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चौलाई की खेती कैसे करें (Cholai Ki Kheti)

चौलाई की खेती कैसे करें (Cholai Ki Kheti)

चौलाई की खेती किसानों के लिए बहुत ही आवश्यक होती है चौलाई को रामदाना तथा राजगिरी के नाम से भी पुकारा जाता है। चौलाई को लोग सब्जी के रूप में इस्तेमाल करते हैं चौलाई के फूल दिखने में बैगनी और लाल रंग के होते हैं लोग चौलाई के साग को खाना काफी पसंद करते हैं। चौलाई के साग की पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

चौलाई

सब्जियों में सबसे ज्यादा उपयोगी और प्रमुख फसल चौलाई की होती है। चौलाई एक ऐसी फसल है जिसका उत्पादन भारत तथा विभिन्न विभिन्न क्षेत्रों में होता है यह क्षेत्र कुछ इस प्रकार है। जैसे: दक्षिणी अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका पूर्वी, अफ्रीका दक्षिण पूर्वी एशिया आदि क्षेत्रों में इसकी फसल का उत्पादन किया जाता है। किसानों के अनुसार चौलाई की लगभग 600 से 685 प्रजातियां होती है। यह प्रजातियां एक दूसरे के विपरीत भिन्न-भिन्न होती है। चौलाई को ज़्यादा पैदावार करने वाला हिमालय क्षेत्र है यहां पर चौलाई की पैदावार अधिक मात्रा में होती है। इनकी विभिन्न विभिन्न किस्में अलग-अलग मौसमों में उगती हैं जैसे ग्रीष्म और वर्षा ऋतु आदि। 

चौलाई की खेती

चौलाई  के पौधे में विभिन्न विभिन्न प्रकार के  औषधि गुण मौजूद होते हैं और इन्हीं कारणों की वजह से इनका उपयोग आयुर्वेदिक, औषधि बनाने में किया जाता है। सिर्फ चौलाई  ही नहीं बल्कि इनकी जड़ ,तना ,पत्ती ,डंठल सभी आवश्यक होती हैं आयुर्वेदिक औषधि बनाने के लिए, विटामिन ए और सी तथा खनिज और प्रोटीन जैसे, आवश्यक तत्व चौलाई में मौजूद होते हैं। यदि आप पेट की बीमारी संबंधित समस्या से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो आप लगातार  चौलाई का सेवन करें। क्योंकि चौलाई का सेवन करने से पेट संबंधित सभी प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती है। अर्ध शुष्क वातावरण चौलाई की खेती को बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण बनाता है चौलाई की खेती के लिए शुष्क वातावरण उपयोगी होता है। किसान शुष्क मौसम में चौलाई की खेती करने की सलाह देते हैं। 

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चौलाई की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

ज्यादातर किसान चौलाई की खेती कार्बनिक पदार्थों से भरपूर और जल निकास वाली भूमि मे खेती करना उचित बताते हैं। जो भूमि जलभराव वाली होती है वहां पर चौलाई की खेती नहीं करते , क्योंकि जलभराव वाली भूमि के कारण पौधे पूर्ण रूप से उत्पादन नहीं कर पाते, चौलाई की फसल की उत्पादकता की प्राप्ति करने के लिए भूमि का पीएच मान लगभग 6 से 8 के मध्य होना उपयोगी होता है

चौलाई की खेती के लिए जलवायु तथा तापमान

किसान गर्मी के मौसम में चौलाई की फसल की खेती करते हैं क्योंकि ठंड के मौसम में चौलाई की फसल पूर्ण रूप से उत्पादन नहीं कर पाती है। इसी कारण सबसे उचित मौसम गर्मी का होता है चौलाई खेती के लिए, चौलाई की खेती करने के लिए सबसे अच्छी जलवायु शीतोष्ण और समशीतोष्ण की होती है। यह दोनों जलवायु  बहुत ही उचित होती हैं चौलाई की खेती के लिए। चौलाई  के पौधों के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता पड़ती है पौधों को अंकुरित होने के लिए, अंकुरित के बाद विकास में करीब 30 से 40 डिग्री के तापमान की जरूरत होती है। 

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चौलाई के पौधों की सिंचाई

यदि आप चौलाई के पौधों का रोपण सूखी भूमि इत्यादि में करते हैं तो बुवाई के तुरंत बाद ही खेतों में पानी देना जरूरी होता है।अगर भूमि का चयन पहले हो चुका है तो बीज रोपण के तुरंत बाद पानी देना उचित नहीं समझा जाता। जब तक बीज अंकुरित ना हो खेतों में नमी को बरकरार रखें। बीज अंकुरित हो जाए तो  लगभग 20 से 30 दिनों के अंदर सिंचाई करें। हरे पत्तों की अच्छी प्राप्ति के लिए लगातार पौधों में पानी देते रहे।

चौलाई के लिए खाद की उपयोगिता:

किसान चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए सबसे अच्छी गोबर की खाद की सलाह देते हैं। इसमें लगभग 15 से लेकर 20 प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है तथा गोबर की खाद को खेतों में भली प्रकार से डाला जाता है। कुछ रसायनिक खादों का भी इस्तेमाल होता है जैसे : रसायनिक उर्वरक 25 किलो डाई अमोनियम फास्फेट 80 से लेकर सौ किलो प्रति हेक्टेयर की मात्रा का इस्तेमाल होता है। कुछ ऐसे कीट भी होते हैं जिनकी वजह से चौलाई की फसल खराब हो जाती है। यह कीट कुछ इस प्रकार है जैसे: पर्ण जालक,तना वीविल,तंबाकू की सुंडी इत्यादि। आप इन कीटो  से चौलाई की फसल को बचाने के जैविक कीटनाशक दवाएं का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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चौलाई की बुवाई का समय

विशेषज्ञों द्वारा प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार भारत में लगभग दो बार चौलाई की फसल की बुवाई की जाती है। किसान पहली बुवाई फरवरी से मार्च तथा दूसरी बुवाई जुलाई के बीच में करते हैं। किसान बीज रोपण में पौधों की दूरी कम से कम 15 से 20 सेंटीमीटर की रखते हैं ताकि चौलाई की उत्पादकता अच्छी हो। बुवाई की इन प्रक्रियाओं को अपनाकर आप अच्छी फसल को प्राप्त कर सकते हैं। 


दोस्तों हम यह उम्मीद करते हैं कि हमारा यह आर्टिकल Chaulai Saag आप को पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में चौलाई साग की पूरी जानकारी दी गई है। कि चौलाई की खेती किस प्रकार से की जाती है , चौलाई के लिए उपयुक्त जलवायु है तथा विभिन्न विभिन्न प्रकार की जानकारी हमारे इस आर्टिकल में मौजूद है।हमारी इस आर्टिकल को आप ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ शेयर।

गर्मियों के मौसम में करें चौलाई की खेती, होगा बंपर मुनाफा

गर्मियों के मौसम में करें चौलाई की खेती, होगा बंपर मुनाफा

चौलाई पत्तियों वाली सब्जी की फसल है, जिसे गर्मियों और बरसात के मौसम में उगाया जाता है। इसके पौधों को विकास के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं। वैसे चौलाई को ज्यादातर गर्मियों में ही उगाया जाता है, इस मौसम में इस फसल में अच्छा खासा उत्पादन होता है, जिससे किसानों को मोटी कमाई होती है। चौलाई प्रोटीन, खनिज, विटामिन ए, सी, आयरन,कैल्शियम और फॉस्फोरस से भरपूर होती है, इसलिए इसे कई मिनरल्स गुणों का खजाना कहा जाता है। इसके बीजों को राजगिरा कहा जाता है, जिसका आटा बनता है। यह पत्तों वाली सब्जी होती है। जिसकी शहरों में अच्छी खासी डिमांड रहती है, इसलिए आजकल इसे शहरों के आसपास जमकर उगाया जा रहा है। चौलाई पूरे विश्व में पाया जाने वाला साग है। अभी तक इसकी 60 से ज्यादा प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है। इसका पौधा 80 सेंटीमीटर से लेकर 200 सेंटीमीटर तक ऊंचा होता है। इनके पत्ते एकान्तर, भालाकार या आयताकार होती हैं, जिनकी लंबाई 3 से 9 सेमी तथा चौड़ाई 2 से 6 सेमी होती है। इसमें पीले, हरे, लाल और बैगनी रंग के फूल आते हैं जो गुच्छों में लगे होते हैं। यह अर्ध-शुष्क वातावरण में उगाया जाने वाला साग है।

चौलाई की किस्में

अभी तक चौलाई की 60 से ज्यादा किस्में पहचानी जा चुकी हैं। लेकिन भारत में अभी तक कुछ किस्मों की खेती ही की जाती है। जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं-

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चौलाई की खेती कैसे करें कपिलासा: चौलाई की यह एक उन्नत किस्म है जो बुवाई के मात्र 95 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 165 सेंटीमीटर होती है। एक हेक्टेयर में बुवाई करने पर 13 क्विंटल साग का उत्पादन हो सकता है। यह किस्म ज्यादातर उड़ीसा, तमिलनाडू, कर्नाटक आदि में उगाई जाती है। गुजरात अमरेंथ 1: यह ऐसी किस्म है जो 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म पर कीटों का प्रभाव नहीं होता। प्रति हेक्टेयर इस किस्म की औसत पैदावार 19.50 क्विंटल है। गुजरात अमरेंथ 2 : यह किस्म मैदानी इलाकों के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। यह किस्म बुवाई के 90 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कम समय में तैयार होने से और पैदावार अधिक होने से किसान इस किस्म को बोना पसंद करते हैं। इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 23 क्विंटल है। सुवर्णा: चौलाई की यह किस्म ज्यादातर उत्तर भारत में उगाई जाती है। यह बुवाई के मात्र 80 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन एक हेक्टेयर खेत में 16 क्विंटल तक हो सकता है। दुर्गा : यह चौलाई की ऐसी किस्म है जिस पर कीटों का असर नहीं होता। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 170 सेंटीमीटर होती है और यह बुवाई के 125 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पूसा कीर्ति : चौलाई इस किस्म की पत्तियां बड़ी होती हैं। इसकी पत्तियों की लंबाई 6 से 8 सेमी और चौड़ाई 4 से 6 सेमी होती है। इसका तना हरा होता है। इसकी खेती ज्यादातर गर्मियों में की जाती है। पूसा किरण : चौलाई की इस किस्म की खेती बरसात के मौसम में की जाती है। इसकी पत्तियां मुलायम होती हैं तथा इनका आकार बड़ा होता है।

चौलाई की खेती के लिए जलवायु और तापमान

चौलाई की खेती गर्मी और बरसात के मौसम में ही की जा सकती है। सर्दियों का मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। इसके पौधों को अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है और इसका पेड़ 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को आसानी से झेल सकता है। चौलाई की खेती के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान नहीं होना चाहिए।

चौलाई की खेती के लिए इस तरह की मिट्टी होती है उपयुक्त

चौलाई की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उपजाऊ उचित जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। ऐसी मिट्टी जहां पानी का जमाव होता हो, वहां पर चौलाई की खेती नहीं की जा सकती। जलभराव वाली मिट्टी में चौलाई का विकास अच्छे से नहीं होता है। इसकी खेती के लिए जमीन का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए।

चौलाई की बुवाई

चौलाई की पहली बुवाई मार्च और अप्रैल माह में की जाती है। जबकी दूसरी बुवाई जून-जुलाई माह में की जाती है। चौलाई की बुवाई आप छिड़काव और रोपाई दोनों विधियों द्वारा कर सकते हैं। बुवाई के पहले बीजों को गोमूत्र से उपचारित कर लें। इससे फसल रोगों से सुरक्षित रहेगी। चौलाई के बीज बहुत छोटे दिखाई देते हैं, इसलिए इनकी बुआई रेतीली मिट्टी में मिलाकर करें।

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चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए इसकी बुवाई पक्तियों में करना चाहिए। कतारों में रोपाई के दौरान प्रत्येक कतार के बीच आधा फीट की दूरी अवश्य रखें। साथ ही पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। ड्रिल माध्यम से बीजों की रोपाई 2 से 3 सेंटीमीटर जमीन के भीतर करना चाहिए।

चौलाई की सिंचाई

चौलाई की फसल में बुवाई के 3 सप्ताह बाद पहली बार सिंचाई करनी होती है। इसके बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहें। अगर वातावरण में तेज गर्मी पड़ रही हो तो हर सप्ताह सिंचाई करें। गर्मियों में कम सिंचाई करने पर इसके पत्ते पीले पड़ जाएंगे और बाजार में इसके उचित दाम नहीं मिलेंगे। अगर खेत में हमेशा नमी बनी रहती है तो चौलाई की फसल में अच्छी पैदावार देखने को मिलती है।

खरपतवार नियंत्रण

चौलाई की फसल में खरपतवार नियंत्रण बेहद जरूरी होता है। इसकी अच्छी उपज के लिए खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए। खरपतवार में पाए जाने वाले कीट इस फसल की पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पैदावार प्रभावित होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहें। निराई गुड़ाई के समय पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी जरूर चढ़ा दें।

चौलाई की कटाई

चौलाई की कटाई मौसम के हिसाब से की जाती है। अगर आप चौलाई की पत्तियों को बाजार में बेंचना चाहते हैं तो गर्मियों के मौसम में इसकी कटाई बुवाई के 30 दिनों के बाद कर लें। इसके बाद हर 15 दिन में कटाई करते रहें। एक हेक्टेयर जमीन पर इसका उत्पादन 100 क्विंटल के आस पास होता है। इसके साथ ही अगर आप फसल से दानों की पैदावार चाहते हैं तो जब इसकी बालियां पीली पड़ने लगे तब कटाई कर लें। चौलाई की फसल आमतौर पर 100 दिनों में तैयार हो जाती है। इस हिसाब से किसान भाई इसकी फसल उगाकर कम समय में अच्छा खासा लाभ कमा सकते हैं।