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जानिए कैसे करें बरसीम,जई और रिजका की बुआई

जानिए कैसे करें बरसीम,जई और रिजका की बुआई

पशुओं को पौष्टिक आहार देने के लिए हरे चारे की जरूरत होती है। हरे चारे के लिए बरसीम, जई और रिजका की खेती बहुत ही फायदे वाली है। बरसीम के शुष्क पदार्थ में पाचनशीलता 70 प्रतिशत होती है तथा 20 प्रतिशत प्रोटीन होता है। बरसीम की तरह जई भी रबी के मौसम का एक गैर दलहनी पौष्टिक चारा है। दुग्ध उत्पादन के लिए लाभप्रद है। यह पशुओं को भरपेट खिलाई जा सकती है। बरसीम, जई के अलावा रिजका भी रबी में उगाई जाने वाली फलीदार चारे की सिंचित फसल है। इसमें प्रोटीन 15 प्रतिशत होता है। आइये जानते हैं कि बरसीम, जई और रिजका की खेती किस प्रकार की जाती है।

बरसीम की बुआई कैसे करें

jaee दोमट व जलसोखन की अधिक क्षमता वाली जमीन में बरसीम की खेती अच्छी पैदावार देती है। इसकी खेती के लिए अधिक सिंचाई की जरूरत होती है। बरसीम की बुआई के लिए गहरी जुताई कर भुरभुरी मिट्टी वाला खेत होना चाहिये। एक हेक्टेयर में 20 क्यारियां बनाकर बुआई करना चाहिये। इससे सिंचाई में सुविधा होती है। बरसीम की अच्छी उपज लेने के लिए गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट खाद 10 टन तथा 20किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश बुआई से पूर्व खेत में बिखेरनी चाहिये। प्रत्येक हेक्टेयर में 20 से 25 किलो बीज आवश्यक होता है। बुआई से पहले बीज का 5 प्रतिशत नमक के घोल वाले पानी में डुबाना चाहिये। हल्के तैरने वाले बीज को निकाल देना चाहिये। उसके बाद बीजों को एक ग्राम कार्बनडेजिम+दो ग्राम थायरम नामक फफूंद नाशक दावा मिलाकर उपचारित करना चाहिये। इसके बाद राइजोबियम कल्चर से बीज उपचारित करें । इसके बाद बुआई करें। बुआई का समय अक्टूबर से नवंबर तक सर्वोत्तम माना जाता है। बुआई में देरी होने पर कटाई की संख्या कम हो जाती है।

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दो तरीके से बरसीम की बुआई की जाती है:-

1. खेत में बनी क्यारियों में पानी भरे और उपचारित बीज को समान से छिटक कर बुआई करें। किसान भाई ध्यान रखें कि खेत में पानी की सतह 5 सेमी से कम ही रहें। 2. दूसरी विधि में खेत में बनी क्यारियों में उपचारित बीज को छिटक दें और उसके बाद सिंचाई कर दें। सिंचाई करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि पानी की धार तेज न हो वरना सारा बीज बहकर एक जगह पर इकट्ठा हो जायेगा। बरसीम की फसल पहली सिंचाई बुआई के 5-6 दिनों बाद ही की जानी चाहिये। इसके बाद प्रत्येक 15 दिनों बाद सिंचाई करनी चाहिये। पहली कटाई 50 दिन के बाद करनी चाहिये। उसके बाद प्रत्येक 20 से 25 दिन के अन्तर पर कटाई करते रहें। इसके बाद प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करनी जरूरी होती है।

पशु चारे के रूप में जई की बुआई कैसे करें

jaee जई को मटर, बरसीम, लुसर्न के साथ बुआई करने से बहुत लाभ होता है। जई की खेती के लिए दोमट भूमि, बलुई दोमट, मटियारी दोमट मिट्टी सबसे उत्तम बताई गई है। खरीफ की फसल में खाली छोड़े गये खेत में जई की खेती अच्छी तरह से होती है। इसके लिए खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा उसके बाद देशी हल से तीन से चार बार की जुताई की जानी चाहिये। फिर पाटा लगाया जाना चाहिये। जिससे खेत में ढेले व जड़ें न रहें। आखिरी जुताई करते समय खेत में 60 किलो नाइट्रोजन 40 किलो फास्फोरस डालकर मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिये। नाइट्रोजन की तीन बराबर मात्रा बना लेनी चाहिये। एक जुताई के समय और दो 20-20 किलो की मात्रा को बुआई के 20-25 दिन के बाद पहली सिंचाई के साथ देना चाहिये। दूसरी बार उस समय नाइट्रोजन की मात्रा डालनी चाहिये जब दूसरी बार चारे की कटाई कर लें। वैसे तो जई की बुआई का सही समय अक्टूबर का प्रथम सप्ताह माना जाता है लेकिन इसकी बुआई दिसम्बर तक की जा सकती है। लाइन से लाइन की दूरी कम से कम 20 सेमी रहनी चाहिये। खेत में नमी कुछ कम दिखाई पड़ रही हो तो बांस के पोरे से बुआई करनी चाहिये ताकि बीज गहराई तक जा सके। उसके बाद क्यारियां बना लें। जई की बुआई के एक माह बाद पहली सिंचाई करनी चाहिये। खेत में पानी बहुत न भरें और एक माह के अंतराल से सिंचाई करते रहें। वैसे जई की फसल को एक बार ही काटा जाता है लेकिन खेत की उर्वरा शक्ति अच्छी हो और फसल अच्छी दिख रही हो तो इसे दो बार भी काटा जा सकता है। पहली बार उस समय कटाई की जा सकती है जब पौधे 60 सेमी ऊंचे हो जायें ।  दो माह बाद भी कटाई की जा सकती है। पौधों की कटाई 6-7 सेमी की ऊंचाई से कर लेनी चाहिये। जनवरी से मार्च तक चारा खिलाया जा सकता है।

रिजका की बुआई किस प्रकार की जाती है

रिजका रबी में पैदा की जाने वाले फलीदार चारे की फसल है। एक बार बोने के बाद लगभग 3 से 4 वर्ष तक यह पैदावार देती रहती है।  रिजका की बुआई से किसान को दोहरा लाभ मिलता है। पहला यह कि पशुओं को हरा चारा मिलता है दूसरा यह कि इसकी जड़ों को खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। रिजका में प्रोटीनकी मात्रा 15 प्रतिशत अधिक है। इसलिये रिजिका को ज्वार, बाजरा, जई, जौ, सरसो, शलजम आदि के साथ मिक्स कर पशुओं को खिलाना चाहिये। 27 डिग्री तापमान में होने वाली रिजका की फसल दोमट मिट्टी के अलावा रेतीली दोमट, चिकनी दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है। क्षारीय भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। रिजका की अच्छी फसल लेने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें उसके बाद देशी हल या हैरों से दो तीन जुताई करें। जब मिट्टी भुरभुरी हो जाये तब खेत में क्यारियां बनायें। रिजका की अकेली फसल के लिए प्रत्येक हेक्टेयर के लिए 20 से 25 किलो बीज की जरूरत होती है। इसकी बुआई लाइन से लाइन की दूरी 25 सेन्टीमीटर रखकर की जा सकती है। इसकी बुआर्ई सीड ड्रिल से भी की जा सकती है और छिटका कर भी बुआई होती है। अधिक चारा प्राप्त करने के लिए रिजका के साथ दो किलो सरसो और 12 किलो मैथी व 3 किलो चाइनीज कैबेज यानी जापानी सरसों की बुआई करनी चाहिये।  बुआई से पहले बीज का उपचार व शोधन करना चाहिये। रिजका की बुआई नवम्बर के मध्य में की जानी चाहिये। इसके बीजों का छिलका काफी कड़ा होता है । इसलिये बीजों को 8 घंटें तक पानी में भिगो कर रखना चाहिये उसके बार राइजोबियम कल्चर मिलाकर बुआई करें। रिजका की अच्छी खेती के लिए शुरुआत में बढ़वार के लिए जैविक खाद के साथ 20 से 30 किलो नाइट्रोजन , 100 किलो फास्फोरस तबा 30 किलो पोटाश डालनी चाहिये। नाइट्रोजन की आधी मात्रा अंतिम जुताई के समय डाली जानी चाहिये। बाकी आधी मात्रा को तीन बराबर हिस्से बनाकर प्रत्येक दूसरी कटाई के बाद छिटकना चाहिये। रिजका की फसल को बरसीम की अपेक्षा कम सिंचाई की जरूरत होती है। पौध निकलने के बाद हल्की सिंचाई करें। हल्की मिट्टी में सर्दियों के मौसम में 10 से 12 दिन के अन्तर में सिंचाई करें। गर्मियों में 5 से 7 दिन में सिंचाई करें। रिजका में मोयला और मृदु आसिल रोमिता का प्रकोप होता है। इससे बचाव के उपाय करें।  इस फसल से दिसम्बर से जुलाई तक चारा मिलता रहता है। पहली कटाई बुआई के 60 दिन के बाद करनी चाहिये। अगली कटाई पौधे की बढ़वार के अनुसार एक माह के अन्तर में करते रहें। मार्च के बाद कटाई 10 प्रतिशत फूल आने पर ही करें।
बकरी पालन और नवजात मेमने की देखभाल में रखे यह सावधानियां (goat rearing and newborn lamb care) in Hindi

बकरी पालन और नवजात मेमने की देखभाल में रखे यह सावधानियां (goat rearing and newborn lamb care) in Hindi

पशुपालन की बात करें, तो हम बकरियों को कैसे भूल सकते हैं। इन बकरियों का इस्तेमाल किसान प्राचीन काल से ही करते आ रहे हैं। क्योंकि इन से प्राप्त गोबर से बनी जैविक खाद कृषि उत्पादन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। बकरियों का मुख्य स्त्रोत वैसे तो दूध देना होता है। परंतु या किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक होती हैं। किसान खेती तथा पशुपालन कर अपना आय निर्यात करते हैं। यह कार्य किसान प्राचीन काल से करते चले आ रहे हैं। बकरियों का कृषि उपज में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है कृषि के कई कार्यों में इनका इस्तेमाल किया जाता है। 

कभी-कभी  किसानों को अपने खेत द्वारा फायदा नहीं होता तो वह पशुपालन की ओर बढ़ते है। कुछ ही वक्त में किसान पशुपालन से ज्यादा लाभ  उठा लेता है। बकरी पालन व नवजात मेमने की देखभाल रखे कुछ सावधानियां । यदि आप भी पशुपालन द्वारा धन की प्राप्ति करना चाहते हैं। तो यह उच्च विचार है क्योंकि आप बकरी पालन में बहुत ज्यादा फायदा उठा सकते हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे, कि बकरी पालन में इतना फायदा क्यों होता है, क्योंकि या मार्केट में उचित दाम पर बिकते हैं। जिससे आपको अच्छी धन की प्राप्ति होती है।बकरियों को बाजार में बेचने में कोई समस्या नहीं होती। किसान के लगाए हुए मूल्य पर यह बकरियां मार्केट में बिका करती हैं। 

बकरियों की भारतीय नस्लें (Goat Breeds in India)

किसान द्वारा पशुपालन की नस्लों को निम्नलिखित भागों में बांटा गया हैं। पूर्ण रूप से भारत में लगभग 21 मुख्य बकरियों की नस्लें पाई जाती है। 

बकरियों की दुधारू नस्लें (Milch Breeds of Goats) in Hindi

बकरियों की नस्ल में दुधारू नस्लें कुछ इस प्रकार की होती हैं जैसे: बरबरी ,बीटल ,सूरती, जखराना, जमुनापारी आदि। 

बकरी पालने करने के तरीके:  ( Methods of Raising Goats:) in Hindi

bakri palan karne ka tarika


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 बकरियों को पालने के लिए आपको बहुत बड़ी जगह की आवश्यकता नहीं होती।आप साधारण स्थान पर भी उनका पालन पोषण कर सकते हैं। उन्हें आप अपने घर के किसी भी हिस्से में आसानी से रख सकते हैं।वह भी काफी बड़ी मात्रा में , अगर आप भी बकरी पालने का काम शुरू करना चाहते हैं। तो आपको बड़ी जगह लेने की जरूरत नही पड़ेगी। बकरी पालन का मुख्य क्षेत्र बुंदेलखंड है। जहां इन बकरियों का पालन पोषण किया जाता है। या बकरियां खेतों में घूमते फिरते, चारा चर अपना पेट भर लेती हैं। बकरियों के लिए अलग से चारों की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है।

बकरियों की प्रजनन क्षमता: ( Fertility of Goats:)

बकरियों की प्रजनन क्षमता बहुत होती हैं ,यह सिर्फ करीबन डेढ़ साल की उम्र में ही बच्चा प्रजनन करने की क्षमता रखती है। 6 से 7 महीनों के अंदर उनका जन्म हो जाता है। एक बकरियां एक बार में तीन से चार या कभी-कभी उससे अधिक बच्चे भी पैदा करती हैं। इनकी वृद्धि का यह भी मुख्य कारण है। कि यह 1 साल में दो बार प्रजनन क्षमता की शक्ति रखती हैं।जिससे इनकी संख्या में काफी वृद्धि हो जाती है। किसान या बकरियों के मालिक इनको लगभग 1 वर्ष की उम्र में या फिर उससे कम समय से ही बेचना शुरू कर देते हैं।

बकरियों को पालते समय कुछ सावधानियां बरतें:( Some Precautions to Be Taken While Raising Goats) in Hindi

Bakri Palan

  • जब बकरियों के बच्चे छोटे होते हैं, तो उनको बहुत सावधानी के साथ रखना पड़ता है क्योंकि कुछ जंगली जानवर उनको नोच, दबाकर खा लेते हैं।
  • कम आबादी वाले क्षेत्र में जंगल बहुत ही पास होता है जिसकी वजह से जंगली जानवर बकरियों को खाने के लिए उनकी महक सूंघकर आते हैं।
  • बकरियों को हरे चारे बहुत पसंद होते हैं जिसकी वजह से वह खेत की ओर भागते हैं, इसीलिए खेत को सुरक्षित रखने के लिए बकरियों से सावधानी बरखनी चाहिए।
  • बकरियों के दूध में बहुत तरह के पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं ,परंतु दूध में आने वाली महक लोगों को अच्छी नहीं लगती हैं, जिसकी वजह से बकरियों के दूध नहीं बिकते।
  • बारिश के मौसम में आपको इनकी देख रेख बहुत अच्छे ढंग से करनी होती है क्योंकि यह गीले स्थान पर बैठना पसंद नहीं करती हैं।
  • गीली जगह पर बैठने से बकरियों को कई तरह के रोग हो जाते हैं।
  • बकरियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए इनको प्रतिदिन जंगलों या खेतों में चराना बहुत ही आवश्यक होता है।
  • बकरी पालने के लिए आपको किसी तकनीकी या किसी भी अन्य ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह व्यवसाय काफी तेजी से बढ़ रहा है शहरों से कई लोग बकरी खरीदने के लिए गांव की ओर रुख करते हैं।
  • किसी भी तरह की आपत्ति या जरूरत आने पर आप उचित दामों में बकरी या बकरे को बेचकर धन की प्राप्ति कर सकते हैं यह व्यवसाय आय के साधनों को बढ़ाता है।

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गाभिन बकरियां ( Pregnant Goats) in Hindi

किसान गाभिन बकरियों की निम्नलिखित तरीकों से जांच करते हैं वह कुछ इस प्रकार है:

जब बकरियां गाभिन होती हैं तो उनको और उचित पोषक तत्व की जरूरत पड़ती है।ताकि उनको अपने शिशु को जन्म देते हुए कोई तरह  परेशानी ना हो। गाभिन बकरियों को अतिरिक्त पोषण के साथ कीड़ा में लिप्त मेमनों से सुरक्षा  का उचित ख्याल रखना होता है। बकरियां अतिरिक्त 144 या 152 दिन के अंदर अपना गर्भ धारण कर लेती हैं। पौष्टिक तत्व बकरियों की प्रजनन क्षमता को बहुत बढ़ाता है। जिससे या अधिक संतान पैदा कर सके। पौष्टिक तत्व की बिना पर यह जुड़वा बच्चे देने में भी सक्षम होती हैं।

बकरियों के प्रसव से जुड़ी कुछ सावधानियां:(Some Precautions Related to The Delivery of Goats) in Hindi

जब बकरियां प्रसव के करीब रहे, तो उनकी अच्छे से देखभाल करना आवश्यक होता है। किसान को उनके प्रसव के टाइम पर पूर्ण निगरानी रखनी चाहिए। जब प्रसव एकदम करीब आ जाए तो उसकी तैयारी के लिए किसानों के पास दूध की छोटी बोतल का होना जरूरी है ताकि  वह नवजात शिशु को दूध पिला सके। बकरियों के बच्चों के लिए अच्छा टिंक्चर आयोडीन तथा प्रतिजैविक दवाइयों का देना आवश्यक है। यदि बकरियां किसी भी प्रकार से जन्म देने के लिए तैयार ना हो तो पशु चिकित्सालय से संपर्क करें।

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बकरियों के नवजात मेमने की देखभाल:(Newborn Lamb Care of Goats) in Hindi:

बकरी के नवजात मेमने की देखभालmemne ki dekhbhal

बकरियों के बच्चे जैसे पैदा हो उनका मुंह ,नाक  साफ कपड़े से अच्छी तरह पोछे।

  • उनकी नाभि से कुछ दूरी पर नाल कांटे और साफ धागे से टिंचर लगा दे।
  • नवजात शिशु अच्छे से चल सके। इसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए उनकी की खुर साफ करते हुए तोड़ कर अलग कर दें। जिससे बच्चा आसानी से खड़ा हो सके।
  • नवजात बकरियों के शिशु को मां के पास ही रखें।ताकि बकरियां उन्हें चाट कर उनके बदन में गर्मी पैदा कर सके।
  • पोटाश के पानियों से बकरियों के थन स्थल को अच्छे से साफ करें।
  • नवजात शिशु के लिए दूध बहुत ही उपयोगी होता है। जितना जल्दी हो सके वह बकरी का दूध पी ले। जिससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों से नवजात शिशु की रक्षा हो सके।
  • 15 दिन के बाद बकरियों के शिशु को नरम हरा चारा देने की शुरुआत कर दें। इन में बढ़ोतरी करते रहे। जिससे बच्चा अच्छे से चलने लगे और फुर्तीला बना सके।
  • 3 महीने के बाद बकरियों के बच्चों को चरने के लिए खेतों में लेकर जाएं। किसी खुले स्थान पर छोड़ दें ताकि वह चर सके।
  • बकरियों के नवजात शिशु का वजन तीन महीनों पर करते रहे। जिससे उनके वजन का अंदाजा हो सके। ऐसा करने से वजन की बढ़ोतरी तथा घटने दोनों की जानकारी हो जाती हैं।
  • बकरियों के नवजात शिशु को कृमिनाशक दवाई पिलायें साथ ही साथ उनका टीकाकरण भी करें, तथा अपने पास के पशु चिकित्सा केंद्र भी जाते रहे।

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हमारी इस पोस्ट में बकरियों से जुड़ी विभिन्न प्रकार की जानकारी दी हुई है। जिससे आप बकरियों की पूर्ण रूप से देखभाल कर सकते हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं। तो आप इस आर्टिकल को Social Media और अपने दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा शेयर(Share) करें धन्यवाद।

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात में बकरियों का विशेष रूप से ख्याल रखना पड़ता है। इस मौसम में उनको बीमार होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि आप बारिश के दिनों में कैसे अपनी बकरी की देखभाल करें। गांव में गाय-भैंस की भांति बकरी पालने का भी चलन आम है। आज के वक्त में बहुत सारे लोग बकरी पालन से प्रति वर्ष मोटी आमदनी करने में सफल हैं। हालांकि, बरसात के दौरान बकरियों को बहुत सारे गंभीर रोग पकड़ने का खतरा रहता है। इस वजह से इस मौसम में पशुपालकों द्वारा उनका विशेष ख्याल रखा जाता है। आज हम आपको यह बताएंगे कि बरसात में बकरियों की देखभाल किस तरह की जा सकती है। 

बकरियों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें

पशुपालन विभाग द्वारा जारी सुझावों के मुताबिक, बरसात में बकरियों को जल से भरे गड्ढों अथवा खोदे हुए इलाकों से दूर रखें ताकि वे फंस न जाएं। बारिश से बचाने के लिए उन्हें घर से बाहर भी शेड के नीचे रखें। क्योंकि पानी में भीगने से उनकी सेहत पर काफी दुष्प्रभाव पड़ सकता है। 

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बकरियों के लिए चारा-जल इत्यादि की उचित व्यवस्था करें

बरसात के समय, बकरियों के लिए स्वच्छ पानी मुहैय्या कराएं। अगर वे बाहर रहते हैं, तो उनके लिए छत के नीचे पानी की व्यवस्था करें। जिससे कि वे ठंड और बरसात से बच सकें। आपको उन्हें स्वच्छ एवं सुरक्षित भोजन भी प्रदान करना होगा। बरसात में आप चारा, घास अथवा अन्य विशेष आहार उनको प्रदान कर सकते हैं। 

बकरियों के आसपास स्वच्छता का विशेष बनाए रखें

बरसात में इस बात का ध्यान रखें, कि बकरियों के आसपास की स्वच्छता कायम रहे। उनके लिए स्थायी अथवा अस्थायी शेल्टर का भी उपयोग करें, जिससे कि वे ठंड और नमी से बच सकें। 

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बकरियों का टीकाकरण कराऐं

बकरियों के स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए उनको नियमित तौर पर वैक्सीनेशन उपलब्ध कराएं। इसके लिए पशु चिकित्सक से सलाह भी लें एवं उन्हें बकरियों के लिए अनुशासनिक टीकाकरण अनुसूची बनाने की बात कही है।