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सम्पादकीय

भारतीय कृषि का नया दौर: परंपराओं के साथ तकनीकी प्रगति की यात्रा

भारतीय कृषि का नया दौर: परंपराओं के साथ तकनीकी प्रगति की यात्रा

भारत की कृषि परंपरा न केवल हमारी अर्थव्यवस्था की बुनियाद है, बल्कि हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की आत्मा भी रही है। आज जब जलवायु संकट, जनसंख्या वृद्धि और प्राकृतिक संसाधनों की घटती उपलब्धता जैसे विषय सामने हैं, तब कृषि जगत में परिवर्तन और नवाचार की लहर तेज़ी से फैल रही है।तकनीकी क्रांति से बदलती खेतों की पहचानअब किसान केवल पारंपरिक औज़ारों तक सीमित नहीं हैं। वे आधुनिक उपकरणों, स्मार्टफोन, ड्रोन और सैटेलाइट जैसी तकनीकों का कुशलतापूर्वक प्रयोग कर रहे हैं। स्मार्ट खेती (Precision Farming) से जल, उर्वरक और कीटनाशकों का मापित उपयोग संभव हुआ है, जिससे उत्पादन लागत...
स्पासमोविन वेट बोलस: एक भरोसेमंद पेट दर्द निवारक पशु औषधि

स्पासमोविन वेट बोलस: एक भरोसेमंद पेट दर्द निवारक पशु औषधि

स्पासमोविन वेट बोलस एक प्रभावशाली पशु चिकित्सा दवा है जिसका उपयोग मुख्य रूप से पशुओं में पेट दर्द और ऐंठन जैसी समस्याओं से राहत दिलाने के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से उन स्थितियों में उपयोगी होती है जब पशु को अचानक मरोड़, कब्ज, अफारा या गर्भाशय संकुचन जैसी तकलीफें हो रही हों।प्रमुख उपयोग: जब घोड़े, गाय या भैंस जैसे बड़े पशुओं को पेट में दर्द (कोलिक) की शिकायत हो।  गाय, भैंस, बकरी आदि जुगाली करने वाले पशुओं में गैस या कब्ज से पेट में दर्द हो।  पेशाब की नली में रुकावट या मरोड़ से उत्पन्न दर्द को कम...
 उन्नत किस्में किस तरह फसल उत्पादन में अपना बहुमूल्य योगदान देती हैं

उन्नत किस्में किस तरह फसल उत्पादन में अपना बहुमूल्य योगदान देती हैं

आज के आधुनिक युग में, जहां जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, वहीं भोजन की मांग भी निरंतर बढ़ती जा रही है। इस बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए खेती के उत्पादन में वृद्धि करना अनिवार्य हो गया है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों ने ऐसी उन्नत किस्मों का विकास किया है जो सीमित भूमि पर भी अधिक उत्पादन देने में सक्षम हैं। उन्नत किस्में वे फसलें हैं जिन्हें वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा इस प्रकार तैयार किया गया है कि वे अधिक उपज, बेहतर गुणवत्ता, रोग प्रतिरोधकता और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अच्छा प्रदर्शन...
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एल. जाट बने ICAR के नए महानिदेशक और डेयर सचिव

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एल. जाट बने ICAR के नए महानिदेशक और डेयर सचिव

लेखक: डॉ वीरेन्द्र सिंह गहलान देश के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम.एल. जाट को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का नया महानिदेशक (डीजी) और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डेयर) का सचिव नियुक्त किया गया है। कार्मिक मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के अनुसार, मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। यह नियुक्ति उनकी पदभार ग्रहण करने की तिथि से प्रभावी मानी जाएगी और वे यह जिम्मेदारी 60 वर्ष की आयु तक निभाएंगे।वर्तमान में डॉ. जाट हैदराबाद स्थित अंतरराष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) में अनुसंधान के उपमहानिदेशक पद पर कार्यरत हैं। वे एक ख्यातनाम सिस्टम एग्रोनोमिस्ट हैं...
मेरीखेती द्वारा आयोजित मार्च की किसान पंचायत में नवीनतम कृषि तकनीकों पर हुई चर्चा

मेरीखेती द्वारा आयोजित मार्च की किसान पंचायत में नवीनतम कृषि तकनीकों पर हुई चर्चा

मेरीखेती द्वारा मार्च माह की किसान पंचायत का आयोजन उत्तर प्रदेश के दादरी जनपद के अंतर्गत दुजाना गांव में किया गया। इस पंचायत की मेजबानी किसान जीतेन्द्र नगर दुजाना ने की, जिसमें किसानों की आय बढ़ाने के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों पर विस्तार से चर्चा की गई। विशेषज्ञों और किसानों की भागीदारी   इस किसान पंचायत में वरिष्ठ पूसा कृषि वैज्ञानिक डॉ. सीवी सिंह मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। उनके साथ किसान संजय कुमार रूपवास, मुकेश नागर बम्बावर, जीतेन्द्र नागर, युद्धवीर सिंह, तरुण चौधरी, तेजवीर सिंह, बीरपाल सिंह, श्यामवीर प्रधान, आलोक डबास, ब्रहमपाल सिंह, बिज्जन सिंह, धर्मेंद्र सिंह सहित कई...
पूसा कृषि मेले की कहानी मेरीखेती की जुबानी

पूसा कृषि मेले की कहानी मेरीखेती की जुबानी

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agricultural Research Institute - IARI) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अधीन एक प्रमुख संस्थान है, जो कृषि अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना 1905 में पूसा में हुई थी, जो अब नई दिल्ली में स्थित है।इसका मुख्य उद्देश्य कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान करना और कृषि उत्पादकता में सुधार लाना है। IARI विभिन्न फसलों की उत्पादकता बढ़ाने, रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने पर अनुसंधान करता है।यह संस्थान कृषि विज्ञान में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट स्तर की...
बायोफर्टिलाइज़र क्या है? बायोफर्टिलाइज़र के उपयोग, लाभ, फायदे, प्रकार के बारे में जाने यहाँ

बायोफर्टिलाइज़र क्या है? बायोफर्टिलाइज़र के उपयोग, लाभ, फायदे, प्रकार के बारे में जाने यहाँ

कृषि वैज्ञानिकों ने जैव उर्वरक (बायोफर्टिलाइजर) या "जीवाणु खाद" (जैव उर्वरक) बनाया है जो भूमि की उर्वरता को टिकाऊ बनाए रखते हैं।बायोफर्टिलाइज़र ऐसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों के तैयार उपयोग के लिए जीवित फॉर्मुलेशन हैं, जो बीज, जड़, या मिट्टी पर लगाने से अपनी जैविक गतिविधि के माध्यम से पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाते हैं और सामान्य रूप से मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करते हैं।इस लेख में हम आपको बायोफर्टिलाइज़र से जुडी सम्पूर्ण जानकरी देंगे।बायोफर्टिलाइज़र का उपयोग क्यों किया जाता है?हरित क्रांति में आयी नई तकनीकों के कारण आधुनिक कृषि मुख्यतः सिंथेटिक इनपुट्स (मुख्यतः उर्वरकों) पर निर्भर...
पौधे को अपने जीवन सम्पूर्ण करने के लिए किन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है

पौधे को अपने जीवन सम्पूर्ण करने के लिए किन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है

3. द्वितीयक पोषक तत्व जैसे मानव शरीर को जीवित और स्वस्थ रहने के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार पौधों को भी जीवन सम्पूर्ण करने के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा फसल और पौधे को मिलने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।किसान ध्यान रखे की फसल को 17 पोषक तत्वों की जरुरत होती है। इस लेख में आप पोषक तत्वों के बारे में विस्तार से बताएगें।पौधों को कितने पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है?वैसे तो प्राथमिक और द्वितीयक पोषक तत्व प्रमुख तत्वों के रूप में जाने जाते हैं। परन्तु...
भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा लागु की गई कृषि एडवाइजरी, कैसे करें फसलों और पशुओं की विशेष देखभाल

भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा लागु की गई कृषि एडवाइजरी, कैसे करें फसलों और पशुओं की विशेष देखभाल

मौसम में निरंतर बदलाव होने के कारण ठण्ड में भी वृद्धि हो रही हैं। इस मौसम में फसलों और पशुओं की विशेष देखभाल की जरूरत होती है, पर किसानों को इसकी पूरी जानकारी नहीं होती।इसी को देखते हुए भारत मौसम विज्ञान विभाग चंडीगढ़ ने हरियाणा और पंजाब के किसानों को सलाह दी है, जिसके आधार पर किसान अपने फसलों और जानवरों को मानसून में होने वाली क्षति से बचा सकेंगे।किसानों को बताया गया है कि वह इस मौसम में कैसे अपनी फसल और पशुधन का ध्यान रखें।गेहूंइस समय नवंबर में बोए गए गेहूं की दूसरी सिंचाई करें और दिसंबर...
टेरेस फार्मिंग: जानें इसके प्रकार और फायदे | सीढ़ीदार खेती का गाइड

टेरेस फार्मिंग: जानें इसके प्रकार और फायदे | सीढ़ीदार खेती का गाइड

टेरेस फार्मिंग या सीढ़ीदार खेती कृषि की एक ऐसी तकनीक है, जिसमें पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीनुमा संरचनाएं बनाई जाती हैं। इस पद्धति का मुख्य उद्देश्य मिट्टी के कटाव को रोकना और जल संग्रहण को बढ़ाना है।यह तकनीक पहाड़ी क्षेत्रों में लंबे समय से उपयोग में लाई जा रही है, जिससे फसलों की खेती को बेहतर तरीके से संभव बनाया जा सके।टेरेस फार्मिंग के प्रकारभारत में सीढ़ीदार खेती की कई विधियाँ उपयोग में लाई जाती हैं। क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और मिट्टी की प्रकृति के आधार पर इनका चयन किया जाता है।1.चौड़ी आधार वाली टेरेस (Broad-Based Terraces)यह विधि सबसे प्रभावी...