उन्नत गेहूं की किस्में: 90-97 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने वाली किस्में

Published on: 23-Oct-2024
Updated on: 19-Nov-2024
A farmer's hand holding unripe green wheat stalks in a lush wheat field, symbolizing growth and the early stages of crop cultivation
फसल खाद्य फसल गेंहूं

किसान भाइयों, जैसे कि आप जानते हैं कि खरीफ की धान की फसल की कटाई चल रही है, और इसके बाद गेहूं की बुवाई का समय आ रहा है।

अधिक पैदावार पाने के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना जरूरी है, ताकि आपको बेहतर मुनाफा मिल सके। उन्नत गेहूं की किस्में फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार करती हैं।

आइए जानते हैं कुछ ऐसी उन्नत किस्मों के बारे में जो प्रति हेक्टेयर 90 से 97 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती हैं।

गेहूं की बंपर पैदावार देने वाली उन्नत किस्में

1. गेहूं की किस्म - करण वंदना (Karan Vandana)

करण वंदना, जिसे DBW 187 के नाम से भी जाना जाता है, आईसीएआर-भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित की गई है।

इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 96.6 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है। यह किस्म पीला रतुआ और ब्लास्ट जैसी बीमारियों के प्रति काफी प्रतिरोधी है।

इसका उत्पादन पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और जम्मू के किसानों के लिए उपयुक्त है।

करण वंदना की फसल 148 दिनों में तैयार हो जाती है और ब्रेड बनाने में इसका परिणाम बेहतर होता है।

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2. गेहूं की किस्म - करण श्रिया (Karan Shriya)

करण श्रिया, जिसे DBW 252 के नाम से भी जाना जाता है, आईसीएआर-भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा जून 2021 में लॉन्च की गई थी।

यह किस्म एक सिंचाई पर ही अच्छी पैदावार देती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 55 क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

करण श्रिया 127 दिनों में तैयार हो जाती है और पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तर-पूर्व के तराई क्षेत्रों के किसानों के लिए बेहतर है।

3. गेहूं की किस्म - करण नरेंद्र (Karan Narendra)

करण नरेंद्र, जिसे DBW 222 भी कहा जाता है, आईसीएआर-भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित की गई एक उन्नत किस्म है।

यह किस्म प्रति हेक्टेयर लगभग 82.1 क्विंटल तक उत्पादन देती है और इसे रोटी, ब्रेड और बिस्किट बनाने के लिए उपयोगी माना जाता है।

इसकी बुआई अगेती हो सकती है और यह किस्म 143 दिनों में तैयार हो जाती है। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और जम्मू के किसानों के लिए उत्तम मानी गई है।