किसी भी फसल को तैयार करने के लिए किसान भाइयों आपको सबसे अधिक मेहनत करनी पड़ती है लेकिन आपको अपनी मेहनत के अनुसार लाभ नहीं मिल पाता है। यदि आप कम लागत में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो चौलाई की फसल के जरिए अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। चौलाई की फसल भारत के कई क्षेत्रों में उगाई जाती है। इस फसल को शहरी क्षेत्रों के आसपास सबसे ज्यादा उगाया जाता है। यह फसल पत्तियों वाली सब्जियों की मुख्य फसल है जिसका इस्तेमाल आलू के साथ-साथ या अन्य भुजी के रूप में किया जाता है। इसके अलावा लड्डू के रूप में भी चौलाई का प्रयोग किया जाता है। यदि आप चौलाई की फसल करना चाहते हैं तो आपके लिए यह फसल काफी फायदेमंद होगी।आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताने जा रहे हैं कि, आप चौलाई की खेती कैसे कर सकते हैं और इसकी खेती करने के क्या-क्या फायदे हैं। तो आइए जानते हैं चौलाई की खेती करने की संपूर्ण जानकारी।
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चौलाई की उन्नत खेती (Cultivation of Amaranth)
चौलाई की खेती का परिचय
चौलाई पत्तियों वाली सब्जियों की प्रमुख फसल में से एक है। इस सब्जी का उत्पादन न सिर्फ भारत बल्कि मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका साथ ही दक्षिणी पूर्वी एशिया में भी किया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि चौलाई की करीब 685 प्रजाति है जो एक दूसरे से काफी अलग-अलग है। चौलाई की पैदावार हिमालय क्षेत्रों में अधिक होती है। दरअसल यह एक गर्म मौसम में तैयार की जाने वाली फसल है। जबकि इसकी कई किस्में ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में भी उगाई जाती है।
चौलाई की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
बता दें, चौलाई की खेती जलभराव वाली मिट्टी में नहीं की जा सकती है। दरअसल जलभराव वाले खेतों में चौलाई के पौधे अच्छे से विकसित नहीं हो पाते हैं, ऐसे में यह पकने से पहले ही खराब हो जाती है। इसकी खेती कार्बनिक पदार्थों से भरपूर और जल निकासी वाली भूमि में ही होती है। इसका सही उत्पादन करने के लिए भूमि का PH मान करीब 6 से 8 के बीच होना चाहिए।
चौलाई की खेती के लिए जलवायु और तापमान
चौलाई की खेती गर्मी के मौसम में की जाती है, जबकि सर्दी का मौसम चौलाई की खेती के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। चौलाई का उत्पादन शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु में किया जा सकता है। बता दें, चौलाई के पौधों को अंकुरित होने के लिए करीब 20 से 25 डिग्री के बीच तापमान की आवश्यकता होती है। इसके बाद जब पौधे अंकुरित हो जाते हैं तब उनके विकास के लिए करीब 30 डिग्री के आसपास तापमान सही माना जाता है। हालांकि गर्मी के मौसम में अधिकतम 40 डिग्री तापमान पर भी चौलाई के पौधे अपने आप विकास कर लेते हैं, लेकिन इस दौरान आपको इसकी सिंचाई पर भी अधिक ध्यान देना होता है।
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कितनी होती है चौलाई की किस्में?
वैसे तो मार्केट में चौलाई की कई किस्में आसानी से उपलब्ध हो जाती है लेकिन कम समय में और अधिक मात्रा में पैदावार करने के लिए इन निम्न किस्मों का अधिक उत्पादन किया जाता है।
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कपिलासा
कपिलासा चौलाई की एक ऐसी किस्म है जो जल्द ही पैदा हो जाती है। इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है। चौलाई की इस किस्म के पौधे की लंबाई 2 मीटर के आसपास होती है। इस किस्म की चौलाई बुवाई के करीब 30 से 40 दिन बाद ही सब्जी के रूप में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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बड़ी चौलाई
इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा तैयार किया गया है। इसके पौधे के तने का आकार थोड़ा मोटा पाया जाता है और इसकी पत्तियां भी बड़े आकार की होती है। वहीं इसके तने और पत्तियों का रंग हरा होता है। गर्मी के मौसम में इस किस्म के पौधे अधिक पैदावार देते हैं।
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छोटी चौलाई
छोटी चौलाई की किस्म भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा ही तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधों की लंबाई बाकी किस्म के पौधों से थोड़ी कम होती है और इसकी पत्तियों का आकार भी थोड़ा छोटा होता है। इस किस्म की चौलाई को बारिश के मौसम में उगाना सबसे अच्छा माना जाता है।
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अन्नपूर्णा चौलाई
चौलाई की यह एक ऐसी किस्म है जिसे अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है। इसके पौधे की ऊंचाई करीब 2 मीटर के आसपास होती है। इस किस्म की चौलाई को हरी फसल के रूप में ही काटना सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह किस्म बीज बोने के करीब 30 से 35 दिन बाद ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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पूसा लाल चौलाई
इस किस्म की चौलाई के पौधों की पत्तियों का रंग लाल जबकि डंठल का रंग हरा होता है। इसकी पत्तियों का आकार काफी बड़ा होता है। इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि, इसका उत्पादन बरसात और गर्मी दोनों ही मौसम में किया जा सकता है। यह फसल बोने के करीब लगभग 30 दिन बाद ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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सुवर्णा चौलाई
सुवर्णा चौलाई की एक ऐसी किस्म है जो उत्तर भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाती है। इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 क्विंटल के आसपास होता है। सुवर्णा किस्म की चौलाई बोने के करीब 80 से 90 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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गुजराती अमरेंथ 2
चौलाई की यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार के लिए जानी जाती है। इस किस्म के पौधे रोपने के करीब लगभग 3 महीने बाद ही कटने के लिए तैयार हो जाते हैं। बता दें, इस किस्म का उत्पादन सबसे ज्यादा गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में किया जाता है। इसके अलावा भी बाजार में कई किस्मों में चौलाई मौजूद हैं जिन्हें अलग-अलग मौसम के आधार पर पैदा किया जाता है।
कैसे करें चौलाई के पौधों की सिंचाई?
चौलाई के बीज रोपने के बाद इसमें तुरंत पानी नहीं देना चाहिए। यदि आप सुखी भूमि में बीच की रोपाई करते हैं तो तुरंत पानी देना सही है और अंकुरित होने तक खेतों में नमी बनाए रखें। बीजों के अंकुरित होने के बाद आप पहली सिंचाई रुपाई के 20 से 25 दिन बाद कर दें। यदि आप इसकी हरी पत्ती के रूप में फसल चाहते हैं तो इसके पौधों को गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार जरूर पानी दे।
कैसे करें चौलाई के खरपतवार पर नियंत्रण?
इस फसल की अच्छी पैदावार के लिए आपको खरपतवार नियंत्रण पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। दरअसल खरपतवार में पाए जाने वाले कीड़े इसकी पत्तियों को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं जिससे इसकी गुणवत्ता और पैदावार में कमी हो जाती है। इसके लिए आप सबसे पहले बीज बोने के करीब 10 से 12 दिन बाद ही खेत में हल्की गुड़ाई कर दें। इसके बाद दूसरी गुड़ाई 40 दिन बाद कर देनी चाहिए। गुड़ाई करने के दौरान चौलाई के पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।
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चौलाई के लिए खाद की सही मात्रा
चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए गोबर की खाद सबसे अच्छी मानी जाती है। ऐसे में आप 15 से 20 ट्राली प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद खेत में डालें। जबकि रासायनिक उर्वरक 25 किलो डाई अमोनियम फास्फेट 80 से 100 किलो प्रति हेक्टेयर में डालें। चौलाई में तना वीविल, तंबाकू की सुंडी, पर्ण जालक जैसे कीट का अधिक प्रकोप देखने को मिलता है। ऐसे में आप जैविक कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैं।
चौलाई की बुवाई का सही समय
बता दें, उत्तरी भारत में चौलाई को करीब 2 बार बोया जाता है। यहां पर पहली बुवाई फरवरी से मार्च के बीच और दूसरी बुवाई जुलाई में कर दी जाती है। मार्च और फरवरी के बीच बुवाई करने से गर्मी के मौसम में इसकी पत्तियां खाने को मिल जाती है, वहीं जुलाई में बुवाई करने के दौरान वर्षा ऋतु के मौसम में इसकी पत्तियां खाने को मिल जाती है। चौलाई की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आप इसकी बुवाई पंक्तियों में करें। बता दें, एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी करीब 50 सेंटीमीटर जबकि पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
फसल की कटाई करने का सही समय
चौलाई के पौधे की कटाई अलग-अलग समय पर की जाती है। दरअसल इसकी कटाई आपके द्वारा बोई गई किस्मों पर निर्भर होती है। बता दें, चौलाई की लाल और हरी पत्तियों का इस्तेमाल करने के लिए आप इसकी कटाई बुवाई के करीब 25 से 20 दिन बाद ही कर ले। यदि आप इसकी पत्तियों की गुणवत्ता अच्छी चाहते हैं तो इसकी तीन से चार बार कटाई कर ले। इसके अलावा जब आप दानों की पैदावार के लिए फसल चाहते हैं तो जब इसकी बालियां पीली पड़ने लगे तो आप इसकी कटाई कर ले। चौलाई की फसल करीब 90 से 100 दिनों में आराम से तैयार हो जाती है।
चौलाई की पैदावार और लाभ
चौलाई की फसल से आप अपनी इच्छा अनुसार लाभ कमा सकते हैं। दरअसल इस फसल की कटाई किसान भाई 2 से 3 बार कर सकते हैं। इसके बीज के साथ-साथ आप इसकी पत्तियों को बेचकर भी लाभ कमा सकते हैं। चौलाई की पैदावार से कोई भी व्यक्ति एक बार में 1 हेक्टेयर से काफी अच्छी कमाई कर सकता है। यदि आप इसकी अलग-अलग किस्में उगाते हैं तो आपको इस फसल का अधिक फायदा होगा। मार्केट में भी चौलाई की मांग अधिक है ऐसे में आप इस फसल के जरिए मनचाहा लाभ कमा सकते हैं।