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जायद में खीरे की इन टॉप पांच किस्मों की खेती से मिलेगा अच्छा मुनाफा

Published on: 02-Mar-2024

किसान भाइयों अब जायद का सीजन आने वाला है। किसान अनाज, दलहन, तिलहन फसलों की खेती की जगह कम वक्त में पकने वाली सब्जियों की खेती से भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं।

सब्जी की खेती की मुख्य बात यह है, कि इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। दीर्घकालीन फसलों की तुलना में किसान सब्जी की खेती से मोटा मुनाफा उठा सकते हैं। 

वर्तमान में बहुत सारे किसान परंपरागत फसलों के साथ ही सब्जियों की खेती कर अपनी आय बढ़ा रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में आप भी फरवरी-मार्च के जायद सीजन में खीरे की खेती करके काफी ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।

खीरे की बाजार मांग काफी अच्छी है और इसके भाव भी बाजार में काफी अच्छे मिल जाते हैं। अगर खीरे की उन्नत किस्मों का उत्पादन किया जाए तो इस फसल से काफी शानदार लाभ हांसिल किया जा सकता है।

खीरे की स्वर्ण पूर्णिमा किस्म 

खीरे की स्वर्ण पूर्णिमा किस्म की विशेषता यह है, कि इस प्रजाति के फल लंबे, सीधे, हल्के हरे और ठोस होते हैं। खीरे की यह प्रजाति मध्यम अवधि में तैयार हो जाती है। 

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इसकी बुवाई के लगभग 45 से 50 दिन में इसकी फसल पककर तैयार हो जाती है। किसान इसके फलों की आसानी से तुड़ाई कर सकते हैं। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 200 से 225 क्विंटल तक उपज अर्जित की जा सकती है।

खीरे की पूसा संयोग किस्म 

यह खीरे की हाइब्रिड किस्म है। इसके फल करीब 22 से 30 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। इसका रंग हरा होता है। इसमें पीले कांटे भी पाए जाते हैं। इनका गुदा कुरकुरा होता है। खीरे की यह किस्म करीब 50 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती से प्रति हैक्टेयर 200 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

पंत संकर खीरा- 1 किस्म 

यह खीरे की संकर किस्म है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। इसके फलों की लंबाई तकरीबन 20 सेंटीमीटर की होती है ओर इसका रंग हरा होता है। यह किस्म बुवाई के लगभग 50 दिन उपरांत ही तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। खीरे की इस प्रजाति से प्रति हैक्टेयर 300 से 350 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

खीरे की स्वर्ण शीतल किस्म 

खीरे की इस प्रजाति के फल मध्यम आकार के होते हैं। इनका रंग हरा और फल ठोस होता है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 300 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। खीरे की यह किस्म चूर्णी फफूंदी और श्याम वर्ण रोग के प्रति अत्यंत सहनशील मानी जाती है।

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खीरे की स्वर्ण पूर्णा किस्म 

यह किस्म मध्यम आकार की किस्म है। इसके फल ठोस होते हैं। इस किस्म की खास बात यह है, कि यह किस्म चूर्णी फफूंदी रोग की प्रतिरोधक क्षमता रखती है। इसकी खेती से प्रति हैक्टेयर 350 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

खीरे की उन्नत किस्मों की बुवाई की प्रक्रिया 

खीरे की उन्नत किस्मों को बुवाई के लिए कार्य में लेना चाहिए। इसके बीजों की बुवाई से पूर्व इन्हें उपचारित कर लेना चाहिए, जिससे कि फसल में कीट-रोग का संक्रमण ना हो। 

बीजों को उपचारित करने के लिए बीज को चौड़े मुंह वाले मटका में लेना चाहिए। इसमें 2.5 ग्राम थाइरम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिलाकर घोल बना लें। अब इस घोल से बीजों को उपचारित करें। 

इसके बाद बीजों को छाया में सूखने के लिए रख दें, जब बीज सूख जाए तब इसकी बुवाई करें। खीरे के बीजों की बुवाई थाला के चारों ओर 2-4 बीज 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। 

इसके अलावा नाली विधि से भी खीरे की बुवाई की जा सकती है। इसमें खीरे के बीजों की बुवाई के लिए 60 सेंटीमीटर चौड़ी नालियां बनाई जाती है। इसके किनारे पर खीरे के बीजों की बुवाई की जाती है। 

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दो नालियों के बीच में 2.5 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है। इसके अलावा एक बेल से दूसरे बेल के नीचे की दूरी 60 सेमी रखी जाती है। ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए बीजों की बुवाई व बीजों को उपचारित करने से पहले उन्हें 12 घंटे पानी में भिगोकर रखना चाहिए। 

इसके बाद बीजों को दवा से उपचारित करने के बाद इसकी बुवाई करनी चाहिए। बीज की कतार से कतार की दूरी 1 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 50 सेमी रखनी चाहिए। 

किसान खीरे की खेती से कितना कमा सकते हैं ?  

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक एकड़ जमीन में खीरे की खेती करके 400 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। सामान्य तौर पर बाजार में खीरे का भाव 20 से 40 रुपए प्रति किलोग्राम के मध्य होता है। 

ऐसे में खीरे की खेती से एक सीजन में तकरीबन प्रति एकड़ 20 से 25 हजार की लागत लगाकर इससे तकरीबन 80 से एक लाख रुपए तक की आमदनी आसानी से की जा सकती है। 

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