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अंगूर की खेती को कीड़ों से बचाने के लिए बाजार में आ गया है कीटनाशक

अंगूर की खेती को कीड़ों से बचाने के लिए बाजार में आ गया है कीटनाशक

खेती के साथ परेशानियां भी चलती रहती है। आजकल फसलों में कीटों का प्रकोप आम हो गया है, जिसके कारण किसान बुरी तरह प्रभावित होते हैं। कीटों के आक्रमण के कारण किसानों की फसलें चौपट हो जाती हैं। जिसके कारण उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ता है। इसको देखते हुए किसान आजकल ऐसी फसलें विकसित करने में लगे हैं, जिनमें कीटों का हमला न हो। कृषि वैज्ञानिक भरपूर कोशिश कर रहे हैं, कि नए प्रकार से विकसित की गई फसलों में कवक, फंगल, अन्य बैक्टीरिया, वायरस हमला न कर पाएं और फसल इन प्रकोपों से सुरक्षित रहे।
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इसके अलावा आजकल कृषि वैज्ञानिक कीटों से निपटने के लिए ऐसे कीटनाशकों का निर्माण कर रहे हैं जिनके प्रयोग से फसल में कीटों का पूरी तरह से सफाया हो जाए। इसी को देखते हुए अब एक ऐसे कवकनाशी को विकसित किया गया है जो अंगूर को एक खास बीमारी से बचाव के लिए बेहद उपयोगी है। फसल पर इसका प्रयोग करने से यह कवकनाशी कीड़ों का पूरी तरह से सफाया कर देगा।

अंगूर की खेती में होता है इस रोग का प्रकोप

अंगूर की खेती किसानों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसमें किसान को ज्यादा मेहनत करनी होती है। साथ ही कीटों का प्रकोप बहुत जल्दी होता है। अंगूरों में आमतौर पर 'डाउनी मिल्ड्यू' नामक बीमारी हो जाती है, जिसकी वजह से अंगूर की बेल बुरी तरह से प्रभावित होती है। यह एक फफूंद रोग है, जिसके कारण अंगूर के उत्पादन में भारी कमी आती है। जिसको देखते हुए देश के कृषि वैज्ञानिक बहुत दिनों से इस रोग का उपाय खोजने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब जाकर उन्हें सफलता हाथ लगी है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस कवकनाशी को स्टनर नाम दिया है। इसे इंसेक्टिसाइड्स (इंडिया) लिमिटेड (आईआईएल) ने विकसित किया है। यह कवकनाशी अंगूर में होने वाली डाउनी मिल्ड्यू बीमारी को पूरी तरह से खत्म कर देगा। भारत में महाराष्ट्र के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी अंगूर की खेती बहुतायत में होती है। इस कवानाशी के बाजार में आ जाने से किसानों को कवक के प्रकोप से राहत मिलेगी।

अंगूर की खेती के लिए पहली बार विकसित हुई है ऐसी दवा

इंसेक्टिसाइड्स (इंडिया) लिमिटेड के अधिकारियों और कृषि वैज्ञानिकों का कहना है, कि अंगूर में लगने वाले कीड़ों के प्रकोप से निपटने के लिए देश में पहली बार किसी कीटनाशक का निर्माण किया गया है। अंगूर किसान सालों से इस तरह की दवाई की प्रतीक्षा कर रहे थे, जो अंगूर में लगने वाले इस रोग को जड़ से खत्म कर सके। निश्चित तौर पर किसानों के लिए यह दवाई उत्पादन बढ़ाने में कारगर होगी। अगर अंगूर के उत्पादन की बात करें तो इसका उत्पादन महाराष्ट्र में मुख्यतः नासिक, बारामती, सांगली, नारायणगांव, सोलापुर और सतारा जिलों में जमकर होता है। इसके अलावा अंगूर कि खेती देश के अन्य राज्यों में भी होती है। जहां के अंगूर किसान इस दवाई से लाभान्वित हो सकेंगे और अपनी फसल को कीटों से सुरक्षित कर सकेंगे।
सितंबर महीने में मानसून के सक्रिय होने की वजह से बिहार एवम उत्तर प्रदेश में केला की खेती में थ्रिप्स का बढ़ता आक्रमण कैसे करें प्रबंधन?

सितंबर महीने में मानसून के सक्रिय होने की वजह से बिहार एवम उत्तर प्रदेश में केला की खेती में थ्रिप्स का बढ़ता आक्रमण कैसे करें प्रबंधन?

सितम्बर महीने में मानसून के सक्रिय होने की वजह से हो रही वर्षा के कारण से वातावरण में अत्यधिक नमी देखी जा रही है , इस वजह से केला में थ्रिप्स का आक्रमण कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है। पहले यह कीट माइनर कीट माना जाता था। इससे कोई नुकसान कही से भी रिपोर्ट नही किया गया था। लेकिन विगत दो वर्ष एवं इस साल अधिकांश प्रदेशों से इस कीट का आक्रमण देखा जा रहा है। पत्तियों के गब्हभे के अंदर थ्रिप्स पत्तियों को खाते रहते है एवं डंठल (पेटीओल्स ) की सतह पर विशिष्ट गहरे, वी-आकार के निशान दिखाई देते हैं। घौद में जब केला पूरी तरह से विकसित हो जाती हैं तो थ्रिप्स के लक्षण जंग के रूप में दिखाई देते हैं। थ्रीप्स पत्तियों पर, फूलों पर एवं फलों पर नुकसान पहुंचाते है ,पत्तियों का थ्रिप्स (हेलियनोथ्रिप्स कडालीफिलस ) के खाने की वजह से पहले पीले धब्बे बनते है जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं और इस कीट की गंभीर अवस्था में प्रभावित पत्तियां सूख जाती हैं। इस कीट के वयस्क फलों में अंडे देते है एवं इस कीट के निम्फ फलों को खाते हैं। अंडा देने के निशान और खाने के धब्बे जंग लगे धब्बों में विकसित हो जाते हैं जिससे फल टूट जाते हैं। गर्मी के दिनों में इसका प्रकोप अधिक होता है। जंग के लक्षण पूर्ण विकसित गुच्छों में दिखाई देते हैं। पूवन, मोन्थन, सबा, ने पूवन और रस्थली (मालभोग)जैसे केलो में इसकी वजह से खेती बुरी तरह प्रभावित होता हैं। फूल के थ्रिप्स (थ्रिप्स हवाईयन्सिस ) वयस्क और निम्फ केला के पौधे में फूल निकलने से पहले फूलों के कोमल हिस्सों और फलों पर भोजन करती हैं और यह फूल खिलने के दो सप्ताह तक भी बनी रहती है। वयस्क और निम्फल अवस्था में चूसने से फलों पर काले धब्बे बन जाते हैं,जिसकी वजह से बाजार मूल्य बहुत ही कम मिलता है,जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।

पहचान

केला में लगने वाला थ्रिप्स बेहद छोटे कीड़े होते हैं, जिनकी लंबाई आमतौर पर लगभग 1-2 मिमी होती है। उनके शरीर पतले, लम्बे होते हैं और आमतौर पर पीले या हल्के भूरे रंग के होते हैं। उनके पंखों पर लंबे बाल होते हैं, जो उन्हें एक विशिष्ट रूप देते हैं। केले के थ्रिप्स की पहचान करना उनके आकार के कारण चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन केले के पौधे की पत्तियों और फलों की बारीकी से जांच करने से उनकी उपस्थिति का पता चल सकता है।

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जीवन चक्र

प्रभावी प्रबंधन के लिए केले के थ्रिप्स के जीवन चक्र को समझना आवश्यक है। ये कीड़े एक साधारण कायापलट से गुजरते हैं, जिसमें अंडा, लार्वा, प्यूपा और वयस्क चरण शामिल होते हैं। अंडे देने की अवस्था: मादा थ्रिप्स अपने अंडे केले के पत्तों, कलियों या फलों के मुलायम ऊतकों में देती हैं। अंडों को अक्सर एक विशेष ओविपोसिटर का उपयोग करके पौधों के ऊतकों में डाला जाता है। लार्वा चरण: एक बार अंडे सेने के बाद, लार्वा पौधे के ऊतकों को खाते हैं, जिससे नुकसान होता है। वे छोटे और पारभासी होते हैं, जिससे उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है। प्यूपा अवस्था: प्यूपा अवस्था एक गैर-आहार अवस्था है जिसके दौरान थ्रिप्स वयस्कों में विकसित होते हैं। वयस्क अवस्था: वयस्क थ्रिप्स प्यूपा से निकलते हैं और उड़ने में सक्षम होते हैं। वे कोशिकाओं को छेदकर और रस निकालकर पौधे के ऊतकों को खाते हैं, जिससे पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं और फलों पर निशान पड़ जाते हैं।

केले के थ्रिप्स से होने वाली क्षति

केले के थ्रिप्स विभिन्न विकास चरणों में केले के पौधों को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा सकते हैं जैसे...

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भोजन से होने वाली क्षति: थ्रिप्स पौधों की कोशिकाओं को छेदकर और उनकी सामग्री को चूसकर खाते हैं। इस भोजन के कारण पत्तियाँ विकृत हो जाती हैं, जिनमें चांदी जैसी धारियाँ और नेक्रोटिक धब्बे होते हैं। इससे फलों पर दाग पड़ सकते हैं, जिससे वे बिक्री के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं। वायरस के वेक्टर: केले के थ्रिप्स, बनाना स्ट्रीक वायरस और बनाना मोज़ेक वायरस जैसे पौधों के वायरस को प्रसारित कर सकते हैं, जो केले की फसलों पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकते हैं। प्रकाश संश्लेषण में कमी: व्यापक थ्रिप्स खिलाने से पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता कम हो सकती है, जिससे विकास और उपज कम हो सकती है।

केला की खेती में थ्रीप्स को कैसे करें प्रबंधित ?

केला की खेती के लिए सदैव प्रमाणित स्रोतों से ही स्वस्थ रोपण सामग्री लें ।मुख्य केले के पौधे के आस पास उग रहे सकर्स को हटा दें। परित्यक्त वृक्षारोपण क्षेत्रों को हटा दें क्योंकि ये कीट फैलने के स्रोत के रूप में काम करते हैं। इसके अतरिक्त निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

विभिन्न कृषि कार्य

छंटाई: थ्रिप्स की आबादी को कम करने के लिए नियमित रूप से संक्रमित पत्तियों और पौधों के अवशेषों की कटाई छंटाई करें और हटा दें। बंच को ढके: थ्रिप्स के संक्रमण को रोकने के लिए विकसित हो रहे गुच्छे पॉलीप्रोपाइलीन से ढक दें । उचित सिंचाई: जल-तनाव वाले पौधों से बचने के लिए लगातार और उचित सिंचाई बनाए रखें, जो थ्रिप्स क्षति के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। स्वच्छ रोपण सामग्री: सुनिश्चित करें कि रोपण सामग्री थ्रिप्स और अन्य कीटों से मुक्त हो।

जैविक नियंत्रण

शिकारी और परजीवी: थ्रिप्स कीट की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए, शिकारी घुन और परजीवी ततैया जैसे थ्रिप्स के प्राकृतिक दुश्मनों के विकास को बढ़ावा दें। मिट्टी में थ्रिप्स प्यूपा को मारने के लिए, ब्यूवेरिया बेसियाना 1 मिली प्रति लीटर का तरल का छिड़काव करें।

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रासायनिक नियंत्रण

कीटनाशक: थ्रिप्स संक्रमण के प्रबंधन के लिए नियोनिकोटिनोइड्स और पाइरेथ्रोइड्स सहित कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है। हालाँकि, अति प्रयोग से प्रतिरोध हो सकता है और गैर-लक्षित जीवों को नुकसान पहुँच सकता है। थ्रीप्स के प्रबंधन के लिए छिड़काव फूल निकलने के एक पखवाड़े के भीतर किया जाना चाहिए। जब फूल सीधी स्थिति में हो तो 2 मिली प्रति लीटर पानी में इमिडाक्लोप्रिड के साथ फूल के डंठल में इंजेक्शन भी प्रभावी होता है। केला के बंच( गुच्छों),आभासी तना और सकर्स को क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी, 2.5 मिली प्रति लीटर का छिड़काव करना चाहिए।

निगरानी और शीघ्र पता लगाना

थ्रिप्स संक्रमण के लक्षणों के लिए केले के पौधों की नियमित निगरानी करें। शीघ्र पता लगाने से समय पर हस्तक्षेप करने से कीट आसानी से प्रबंधित हो जाता है।

कीट प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन

केले की कुछ किस्मों में थ्रिप्स संक्रमण की संभावना कम होती है। प्रतिरोधी किस्मों का चयन एक प्रभावी दीर्घकालिक रणनीति हो सकती है।

फसल चक्र

थ्रिप्स के जीवन चक्र को बाधित करने और उनकी संख्या कम करने के लिए केले की फसल को गैर-मेजबान पौधों के साथ बदलें।

जाल फसलें

जाल वाली फसलें लगाएं जो थ्रिप्स को मुख्य फसल से दूर आकर्षित करती हैं और जिनका कीटनाशकों से उपचार किया जा सकता है।

एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम)

एक समग्र दृष्टिकोण अपनाएं जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए केले के थ्रिप्स के प्रबंधन के लिए विभिन्न रणनीतियों को जोड़ती है। अंततः कह सकते है की केले की खेती के लिए केले के थ्रिप्स एक महत्वपूर्ण खतरा हैं, जो भोजन के माध्यम से और हानिकारक वायरस के संचरण दोनों के माध्यम से सीधे नुकसान पहुंचाते हैं। प्रभावी प्रबंधन के लिए सावधानीपूर्वक निगरानी और शीघ्र हस्तक्षेप के साथ-साथ कृषि, जैविक और रासायनिक नियंत्रण उपायों के संयोजन की आवश्यकता होती है। केले की फसल के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए थ्रिप्स क्षति को कम करने के लिए आईपीएम जैसी स्थायी प्रथाएं आवश्यक हैं।

केंद्र सरकार ने इस खरपतवार नाशी केमिकल के आयात पर लगाया बैन

केंद्र सरकार ने इस खरपतवार नाशी केमिकल के आयात पर लगाया बैन

भारत सरकार की तरफ से कम कीमत वाले 'ग्लूफोसिनेट टेक्निकल' के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत भर में यह निर्णय 25 जनवरी, 2024 से ही लागू कर दिया गया है। बतादें, कि 'ग्लूफोसिनेट टेक्निकल' का उपयोग खेतों में खरपतवार को हटाने के मकसद से किया जाता है। यहां जानें ग्लूफोसिनेट टेक्निकल पर रोक लगाने के पीछे की वजह के बारे में। 

भारत के कृषक अपने खेत की फसल से शानदार उत्पादन हांसिल करने के लिए विभिन्न प्रकार के केमिकल/रासायनिक खादों/ Chemical Fertilizers का उपयोग करते हैं, जिससे फसल की उपज तो काफी अच्छी होती है। परंतु, इसके उपयोग से खेत को बेहद ज्यादा हानि पहुंचती है। इसके साथ-साथ केमिकल से निर्मित की गई फसल के फल भी खाने में स्वादिष्ट नहीं लगते हैं। कृषकों के द्वारा पौधों का शानदार विकास और बेहतरीन उत्पादन के लिए 'ग्लूफोसिनेट टेक्निकल' का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में भारत सरकार ने ग्लूफोसिनेट टेक्निकल नाम के इस रसायन पर प्रतिबंध लगा दिया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि सरकार ने हाल ही में सस्ते मूल्य पर मिलने वाले खरपतवारनाशक ग्लूफोसिनेट टेक्निकल के आयात पर रोक लगा दी है। आंकलन यह है, कि सरकार ने यह फैसला घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से किया है।

ग्लूफोसिनेट टेक्निकल का इस्तेमाल किस के लिए किया जाता है 

किसान ग्लूफोसिनेट टेक्निकल का उपयोग खेतों से हानिकारक खरपतवार को नष्ट करने या हटाने के लिए करते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ किसान इसका इस्तेमाल पौधों के शानदार विकास में भी करते हैं। ताकि फसल से ज्यादा से ज्यादा मात्रा में उत्पादन हांसिल कर वह इससे काफी शानदार कमाई कर सकें। 

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ग्लूफोसिनेट टेक्निकल केमिकल का आयात प्रतिबंधित 

ग्लूफोसिनेट टेक्निकल केमिकल पर प्रतिबंध का आदेश 25 जनवरी, 2024 से ही देश भर में लागू कर दिया गया है। ग्लूफोसिनेट टेक्निकल केमिकल पर प्रतिबंध को लेकर विदेश व्यापार महानिदेशालय का कहना है, कि ग्लूफोसिनेट टेक्निकल के आयात पर प्रतिबंध मुक्त से निषेध श्रेणी में किया गया है।

उन्होंने यह भी कहा है, कि यदि इस पर लागत, बीमा, माल ढुलाई मूल्य 1,289 रुपये प्रति किलोग्राम से ज्यादा होता है, तो ग्लूफोसिनेट टेक्निकल का आयात पूर्व की भांति ही रहेगा। परंतु, इसकी कीमत काफी कम होने की वजह से इसके आयात को भारत में प्रतिबंधित किया गया है। 

खुशखबरी:किसानों को मिलेगी घर बैठे कीटनाशक दवाएं नहीं काटने पड़ेंगे दुकानों के चक्कर

खुशखबरी:किसानों को मिलेगी घर बैठे कीटनाशक दवाएं नहीं काटने पड़ेंगे दुकानों के चक्कर

नवीन नियमानुसार कीटनाशक अब एमाज़ॉन (Amazon.com) व फ्लिपकार्ट (Flipkart.com) जैसी ई-कॉमर्स (E-commerce) कंपनियों के माध्यम से बेचने की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। इन कंपनियों द्वारा कानूनी लाइसेंस व नियमों के अनुसार कीटनाशक बेचे जा सकते हैं। दरअसल किसानों को अच्छे कीटनाशक लेने हेतु विभिन्न दुकानों पर समय व ऊर्जा बर्बाद करके जाना होता था। परंतु फिलहाल ऐसे कार्यों के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा सब कुछ घर बैठे उपलब्ध होगा। आज किसान फ्लिपकार्ट व एमाज़ॉन जैसी ई-कॉमर्स साइट्स के जरिये भी कीटनाशक उपलब्ध कर सकते हैं। केंद्र सरकार द्वारा ऐसे ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म्स को कीटनाशक बेचने हेतु स्वीकृति दे दी है। दरअसल, कीटनाशक को बेचने के आरंभ से पूर्व इन कंपनियों द्वारा कानूनी प्रक्रिया संपन्न करनी बहुत आवश्यक है, कानूनी लाइसेंस के बाद ही किसानों को कीटनाशकों की होम डिलीवरी की जाएगी।


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केवल कानूनी लाइसेंस प्राप्त कंपनियां ही बेच पाएंगी कीटनाशक

देश में ऑनलाइन खरीददारी हेतु जानीमानी कंपनियां फ्लिपकार्ट (Flipkart.com) व एमाज़ॉन (Amazon.com) को कीटनाशक बेचने हेतु कानूनी तौर पर स्वीकृति प्राप्त हो गयी है। नए नियमों के अनुसार, इन कंपनियों द्वारा कीटनाशक बेचने पर प्रतिबंध लगाया है। सरकार से लाइसेंस लेना जरुरी है, जिसके बाद कुछ नियमों को पालन करते हुए ये कंपनियां कीटनाशक बेच सकती हैं, दरअसल, लाइसेंस को सत्यापित करवाने की जिम्मेदारी स्वयं ई-कॉमर्स (E-commerce) कंपनियों की ही है। केंद्र सरकार की इस पहल से किसानों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलेगा।


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किसानों को उचित व बेहतरीन कीटनाशक खरीदने हेतु ना ज्यादा पैसा खर्च करने की आवश्यकता है और ना ही दुकानों का बिना बात भ्रमण करने की कोई जरुरत है। शीघ्र ही आगामी दिनों में इन कंपनियों के एप्स डाउनलोड करके आवश्यकतानुसार कीटनाशक का ऑनलाइन ऑर्डर देकर होम डिलीवरी से मंगवा सकेंगे। अनुमान है, कि फ्लिपकार्ट व एमाज़ॉन जैसी वेबसाइटों पर कीटनाशक उचित मूल्य पर मिल सकेंगे, जिससे कीटनाशकों के विपणन को लेकर कंपनियों में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी। इसकी सहायता से कीटनाशक की उत्पादक कंपनियों को भी नवीन बाजार प्राप्त होगा। हल के दिनों में जलवायु परिवर्तन से फसलों पर काफी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। दिनों दिन हो रहे मौसमिक बदलाव से फसलें चौपट होती जा रही हैं, तो वहीं कुछ क्षेत्रों में कीटों के आक्रमण ने भी फसलों को बेहद क्षति पहुँचाई है। विभिन्न क्षेत्रों में तो ये कीट फसल के तने से लेकर जड़ व पत्तियों को नष्ट कर पैदावार को प्रभावित कर रहे हैं। पिछले सीजन में सोयाबीन की फसल का भी यही हाल हुआ था।
कीटनाशक कितना खतरनाक है, इसका पता हम रंग से भी लगा सकते हैं

कीटनाशक कितना खतरनाक है, इसका पता हम रंग से भी लगा सकते हैं

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि कीटों का खत्मा करने के लिए किसान खेतों में कीटनाशक का इस्तेमाल किया करते है। साथ ही, इसकी पैकेट पर प्रदर्शित रंगों से इसकी तीव्रता का पता चल जाता है। इनमें लाल रंग सर्वाधिक तीव्रता वाला होता है। खेती से उत्तम उत्पादन पाने के लिए जितनी आवश्यक मृदा है, उतनी ही आवश्यक जलवायु भी होती है। बीज का उत्तम होना भी काफी महत्वपूर्ण होता है। 

साथ ही, फसल का कीटों से संरक्षण करने के लिए उत्तम कीटनाशक का चुनाव अत्यंत आवश्यक होता है। बाजार में सैंकड़ों की तादात में कीटनाशक विघमान होते हैं। इनका समुचित चयन काफी जरूरी होता है। परंतु, कौन सा कीटनाशक बेहतरीन ढंग से कार्य करता है। इसका चयन किस प्रकार से किया जाए। कहा जाता है, कि कीटनाशकों के ज्यादा खतरनाक होने की जानकारी रंगोें के जरिए से भी की जा सकती है। यह रंग कीटनाशकों के पैकेट पर भी लगा हुआ होता है।

किस कीटनाशक से कितना खतरनाक

लाल रंग निशान वाले कीटनाशक सबसे खतरनाक होते हैं

लाल रंग खतरे का निशान माना जाता है। रंगों के संबंध में भी कुछ ऐसा ही है। लाल रंग जहर की तीव्रता को नापने वाले पैमाने पर सबसे ज्यादा होता है। अब अगर किसी कीटनाशक के पैकेट के पीछे लाल रंग का लोगो है, तो यह सबसे तीव्र कीटनाशक रसायन के रूप में माना जाता है।

पीला रंग दूसरे स्तर पर खतरनाक कीटनाशक माना जाता है

लाल रंग के उपरांत पीले रंग को खतरनाक स्तर के मामले में दूसरे स्तर का कीटनाशक माना जाता है। खेत में इसका कितना इस्तेमाल किए जाना चाहिए। इसके पैकेट पर लिखा हुआ होता है। हालांकि, कृषि विशेषज्ञों से इसकी सलाह भी ली जा सकती है। 

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नीला रंग वाले मध्यम स्तर की तीव्रता रखते हैं

कीटनाशक के पैकेट का रंग यदि नीला होता है। उसकी तीव्रता मध्यम स्तर पर होती है। मतलब साफ है, कि यह लाल एवं पीले रंग से कुछ कम खतरनाक होता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. विवेक राज का कहना है, कि हर फसल में भिन्न-भिन्न प्रकार के कीट लगते हैं। उनकी तीव्रता भी ज्यादा और कम हो सकती है। इसी तीव्रता के आधार पर किसानों को कीटनाशक इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। उन्होंने कहा है, कि कोई भी किसान खेत में कीटनाशक इस्तेमाल करने से पूर्व कृषि एक्सपर्ट से सलाह जरूर प्राप्त करे। 

हरा रंग वाले कीटनाशकों में न्यूनतम स्तर की तीव्रता होती है

जिस पैकेट का रंग हरा होता है, उसकी तीव्रता न्यूनतम होती है। ऐसे मेें खेती मेें कम कीटनाशक होने अथवा फिर कीटनाशक के खतरे को देखते हुए इस प्रकार के कीटनाशकों के उपयोग की सलाह प्रदान की जाती है। अधिकांश किसानों को कीटनाशकों के खतरनाक होने के स्तर की जानकारी नहीं होती है। इसके चलते उनके साथ दुर्घटना होने की संभावना भी होती है।

रासायनिक कीटनाशकों को छोड़ नीम के प्रयोग से करें जैविक खेती

रासायनिक कीटनाशकों को छोड़ नीम के प्रयोग से करें जैविक खेती

आजकल कीटनाशक असली है या नकली ये कहना बहुत कठिन हो गया है, कई बार रासायनिक कीटनाशक फसल पर प्रतिकूल प्रभाव भी डालते हैं। किसान कम कीमत में कीटनाशक खरीदने के चक्कर में रसीद ही नहीं लेते, क्योंकि वह १८ % जी एस टी (GST) से बच जाते हैं और इस वजह से उनको घटिया किस्म के कीटनाशक पकड़ा दिए जाते हैं। नकली रासायनिक कीटनाशकों को छोड़कर, स्वयं नीम(Neem) के प्रयोग से कीटनाशक बनाने का प्रयास करें। नकली रासायनिक कीटनाशक भूमि और फसल को काफी हद तक दूषित और जहरीली बना देते हैं।

फसल को प्राकृतिक रूप से पैदा करने से, खाने वाले का स्वास्थ्य और मन दोनों स्वस्थ और मस्त रहता है, क्योंकि प्राकृतिक खेती करने से फसल में जहरीले रासायनिक कीटनाशकों व उर्वरकों का लेश मात्र भी मिश्रण नहीं होता। नीम के प्रयोग से किसान खुद अपने घर खेत पर ही कीटनाशक तैयार कर सकते हैं, जो कि रासायनिक कीटनाशकों की जगह एक अच्छे विकल्प की भूमिका अदा करेगा। नीम द्वारा बनाई गयी कीटनाशक दवा का फसल में छिड़काव करके किसान अपनी फसल की कीटों से सुरक्षा कर सकते हैं।

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नीम से कीटनाशक बनाने के क्या फायदे हैं ?

नीम से कीटनाशक बनाकर किसान कीटनाशकों पर किये जाने वाले अधिक खर्च से बच सकते हैं। किसान दूषित खानपान को रोकने के लिए ऑर्गेनिक और जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। जैविक एवं आर्गेनिक खेती की चर्चा आज पूरे देशभर में चल रही है, क्योंकि इसमें किसानों की कम लागत लगने के साथ साथ फसल भी उत्तम गुणवत्ता के साथ होती है, जिसे खाने से लोगों को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता। जबकि रासायनिक तरीके से उत्पन्न की जाने वाली फसल में अच्छे बुरे केमिकल्स मिले हुए होते हैं, जो कि काफी हद तक सेहत को खराब करने में सक्षम होते हैं। इसलिए नीम से बनायीं गयी कीटनाशक दवाओं का ही छिड़काव किया जाना चाहिए। नीम से निर्मित कीटनाशक दवा बहुत ही उम्दा और शुद्ध होती है।

घर बैठे किस प्रकार तैयार करें जैविक कीटनाशक

जैविक कीटनाशक घर पर तैयार करने के लिए नीम का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है, नीम के अंदर बहुत सारे गुण विघमान होते हैं। नीम में जीवाणुरोधी एंटी कार्सिनोजेनिक एवं एंटीफंगल जैसी विशेषताएं कीटनाशक बनाने के लिए बहुत सहायक साबित होती हैं। साथ ही नीम के तेल का निचोड़ भी कीटनाशक प्रतिरोधी अवयवों से उत्पन्न हुआ है, जिसकी दुर्गंध एवं कड़वेपन की वजह से यह फसलों को कीट व कीड़ों से बचाने की क्षमता रखता है।

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नीम का कीटनाशक घर पर तैयार करने की विधि :

नीम का कीटनाशक बनाने के लिए :

  • हरी मिर्च और लहसुन को अच्छी तरह से पीस कर, अच्छी तरह मिश्रण करने के उपरांत उबले हुए चावल के जल में डालदें।
  • मिश्रण के बाद कम से कम २४ घंटे के लिए किसी अच्छे स्थान पर रखें,
  • उसके बाद इसको लहसुन और हरी मिर्च वाले जल में सही तरीके से मिलाकर, मिर्च और लहसुन के छिलकों को छानकर बाहर निकालदें।
  • तीन चार चम्मच नीम के तेल के अर्क को मिश्रित करने के बाद, एक बोतल पानी में मिलाकर पतला करें,
  • मिश्रण को कीट व रोगों से ग्रसित पौधों पर छिड़कें।