भारत की तरफ से चावल के निर्यात पर लगे बैन को लेकर कई देशों ने सवाल खड़े किए

भारत की तरफ से चावल के निर्यात पर लगे बैन को लेकर कई देशों ने सवाल खड़े किए

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भारत बहुत बड़े पैमाने पर चावल निर्यात करने वाला देश है। निर्यात पर लगाम लगाने के फैसले को लेकर कनाडा, अमेरिका समेत कई सारे देशों ने सवाल खड़े किए थे। भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कहा है, कि चावल के निर्यात पर लगाए गए रोक को प्रतिबंध नहीं मानना चाहिए। यह सिर्फ एक विनियम है। यह भारत के 1.4 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। यूक्रेन-रूस संकट के दौरान भारत ने 20 जुलाई को गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे घरेलू आपूर्ति को प्रोत्साहन मिले एवं खुदरा कीमतों को काबू में किया जाएगा। भारत के इस निर्णय पर कनाडा एवं अमेरिका समेत कई सारे देशों ने सवाल खड़े किए थे।

भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखकर फैसला लिया

विश्व व्यापार संगठन की समिति की जिनेवा में हुई बैठक के समय भारत की तरफ से कहा गया कि यह फैसला खाद्य सुरक्षा को मद्देनजर रखकर लिया गया है। भारत की तरफ से बताया गया है, कि वैश्विक परिस्तिथियों को मद्देनजर रखते हुए दिग्गजों को बाजार की स्थितियों में हेरफेर करने से प्रतिबंध करने के लिए इस फैसले के विषय में डब्ल्यूटीओ में अग्रिम सूचनाएं नहीं दी गई। इस बात की संभावना थी, अगर इससे जुडी जानकारी पहले दी जाएगी तो बड़े आपूर्तिकर्ता भंडारण करके दबाकर हेरफेर कर सकते थे। ये उपाय अस्थायी हैं एवं घरेलू मांग तथा आपूर्ति स्थितियों के आधार पर नियमित तौर से समीक्षा में जुटी हुई है।

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भारत की तरफ से जरूरतमंद देशों को निर्यात की स्वीकृति

भारत की तरफ से यह भी कहा गया है, कि प्रतिबंध के बावजूद जरूरतमंद देशों को भारत ने पूर्व में ही निर्यात की मंजूरी दी है। एनसीईएल के माध्यम से भूटान (79,000 टन), यूएई (75,000 टन), मॉरीशस (14,000 टन) एवं सिंगापुर (50,000 टन) को गैर-बासमती चावल का निर्यात किया गया है।

भारत द्वारा चावल निर्यात पर रोक को लेकर इन देशों ने उठाए सवाल

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 40 प्रतिशत से अधिक वैश्विक निर्यात के साथ भारत विश्व भर का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है। भारत के निर्यात पर प्रतिबंध वाले निर्णय को लेकर ब्राजील, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, थाईलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने बहुत सारे सवाल खड़े किए थे। इन देशों की ओर से कहा गया था, कि कृषि वस्तुओं के आयात पर बहुत ज्यादा आश्रित रहने वाले देशों पर इसका प्रभाव पड़ता है।

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