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खुशखबरी: इस नवीन तकनीक से अब हर मौसम में खेती करना हुआ आसान

खुशखबरी: इस नवीन तकनीक से अब हर मौसम में खेती करना हुआ आसान

भारत एक कृषि समृद्ध देश है। भारत में पारंपरिक फसलों के अतिरिक्त सब्जियों और फलों की खेती भी की जाती है। सब्जियों एवं फलों में मोटा मुनाफा देखकर पिछले कुछ वर्षों में किसानों का रुझान इस तरफ तीव्रता से बढ़ा है। 

बहुत सारे किसान तो पॉलीहाउस तकनीक के माध्यम से ऑफ सीजन की फल-सब्जियों को उगाकर मोटा मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। 

हालांकि, पॉली हाउस तकनीक महंगी होने के चलते प्रत्येक किसान को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। इसी बात को मद्देनजर रखते हुए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय रांची के कृषि वैज्ञानिकों ने पॉली हाउस की नवीन तकनीक को विकसित किया है। 

यह तकनीक किसानों के लिए हर फसल में लाभदायक साबित होगी। इस तकनीक के माध्यम से हर मौसम की फल-सब्जियों को उगाया जा सकेगा। 

कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की नवीन पॉली हाउस तकनीक  

नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने "छत विस्थापित पॉली हाउस" नवीन तकनीक को विकसित किया है। पॉली हाउस तकनीक के जरिए किसान साल भर खेती तो कर पाते हैं। 

लेकिन, उन्हें कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। खासकर गर्मियों के मौसम में जब ज्यादा तापमान को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। 

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इसी समस्या का समाधान निकालते हुए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस नई तकनीक को इजात किया है। जहां किसान जब चाहे मौसम के अनुसार पॉली हाउस की छत को बदल सकते हैं। इससे वर्ष भर गुणवत्तापूर्ण फल और सब्सिजों की पैदावार हो सकेगी।

पॉली हाउस तकनीक इतनी खास क्यों है ?

पॉलीहाउस या ग्रीन हाउस की तकनीक बहुत सारी विशेषताओं को ध्यान में रखती है। यह वातावरण के नियंत्रण, पौधों की वृद्धि, फसलों की सुरक्षा और उचित देखरेख के जरिए उन्हें उचित मात्रा में पोषण प्रदान करने के लिए तैयार किया जाता है। 

इसके अतिरिक्त पॉलीहाउस को बनाने में कुछ खास तकनीकी दिशा-निर्देशों का पालन करना जरूरी होता है, जैसे कि उचित वातावरण, पौधों की बेहतर देखभाल आदि।

इस तरह पॉलीहाउस तकनीक की जरूरत उत्तम वातावरण, पौधों की वृद्धि और फसलों की सुरक्षा के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। 

इसके इस्तेमाल से खुले खेत में खेती की अपेक्षा सब्जियों की विपणन योग्य गुणवत्ता कम से कम 50% प्रतिशत और उत्पादकता 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

"छत विस्थापित पॉली हाउस" कैसे कार्य करता है ?

दरअसल, इस पॉलीहाउस में छत को छोड़कर बाकी पूरा स्ट्रक्चर यूवी स्टेबलाइज्ड कीड़ा रोधी प्लास्टिक से ढंका हुआ रहता है। गर्मी के मौसम में यह यूवी स्टेबलाइज्ड फिल्म (200 माइक्रोन) से ढंका हुआ रहता है। 

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वहीं, जाड़े के मौसम में हरे शेड-नेट से कवर किया हुआ रहता है। इस नए विकसित पॉलीहाउस की खूबी यह मौसम के अनुरूप काम करने के लिए तैयार की गई है। 

नवंबर महीने से लेकर फरवरी महीने तक पॉलीहाउस के रूप में काम करता है। वहीं, जून से लेकर अक्टूबर महीने तक यह रेन शेल्टर के तोर पर कार्य करता है और फिर मार्च से मई तक यह शेड नेट के रूप में काम करता है। 

इसमें यह मिट्टी और वायु के तापमान ओर प्रकाश की तीव्रता को नियंत्रित करके इसे साल भर खेती के लिए उपयुक्त बनाता है। इससे सब्जियों की उत्पादकता काफी ज्यादा बढ़ती है।

पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

अपने जीवन में अपने कभी ना कभी हरित गृह प्रभाव या ग्रीनहाउस प्रभाव (greenhouse effect) के बारे में तो अवश्य सुना होगा, लेकिन इसी हरित ग्रह प्रभाव की मदद से कई भारतीय किसान अब पॉलीघर या पॉलीहाउस (Polyhouse) तकनीक का इस्तेमाल कर हाईटेक फार्मिंग या संरक्षित खेती करने में सफल हो रहे हैं।

क्या होता है पॉलीहाउस ?

पोली-हाउस हरित गृह प्रभाव पर काम करने वाली एक तकनीक होती है, जिसमें विशेष प्रकार की पॉलीथिन का इस्तेमाल फसलों को ढकने के लिए एक आवरण बनाकर किया जाता है। इस पोली हाउस की मदद से किसी भी जगह की कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों को नियंत्रित किया जाता है। कृषि में आई नई तकनीकों के शुरुआती दौर में हरित गृह प्रभाव के लिए लकड़ी के चेंबर बनाकर उसे कांच से ढका जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से पॉलीथिन और प्लास्टिक के निर्माण में आए सुधारों की वजह से अब प्लास्टिक अथार्त पॉलीथिन (Polyethylene या Polythene) का इस्तेमाल भी हरित गृह प्रभाव के लिए किया जा रहा है। [caption id="attachment_10755" align="alignnone" width="487"]पॉलीहाउस - बाहर से (Polyhouse) पॉलीहाउस - बाहर से[/caption]

पॉलीहाउस में किस फसल का हो सकता है सर्वश्रेष्ठ उत्पादन ?

वैसे तो पॉलीहाउस का इस्तेमाल दैनिक दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली सब्जी के उत्पादन और पौधे की छोटी नर्सरी तैयार करने में किया जाता है। वर्तमान में भारत के उत्तरी पूर्वी और हिमालय पर्वत से जुड़े राज्यों में कुकुम्बर (cucumber) और गुच्ची मशरूम (Gucchi Mushroom) के अलावा कई फसलें इसी विधि से तैयार की जा रही है। इसके अलावा सजावट और स्वास्थ्यवर्धक फायदे वाले कई प्रकार के फूल जैसे कि जरबेरा, गुलाब और ऑर्किड की खेती भी की जा रही है।


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कैसे लगाएं पॉलीहाउस ?

पॉलीहाउस की शुरुआत करने के लिए आपको लगभग 1000 स्क्वायर मीटर की जगह की आवश्यकता होगी। किसान भाई ध्यान रखें कि किसी भी पॉलीहाउस की संरचना बनाने से पहले उस जगह पर पानी की उपलब्धता और मार्केट की दूरी के बारे में पूरी जानकारी अवश्य प्राप्त कर लेवें। [caption id="attachment_3641" align="alignnone" width="750"]पॉलीहाउस निर्माण कार्य पॉलीहाउस निर्माण कार्य[/caption] इसके अलावा पॉलीहाउस को हमेशा समतल धरातल पर ही बनाना चाहिए और पॉलीहाउस का स्थान अपने आसपास के समतल धरातल से थोड़ा ऊपर उठा हुआ होना चाहिए। इसके लिए या तो आप कोई ऐसी जगह निश्चित कर सकते हैं जो ऊपर उठी हुई हो, या फिर अपने खेत की ही समतल जगह पर मिट्टी का जमाव कर स्थान को ऊपर उठा सकते है।

क्या है पॉलीहाउस फार्मिंग के फायदे ?

भारतीय किसानों के लिए मुख्यतः मौसम की मार कई बार उनके खेतों में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इसी मौसम के बदलते स्वरूप से होने वाले नुकसान से बचने के लिए, कठोर वातावरण वाले जगहों पर कृषि करने वाले किसान भाई, धीरे-धीरे पॉलीहाउस फार्मिंग की तरफ बढ़ रहे हैं। जलवायुवीय बदलाव जैसे की हवा की तेजी और बारिश का कम या ज्यादा होना जैसे नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों से पोली हाउस की मदद से बचा जा सकता है। पॉलीहाउस का एक और सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसके इसके अंदर उगाई जाने वाली कोई भी फसल को उसकी आवश्यकता अनुसार तापमान और नमी की मात्रा उपलब्ध करवाई जा सकती है, जिससे उसकी वृद्धि दर तेज हो जाती है और उत्पाद जल्दी तथा अधिक प्राप्त होता है।


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[caption id="attachment_2895" align="alignnone" width="666"]ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी पॉलीघर या पॉलीहाउस -भीतर से (Polyhouse - inside view)[/caption] कृषि वैज्ञानिकों की राय में पोली हाउस में कार्बन डाइऑक्साइड के अधिक सांद्रण की वजह से उत्पाद अधिक तैयार होते हैं और परंपरागत तरीके से की जाने वाली खुली खेती की तुलना में पॉलीहाउस में लगभग 2 गुना तक उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं। वर्तमान में पॉलीहाउस में मशीनीकरण के बेहतर इस्तेमाल की वजह से फर्टिलाइजर का छिड़काव और पानी की नियमित सिंचाई स्वचालित रूप से ही हो रही है, इसी वजह से किसान भाइयों की मजदूरी में लगने वाली लागत कम खर्च होती है। हालांकि इन सभी फायदों के अलावा पॉलीहाउस फार्मिंग के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं, जैसे कि पॉलीहाउस को बनाना और पूरी तरह सेट अप करना काफी खर्चीला होता है। इसके अलावा पॉलीहाउस विधि से होने वाली कृषि की निरंतर निगरानी रखनी होती है और तापमान या नमी में थोड़े से बदलाव होने की वजह से ही फसल का नुकसान हो सकता है। पॉलीहाउस को चलाने के लिए किसी स्किल्ड सुपरवाइजर की आवश्यकता होती है और किसान भाइयों को कई प्रकार का तकनीकी ज्ञान हासिल करना होता है। खुले पर्यावरण से मिलने वाले कई पोषक तत्व और हवा में उपलब्ध कई सूक्ष्म पोषक तत्व पॉलीहाउस फार्मिंग में पौधे तक नहीं पहुंच पाते हैं, इसीलिए इस विधि में उर्वरक और कीटनाशक का अधिक इस्तेमाल किया जाता है जो कि जैविक खेती की तरफ बढ़ते भारतीय किसानों की सोच के लिए नकारात्मक असर देता है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=KiHbtPNAyUg[/embed]

सामान्यतः पूछे जाने वाले सवाल (FaQs) :

सवाल :- क्या पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए सरकार किसी तरह की कोई सहायता उपलब्ध करवाती है ?

जवाब :- वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकार के अलावा कई स्थानीय पंचायती सरकारें भी किसान भाइयों के लिए कई प्रकार की सब्सिडी और तकनीकी ज्ञान के लिए ट्रेनर की सुविधा उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार अपनी हॉर्टिकल्चर ट्रेंनिंग स्कीम के तहत अलग-अलग जगह पर सेंटर खोल कर पॉलीहाउस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कोशिश कर रही है।

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सवाल :- क्या किसी भी पॉलीहाउस को बनाने से पहले पूरी प्लानिंग करना आवश्यक है ?

जवाब :- जी हां, किसी भी अन्य व्यवसाय की तरह ही पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए भी पहले से पूरी प्लानिंग बनाएं और इसके लिए किसान भाई एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करें। इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में आप अपने पॉलीहाउस को संचालित करने के लिए काम में आने वाले तकनीकी ज्ञान और वित्तीय सहायता के अलावा बाजार से जुड़ी संबंधित जानकारियों के बारे में लिस्ट तैयार करके ही फार्मिंग की शुरुआत करें।

सवाल :-  क्या पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए किसी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता होती है ?

जवाब :- वर्तमान में कृषि मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है, हालांकि किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि पॉलीहाउस बनाने के दौरान बची हुई पॉलीथिन को खुले में ना फेंके। आशा करते हैं कि हमारे सभी किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा पॉलीहाउस फार्मिंग से जुड़ी यह जानकारी पसंद आई होगी और भविष्य में बदलती जलवायुवीय परिस्थितियों से बचने के लिए आप भी कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन की राह पर चलते हुए पॉलीहाउस फार्मिंग में जरूर हाथ आजमाना चाहेंगे।
क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती

क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती

कस्टर्ड एप्पल को भारत में शरीफा या सीताफल के नाम से जाना जाता है। यह भारत में मुख्यतः सर्दियों के मौसम में मिलने वाला फल है। लेकिन अगर इसकी उत्पत्ति की बात करें तो प्रारम्भिक तौर पर यह फल अमेरिका और कैरेबियाई देशों में पाया जाता था। जिसके बाद इसका प्रसार अन्य देशों तक हुआ, इसके प्रसार में अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple)

भारत में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की खेती बहुतायत में होती है। अगर मुख्य रूप से इसकी खेती की बात करें, तो महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, असम और आंध्रप्रदेश में इसकी खेती होती है। इन राज्यों में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) का सबसे ज्यादा उत्पादन महाराष्ट्र में होता है। महाराष्ट्र में बीड, औरंगाबाद, परभणी, अहमदनगर, जलगाँव, सतारा, नासिक, सोलापुर और भंडारा कस्टर्ड एप्पल के प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) के उपयोग से कौन-कौन से फायदे होते हैं

यह एक ठंडी तासीर वाला मीठा फल होता है, जिसमें कैल्शिम और फाइबर जैसे न्यूट्रिएंट्स की भरपूर मात्रा मौजूद होती है। अगर हेल्थ बेनेफिट की बात करें तो यह फल आर्थराइटिस और कब्ज जैसी परेशानियों से छुटकारा दिलाता है। इसके पेड़ की छाल में मौजूद टैनिन दवाइयां बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके आलवा अगर इसके नुकसान की बात करें तो इसके फलों का सेवन करने से बहुत जल्दी मोटापा बढ़ता है। इसमें शुगर की मात्रा ज्यादा पाई जाती है, जिसके कारण इसका ज्यादा सेवन करने से बचना चाहिए।


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कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की ये किस्में भारतीय बाजार में मौजूद हैं

भारतीय बाजार में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की ढेर सारी किस्में मौजूद हैं। जो अलग-अलग राज्यों में अगल-अलग जगह पर उगाई जाती हैं। कस्टर्ड एप्पल की मुख्य किस्मों में बाला नगरल, लाल शरीफा, अर्का सहन का नाम आता है। बाला नगरल किस्म के फल हल्के रंग के होते हैं और इसके फल में बीजों की मात्रा ज्यादा होती है। सीजन आने पर इस किस्म के पेड़ से 5 किलो तक कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा लाल शरीफा दूसरी प्रकार की किस्म है, जिसके फल लाल रंग के होते हैं। इस किस्म के हर पेड़ से सालाना 50 फल प्राप्त किये जा सकते हैं। अर्का सहन कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की तीसरी किस्म है, इसे हाइब्रिड किस्म कहा जाता है। इसके फल तीनों किस्मों में सबसे अधिक मीठे होते हैं।

कस्टर्ड एप्पल की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी

कस्टर्ड एप्पल की खेती वैसे तो किसी भी मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन पीएच स्तर 7 से 8 बीच वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त बताई जाती है। यह विशेषता खास तौर पर दोमट मिट्टी में पाई जाती है, इसलिए यह मिट्टी कस्टर्ड एप्पल की खेती के लिए अन्य मिट्टियों की अपेक्षा में बेहतर मानी गई है।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु एवं तापमान

कस्टर्ड एप्पल की खेती हर प्रकार की जलवायु में की जा सकती है, इसकी खेती के लिए कोई विशेष प्रकार की जलवायु की जरुरत नहीं होती है। लेकिन यदि इसकी खेती शुष्क जलवायु में की जाए तो यह पेड़ ज्यादा ग्रोथ दिखाता है। इस पेड़ को गर्म एवं शुष्क जलवायु में आसानी से विकसित किया जा सकता है। यह पेड़ इस तरह की जलवायु में ज्यादा उत्पादन देता है।


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इस तरह से लगाएं कस्टर्ड एप्पल का पेड़

कस्टर्ड एप्पल का पेड़ लगाने के लिए इसके बीज की 2 से 3 इंच गहरे गड्ढे में बुवाई करें। इसके बाद यह पौधा अंकुरित हो जाएगा, जिसके बाद समय-समय पर पौधे को पानी देते रहें और निराई गुड़ाई करते रहें। इसके अलावा इस पौधे को पॉली हाउस में भी तैयार किया जा सकता है। पोलीहाऊस में तैयार करके पौधे को किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दें। अगर कस्टर्ड एप्पल लगाने के तीसरे तरीके की बात करें, तो यह पौधा ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग करके भी तैयार किया जा सकता है। इस तकनीक में कलम के द्वारा पौध को तैयार किया जाता है, बाद में इसे कहीं और स्थानांतरित कर सकते हैं।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) के पौधों में इतने दिनों के बाद करें सिंचाई

वैसे तो कस्टर्ड एप्पल के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। लेकिन फिर भी इसे समय-समय पर पाती देते रहना चाहिए। इसके पौधों को अंकुरित होने के तुरंत बाद पानी दें। इसके बाद एक साल तक 3-4 दिन में पानी डालते रहें। एक साल बीतने के बाद हर 20 दिनों में पौधे को पानी दें।
इस राज्य में आमदनी दोगुनी करने वाली तकनीक के लिए दिया जा रहा 50 % अनुदान

इस राज्य में आमदनी दोगुनी करने वाली तकनीक के लिए दिया जा रहा 50 % अनुदान

छत्तीसगढ़ राज्य के कृषक बड़े पैमाने पर शेडनेट तकनीक द्वारा फूलों का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनकी आमदनी भी काफी बढ़ गई है। किसान केवल पारंपरिक फसलों की खेती से हटकर फूल उगाकर भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं। फूलों की मांग भारत सहित पूरी दुनियाभर में है। यदि किसान भाई शेडनेट तकनीक से फूलों का उत्पादन करें, तब उनको अधिक आमदनी होगी। इस तकनीक से जरिए वर्षभर एक ही खेत में फूल का उत्पादन किया जा सकता है। शेडनेट तकनीक में खर्चा भी कम आता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई शेडनेट तकनीक का उपयोग करके अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। छत्तीसगढ़ जनसंपर्क के अनुसार, छत्तीसगढ़ के किसान बड़े पैमाने पर शेडनेट तकनीक द्वारा फूलों का उत्पादन कर रहे हैं। नतीजतन, उनकी आमदनी भी काफी बढ़ चुकी है। साथ ही, इस तकनीक के चलते फूलों की पैदावार भी बढ़ गई है। विशेष बात यह है, कि यहां के कृषक शेडनेट के अतिरिक्त पॉली हाऊस, ड्रिप और मच्लिंग तकनीक द्वारा भी फूलों की खेती कर रहे हैं। इन किसानों द्वारा उत्पादित फूलों की मांग हैदराबाद, भुवनेश्वर, अमरावती और नागपुर जैसे बड़े शहरों में भरपूर है। 

शेडनेट तकनीक किसानों की मेहनत कम कर देती है

फूलों की खेती करने के लिए शेडनेट तकनीक बेहद फायदेमंद है। इस तकनीक के उपयोग से खेती करने पर फसल में कीट संक्रमण और रोगिक भय नहीं रहता है। अब ऐसी स्थिति में फूलों की पैदावार एवं गुणवत्ता पर असर नहीं पड़ता हैं। विशेष बात यह है, कि दीर्घकाल तक एक ही स्थान पर फसल के लगे रहने से कृषकों को परिश्रम कम करना पड़ता है। इससे उनकी आमदनी भी दोगुनी हो जाती है। 

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छत्तीसगढ़ सरकार शेडनेट तकनीक के लिए 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है

जानकारों के अनुसार, इस तकनीक का उपयोग गर्मी से पौधों को संरक्षण देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। शेडनेट के अंतर्गत आप गर्मी के मौसम में नहीं उगने वाले पौधों का भी उत्पादन कर सकते हैं। साथ ही, बारिश के मौसम में भी शेडनेट के कारण फूल सुरक्षित रहते हैं। परंतु, फिलहाल छत्तीसगढ़ सरकार अपने प्रदेश में इस तकनीक के माध्यम से खेती करने वाले कृषकों को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। प्रदेश सरकार इसके लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत संरक्षित खेती हेतु 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। इस योजना के चलते किसान भाई ज्यादा से ज्यादा 4000 वर्गमीटर में शेडनेट स्थापित कर सकते हैं। 

किसान लगभग 10 लाख रुपये तक की आमदनी कर रही है

छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जनपद के डोंगरगढ़ विकासखंड में किसान शेडनेट तकनीक के इतेमाल से बड़े पैमाने पर खेती कर रहे हैं। बतादें, कि ग्राम कोलिहापुरी के किसान गिरीश देवांगन ने जरबेरा, रजनीगंधा और गुलाब की खेती कर रखी है। इससे वर्षभर में लगभग 10 लाख रुपये की आमदनी हो रही है। गिरीश देवांगन के अनुसार, उनके गांव में उत्पादित किए जाने वाले फूलों की अधिकांश मांग सजावट के उद्देश्य से हो रही है। इसके अतिरिक्त भुवनेश्वर, हैदराबाद, अमरावती एवं नागपुर में भी इस गांव से फूलों का निर्यात किया जा रहा है।

उत्तराखंड सरकार राज्य में किसानों को पॉलीहॉउस के लिए 304 करोड़ देकर बागवानी के लिए कर रही प्रोत्साहित

उत्तराखंड सरकार राज्य में किसानों को पॉलीहॉउस के लिए 304 करोड़ देकर बागवानी के लिए कर रही प्रोत्साहित

किसानों की बेहतरीन और उन्नति के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से निरंतर प्रयास करती हैं। इसकी एक वजह यह भी है, कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। 

यहां की अधिकांश जनसँख्या कृषि पर ही निर्भर रहती है। इसलिए कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान देना सरकार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। धामी सरकार प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसर अधिक करने को लेकर चिंतन कर रही है। 

इसके लिए मुख्यमंत्री धामी निरंतर योजनाएं तैयार कर रही है। इसी कड़ी में धामी ने बहुत सारे सार्वजनिक मंचों से भी कई बार यह कहा है, कि हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भी खेती-बागवानी को रोजगार का माध्यम बनाया जाए। अब इसी कड़ी में राज्य सरकार ने पॉलीहाउस को लेकर बड़ा निर्णय लिया गया है।

सरकार ने 304 करोड़ की धनराशि मंजूर की है

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने की दिशा में धामी सरकार की तरफ से एक बड़ी पहल की गई है। इसके अंतर्गत प्रदेश में पॉलीहाउस के जरिए एक-एक लाख से ज्यादा कृषकों को रोजगार प्रदान करने की योजना है। 

विगत दिवस हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में पॉलीहाउस बनाने के लिए धामी सरकार द्वारा 304 करोड़ की योजना को स्वीकृति दे दी है। बतादें, कि धामी सरकार राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसर अधिक बढ़ाने के संबंध में विचार कर रही है। 

इसके लिए मुख्यमंत्री धामी निरंतर योजना तैयार करने में लगे हुए हैं। धामी जी कई सारे सार्वजनिक मंचों के माध्यम से भी यह ऐलान कर चुके हैं, कि वह हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भी खेती-बागवानी को रोजगार का माध्यम बनाया जाए। अब इसी कड़ी में राज्य सरकार की तरफ से पॉलीहाउस को लेकर बड़ा निर्णय लिया गया है।

सरकार 70 प्रतिशत तक अनुदान देगी

उत्तराखंड में भी इसके तहत क्लस्टर आधारित छोटे पॉलीहाउस में बागवानी यानी सब्जी एवं फूलों की खेती की योजना का फैसला लिया गया है। 

नाबार्ड की योजना के तहत क्लस्टर आधारित 100 वर्गमीटर आकार के 17,648 पॉलीहाउस निर्मित करने के लिए 304 करोड़ रुपये राज्य कैबिनेट द्वारा मंजूर किये गये हैं, जिसमें किसान भाइयों को 70 फीसद अनुदान प्रदान किया जायेगा।

इसके तहत प्रदेश के तकरीबन 1 लाख कृषकों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर स्वरोजगार के साधन प्राप्त होने के साथ-साथ उनकी आमदनी में भी इजाफा हो पाएगा। 

जिससे सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। वहीं, पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले पलायन में भी काफी गिरावट आयेगी। साथ ही, सब्जियों की पैदावार में 15 फीसद और फूलों की पैदावार में 25 प्रतिशत तक का इजाफा होगा।

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

अगर आप सफेद बैंगन की बिजाई करते हैं, तो इसके तुरंत उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अधिक जल की जरुरत नहीं पड़ती। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि प्रत्येक क्षेत्र में लोग लाभ उठाने वाला कार्य कर रहे हैं। 

उसी प्रकार खेती-किसानी के क्षेत्र में भी वर्तमान में किसान ऐसी फसलों का पैदावार कर रहे हैं। जिन फसलों की बाजार में मांग अधिक हो और जो उन्हें उनके खर्चा की तुलना में अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकें। 

सफेद बैंगन भी ऐसी ही एक सब्जी है, जिसमें किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित हो रहा है। काले बैंगन की तुलनात्मक इस बैंगन की पैदावार भी अधिक होती है। 

साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी अधिक मिल पाता है। सबसे मुख्य बात यह है, कि बैंगन की यह प्रजाति प्राकृतिक नहीं है। इसे कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के माध्यम से विकसित किया है।

बैंगन की खेती कब और कैसे होती है

सामान्यतः सफेद बैंगन की खेती ठण्ड के दिनों में होती है। परंतु, आजकल इसे टेक्नोलॉजी द्वारा गर्मियों में भी उगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद बैंगन की दो किस्में- पूसा सफेद बैंगन-1 और पूसा हरा बैंगन-1 को विकसित किया है। 

सफेद बैंगन की यह किस्में परंपरागत बैंगन की फसल की तुलना में अतिशीघ्र पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि इसका उत्पादन करने हेतु सबसे पहले इसके बीजों को ग्रीनहाउस में संरक्षित हॉटबेड़ में दबाकर रखा जाता है। 

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साथ ही, इसके उपरांत इसकी बिजाई से पूर्व बीजों का बीजोपचार करना पड़ता है। ऐसा करने से फसल में बीमारियों की आशंका समाप्त हो जाती है। 

बीजों के अंकुरण तक बीजों को जल एवं खाद के माध्यम से पोषण दिया जाता है और पौधा तैयार होने के उपरांत सफेद बैंगन की बिजाई कर दी जाती है। यदि अत्यधिक पैदावार चाहिए तो सफेद बैंगन की बिजाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए।

सफेद बैंगन की खेती बड़ी सहजता से कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें कि सफेद बैंगन की रोपाई यदि आप करते हैं, तो इसके शीघ्र उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

यही कारण है, कि टपक सिंचाई विधि के माध्यम से इसकी खेती के लिए जल की जरूरत बड़े आराम से पूरी हो सकती है। हालांकि, मृदा में नमी को स्थाई रखने के लिये वक्त-वक्त पर आप सिंचाई करते रहें। 

सफेद बैंगन की पैदावार को बढ़ाने के लिए जैविक खाद अथवा जीवामृत का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इससे बेहतरीन पैदावार मिलने में बेहद सहयोग मिल जाता है। 

इस फसल को कीड़े एवं रोगों से बचाने के लिये नीम से निर्मित जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बैंगन की फसल 70-90 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।

पॉलीहाउस खेती क्या होती है और इसके क्या लाभ होते हैं

पॉलीहाउस खेती क्या होती है और इसके क्या लाभ होते हैं

जैसा कि हम जानते हैं, भारतीय समाज हमेशा से ही खेती पर निर्भर रहा है। हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी हुई है। लोग अपनी जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग फसलें उगाते हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण जलवायु पैटर्न बहुत तेजी से बदल रहा है। भारत एक ऐसा देश है जो अपनी कृषि गतिविधियों के लिए मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है।

किसानों को जलवायु परिवर्तन से भारी हानि पहुँचती है

जलवायु परिवर्तन की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है, जिससे कुछ तकनीकों को विकसित करने की आवश्यकता होती है। जो किसानों को कृषि गतिविधियों में काफी सहायता करेगी। 

पॉलीहाउस खेती भारतीय समाज हमेशा से कृषि पर निर्भर रहा है। हमारी 70% आबादी पूरी तरह से अपने निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भरती को अधिक लाभदायक, लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की दिशा में एक कदम है। आगे इस लेख में, हम पॉलीहाउस खेती के लाभों को देखेंगे।

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पॉलीहाउस कृषि क्षेत्र का एक नवाचार है

वक्त के साथ, खेती को लाभदायक बनाने के लिए खेती के तरीके बदल गए हैं। पॉलीहाउस खेती कृषि का एक नवाचार है, जहां किसान जिम्मेदार कारकों को नियंत्रित करके अनुकूल वातावरण में अपनी कृषि गतिविधियों को जारी रख सकते हैं।

यह ज्ञानवर्धक तरीका किसानों को कई लाभ निकालने में सहायता करता है। आजकल लोग पॉलीहाउस खेती में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। क्योंकि यह ज्यादा लाभदायक है, और पारंपरिक खुली खेती की तुलना में इसके जोखिम बहुत कम हैं। 

साथ ही, यह एक ऐसी विधि है, जिसमें किसान पूरे वर्ष फसल उगाते रह सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से पोलीहॉउस खेती के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर सकते हैं।

खेती में पॉलीहाउस का इस्तेमाल क्यों किया जाता है

पॉलीहाउस नियंत्रित तापमान में फसल उगाने में बेहद लाभदायक होता है। इसके इस्तेमाल से फसल को नुकसान होने की संभावना कम होती है। 

पॉलीहाउस के अंदर कीट, कीड़ों और बीमारियों के फैलने की संभावना काफी कम होती है, जिससे फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है। इसलिए पॉलीहाउस तकनीक बाधाओं से लड़ने में काफी प्रभावी है।