भारत में पहली बार जैविक कपास की किस्में हुईं विकसित, किसानों को कपास के बीजों की कमी से मिलेगा छुटकारा

भारत में पहली बार जैविक कपास की किस्में हुईं विकसित, किसानों को कपास के बीजों की कमी से मिलेगा छुटकारा

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भारत कपास (cotton) के उत्पादन के मामले में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 53,34,000 मीट्रिक टन कपास का उत्पादन होता है, जिसका ज्यादातर हिस्सा भारतीय कपड़ा उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा भारत सरकार कपास का निर्यात भी करती है। भारत कपास के निर्यात के मामले में दुनिया में शीर्ष स्थान रखता है। बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग बहुत हद तक भारतीय कपास के ऊपर निर्भर है। भारत में कपास का उत्पादन ज्यादातर गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में किया जाता है।

भारत सरकार कपास के उत्पादन में लगातार वृद्धि करने को लेकर प्रयासरत रहती है, ताकि सरकार ज्यादा से ज्यादा कपास का निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित कर सके, जिससे भारत का अन्य देशों के साथ व्यापारिक संतुलन बना रहे। लेकिन बहुत सालों से देखा जा रहा है कि भारत में कपास के अच्छे बीजों को लेकर किसानों के बीच संकट बना रहता है, इसलिए भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए साल 2000 में कपास प्रौद्योगिकी मिशन शुरू किया था। इस मिशन के अंतर्गत एक लक्ष्य यह भी है कि किसानों की सहायता के लिए कपास अनुसंधान पर जोर दिया जाएगा तथा कपास के नए बीजों का निर्माण किया जाएगा, ताकि किसान कपास की उन्नत खेती कर सकें। इस योजना को कृषि एवं कपड़ा मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जाता है।

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साल दर साल इस मिशन के अंतर्गत भारत ने कपास के अनुसंधान में काफी प्रगति की है और ब्रीडिंग प्रोग्राम के परिणामस्वरूप कई नई किस्में विकसित की हैं, जो किसानों के लिए उत्पादन बढ़ाने में मददगार साबित हुईं हैं। अब कपास प्रौद्योगिकी मिशन के अंतर्गत वैज्ञानिकों ने दस साल से अधिक के ब्रीडिंग प्रोग्राम के परिणामस्वरूप पहली बार कपास की दो जैविक किस्में विकसित की हैं।

वैज्ञानिकों द्वारा इन किस्मों का नाम आरवीजेके-एसजीएफ-1 (RVJK-SGF-1), आरवीजेके-एसजीएफ-2 (RVJK-SGF-2) बताया जा रहा है, जिन्हें हाल ही में किसानों को उपलब्ध करवाया गया है। यह कपास की पहली किस्में हैं जिन्हें पहली बार पूरी तरह से जैविक माध्यम से विकसित किया गया है और इनके पोषण के लिए भी पूरी तरह से जैविक परिस्थितियां उपलब्ध करवाई गई हैं। इन किस्मों को वैज्ञानिकों ने विशेष प्रजनन कार्यक्रम के तहत विकसित किया है, जिसमें FIBL स्विट्जरलैंड और अन्य लोगों का विशेष योगदान शामिल है।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि भारतीय बाजारों में इन दिनों निजी कंपनियों के आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीज उपलब्ध हैं, और किसान इन बीजों का धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं। ये आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्में अन्य किस्मों की शुद्धता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा हैं। अभी तक देश में पारंपरिक, गैर-जीएम बीज पर्याप्त मात्रा में विकसित नहीं हुए हैं। साथ ही ये पारम्परिक बीज किसानों की अपक्षाओं को भी पूरा नहीं करते हैं। यह एक बड़ी चुनौती है।

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इसलिए कृषि वैज्ञानिकों ने कपास के बीजों की इन दो नई किस्मों को विकसित किया है। फिलहाल इन बीजों को आधिकारिक तौर पर मध्य प्रदेश की राज्य बीज उप समिति द्वारा बाजार में किसानों के लिए उपलब्ध करवाया गया है। मध्य प्रदेश फ़िलहाल देश में सबसे ज्यादा जैविक कपास उगाने वाला राज्य है। कपास की जारी की गई ये दोनों जैविक किस्में उच्च गुणवत्ता युक्त हैं और औद्योगिक फाइबर गुणवत्ता की जरूरतों को पूरा करती हैं। इन बीजों के उत्पादन क्षमता भी सामान्य बीजों से ज्यादा है। यह सब देखते हुए राज्य बीज उप समिति ने इसी महीने इन दोनों किस्मों को स्वीकृति दी है।

कपास की नई जैविक किस्मों की विशेषताएं

जैविक कपास किस्म RVJK-SGF-1 में सामान्य कपास के मुकाबले 21.05 प्रतिशत ज्यादा उत्पादन देने की क्षमता है। इस किस्म के बीजों की फसल बुवाई के मात्र 144-160 दिनों बाद तैयार हो जाती है। अगर इस किस्म के फाइबर के लम्बाई की बात करें तो वो 28.77 मिमी के आस पास होती है, जबकि उच्च फाइबर शक्ति लगभग 27.12 ग्राम/टेक्स होती है।

जैविक कपास किस्म RVJK-SGF-2 अन्य कपास की अपेक्षा अच्छी गुणवत्ता युक्त कपड़ा बनाने के लिए शानदार होती है। इसे कताई के लिए भी बेहतरीन माना जाता है। सामान्य फसल के मुकाबले 21.18% ज्यादा उत्पादन होता है। बुवाई के बाद इसके पौधे की लम्बाई लगभग 96-110 सेमी के आसपास होती है। इसके साथ ही यह फसल 145-155 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म के फाइबर की लम्बाई 29.87 मिमी और एक उच्च फाइबर शक्ति 29.92 ग्राम/टेक्स होती है।

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