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गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण

Published on: 03-Nov-2019
Updated on: 17-May-2024

गेहूं की उपज एक दशक से स्थिर हो गई है। कुछेक नई किस्मों के आने से इसमें महज 10-15 फीसदी का इजाफा हुआ है लेकिन एक दशक में वैज्ञानिक क्रांतिकारी किस्म नहीं खोज पाए हैं। यह इतनी जल्दी संभव भी नहीं दिखता है। सरकार किसानों की आय दोगुनी करना चाहती है लेकिन नतो कीमतें दोगुनी होंगी और न उत्पादन फिर आय दोगुनी करना वैज्ञानिकों के समक्ष भी चुनौती बना हुआ है। हालिया तौर पर गेहूं की खेती का एक परंपरागत तरीका किसानों को भी रास आ रहा है और वैज्ञानिक भी इसे सुझा रहे हैं। यह है मिश्रित खेती की तर्ज पर गेहूं की दो प्रजातियों का मिश्रण करने बोने का तरीका। इस तरीके में सिर्फ इस बात का ध्यान रखना है कि दोनों किस्मों के पकने की समय अवधि एक समान हो। कम तथा ज्यादा समय में पकने वाली किस्मों का मिश्रण किया तो एक किस्म पकी खड़ी होगी वहीं दूसरी कच्ची रह जाएगी। मसलन एचडी 2967 के साथ 2733 या 2329 जैसी किस्म मिलाकर बोई जा सकती है। इसके अलावा एचडी 3086 के साथ 1105 जैसी बराबर समय अवधि में पकने वाली किस्म मिलाकर बोई जा सकती है। 

 गेहूं दुनियां की प्राचीन खाद्य फसल है। यह यूरोप, पश्चिमी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, अमेरिका और उत्तरी अफ्रीका सहित दुनियां के अधिकांश हिस्सों में कार्बाहाइड्रेट का मुख्य श्रोत है। गेहूं का बीज 4 डिग्री सेल्सियस से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच अंकुरित हो सकता है लेकिन सबसे अनुकूल तापमान 12 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। इसलिए बदली पर्यावरणीय परिस्थितियों में गेहूं की बिजाई अक्टूबर के अंतिम या नवंबर के पहले हफ्ते तक करने से बेहतर उत्पादन मिलने की उम्मीद लगाई जा सकती है।


लागत घटाने से बढे़गा मुनाफा

यंत्रीकरण के दौर में खेती में लागत लगातार बढ़ रही है लेकिन मुनाफा उसके अनुरूप नहीं बढ़ रहा। मुनाफा तभी बढ़ सकता है जबकि फसलों की उचित कीमत मिले। लागत घटाने के लिए सबसे पहले तो किसानों को अपनी मिट्टी की जांच करानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि उनकी मृदा में किस तत्व की कमी है। इसी के आधार पर जिन तत्वों की कमी हो खेत में उन्हें ही डाला जाए। बाकी तत्वों को डालने पर पैसा क्यों खर्च करें। इसके अलावा अहम खर्चा जुताई का होता है। गेहूं के लिए ज्यादा गहरी और अधिक जोत जरूरी नहीं। हर जोत के बाद यदि पाटा लगाया जाए तो दो से तीन जोत में बुबाई के लायक खेत अच्छी तरह तैयार हो जाता है। पानी की उपलब्धत के हिसाब से किस्म का चयन करें। यदि सिंचाई पंपसैट से करते हैं तो कम समय और कम पानी में तैयार होने वाली किस्म का चयन करें। 

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जीरो ट्रिलेज यानी जुताई से मुक्ति

बुबाई मशीनों में अभी तक हल वाली खुरपी आती थीं। अब जीरो ट्रिलेज बिजाई मशीन में इसकी जगह ब्लेड लगे है । यह जमीन को चीर कर उसमें बीज डालती  है। इस मशीन का लाभ धान की खेती वाले इलाकों में ज्यादा है। धान के खेतों की नमी आसानी से नहीं सूखती। इससे गेहूं की बजाई लेट हो जाती है। इस मशीन से बिजाई करने पर जुताई का पूरा खर्चा बच जाता है। जरूरत सिर्फ इस बात की होती है कि बिजाई पर्याप्त नमी में की जाए और यदि खेत में धान की फसल के खरपतवार बचे हों तो उन पर ग्लाईफोसेट जैसे खरपतवार नाशी छिड़काव कर दिया जाए ताकि गेहूं निकलने तक वह मर जाएं।

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