तुलसी तकरीबन हर घर में पूजी जाती है। इसके गुणों से भी लोग परिचित हैं लेकिन बढ़ते रोग और आयुर्वेदिक दवाओं में इसके उपयोग ने इसकी महत्ता और बढ़ा दी है। धार्मिक नगरों के निकट तो तुलसी की लकड़ी की मंठी माला बनाने का काम हजारों लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है। तुलसी के औषधीय गुण बगैर रसायन वाली खेती में ज्यादा आते हैं। इसकी लागत बेहद कम आती है और छुट्टा पशु भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा पाते।
तुलसी करीब पांच-सात प्रकार की होती है। आम तौरपर लोग रामा एवं श्यामा तुलसी के विषय में ही जानते हैं। इसकी खेती के लिए या तो किसान उन किसानों को बीज लें जो लम्बे समय से इसकी खेती कर रहे हैं या फिर उत्तर प्रदेश के लखनउू में स्थित सगंधीय पौध संस्थान से बीज लें। इसके अलावा हर राज्य में कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से तथा निकट के कृषि विज्ञान केन्द्र व जिला उद्यान कार्यालय के माध्यम से भी उचित सलाह एवं बीज मिल सकता है।
अप्रैल मई में इसकी पोघ डाली जाती है जो 10 से 15 दिन में तैयार हो जाती है। तुलसी की खेती के लिए किसी भी तरह का रासायानिक खाद प्रयोग में न लाएं। गोबर की सड़ी खाद आदि का ही प्रयोग करेंगे तो औषधीय गुण भरपूर होंगे।
तुलसी की खेती के लिए एक हैक्टेयर जमीन के लिए दो से चार किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। तुलसी की पौध को भी बैड बनाकर डालें। मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद एवं ट्राईकोडर्मा या कार्बनजिम जैसे किसी फफूंदनाशक को मिला लें। पौध रोपने के तत्तकाल बाद खेत में पानी लगाएं। जरूरत के अनुरूप् सिंचाई करते रहें। फूल आने से पूर्व एकबार तुडाई कर दें ताकि शाखाएं ज्यादा बनें एवं बीज, पत्ते और डंडी तीनों की उपज में इजाफा हो। तुलसी का बीज यानी मंजरी 30 से 40 हजार रुपए कुंतल तक बिकत है। इसके अलावा पत्ते थोक में भी 15 से 20 रुपए किलो बिकते हैं। यह बात अलग है कि किसानों से पत्तेे खरीदने वाले बिचौलिए इन्हें 50 से 70 रुपए प्रति किलोग्राम तक कंपनियों की मांग के अनुरूप बेचते हैं।
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