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आत्महत्या

बारिश ने मचाई तबाही, किसानों ने अपनी जान गंवाई

बारिश ने मचाई तबाही, किसानों ने अपनी जान गंवाई

बीते कुछ दिनों से भारी बरसात के चलते किसानों में हाहाकार मचा हुआ है, कई दिनों से किसानों के घर चूल्हे नहीं जल पा रहे। किसान बेहद दुखी और निराश हैं, इसका एकमात्र मूसलाधार बारिश ही कारण नहीं है, इसका दूसरा कारण किसानों की आर्थिक स्तिथि भी है। किसान पूर्णतया कृषि के उपर ही आश्रित रहते हैं, अगर फसल में कोई नुकसान होता है तो प्रत्यक्ष रूप से किसान की आजीविका को खतरा हो जाता है। यही कारण है कि महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में अब तक कई किसानों ने आत्महत्या कर ली है, क्योंकि किसानों को भारी नुकसान होने से उनको उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही थी। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या जुलाई की तुलना में ३ गुना बढ़ गयी है। इसमें इकलौते नांदेड़ जिले में अगस्त तक ९३ आत्महत्या के मामले सामने आये हैं, जिनमें से ६३ किसानों को १ लाख रूपए प्रति किसान के हिसाब से पात्र घोषित किया गया था। पिछले वर्ष ११९ किसानों की आत्महत्या की पुष्टि हुई थी, जिसमें मात्र ६५ लोगों को ही आर्थिक सहायता मिल पायी थी। महाराष्ट्र में मराठवाडा क्षेत्र में ही ६६१ आत्महत्या करने वाले किसानों में से मात्र ४८५ परिवार को ही आर्थिक सहायता मिल पायी थी।


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महाराष्ट्र की कितनी भूमि में फसल बर्बाद हो चुकी है ?

महाराष्ट्र में बारिश के कोहराम से बहुत बड़े पैमाने पर फसल बर्बाद हुयी है, लगभग ३,६५२,८७२ हेक्टेयर भूमि बुरी तरह प्रभावित हो गयी है। किसानों को बहुत बड़ा झटका लगा है। किसान अपनी फसल को पैदा करने के लिए पहले कर्ज लेकर लागत लगाते हैं, इस वजह से फसल में नुकसान होने की स्तिथि में आय होने की जगह किसानों के उपर कर्ज की मार पड़ जाती है, जो किसानों के लिए बेहद चिंता का विषय है। ऐसी परिस्थिति में किसान कैसे अपनी कर्ज की धनराशि को चुका पायेगा, जब साथ ही उसकी आजीविका के लिए भी पर्याप्त धन अर्जित करने का एकमात्र स्त्रोत भी नष्ट हो गया है।

क्या किसानों के नुकसान की भरपाई हो पायेगी

किसानों को सरकार द्वारा तभी आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, जब उनकी फसल ३३ प्रतिशत से अधिक खराब हो गयी है। अब इस स्तिथि में बहुत सारे किसान आर्थिक सहायता से वंचित रह जाते हैं। यह कहना पूर्णतया उचित नहीं होगा कि समस्त पीड़ित किसानों को पूर्ण रूप से आर्थिक सहायता मिल पायेगी। किसानों को सहायता मिलने को लेकर संशय बना हुआ है, परिणामस्वरूप प्रतिदिन किसान आत्महत्या कर रहे हैं।


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ये फसलें हुई अत्यधिक प्रभावित

अत्यंत बारिश के चलते धान, बाजरा और अभी बोई गयी सरसों की फसल बेहद गंभीर रूप से प्रभावित हुईं हैं, साथ ही सोयाबीन जैसी अन्य फसलों में भी काफी नुकसान देखने को मिल रहा है। धान की फसल तो बिल्कुल जलमग्न हो गयी है, अब उसमें कीट और रोगग्रसित होने की सम्भावना भी बढ़ रही है। फसलों में आकस्मिक बड़े पैमाने पर नुकसान होने की वजह से अनाज के मूल्य में निश्चित रूप से काफी वृद्धि होने की सम्भावना है।
इस राज्य में सबसे ज्यादा किसान कर रहे हैं आत्महत्या, जाने क्या है कारण

इस राज्य में सबसे ज्यादा किसान कर रहे हैं आत्महत्या, जाने क्या है कारण

एक बार फसल लगाने के बाद किसानों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सूखा और बहुत ज्यादा बारिश उनमें से एक हैं। बहुत ज्यादा बारिश होने से कभी-कभी खेतों में खड़ी पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। जो किसानों के ऊपर भारी कर्ज और परेशानी छोड़ देता है। पिछले साल बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में भारी बारिश हुई, जिससे कई इलाकों में बाढ़ का पानी भर गया। इससे खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद हो गईं, ऐसे में किसान कर्ज में डूब गए। मीडिया की रिपोर्ट की मानें तो साल 2022 में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में लगभग 1000 से ज्यादा किसानों ने इन समस्याओं के चलते आत्महत्या की है। यह आंकड़े बहुत ज्यादा परेशान करने वाले हैं। कार्यालय के अधिकारियों की मानें तो इससे पिछले साल की गई आत्महत्या 887 थी जो इस साल बढ़कर 1023 हो गई हैं। किसानों की आत्महत्या एक ऐसा आंकड़ा है, जो कोई भी सरकार बढ़ाना नहीं चाहती है। मीडिया की रिपोर्ट की मानें तो साल 2001 और साल 2010 के बीच हजारों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें से बहुत से रिपोर्ट मीडिया में दर्ज भी नहीं होती है। यह आंकड़े ना सिर्फ चौकाने वाले हैं बल्कि दुखदाई भी हैं। एक बार फसल बर्बाद हो जाने के बाद किसानों के पास कोई रास्ता नहीं रह जाता है। वह मौत को गले लगाना ही सबसे सही समझते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, इस क्षेत्र में कुछ वर्षों में सूखे जैसी स्थिति और अन्य में अत्यधिक बारिश देखी गई है, जिसने फसल उत्पादकों की कठिनाइयों को बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में सिंचाई नेटवर्क का भी पूरी क्षमता से उपयोग नहीं किया जा रहा है।

दिसंबर और जून के बीच बढ़ रही हैं ऐसी घटनाएं

जिला प्रशासन के सहयोग से उस्मानाबाद में किसानों के लिए एक परामर्श केंद्र चलाने वाले विनायक हेगाना ने किसान आत्महत्याओं का विश्लेषण करते हुए छोटे से छोटे स्तर पर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ऊंचे लेवल पर कई तरह की नीतियां और योजनाएं बनाई जा रही हैं और साथ ही जमीनी स्तर पर भी कई तरह के सुधार किए जा रहे हैं। ताकि इस तरह की घटनाओं को कम किया जा सके। इससे पहले जुलाई और अक्टूबर के बीच सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं दर्ज की गई थी। लेकिन पैटर्न बदल गया है। उन्होंने कहा कि अब किसानों की आत्महत्या की घटनाएं दिसंबर और जून के बीच संख्या बढ़ रही हैं।

किसानों को अपनी उपज का अच्छा रिटर्न मिलना है जरूरी

संख्या पर अंकुश लगाने की नीतियों पर हेगाना ने कहा कि इन नीतियों में खामियां ढूंढना और उन्हें बेहतर बनाना एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए। साथ ही जरूरी है, कि कुछ ऐसे लोगों का समूह बनाया जा सके जो इस पर काफी एक्टिव हो कर काम करें। संपर्क किए जाने पर, महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने कहा कि हालांकि किसानों के लिए कई बार कर्जमाफी हुई है। लेकिन आंकड़े (आत्महत्या के) बढ़ रहे हैं। उन्होंने मीडिया में कहा कि केवल किसानों का कर्ज माफ कर देना ही काफी नहीं है। ये भी देखें: महाराष्ट्र में फसलों पर कीटों का प्रकोप, खरीफ की फसल हो रही बर्बाद हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि किसानों को उनकी उपज का अच्छा खासा रिटर्न मिले। जब किसान फसल लगाते हैं, तो उस पर काफी तरह का खर्चा करते हैं। अगर वह खर्चा ही ना निकाल पाए तो यह उनके लिए बहुत बड़ा आर्थिक संकट बन कर सामने आता है। दानवे ने बहुत ही ऊंचे दामों पर बेचे जा रहे घटिया किस्म के बीज और खाद के बारे में भी बात की और इस पर चिंता व्यक्त की है। अगर किसानों को सही तरह के बीज और खाद ही नहीं मिल पाएंगे तो उत्पादन को बढ़ाना मुश्किल है।
NCRB की रिपोर्ट में देश के किसानों की आत्महत्या के मामलों में इजाफा

NCRB की रिपोर्ट में देश के किसानों की आत्महत्या के मामलों में इजाफा

एनसीआरबी की नई रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों की आत्महत्या करने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताजा खबरों के मुताबिक साल 2022 में खेती किसानी से जुड़े लोगों की आत्महत्या से होने वाली मौतों में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है। चार दिसंबर को जारी लेटेस्ट अपडेट के मुताबिक राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार बीते वर्ष देश भर से तकरीबन 11,290 आत्महत्या के ऐसे मामले सामने आए हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 2021 से 3.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 10,281 मौतें दर्ज की गई थीं। 2020 के आंकड़ों की तुलना में 5.7 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। 2022 के आंकड़े कहते हैं, कि भारत में प्रति घंटे कम से कम एक किसान ने आत्महत्या कर ली है। साथ ही, 2019 से कृषकों की आत्महत्या से होने वाली मौतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है, जब NCRB डेटा में 10,281 मौतें दर्ज की गईं। खबरों के अनुसार, विगत कुछ वर्ष भारत में कृषि के लिए शानदार नहीं रहे हैं। साल 2022 में जिस साल के लिए एनसीआरबी ने डेटा जारी किया है। बहुत सारे प्रदेशों में सूखे की हालत एवं असामयिक निरंतर वर्षा भी हुई है, जिसकी वजह से खड़ी फसलें तक तबाह हो गईं। वहीं, चारे की कीमतें आसमान छू रही हैं। 

कृषि से जुड़े कितने लोगों ने आत्महत्या की 

रिपोर्ट के मुताबिक, खेती में लगे 11,290 व्यक्तियों में से आत्महत्या करने वालों में 53 फीसद (6,083) खेतिहार मजदूर हैं। विगत कुछ वर्षों में एक औसत कृषि परिवार की अपनी आमदनी के लिए फसल उत्पादन की अपेक्षा खेती से मिलने वाली मजदूरी पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। वर्ष 2022 में आत्महत्या करने वाले 5,207 किसानों में 4,999 पुरुष हैं, वहीं 208 महिलाएं भी शम्मिलित हैं। 

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इन राज्यों में आत्महत्या नहीं हुई है 

आत्महत्या करने वाले 6,083 कृषि श्रमिकों में 5,472 पुरुष एवं 611 महिलाएं शामिल हैं। वहीं, महाराष्ट्र में 4,248, कर्नाटक में 2,392, आंध्र में 917 कृषि आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट की मानें तो उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, चंडीगढ़, वेस्ट बंगाल, ओडिशा, बिहार, लक्षद्वीप पुदुचेरी में कृषि क्षेत्र से संबंधित कोई आत्महत्या दर्ज नहीं की गई है।