान और गुजरात के बाद अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को भी टिड्डी दल के हमले का डर साल रहा है। कारण यह है कि इनका हमला इतना तेज होता है कि यह चंद घण्टों में ही किसी इलाके की हरी भरी फसल को उजाड़ने के लिए काफी है। इन्हें रोकने का कोई प्रभावी तात्कालिक तरीका भी नहीं है। बंश बढ़ाने की इनकी क्षमता बहुुत तेज है। जिस खेत में बैठती है वहां हरे रंग वाले किसी भी पौधे को नहीं छोड़ती और जाते जाते अपने अंड़े छोड़ जाती है जो नई फौज तैयार होने का काम करती है। टिड्डी और ​टिड्डे में मोटा मोटी कई फर्क होते हैं। टिड्डा केवल चुनिदा चंद फसलों को ही खाता है ज​​बकि टिड्डी हरे रंग वाली किसी फसल या पेड़ के पत्तों को बड़ी तेजी से चट कर जाती है। इसके हमले भी लाखों की संख्या में समूूह में होते हैं। तीन राज्यों में लाखों एकड़ फसल को टिड्डी दल चौपट कर चुका है। हरियाणा के कई जनपदों में एलर्ट जारी किया गया है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में भी इसके प्रभाव के चलते अफसर चौकन्ना हैं।

  टिड्डी  

 विशेषज्ञ कुंवर लाल वर्मा बाताते हैं कि टिड्डी 30 दिन बाद मेच्योर होकर पीले रंग की हो जाती है और यह समय फसलों को खाने का उपयुक्त समय होता है। कुल 80 दिन का जीवनकाल होता है। हर दिन बड़ी तादात में अंडे देती है। अपने जीवन काल में टिड्डी अपनी 20 गुनी सत्नान छोड़ जाती है। 

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जिन इलाकों में इनका दल दिखे वहां किसान आसमान की ओर डंडा लहराकर शोर मचाएं। खेतों में कूड़ा एकत्र कर धुआं करें। इसके अलावा इसके बाद भी यह न भागे और खेत में बैठ जाए तो रात्रि के समय हर हालत में कलोरोपायरीफास और क्यूनालफास में से किसी एक दवा का उचित मात्रा में घोल बनाकर छिड़काव करेें, ताकि खेत में छोड़े गए अण्डे मर जाएंं। इसके अलावा अंडे एक हफ्ते बाद फूटेंगे। उस समय नुकसान से बचने के लिए खेत में गड्ढ़ा कर दें। उसमें पानी व मिट्टी  का तेल डाल दें। बच्चे जब रेंगने लगें तो उन्हें दो तीन लोग मिल कर शोर करते हुए गड्ढ़े की तरफ ले जाएं। ताकि वह एक ही जगह पर खत्म् हो जाएं।

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