हरी खाद से बढ़ाएं जमीन की उपजाऊ ताकत

By: MeriKheti
Published on: 11-May-2020

गेहूं धान फसल चक्र के चलते जमीन की उपजाऊ क्षमता में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। किसी जमाने में बेहतर फसल चक्र के क्रम में साल में कम से कम एक दलहनी फसल हर खेत में ली जाती थी। वर्तमान में फसलें तो 3:00 से 4:00 तक लेने की कोशिश रहती है लेकिन बदले में जमीन को देने के नाम पर केवल डीएपी यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरक ही बचे हैं।अब जरूरत जमीन से लेने के साथ उसे कुछ वापस देने की है।वर्तमान समय इसके लिए बिल्कुल उपयुक्त समय है। 

इस समय किसान भाई ढ़ेंचा, समय एवं दलहनी फसलें लगाकर और उन्हें 60 दिन बाद कल्टीवेटर से खेत में जोत कर हरी खाद बना सकते हैं। हरी खाद के लिए सनई एवं ढांचे का बीज थोड़ा ज्यादा डाला जाता है ताकि पौधे पास पास हो और हरी खाद  खेत को भरपूर मिले।वर्तमान में लगाई गई ढांचा एवं समय की फसल को जुलाई के पहले हफ्ते तक जोत कर धान की अच्छी पैदावार ली जा सकती है।दलहनी फसलों की जड़ों में गांठे होती हैं जो मिट्टी को बांटने का काम करती है और इन गांठों मैं पौधे द्वारा वायुमंडल से अवशोषित नाइट्रोजन इकट्ठा होती है जो की आगामी फसल के लिए जमीन में फिक्स हो जाती है।

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खेत में हरी खाद पलटने के बाद जो भी फसल ली जाएगी उसके पौधों का विकास अच्छा होगा अन्य की गुणवत्ता अच्छी होगी एवं फसल में रोग संक्रमण भी कम रहेगा। जिन इलाकों में किसान भाइयों के खेत खाली हैं वह पलेवा करके तत्काल हरी खाद के लिए ढेंचा लगा सकते हैं। 2 महीने की फसल की लंबाई ऐसी तीन फिट हो जाती है खड़ी फसल को हैरो से बारीक काट कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। 

यदि पानी मौजूद हो इसके बाद खेत में पानी लगा देना चाहिए। पानी लगाने से बहुत जल्दी सडकर मिट्टी में मिल जाता है और मृदा की भौतिक संरचना यानी उपज क्षमता को बढ़ाता है। यह प्रक्रिया बहुत ज्यादा खर्चीली भी नहीं है। बीज और जुताई की लागत लगाकर डेढ़ हजार प्रति एकड़ से ज्यादा का खर्चा नहीं है लेकिन इससे हरी खाद सैकड़ों कुंटल मिलती है।

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