मूंगफली की फसल को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कीट व रोगों की रोकथाम

मूंगफली की फसल को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कीट व रोगों की इस प्रकार रोकथाम करें

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मूंगफली भारत की प्रमुख तिलहनी फसलों में से एक है। इसकी सबसे ज्यादा खेती तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में की जाती है। बतादें, कि मूंगफली की फसल में विभिन्न प्रकार के कीट और रोग लगते हैं। इन रोगों एवं कीटों पर काबू करना काफी आवश्यक होता है।

मूंगफली भारत की मुख्य तिलहनी फसलों में से एक है। इसकी सबसे ज्यादा खेती तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में होती है। इनके आलावा अन्य राज्यों जैसे- राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब में भी इसकी खेती होती है। बतादें, कि मूंगफली की बुवाई प्रायः मॉनसून शुरू होने के साथ ही हो जाती है। उत्तर भारत में यह वक्त सामान्य रूप से 15 जून से 15 जुलाई के बीच का होता है। मूंगफली की खेती के लिए समुचित जल निकास वाली भुरभुरी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी उत्तम होती है।

साथ ही, मूंगफली की फसल में खरपतवार पर रोक लगाने के अलावा कीटों और रोगों पर नियंत्रण पाना भी अत्यंत आवश्यक होता है। क्योंकि, फसल में खरपतवार, कीट और रोगों का अधिक प्रभाव होने से फसल पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है।

मूंगफली की फसल को प्रभावित करने वाले कीट

मूंगफली की फसल में सामान्यतः सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक लगते हैं। मध्य प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई से पहले फोरेट 10जी या कार्बोफ्यूरान 3जी 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालें। इसके अतिरिक्त दीमक के प्रकोप को रोकने के लिए क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें।

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साथ ही, रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. प्रति लीटर अथवा डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली. प्रति लीटर के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें। इसी प्रकार पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण के लिए क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का एक लीटर प्रति हेक्टेयर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मूंगफली की फसल को प्रभावित करने वाल रोग व नियंत्रण

मूंगफली की फसल में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर एवं तना गलन व रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। साथ ही, छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें। वहीं रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके विस्तार को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी के मान से घोल बनाकर स्प्रे करना चाहिए।

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