किसानों के लिए वरदान बनकर आया नैनो लिक्विड यूरिया | Merikheti

किसानों के लिए वरदान बनकर आया नैनो लिक्विड यूरिया

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किसान भाइयों, आपके लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। आप दुनिया के पहले ऐसे किसान होंगे जो अपनी खेती में यूरिया उर्वरक के इस्तेमाल में कम लागत लगाकर अधिक पैदावार करके आमदनी बढ़ा सकते हैं। क्योंकि भारत के सबसे बड़े किसान हितैषी सहकारी संगठन इफको ने नैनो यूरिया यानी लिक्विड यूरिया की खोज कर दुनियाभर के किसानों को चौंकाया है। इस नैनो यूरिया की खोज करने वाले कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि नैनो यूरिया पारम्परिक यूरिया के इस्तेमाल से होने वाले हानिकारक साइड इफेक्ट को समाप्त करने वाला है।

पारम्परिक यूरिया से उत्पन्न होने वाली समस्याएं

45 किलो की सफेद दाने वाली बोरी की यूरिया को पारम्परिक यूरिया कहा जाता है।  जहां इस यूरिया की वास्तविक कीमत 900 से 950 रुपये प्रति बोरी पड़ती है। इसमें सरकार द्वारा 700 रुपये की सब्सिडी दी जाती है, इससे यह यूरिया किसानों को 250 रुपये के प्रति बोरी के हिसाब से मिल पाती है। इसी कारण जब किसानों की यूरिया की अधिक जरूरत होती है तब यह बाजार से गायब हो जाती है। कहने का मतलब इसकी कालाबाजारी होती है। कभी कभी तो यह यूरिया 500 रुपये प्रति बोरी तक किसान भाइयों को खरीदनी पड़ती है। नैनो यूरिया ने किसान भाइयों की इस समस्या का समाधान कर दिया है।

नैनो यूरिया कौन-कौन से नुकसान बचायेगी

भारतीय खेती की लागत कम करने और अधिक पैदावार देने में नैनो यूरिया काफी प्रभावकारी है। कृषि वैज्ञानिकों ने ये दावा किया कि नैनो यूरिया  पारम्परिक यूरिया की अपेक्षा काफी कम लगती है क्योंकि पारम्परिक यूरिया जितना खेतों में इस्तेमाल किया जाता है, उसका मुश्किल से  30 से 40 प्रतिशत पौधों के काम आता है। बाकी हवा और मिट्टी में बेकार चला जाता है। इससे किसान भाइयों को अपने खेती के उर्वरक प्रबंधन पर ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है, जबकि नैनो यूरिया सीधे पौधों तक पहुंचेगी, तो वह कम मात्रा में लगेगी। इससे किसानों को काफी बचत होगी। एक अनुमान में बताया गया है कि नैनो यूरिया के इस्तेमाल से देश में इस्तेमाल होने वाली यूनिया में 50 प्रतिशत तक की बचत होगी।

  1. कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस्तेमाल से अधिक बरबाद होने वाली पारम्परिक यूरिया से भारतीय खेती व भारतीय जलवायु को काफी नुकसान पहुंचता है।
  2. यूरिया का जो भाग हवा में बरबाद होता है, वो पर्यावरण प्रदूषण बढ़ाता है और हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों का कारण बनता है।
  3. जो भाग मिट्टी में जाता है वो मिट्टी का स्वास्थ्य खराब करता है। इससे मृदा का पीएच मान गड़बड़ाता है, जिसका सीधा असर खेती और पैदावार पर पड़ता है।
  4. इसके अलावा इससे मिट्टी अम्लीय यानी क्षारीय हो जाती है, जिससे कई तरह की उपयोगी फसलों को नहीं लिया जा सकता है।
  5. साथ ही मिट्टी में बरबाद होने वाला यूरिया भूमिगत जल को दूषित करता है। पारम्परिक यूरिया के इन विकारों को दूर करने के लिए नैनो यूरिया की खोज की गयी है।

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वैज्ञानिकों की राय

दुनिया में नैनो टेक्नोलॉजी के जाने-मानेसाइंटिस्ट और नैनो यूरिया की खोज करने वाले डॉ. रमेश रालिया ने बताया कि नैनो यूरिया की खोज का काम 2015 से शुरू कर दिया गया था। विभिन्न लैब टेस्टों के बाद नवम्बर 2019 से देश भर के विभिन्न कृषि जलवायु वाले 30 क्षेत्रों के 11000 किसानों के खेतों में विभिन्न प्रकार खेती की लगभग 100 फसलों में इस नैनो यूरिया का लगातार दो साल परीक्षण किया गया। इसके अलावा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर) के 20 से अधिक संस्थानों और देश के जाने माने कृषि विश्वविद्यालयों में इस नैनो यूरिया का परीक्षण किया जा चुका है। वह पर्यावरण के बारे में बताते हैं कि यूरिया का बहुत बड़ा भाग नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में ग्रीन हाउस गैस के रूप में जाता है, जिसे हम नैनो यूरिया से बचा सकते हैं। यूरिया के प्रयोग से हमारी मिट्टी में पीएच संतुलन बिगड़ जाता है। आमोनिया के चलते जमीन अम्लीय यानी एसिडिक हो जाती है, इससे जो आवश्यक पोषक तत्व पौधों को चाहिये वह नहीं मिल पाते हैं। जबकि नैनो यूरिया का मिट्टी के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता है।

यूरिया के अधिक प्रयोग से खेती को  होने वाले नुकसान

  1. मृदा स्वास्थ्य के नुकसान और पर्यावरण प्रदूषित होने के कारण मिट्टी की फसल उत्पन्न करने की शक्ति क्षीण हो जाती है।
  2. फसलों में बीमारियों और कीटों के प्रकोप का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
  3. फसलों को पकने में अधिक समय लगता है। देर से तैयार होने वाली फसलों में जहां फसल चक्र प्रभावित होता है। वहीं मौसमी बदलाव से खेतों में खड़ी फसलों के नुकसान की संभावना अधिक रहती है।
  4. खेतों में पैदावार कम होती है और फसल की क्वालिटी भी अच्छी नहीं होती है।

नैनो यूरिया की क्या हैं खूबियां

  1. पारम्परिक यूरिया की प्रति बोरी से दस फीसदी सस्ता है नैनो यूरिया।
  2. सब्सिडी रहित होने के कारण नैनो यूरिया आसानी से हर जगह उपलब्ध रहेगा।
  3. 45 किलो बोरी को ढोने की जगह इस 500 मिली की बोतल को जेब में रखकर कहीं भी ले जाया जा सकता है और इसका आसानी से भंडारण भी किया जा सकता है।
  4. पारम्परिक यूरिया की अपेक्षा नैनो यूरिया आधी मात्रा ही खेतों में पर्याप्त होगी। इससे किसानों को खेत में आधा ही पैसा लगाना होगा।
  5. नैनो यूरिया समय पर पौधों को आवश्यक पोषण तत्व पहुंचाता है। ये नैनो यूरिया फसलों को स्वस्थ बनाता है और फसलों को गिरने से भी बचाता है।
  6. नैनो यूरिया के 500 मिली की बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है। ये पाम्परिक यूरिया की एक बोरी के नाइट्रोजन के पोषक तत्व के बराबर होता है।

नैनो यूरिया की क्या हैं खूबियां

कब मिलेगी नैनो यूरिया और कितनी होगी कीमत

1.इफको ने बताया है कि नैनो यूरिया लिक्विड का उत्पादन जून 2021 में ही शुरू हो जायेगा और जल्द ही यह नैनो यूरिया मार्केट में आ जा जायेगा। ऐसा माना जा रहा है कि खरीफ की फसल के दौरान किसानों को अपने आसपास की मार्केट में नैनो यूरिया मिल जायेगी।

2.नैनो यूरिया की प्रति 500 मिली की बोतल या डब्बा की पैकिंग की कीमत 240 रुपये तय की गयी है। वर्तमान समय में एक बोरी यूरिया से दस प्रतिशत सस्ती होगी।

कहां-कहां मिलेगी

नैनो यूरिया फिलहाल इफको के ई-कॉमर्स प्लेटफार्म www.iffcobazar.in पर मिलेगी। मुख्य रूप से सहकारी बिक्री केन्द्रों पर तो निश्चित रूप से मिलेगी। इसके अलावा अन्य व्यापारिक माध्यमों से किसानों तक पहुंचायी जायेगी।

किसानों की आय कितनी बढ़ेगी

नैनो यूरिया किसानों के लिए सस्ती तो है ही साथ ही पैदावार भी बढ़ायेगी। इससे कम लागत में अधिक पैदावार होने से किसानों की आमदनी बढ़ेगी। नैनो यूरिया के लिये किये गये परीक्षण से पता चला है कि फसलों की उपज में 8 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है।

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किसान के साथ सरकार को भी होगा लाभ

पूरे भारत में वर्तमान समय में 350 लाख टन यूरिया का इस्तेमाल होता है। इसमें सरकार को 600 करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी पड़ती है। नैनो यूरिया के इस्तेमाल से 50 प्रतिशत तक बचत किये जाने की योजना है। 50 प्रतिशत बचत होने से किसानों को पूरा लाभ मिलेगा। वहीं बिना सब्सिडी नैनो यूरिया के तैयार होने से सरकार को 600 करोड़ रुपये का लाभ होगा। सरकार को यूरिया आयात करने पर जो भारी-भरकम राशि खर्च करनी होती है, वो भी नहीं करनी होगी। इससे सरकार कृषि क्षेत्र के दूसरे साधनों पर यह राशि खर्च कर पायेगी। जिसका लाभ किसानों को ही मिलेगा।

वर्तमान समय में किसान भाइयों द्वारा प्रति एकड़ 100 किलोग्राम पारम्परिक यूरिया का इस्तेमाल होता है। कृषि वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यूरिया के कम इस्तेमाल करने के अभियान के तहत नैनो यूरिया की एक बोतल प्रति एकड़ इस्तेमाल करना ही काफी होगा। इससे किसानों को काफी बचत होगी।

राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआरएस) के तहत 20 आईसीएआर संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों में लगातार दो साल तक भिन्न-भिन्न स्थानों और भिन्न-भिन्न फसलों पर किये परीक्षण से सामने आये लाभकारी परिणामों के आधार पर नैनो यूरिया को उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ-1985) में शामिल कर लिया गया है। इसका मतलब हुआ कि सरकार द्वारा नैनो यूरिया को भी प्रमाणित कर दिया गया है। इसके इस्तेमाल में किसान भाइयों को किसी तरह का कोई सन्देह नहीं होना चाहिये।

कैसे किया जायेगा इस्तेमाल

नया-नया नैनो यूरिया मार्केट में आने वाला है। इसको लेकर किसान भाइयों में उत्सुकता अवश्य होगी। कुछ किसान भाई तो अपनी खरीफ की फसल में ही इस्तेमाल करने की योजना बना रहे होंगे। लेकिन अधिकांश किसान भाइयों के समक्ष यह सवाल उत्पन्न होगा कि इस नैनो यूरिया का इस्तेमाल किस प्रकार से किया जायेगा। वैसे आम तौर पर 500 मिली लीटर की लिक्विड नैनो यूरिया होने के कारण यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका घोल बनाकर खेतों में खड़ी फसल पर छिड़काव किया जायेगा लेकिन इसकी असली विधि इफको द्वारा बतायी जायेगी। इफको ने यह भी स्पष्ट किया है कि जल्द ही देश भर में किसानों को नैनो यूरिया के इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षण दिया जायेगा। इसलिये किसान भाइयों को थोड़ा धैर्य रखकर इस प्रशिक्षण अभियान का इंतजार करना होगा और इस प्रशिक्षण के दौरान सिखाई जाने वाली बातों को बहुत ही ध्यान से सीखना होगा। ताकि प्रशिक्षण में मिली बारीक जानकारियों से इस्तेमाल करने पर किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिल सकता है।

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