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पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

गाय-भैंस का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए आप साइलेज चारे को एक बार अवश्य खिलाएं। परंतु, इसके लिए आपको नीचे लेख में प्रदान की गई जानकारियों का ध्यान रखना होगा। पशुओं से हर दिन समुचित मात्रा में दूध पाने के लिए उन्हें सही ढ़ंग से चारा खिलाना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए किसान भाई बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को खरीदकर लाते हैं एवं अपने पशुओं को खिलाते हैं। यदि देखा जाए तो इस कार्य के लिए उन्हें ज्यादा धन खर्च करना होता है। इतना कुछ करने के पश्चात किसानों को पशुओं से ज्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन नहीं मिल पाता है।

 यदि आप भी अपने पशुओं के कम दूध देने से निराश हो गए हैं, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आज हम आपके लिए ऐसा चारा लेकर आए हैं, जिसको समुचित मात्रा में खिलाने से पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रति दिन बढ़ेगी। दरअसल, हम साइलेज चारे की बात कर रहे हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि यह चारा मवेशियों के अंदर पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के साथ ही दूध देने की क्षमता को भी बढ़ाता है। 

कौन से मवेशी को कितना चारा खिलाना चाहिए

ऐसे में आपके दिमाग में आ रहा होगा कि क्या पशुओं को यह साइलेज चारा भरपूर मात्रा में खिलाएंगे तो अच्छी पैदावार मिलेगी। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसा करना सही नहीं है। इससे आपके मवेशियों के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ध्यान रहे कि जिस किसी भी दुधारू पशु का औसतन वजन 550 किलोग्राम तक हो। उस पशु को साइलेज चारा केवल 25 किलोग्राम की मात्रा तक ही खिलाना चाहिए। वैसे तो यह चारा हर एक तरह के पशुओं को खिलाया जा सकता है। परंतु, छोटे और कमजोर मवेशियों के इस चारे के एक हिस्से में सूखा चारा मिलाकर देना चाहिए। 

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साइलेज चारे में कितने प्रतिशत पोषण की मात्रा होती है

जानकारी के अनुसार, साइलेज चारे में 85 से लेकर 90 प्रतिशत तक हरे चारे के पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें विभिन्न प्रकार के पोषण पाए जाते हैं, जो पशुओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। 

साइलेज तैयार करने के लिए इन उत्पादों का उपयोग

अगर आप अपने घर में इस चारे को बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको दाने वाली फसलें जैसे कि ज्वार, जौ, बाजरा, मक्का आदि की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें पशुओं की सेहत के लिए कार्बोहाइड्रेट अच्छी मात्रा में होते हैं। इसे तैयार करने के लिए आपको साफ स्थान का चयन करना पड़ेगा। साथ ही, साइलेज बनाने के लिए गड्ढे ऊंचे स्थान पर बनाएं, जिससे बारिश का पानी बेहतर ढ़ंग से निकल सके। 

गाय-भैंस कितना दूध प्रदान करती हैं

अगर आप नियमित मात्रा में अपने पशु को साइलेज चारे का सेवन करने के लिए देते हैं, तो आप अपने पशु मतलब कि गाय-भैंस से प्रति दिन बाल्टी भरकर दूध की मात्रा प्राप्त कर सकते हैं। अथवा फिर इससे भी कहीं ज्यादा दूध प्राप्त किया जा सकता है।

इन पेड़ों से बनता है प्लांट बेस्ड मीट, बाजार में है जबरदस्त मांग

इन पेड़ों से बनता है प्लांट बेस्ड मीट, बाजार में है जबरदस्त मांग

दुनिया भर में मांस के कारण बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसे मीट का निर्माण किया है, जो दिखने में पूरी तरह से मीट की तरह ही है, उसका स्वाद और रंग मीट की तरह है, लेकिन उसे पेड़ों से बनाया जाता है। इसलिए उसे शाकाहारी मीट या प्लांट बेस्ड मीट कहा जाता है। यह पूरी तरह से शाकाहारी है, इसे आर्टिफियल कलर्स और एडिड प्रिजर्वेटिव डालकर तैयार किया जाता है। जिससे इसका सेवन करने से इसमें मीट जैसा स्वाद आता है, लेकिन वास्तव में यह मीट नहीं है। इसको बनाने में पेड़ों के साथ-साथ सब्जियों और अनाजों का भी बहुतायत में उपयोग किया जाता है। अब भारत के साथ ही विश्व के कई देशों में प्लांट बेस्ड मीट की जबरदस्त मांग है, क्योंकि अब लोग इसे जमकर पसंद कर रहे हैं। मौके की नजाकत को देखते हुए टाटा और आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियों ने भी अब प्लांट बेस्ड मीट को बाजार में उतार दिया है। इससे कंपनियां जमकर मुनाफा कमा रही हैं। इसको देखते हुए अब किसानों के पास भी यह सुनहरा मौका है कि वो एग्री बिजनेस के तहत प्लांट मीट का व्यापार कर सकते हैं।

इन चीजों से बनाया जाता है प्लांट बेस्ड मीट

यह पूरी तरह से शाकाहारी है, इसलिए इसके निर्माण में पूरी तरह से शाकाहारी चीजें उपयोग की जाती हैं। इसके निर्माण में ज्यादातर फलियां, दाल, किनोवा, नारियल का तेल, गेहूं के ग्लूटन या सीतान, सोयाबीन, मटर, चुकंदर के रस के अर्क को उपयोग में लाया जाता है। इसमें ओट्स और बादाम के दूध का भी इस्तेमाल होता है। यह मीट पूरी तरह से वनस्पतियों से तैयार किया जाता है। आजकल देश के बड़े-बड़े होटलों और रेस्त्रां में इस मीट का प्रयोग बढ़ गया है। भारत में कई ऐसे सेलेब्रिटी हैं जो वास्तविक मीट की जगह पर प्लांट बेस्ड मीट को प्रमोट कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक प्लांट बेस्ड मीट का व्यवसाय 1 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।

इस मीट से इस प्रकार होते हैं हेल्थ बेनिफिट

जानवरों से प्राप्त मीट में कैलोरी, सैचुरेटेड और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जबकि प्लांट बेस्ड मीट में ज्यादातर फाइबर और हेल्दी प्रोटीन पाया जाता है। इसलिए इसमें कैलोरी, सैचुरेटेड और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा न के बराबर होती है। इसके साथ ही अगर जानवरों से प्राप्त मीट की जगह प्लांट बेस्ड मीट का सेवन किया जाता है तो इससे सेवनकर्ता को हाई बीपी, मोटापा, कैंसर और लॉन्ग टर्म क्रॉनिक डिजीज की संभावना भी बहुत कम होती है। यह मांस हृदय रोग और डायबिटीज की संभावना को भी कम कर देता है, जबकि जानवरों से प्राप्त मीट के सेवन में इन रोगों का खतरा बना रहता है। यह भी पढ़ें: यह पेड़ आपको जल्द ही बना सकता है करोड़पति, इसकी लकड़ी से बनते हैं जहाज और गहने चूंकि यह पूरी तरह से इको फ्रेंडली होता है इसलिए इसके सेवन से कैंसर, आंत और पाचन से जुड़े रोगों का खतरा भी नहीं रहता। जो लोग भी मांसाहार छोड़ना चाहते हैं यह उनके लिए वरदान से कम नहीं है।

किसान कमा सकते हैं इससे जबरदस्त मुनाफा

आजकल सरकार एग्री बिजनेस और एग्री स्टार्ट अप स्कीम को प्रमोट कर रही है। इसके अंतर्गत यदि किसान चाहें तो प्लांट बेस्ड फूड बिजनेस के सेक्टर में कदम रख सकते हैं। साथ ही प्लांट बेस्ड मीट का उत्पादन शुरू कर सकते हैं। इसके लिए वो ऑर्गेनिक रॉ-मटेरियल खुद के खेतों पर ही उत्पादित कर सकते हैं। ऐसे बिजनेस को शुरू करने के लिए सरकार भारी अनुदान और लोन देती है। किसान भाई लोन और अनुदान प्राप्त करने के लिए अपने जिले के कृषि विभाग या खाद्य विभाग से संपर्क कर सकते हैं।
एथेनॉल के बढ़ते उत्पादन से पेट्रोल के दाम में होगी गिरावट, महंगाई पर रोक लगाने की तैयारी

एथेनॉल के बढ़ते उत्पादन से पेट्रोल के दाम में होगी गिरावट, महंगाई पर रोक लगाने की तैयारी

जानकारी के लिए बतादें कि उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक प्रदेश माना जाता है। राज्य में तकरीबन 200 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन होता है। विशेष बात यह है, कि पांच वर्ष पूर्व यूपी में मात्र 24 करोड़ लीटर ही एथेनॉल का उत्पादन हो पाता था। 

पूरी दुनिया में प्राकृतिक ईंधन की खपत के साथ मांग भी तीव्रता से बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में पेट्रोल- डीजल के भंडार को अतिशीघ्र समाप्त होने का संकट मडराने लगा है। 

परंतु, भारत के साथ- साथ बाकी देशों ने पेट्रोल- डीजल की खपत में गिरावट करने हेतु उत्तम विकल्प का चयन कर लिया है। वर्तमान में प्राकृतिक ईंधन के स्थान पर जैविक ईंधन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। 

विशेष रूप से भारत में गन्ने के रस द्वारा प्रति वर्ष करोड़ों लीटर एथेनॉल निर्मित किया जा रहा है, जिसका इस्तेमाल इंधन के तौर पर किया जा रहा है। 

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दरअसल, भारत में एथेनॉल निर्मित करने हेतु अलग से बहुत सारे प्लांट स्थापित किए गए हैं। परंतु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने से बड़े पैमाने पर एथेनॉल की पैदावार की जा रही है। 

विशेष बात यह है, कि इस कार्य में स्वयं चीनी मिलें जुटी हुई हैं। उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों में गन्ने के माध्यम से एथेनॉल निर्मित किया जा रहा है। 

दरअसल, सरकार का कहना है, कि एथेनॉल के इस्तेमाल से पेट्रोल-डीजल की खपत में गिरावट आएगी। इससे इनकी कीमतों में भी काफी कमी देखने को मिलेगी। जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से महंगाई पर होगा।

एथेनॉल किस तरह से बनाया जाता है

एथेनॉल निर्मित करने के लिए सर्वप्रथम गन्ने की मशीन में पेराई की जाती है। इसके उपरांत गन्ने के रस को एक टैंक में कुछ घंटों तक इकट्ठा करके उसे फर्मेंटेशन के लिए छोड़ दिया जाता है। 

उसके बाद टैंक में बिजली द्वारा हिट देकर एथेनॉल तैयार किया जाता है। विशेष बात यह है, कि आप एक टन गन्ने द्वारा 90 लीटर तक एथेनॉल निर्मित कर सकते हैं। तो वहीं एक टन गन्ने के उपयोग से 110 से 120 किलो तक ही शक्कर की पैदावार की जा सकती है।

एथेनॉल को ईंधन के तौर पर ऐसे इस्तेमाल करें

एथेनॉल एक प्रकार का जैविक ईंधन माना जाता है। इसका पेट्रोल में मिश्रण करके ईंधन की भांति उपयोग किया जाता है। इससे संचालित होने वाली गाड़ियां काफी कम प्रदूषण करती हैं। 

अब हम ऐसी स्थिति में कह सकते हैं, कि एथेनॉल पर्यावरण सहित किसानों के लिए भी लाभकारी है। साथ ही, ईंधन के तौर पर एथेनॉल का इस्तेमाल बढ़ने से आम जनता को भी महंगाई से काफी सहूलियत मिलेगी। 

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एथेनॉल से निर्मित ईंधन 30 से 35 रुपए की बचत कराएगा

दरअसल, फिलहाल एथेनॉल का भाव 60 से 65 रुपये लीटर है। वहीं, पेट्रोल की कीमत 100 रुपये के लगभग है। अगर आगामी समय में एथेनॉल का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर बढ़ेगा तो आम जनता को महंगाई से सहूलियत मिलेगी। 

पेट्रोल-डीजल की कीमत में वृद्धि आने पर उसका प्रत्यक्ष रूप से महंगाई पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि माल ढुलाई का खर्चा भी बढ़ जाता है। 

ऐसी स्थिति में खाद्यान वस्तुएं भी काफी महंगी हो जाती हैं। हालांकि, ईंधन के तौर पर एथेनॉल का इस्तेमाल करने पर पेट्रोल की तुलना में आम जनता को 30 से 35 रुपये प्रति लीटर की बचत होगी।

इतने लाख टन कार्बन के उत्सर्जन में भी आई कमी

वर्तमान में भारत के अंदर पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रित कर के बेची जा रही है। हालाँकि, केंद्र सरकार का लक्ष्य है, कि वर्ष 2025 तक पेट्रोल में एथेनॉल की मात्रा में वृद्धि करके 20 प्रतिशत तक कर दिया जाएगा। 

हालांकि, ईंधन में एथेनॉल मिश्रित करके केंद्र सरकार द्वारा अब तक 41 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत की गई है। इसी कड़ी में लगभग 27 लाख टन कार्बन का उत्सर्जन भी कम हुआ है।

कितने करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन किया जाता है

भारत का उत्तर प्रदेश राज्य सर्वोच्च एथेनॉल उत्पादक प्रदेश है। प्रदेश में तकरीबन 200 करोड़ लीटर एथेनॉल का उत्पादन होता है। विशेष बात यह है, कि पांच वर्ष पूर्व यूपी सिर्फ 24 करोड़ लीटर ही एथेनॉल की पैदावार कर पाता था।

लेकिन, सर्वाधिक एथेनॉल उत्पादन करने के बावजूद भी उत्तर प्रदेश चीनी उत्पादन में भी देश में प्रथम स्थान पर है। गन्ना सीजन 2022-23 में यूपी द्वारा 150.8 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया है, जो कि विगत वर्ष इसी अवधि तक 150.8 लाख टन से भी ज्यादा है। ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है, कि एथेनॉल उत्पादन का प्रभाव चीनी उत्पादन पर नहीं होगा।

हर तरह की मिट्टी में उत्पादित होने वाले सफेद चंदन की खेती से बनें अमीर

हर तरह की मिट्टी में उत्पादित होने वाले सफेद चंदन की खेती से बनें अमीर

सफेद चंदन की खेती किसी भी तरह की मृदा में की जा सकती है। सफेद चंदन बंजर, धूस, पथरीली और ऊसर मृदा में भी तीव्रता के साथ उन्नति करता है। समय के चलते पढ़े-लिखे लोगों की रुचि भी खेती के प्रति बढ़ती जा रही है। वर्तमान में अच्छे- खासे वेतन वाली नौकरी को छोड़कर इंजीनियर और एमबीए पास युवक कृषि के अंदर अपने हाथ आजमा रहे हैं। विशेष बात यह है, कि इस प्रकार के प्रोफेशनल युवा वैज्ञानिक ढ़ंग से कृषि कर रहे हैं, जिससे उनको ज्यादा मुनाफा हो रहा है। कोई उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेशों में सेब की खेती कर रहा है, तो कोई अखरोट और आंवले की बागवानी कर रहा है। परंतु, इन युवाओं को यह पता होना जरूरी है, कि सफेद चंदन की खेती में इन फसलों की तुलना में अधिक मुनाफा होता है। यदि युवा सफेद चंदन की पैदावार करते हैं, तो लाखों नहीं करोड़ों में मुनाफा कमाऐंगे।

सफेद चंदन की खेती इन राज्यों में की जा सकती है

मीडिया एजेंसियों के अनुसार, सफेद चंदन का उत्पादन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में भी किया जा सकता है। बहुत सारे किसानों ने तो इन राज्यों में सफेद चंदन की खेती चालू भी कर दी है। सफेद चंदन की लकड़ी काफी ज्यादा महँगी होती है। बाजार में इसकी कीमत 8 से 10 हजार रुपये प्रतिकिलो है। विदेशों में एक किलो सफेद चंदन का भाव 25 हजार रुपये है। मतलब कि चंदन के एक पेड़ से लाखों रुपये की आमदनी की जा सकती है। एक एकड़ में सफेद चंदन की खेती चालू करने पर एक लाख रुपये का खर्चा आता है। परंतु, 14 से 15 वर्ष के उपरांत इससे आप करोड़ों रुपये की आमदनी कर सकते हैं।

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सफेद चंदन से निर्मित किए जाने वाले उत्पाद

सफेद चंदन औषधीय गुणों से संपन्न होता है। इसका इस्तेमाल खिलौने, परफ्यूम, हवन सामग्री, अगरबती, कंठी माला और साबुन बनाने में किया जाता है। चंदन से निर्मित किए गए साबुन और परफ्यूम काफी ज्यादा महंगे बिकते हैं। यदि किसान भाई सफेद चंदन की खेती करते हैं। तब उनकी कुछ वर्षों के बाद जिंदगी ही बदल जाएगी।

सफेद चंदन की खेती के लिए हर प्रकार की मृदा उपयुक्त है

सफेद चंदन की खेती हर तरह की मृदा में की जा सकती है। यह पथरीली, बंजर, धूस और ऊसर मृदा में भी तेजी के साथ विकास करता है। हालाँकि, इस सब के बावजूद भी दोमट मृदा सफेद चंदन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसका उत्पादन शुरू करने से पूर्व भूमि को सही ढंग से तैयार कर लें। दो पौधों के मध्य कम से कम 10 फीट की दूरी अवश्य रखें। एक एकड़ में चंदन के 400 से ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं। साथ ही, समय- समय पर इसकी सिंचाई भी करते रहें। मुख्य बात यह है, कि जिस खेत में आपने सफेद चंदन के पौधे लगाए हैं, उसके अंदर जल निकासी की भी बेहतरीन सुविधा होनी चाहिए। खेत में जलभराव होने की स्थिति में पौधों को काफी हानि भी हो सकती है।
जानिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड क्या है और इससे किसानों को क्या फायदा होता है।

जानिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड क्या है और इससे किसानों को क्या फायदा होता है।

किसानों के खेत की मृदा जांच के लिए हर जगह प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। इन प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिकों द्वारा जांच के पश्चात मिट्टी के गुण-दोष की सूची तैयार की जाती है। जैसा कि हम जानते हैं, प्रत्येक राज्य सरकार अपने अपने स्तर से किसानों की आमदनी बढ़ाने की हर संभव मदद करती है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भी इसी प्रकार की एक योजना है। 

इस योजना के अंतर्गत किसान अपनी मिट्टी की जांच कराते हैं और फिर रिपोर्ट के आधार पर खेती किया करते हैं। ऐसा करने से खेती में उनका खर्च भी कम लगता है। साथ ही, उत्पादन भी पहले की तुलना में बढ़ जाती है। ऐसा इस वजह से क्योंकि जब आपकी मिट्टी की जांच होती है, तो यह पता चल जाता है कि आखिर मृदा में कमी क्या है और इसे किस तरह सही करना है। इसके साथ-साथ ये भी पता चल जाता है, कि आखिर इस मृदा में कौन सी फसल बेहतर होगी।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड कब बनता है

इस कार्ड को बनवाने हेतु आपको योजना की ऑफिशियल वेबसाइट soilhealth.dac.gov.in पर जाना पड़ेगा। इसके पश्चात होम पेज पर मांगी गई जानकारी भरकर Login के विकल्प पर क्लिक करना होगा। पेज खुलने पर अपना राज्य चुनें और Continue के बटन पर क्लिक करना होगा। अगर पहली बार आवेदन कर रहे हैं, तो नीचे Register New User पर क्लिक करें और रजिस्ट्रेशन फॉर्म भर दें। 

आपको इस रजिस्ट्रेशन फॉर्म में User Organization Details, Language, User Details, User Login Account Details की जानकारी भरनी पड़ेगी। फिर फॉर्म में समस्त जानकारी सही-सही भरकर अंत में सबमिट के बटन पर क्लिक करना होगा। ऐसा करने के उपरांत लॉगिन करके मृदा की जांच हेतु आवेदन कर सकते हैं। 

आप यदि चाहें तो हेल्‍पलाइन नंबर 011-24305591 और 011-24305948 पर भी कॉल कर संपर्क साध सकते हैं। उसके उपरांत आप helpdesk-soil@gov.in पर ई-मेल भी कर सकते हैं।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड से क्या फायदा होता है

मृदा स्वास्थ्य कार्ड (soil health card) योजना के अंतर्गत भारत का कोई भी किसान भाई मृदा की जाँच करा सकता है। इस कार्ड की मदद से कृषक सहजता से जान सकता है, कि मृदा में किन पोषक तत्वों की कमी है। जल कितना उपयोग करना है और किस फसल का उत्पादन करने से उन्हें लाभ हांसिल होगा। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कार्ड बनने के उपरांत किसानों को मिट्टी में नमी का स्तर, मृदा की सेहत, उत्पादक क्षमता, क्वालिटी एवं मिट्टी की कमजोरियों को सुधारने के तरीकों के संबंध में बताया जाता है। 

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हर जगह प्रयोगशालाएं भी लगवाई गई हैं

किसानों के खेत की मृदा जांच के लिए हर जगह प्रयोगशालाएं लगवाई गई हैं। दरअसल, इन प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिकों द्वारा जांच के पश्चात मृदा के गुण-दोष की सूची तैयार की जाती है। इसके साथ ही इस सूची में मृदा से संबंधित जानकारी और सही सलाह उपस्थित होती है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड के मुताबिक, खेती करने से फसल की पैदावार क्षमता और किसानों की आमदनी में काफी वृद्धि होती है। इसके साथ-साथ खाद का इस्तेमाल एवं मृदा का संतुलन बिठाने में भी सहायता मिलती है।