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सदाबहार

सदाबहार पौधे से संबंधित विस्तृत जानकारी

सदाबहार पौधे से संबंधित विस्तृत जानकारी

सदाबहार एक तरह का पौधा है, जो साल भर फूलता रहता है, इसलिए इसे सदाबहार के नाम से जाना जाता है। यह एक बारहमासी पौधा है, जो 3 से 4 फीट तक का होता है। सदाबहार का वैज्ञानिक नाम कैथेरेंथस रोसस है। यह एपोसाइनेसी परिवार का पौधा है। सदाबहार की उत्पत्ति मैडागास्कर से हुई है। परंतु, यह वर्तमान में विश्व भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में पाया जाता है। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार के फूलों में एल्कलॉइड होते हैं, जो कई बीमारियों के इलाज में काफी मददगार होते हैं। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल कैंसर, मलेरिया और मधुमेह यानी डायबिटीज के उपचार के लिए किया जाता है।

सदाबहार पौधे से जुड़ी कुछ खास बातें

सदाबहार एक तरह का पौधा है, जो पूरे वर्ष फूलता रहता है। इसलिए इसे सदाबहार कहा जाता है, यह एक बारहमासी पौधा है, जो 3 से 4 फीट तक का होता है। इसके फूल गुलाबी, सफेद अथवा लाल रंग के होते हैं। साथ ही, इनके अंदर पांच पंखुड़ियां होती हैं। सदाबहार के
फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार का वैज्ञानिक नाम कैथेरेंथस रोसस है। यह एपोसाइनेसी परिवार का पौधा है। सदाबहार एक लोकप्रिय पौधा होता है, जिसे सामान्यतः घरों और बगीचों में उगाया जाता है। यह एक कम रखरखाव वाला पौधा होता है, जो सूखे और छाया में अच्छी तरह से जीवित रह सकता है। इस छोटे से दिखने वाले पौधे के अंदर बहुत सारे औषधीय गुण उपलब्ध हैं। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक हैं।

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सदाबहार के पौधों को इस प्रकार लगाऐं

सामान्य तौर पर तो सदाबहार का पौधा स्वयं से ही जहां-तहां निकल आता है। इसे लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। परंतु, हां यदि आप ये चाहते हैं, कि इसके रंग-बिरंगें फूलों का आनंद लिया जाए तो आप इसे कई गमलों में लगा सकते हैं। उसके लिए एक गमले में सूखी मिट्टी को रख लें और उसमें थोड़ा पानी डाल कर उसमें पौधरोपण करें। सदाबहार के पौधे को नियमित तौर पर पानी दें। परंतु, मिट्टी को भिगोने से बचें, सदाबहार के पौधे को प्रति वर्ष वसंत में खाद दें। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल औषधीय उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। सदाबहार के फूलों में एल्कलॉइड होते हैं, जो बहुत सारी बीमारियों के उपचार में उपयोगी होते हैं। सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल मलेरिया, डायबिटीज और कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है।

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सदाबहार का उपयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें

सदाबहार के फूलों का उपयोग डायबिटीज, कैंसर और मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है। सदाबहार कैंसर, मलेरिया जैसी बीमारी में सहयोगी होने के साथ-साथ ये मधुमेह के उपचार में भी सहायता करता है। सदाबहार के फूलों में इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाने के गुण विघमान होते हैं। हालांकि, सदाबहार के फूलों का इस्तेमाल करने से पूर्व डॉक्टर से सलाह लेनी बेहद आवश्यक है। सदाबहार के फूलों में कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे कि उल्टी, दस्त और सिरदर्द इस लिए इसका इस्तेमाल करने से पूर्व डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
भारत के वनों के प्रकार और वनों से मिलने वाले उत्पाद

भारत के वनों के प्रकार और वनों से मिलने वाले उत्पाद

प्राकृतिक वनस्पतियों में विविधता के मामले में भारत विश्व के कुछ गिनती के देशों में शामिल है। हिमालय की ऊंचाइयों से लेकर पश्चिमी घाट और अंडमान तथा निकोबार दीप समूह पर पाई जाने वाली वनस्पतियां भारत के लोगों को अच्छा वातावरण उपलब्ध करवाने के अलावा कई प्रकार के फायदे पहुंचाती है। भारत में पाए जाने वाले जंगल भी इन्हीं वनस्पतियों की विविधताओं के हिस्से हैं।

क्या होते हैं जंगल/वन (Forest) ?

एक परिपूर्ण और बड़े आक्षेप में बात करें तो मैदानी भागों या हिल (Hill) वाले इलाकों में बड़े क्षेत्र पर, पेड़ों की घनी आबादी को जंगल कहा जाता है। दक्षिण भारत में पाए जाने वाले जंगलों से, उत्तर भारत में मिलने वाले जंगल और पश्चिम भारत के जंगल में अलग तरह की विविधताएं देखी जाती है।

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भारत में पाए जाने वाले जंगलों के प्रकार :

जलवायु एवं अलग प्रकार की वनस्पतियों के आधार पर भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान (Forest Survey of India - FSI) के द्वारा भारतीय वनों को 5 भागों में बांटा गया है :

सामान्यतः भारत के दक्षिणी हिस्से में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन उत्तरी पूर्वी राज्य जैसे असम और अरुणाचल प्रदेश में भी फैले हुए हैं।

इस प्रकार के वनों के विकास के लिए वार्षिक वर्षा स्तर 200 सेंटीमीटर से अधिक होना चाहिए और वार्षिक तापमान लगभग 22 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।

इस प्रकार के वनों में पाए जाने वाले पौधे लंबी उचाई तक बढ़ते हैं और लगभग 60 मीटर तक की ऊंचाई प्राप्त कर सकते हैं।

इन वनों में पाए जाने वाले पेड़ पौधे वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं और इनकी पत्तियां टूटती नहीं है, इसीलिए इन्हें सदाबहार वन कहा जाता है

भारत में पाए जाने वाले सदाबहार वनों में रोजवुड (Rosewood), महोगनी (Mahogany) और ईबोनी (ebony) जैसे पेड़ों को शामिल किया जा सकता है। उत्तरी पूर्वी भारत में पाए जाने वाले चीड़ (Pine) के पेड़ भी सदाबहार वनों की विविधता के ही एक उदाहरण हैं।

भारत के कुल क्षेत्र में इस प्रकार के वनों की संख्या सर्वाधिक है, इन्हें मानसून वन भी कहा जाता है। इस प्रकार के वनों के विकास के लिए वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेंटीमीटर के बीच में होनी चाहिए।

पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के कुछ इलाकों के अलावा उड़ीसा और हिमालय जैसे राज्यों में पाए जाने वाले वनों में, शीशम, महुआ तथा आंवला जैसे पेड़ों को शामिल किया जाता है। पर्णपाती वन उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं, जिनमें तेंदू, पलाश तथा अमलतास और बिल्व तथा खैर के पेड़ों को शामिल किया जा सकता है।

इस प्रकार के वनों में पाए जाने वाले पेड़ों की एक और खास बात यह होती है, कि मानसून आने से पहले यह पेड़ अपनी पत्तियों को गिरा देते हैं और जमीन में बचे सीमित पानी के इस्तेमाल से अपने आप को जीवित रखने की कोशिश करते हैं, इसीलिए इन्हें पतझड़ वन भी कहा जाता है।

  • उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन (Tropical Thorn Forest) :

50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगने वाले कांटेदार वनों को सामान्यतः वनों की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि इनमें घास और छोटी कंटीली झाड़ियां ज्यादा होती है।

पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तथा गुजरात के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इन वनों को देखा जाता है। बबूल पेड़ और नीम तथा खेजड़ी के पौधे इस श्रेणी में शामिल किए जा सकते हैं।

  • पर्वतीय वन (Montane Forest) :

हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर उगने में सहज होते हैं, इसके अलावा दक्षिण में पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के कुछ इलाकों में भी यह वन पाए जाते हैं।

वनीय विज्ञान के वर्गीकरण के अनुसार इन वनों को टुंड्रा (Tundra) और ताइगा (Taiga) कैटेगरी में बांटा जाता है।

1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले यह पर्वतीय जंगल, पश्चिमी बंगाल और उत्तराखंड के अलावा तमिलनाडु और केरल में भी देखने को मिलते हैं।

देवदार (Cedrus Deodara) के पेड़ इस प्रकार के वनों का एक अनूठा उदाहरण है। देवदार के पेड़ केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही देखने को मिलते हैं। देवदार के पेड़ों का इस्तेमाल विनिर्माण कार्यों में किया जाता है।

विंध्या पर्वत और नीलगिरी की पहाड़ियों में उगने वाले पर्वतीय वनों को 'शोला' नाम से जाना जाता है।

  • तटीय एवं दलदली वन (Littoral and Swamp Forest) :

वेटलैंड वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन उड़ीसा की चिल्का झील (Chilka Lake) और भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पार्क के आस पास के क्षेत्रों के अलावा सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र और राजस्थान, गुजरात और कच्छ की खाड़ी के आसपास काफी संख्या में पाए जाते हैं।

यदि बात करें इन वनों की विविधता की तो भारत में विश्व के लगभग 7% दलदली वन पाए जाते है, इन्हें मैंग्रोव वन (Mangrove forest) भी कहा जाता है।

वर्तमान समय में भारत में वनों की स्थिति :

भारतीय वन सर्वेक्षण के द्वारा जारी की गयी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 (Forest Survey of India - STATE OF FOREST REPORT 2021) के अनुसार, साल 2019 की तुलना में भारतीय वनों की संख्या में 1500 स्क्वायर किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है और वर्तमान में भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 21.67 प्रतिशत क्षेत्र में वन पाए जाते हैं। "इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें मध्य प्रदेश राज्य फॉरेस्ट कवर के मामले में भारत में पहले स्थान पर है। पर्यावरण के लिए एक बेहतर विकल्प उपलब्ध करवाने वाले वन क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में सहयोग के अलावा किसानों के लिए भी उपयोगी साबित हो सकते है।

गर्मियों के मौसम मे उगाए जाने वाले तीन सबसे शानदार फूलों के पौधे

गर्मियों के मौसम मे उगाए जाने वाले तीन सबसे शानदार फूलों के पौधे

गर्मी का समय भारत मे बहुत सारी फसलों और पौधों को उगाने के लिए काफी अच्छा माना जाता है। ऐसे मे यदि आप भी अच्छे फूलों वाले और अपने बाग/बगीचों को रंगीन बनाना चाहते है, तो यह समय बहुत ही अच्छा है, फूलों वाले पौधों को लगाने के लिए। दर - असल गर्मी के समय मे ज्यादा वस्पीकरण होने के कारण जलवायु मे परिवर्तन होता है जिससे पौधों का विकास अच्छे से होता है। आइये जानते हैं गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे की जानकारी। इन पौधों को लगाने के लिए आप सबसे अच्छा समय मार्च माह से लेकर अप्रैल माह तक मान सकते है। क्योंकि इस समय ना ही तेज हवाएं चलती हैं और ना ही ज्यादा गर्मी होती है ऐसे मे आप एक शांत दिन चुनकर जीनिया , सदाबहार और बालसम जैसे पौधों की बुवाई रोपाई करना शुरू कर सकते हैं। ऐसे मे आज हम आपको तीन ऐसे गर्मी की ऋतु में लगाए जाने वाले पौधों के बारे मे बताएंगे :- जीनिया सदाबहार और बालसम

जीनिया (Zinnia)

Zinnia ke phool जीनिया बहुत ही खूबसूरत और रंगीन फूलों वाला बगीचे की शान बढ़ाने वाला फूल होता है। जीनिया काफी तेज गति से उगता है और इसे उगाने मे किसी भी प्रकार की ज्यादा परेशानी भी नहीं होती है। जीनिया पौधे को हम वैज्ञानिक जोहान ट्वीट जिन के नाम से भी जान सकते हैं। जीनिया मे खूबसूरत फूल लगने के कारण यह सबसे ज्यादा तितलियों और अन्य कीड़ों मकोड़ों को बहुत ही ज्यादा लुभाता है। ऐसे मे कई सारी बीमारियां और पौधों मे फूल झड़ने और पौधों के मुरझाने का भी डर सताया रहता है। ये भी पढ़े: गेंदा के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी जीनिया की उत्पत्ति सबसे पहले उत्तरी अमेरिका मे हुई थी उसके बाद यह अन्य सभी देशों मे वितरित होने लगा। तो चलिए जानते हैं जीनिया पौधे की खेती हम किस प्रकार कर सकते हैं :-

1.जीनिया पौधे की सिंचाई इस प्रकार करें :-

जीनिया पौधे की सिंचाई हमेशा उसकी जड़ों पर की जाती हैं ना कि उसकी टहनियों शाखाओं और पत्तियों पर। क्योंकि यह पौधा बहुत कम समय में विकसित होने लगता है और ऐसे मे अगर हम पत्तियों पर पानी डालेंगे तो अन्य प्रकार के कीड़े मकोड़े और बीमारियां लगने का डर रहता है। प्रति सप्ताह दो से तीन बार जीनिया की सिंचाई अवश्य रूप से करनी चाहिए। गर्मी की ऋतु में वाष्पीकरण से बचने के लिए जब जीनिया का पौधा बड़ा हो जाता है तो हम उसके आसपास पत्तियां और घास फूस डाल सकते हैं।

2. जीनिया पौधे की कटाई और बीजों का सही संग्रह इस प्रकार करें :-

जीनिया पौधे के बीजों को एकत्रित करने के लिए सबसे पहले आपको इस पौधे के बड़े-बड़े फूलों को नहीं काटना होगा। यदि आप इस पौधे के फूलों को काटना बंद नहीं करेंगे तो फिर बीज नहीं आएंगे। जब फूल एक बार बीज देना शुरू करें तब आप अपने हाथों द्वारा धीरे से मसलकर बीजों को किसी भी बर्तन मैं धूप में रख कर सुखा दें। इस प्रकार आप जीनिया पौधे की कटाई और बीजों को एकत्रित कर पाएंगे।

3. जीनिया पौधे मे लगने वाले कीड़े और बीमारियों का समाधान इस प्रकार करें :-

पौधों में कीड़े लगना आम बात हैं चाहे वह जीनिया हो सदाबहार हो या फिर बालसम लेकिन जीनिया के पौधों में अक्सर कीड़े बहुत ही कम समय में पड़ने शुरू हो जाते हैं। ऐसे में आप अच्छे से अच्छे कीटनाशकों का छिड़काव करें सप्ताह मे दो-तीन बार। ये भी पढ़े: जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें जीनिया के पौधों मे पढ़ने वाले कीट पतंगों को हम अपनी आंखों से आसानी से देख सकते हैं ऐसे में आप सुबह सुबह जल्दी कीटनाशकों का छिड़काव करें और समय-समय पर पौधों को झाड़ते रहे।

गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे : सदाबहार

sadabahar phool सदाबहार जिसका मतलब होता है हर समय खीलने वाला पौधा। सदाबहार एकमात्र ऐसा पौधा है जो भारत मे पूरे 12 महीना खिला रहता है। भारत मे इसकी कुल 8 जातियां हैं और इसके अलावा इसकी बहुत सारी जातियां बाहरी इलाकों जैसे मेडागास्कर मे भी पाई जाती हैं। सदाबहार बहुत सारी बीमारियों जैसे जुखाम सर्दी आंखों में होने वाली जलन मधुमेह और उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में करने के लिए भी किया जाता है। यह बहुत ही लाभदायक और फायदेमंद पौधा होता है। भारत में इसे बहुत सारे इलाकों में सदाबहार और सदाफुली भी कहते हैं।

1. सदाबहार पौधे की बुवाई ईस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधे की बुवाई करने के लिए सबसे पहले आप कम से कम 6 इंच की गहरी क्यारी तैयार करें। इससे पौधे को अच्छे से उगने में काफी सहायता होती हैं और इसकी जड़े भी मजबूत रहती हैं। जब आप इसकी रोपाई करें उससे पहले आप यह तय कर लें कि 1 इंच मोटी परत की खाद को मिट्टी के अंदर अच्छे से मिलाएं। सदाबहार पौधे की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय सितंबर माह से फरवरी माह के बीच में होता है। इस समय सदाबहार पौधे को ना ही ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती हैं और ना ही ज्यादा खाद उर्वरक की। ये भी पढ़े: सूरजमुखी खाद्व तेलों में आत्मनिर्भरता वाली फसल

2. सदाबहार पौधे की सिंचाई और खाद व्यवस्था इस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधे की रोपाई करने के कम से कम 3 महीने के बाद आपको 20-20 दिनों के अंतराल से सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। सदाबहार पौधे को कम पानी की आवश्यकता होती हैं ऐसे मे अगर आप ज्यादा सिंचाई करेंगे तो यह इतना ज्यादा पानी सहन नहीं कर पाएगा और नष्ट होने की संभावना ज्यादा रहेगी। इसके आसपास किसी भी प्रकार के खरपतवार को ना रहने दे। अप्रैल माह से लेकर जुलाई माह तक सदाबहार पौधे की अच्छे से सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक होता है क्योंकि इस समय गर्मी की ऋतु में बहुत ज्यादा वाष्पीकरण होता है। ऐसे मे पौधों को ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं। समय समय पर खाद और कीटनाशकों का छिड़काव करें ताकि पौधों मे किसी भी प्रकार का रोग या बीमारी ना लगने पाए।

3. सदाबहार पौधे की कटाई छटाई इस प्रकार करें :-

सदाबहार पौधा कम से कम 1 साल के समय के अंतराल में पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है। सदाबहार पौधे के रोपाई के एक साल बाद आप तीन-तीन महीने के अंतराल में इसकी टहनियां पत्तियां और बीज और फलों को आप अलग-अलग तरीकों से एकत्रित करें। सबसे पहले आप इसके फलों को एकत्रित करें और अवांछित शाखाओं और टहनियों को हटा दें। फूलों से निकाले गए बीजों को आप गर्मी के मौसम में धूप में रख कर अच्छे से अंकुरित करना ना भूले।

बालसम

balsam phool ki kheti बालसम यानि की पेरू जिसका आमतौर पर सबसे ज्यादा उपयोग बवासीर की समस्या से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। बालसम की खेती संपूर्ण भारत मे की जाती है और सबसे ज्यादा इन राज्यों में कर्नाटक, बंगाल , उतर प्रदेश ,हरियाणा ,बिहार और पंजाब शामिल है। इसकी पैदावार इन राज्यों में सबसे ज्यादा होती है।यह कैंसर और यूरिन से संबंधित बीमारियों के लिए बहुत ही ज्यादा फायदे मंद है। साथ ही साथ बुखार , सर्दी , ठंडी और अन्य सर्द ऋतू की बीमारियों के लिए भी लाभदायक है। बलसम की खेती के लिए सबसे अच्छा समय गर्मियों का होता है। मई और जुलाई माह के अंदर अंदर बालसम के पौधों की बुवाई कर दी जाती है। बलसाम के पौधों के बीजों को संपूर्ण रूप से विकसित यानी की अंकुरित होने मैं 10-12 दिनों का समय लगता है। ये भी पढ़े: ईसबगोल की खेती में लगाइये हजारों और पाइए लाखों

1. बाल सम के पौधे की बुवाई इस प्रकार करे :-

बालसम के पौधे को उगाने के लिए सबसे पहले आप यह देख ले कि मिट्टी उपजाऊ हो और अच्छी हो। प्रत्येक बालसम के पौधे को उगाने के लिए उनके बीच में कम से कम 30 से 40 सेंटीमीटर का अंतराल अवश्य रखें। इनकी बुआ जी आप अपने हाथों द्वारा भी कर सकते हैं या फिर हल द्वारा या ट्रैक्टर के द्वारा बड़े पैमाने पर भी कर सकते हैं। बुवाई से पहले बीजों को अंकुरित करना ना भूलें इससे कम समय में बीज विकसित होना शुरू हो जाते हैं।

2. बाल सम के पौधे की सिंचाई और उर्वरक व्यवस्था इस प्रकार करें :-

बालसम के पौधों की शुरुआती दिनों मे सिंचाई करना इतना ज्यादा आवश्यक नहीं होता है। जब इनके फूल आना प्रारंभ हो जाता है उसके बाद आप सप्ताह मे तीन चार बार अच्छे से सिंचाई करें। इसकी सिंचाई करते समय आप साथ में कीटनाशक भी डाल सकते हैं ताकि पौधे को कीट से बचाया जा सके। इसकी सिंचाई आप ड्रिप् माध्यम के द्वारा कर सकते हैं इससे पौधे की जड़ों में पानी जाएगा और ज्यादा वाष्पीकरण भी नहीं होगा। बालसम के पौधे के फूल लगने में लगभग 30 से 40 दिनों का समय लगता है।

3. बालसम के पौधों को कीट पतंगों और बीमारियों से इस प्रकार बचाएं :-

सूरज की रोशनी सभी पौधों को पूर्ण रूप से विकसित होने में काफी लाभदायक होती हैं और ऐसे मे बाल सम के पौधों को भी उगने के लिए सूर्य की धूप की बहुत आवश्यकता होती है। जितने भी कीड़े मकोड़े जो कि फूलों के अंदर टहनियों में छुपे रहते हैं वेद धूप के कारण नष्ट हो जाते हैं। यदि पौधे में कमजोरी यहां पर पत्तियां और टहनियां मुरझाने लगती हैं तो ऐसे में आप समझ जाइए कि किसी भी प्रकार की बीमारी लग चुकी है। ऐसे में आप कीटनाशक और खा दुर्गा सप्ताह में दो-तीन बार छिड़काव अवश्य करें। ऐसा करने से सभी कीट पतंग और अन्य बीमारियां पौधे को विकसित होने से नहीं रोक पाती हैं और पौधे का संपूर्ण रूप से विकास होता है। आशा करते हैं की गर्मियों मे उगाए जाने वाले फूलों के पौधे की जानकारी आपके लिए उपयोगी हो ।