कपास एक प्रमुख रेशा फसल है। कपास सफेद सोने के नाम से मशहूर है। इसके अंदर नैचुरल फाइबर विघमान रहता है, जिसके सहयोग से कपड़े बनाए जाते हैं।
भारत के कई इलाकों में कपास की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। इसकी खेती देश के सिंचित और असिंचित इलाकों में की जा सकती है। इस लेख में हम आपको कपास की खेती की संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं
कपास की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
कपास की खेती भारत के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। इसकी सफलतापूर्ण खेती करने के लिए निम्नतम तापमान 21 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना जाता है।कपास की खेती के लिए उपयुक्त मृदा
कपास की खेती के लिए गहरी काली मिट्टी एवं बलुई दोमट मिट्टी उत्तम होती है। वहीं, मिट्टी में जीवांश की पर्याप्त मात्रा होनी अनिवार्य है। इसके साथ-साथ जलनिकासी की भी बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए।कपास की खेती के लिए प्रमुख किस्में
कपास की प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं
बीटी कपास की किस्में- बीजी-1, बीजी-2
कपास की संकर किस्में- डीसीएच 32, एच-8, जी कॉट हाई. 10, जेकेएच-1, जेकेएच-3, आरसीएच 2 बीटी, बन्नी बीटी, डब्ल्यू एच एच 09बीटी कपास की उन्नत किस्में- जेके-4, जेके-5 तथा जवाहर ताप्ती आदि
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कपास की खेती के लिए बुवाई का समय तथा विधि
आमतौर पर कपास की बुवाई वर्षाकाल में मानसून आने के वक्त की जाती है। परंतु, अगर आपके पास सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है, तो आप मई माह में कपास की बुवाई की जा सकती है। कपास की खेती से पूर्व खेत को रोटावेटर अथवा कल्टीवेटर की सहायता से मृदा को भुरभुरा कर लिया जाता है। उन्नत किस्मों का बीज प्रति हेक्टेयर 2 से 3 किलोग्राम और संकर और बीटी कपास की किस्मों का बीज प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम उपयुक्त होता है।
उन्नत किस्मों में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखी जाती है। लेकिन, संकर और बीटी किस्मों में कतार से कतार की दूरी 90 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 120 सेंटीमीटर रखी जाती है।
सघन खेती के लिए कतार से कतार का फासला 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे का फासला 15 सेंटीमीटर रखा जाता है।
कपास की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक
कपास की उन्नत किस्मों से बंपर उपज पाने के लिए प्रति हेक्टेयर सल्फर 25 किलोग्राम, नाइट्रोजन 80-120 किलोग्राम, फास्फोरस 40-60 किलोग्राम और पोटाश 20-30 किलोग्राम देना उचित रहता है। तो उधर संकर व बीटी किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फोरस 75 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम, सल्फर 25 किलोग्राम और नाइट्रोजन 150 किलोग्राम उपयुक्त होता है।
सल्फर की पूरी मात्रा बुवाई के दौरान और नाइट्रोजन की 15 प्रतिशत मात्रा बुवाई के वक्त तथा बाकी मात्रा ( तीन बराबर भागों में) 30, 60 तथा 90 दिन के अंतराल पर देनी चाहिए।
वहीं, पोटाश एवं फास्फोरस की आधी मात्रा बुआई के समय और आधी मात्रा 60 दिन के उपरांत देनी चाहिए। उत्तम पैदावार के लिए 7 से 10 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर अंतिम जुताई के वक्त डालना चाहिए।
कपास की खेती के लिए निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई
प्रथम निराई-गुड़ाई अंकुरण के 15 से 20 दिनों के पश्चात करनी चाहिए। साथ ही, अगर फसल में सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है, तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे कीट एवं रोगों का संक्रमण कम रहता है एवं बेहतरीन पैदावार होती है। ये भी देखें: भारत में पहली बार जैविक कपास की किस्में हुईं विकसित, किसानों को कपास के बीजों की कमी से मिलेगा छुटकारा
कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट
गुलाबी सुंडी
कपास की फसल के लिए यदि कोई सबसे बड़ा दुश्मन कीट है, तो वह गुलाबी सुंडी है। जो अपनी पूरी जिंदगी इसके पौधे पर बिताता है। यह कपास के छोटे पौधे, कली और फूल को क्षति पहुंचाकर फसल को बर्बाद कर देता है। इसका संक्रमण प्रति वर्ष होता है।गुलाब सुंडी का प्रबंधन
इसके अतिरिक्त, यह पाइटोटॉनिक प्रभाव से युक्त है, जिसमें कीटों को तुरंत और लंबे समय तक समाप्त करने की क्षमता मौजूद है।
यह सफेद मक्खी के समस्त चरणों जैसे- अंड़ा, निम्फ, वयस्क को एक बार में समाधान मुहैय्या कराता है। इसको प्रति एकड़ 400 से 500 मिली की मात्रा की आवश्यकता होती है।
इस रोग की वजह घेटा समय से पूर्व ही खुल जाता है, जिससे रेशा बेकार हो जाता है। इसकी रोकथाम करने के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।