मटर की खेती का उचित समय
मटर की खेती कई इलाकों में हरी सब्जी के लिए तो कई इलाकों में पकाने के लिए की जाती है। देश के विभिन्न राज्यों में मटर की खेती बखूबी की जाती है।मिट्टी
मटर की खेती के लिए ब्लू दोमट मिट्टी सर्वाधिक श्रेष्ठ रहती है।बुवाई का समय
मटर की बुवाई के लिए अक्टूबर-नवंबर का माह उपयुक्त रहता है।
किस्में:-
अगेती किस्में
अगेता 6,आर्किल, पंत सब्जी मटर 3,आजाद p3 अगेती किस्मों की बिजाई के लिए 150 से 160 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए एवं इनसे उत्पादन 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।पछेती किस्म
आजाद p1,बोनविले,जवाहर मटर एक इत्यादि। मध्य एवं पछेती किस्मों के लिए बीज दर 100 से 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। उत्पादन 60 से 125 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक मिलता है। इसके अलावा jm6, प्रकाश, केपी mr400,आईपीएफडी 99-13 किस्में भी कई राज्य में प्रचलित हैं और उत्पादन के लिहाज से काफी अच्छी है।खाद एवं उर्वरक
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200 कुंटल साड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी के समय मिट्टी में भली-भांति मिला देनी चाहिए।अच्छी फसल के लिए नाइट्रोजन 40 से 50 किलोग्राम ,फास्फोरस 50 किलोग्राम तथा पोटाश 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि मैं मिलानी चाहिए। पूरा फास्फोरस और पोटाश तथा आधा नत्रजन बुवाई के समय जमीन में आखिरी जोत में मिलाएं। शेष नाइट्रोजन बुवाई के 25 दिन बाद फसल में बुर्क़ाव करें।बुवाई की विधि
सब्जी वाली मटर को 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए।
सिंचाई
मटर कम पनी चाहने वाली फसल है लेकिन इसकी बुवाई पलेवा करके करनी चाहिए। बुवाई के समय पर्याप्त नमी खेत में होनी चाहिए। मटर की फसल में फूल की अवस्था पर एवं फली में दाना पढ़ने की अवस्था पर खेत में उचित नहीं होनी अत्यंत आवश्यक है लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि पानी खेत में खड़ा ना रहे।खरपतवार नियंत्रण
फसल की प्रारंभिक अवस्था में हल्की निराई गुड़ाई कर के खेत तक सपरिवार निकाल देना चाहिए अन्यथा की दशा में फसल का उत्पादन काफी हद तक प्रभावित होने की संभावना बनी रहती है। खरपतवार के पौधे मुख्य फसल के आहार का तेजी से अवशोषण कर लेते हैं।
24-Sep-2020
पूसा प्रभात डीडीआर 23 किस्म बिहार उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल और असम राज्य के लिए उत्तम है यह सिंचित एवं बारानी अवस्थाओं के लिए है। इसकी उपज 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आती है। यह बोनी और शीघ्र पकने वाली, फफूद को लेकर प्रतिरोधी किस्में है। पकाव अवधि 100 दिन है।
पूसा पन्ना डीडीआर 27 कृष्ण उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान एवं उत्तराखंड के लिए संस्तुत की गई है। यह सिंचित एवं 12वीं अवस्थाओं के लिए है। इसकी उपज 18 क्विंटल तक होती है। यह पकने में अधिकतम 90 दिन लेती है और बोनी किस्में है। चुर्याणीय फफूंद रोग को लेकर यह भी प्रतिरोधी है।
रचना किस्म 20 से 25 क्विंटल तक उपस्थिति है। यह पकने में 130 से 35 दिन लेती है और संपूर्ण उत्तर प्रदेश में बोई जा सकती है।
इंद्र कृष्ण की मटर 30 से 32 क्विंटल पैदावार देती है और 130 दिन में पक जाती है। बुंदेलखंड एवं मध्य उत्तर प्रदेश के लिए संस्तुत है।
शिखा किस्में 25 से 30 कुंटल उपज देती है और 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।
मालवीय मटर 1522 32 कुंटल उपज देती है और 120 दिन में पक जाती है। संपूर्ण उत्तर प्रदेश के लिए है।
जेपी 885 मटर 20 से 25 कुंटल उपज देती है और 135 दिन में पक जाती है। यह किस्म बुंदेलखंड के लिए उपयुक्त है।
पूसा प्रभात किस्म 15 से 18 कुंटल उपस्थिति है और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए संस्तुत है।
मटर की जयपुर जाति 32 से 35 क्विंटल उपज देती है। 130 दिन में पक कर तैयार होती है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए है।
मटर की सपना किस्म 30 से 32 कुंटल उपस्थिति है 125 दिन में पकती है। संपूर्ण उत्तर प्रदेश के लिए है।
प्रकाश किस्म की मटर 32 कुंटल उपज देती है और बुंदेलखंड के लिए है।
अमन 2009 किस्म 28 से 30 कुंटल उपज देती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए संस्तुति या किसान सभा 100 दिन में पकती है।