लीची में पुष्प प्रबंधन (Flower management )करके अधिक उपज एवं गुणवक्तायुक्त फल कैसे प्राप्त करें?

By: Merikheti
Published on: 13-Feb-2024

भारत में 92 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है जिससे कुल 686 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है, जबकि बिहार में लीची की खेती 32 हजार हेक्टेयर में होती है जिससे 300 मैट्रिक टन लीची का फल प्राप्त होता है। बिहार में लीची की उत्पादकता 8 टन/हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.4टन / हेक्टेयर है। 

लीची को फलों की रानी कहते है।इसे प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है। कुल लीची उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा बिहार का है। फरवरी माह का दूसरा हप्ता चल रहा है। इस समय हमारे लीची उत्पादक किसान यह जानने के लिए उत्सुक है की उन्हें फरवरी माह में क्या करना चाहिए क्या नही करना चाहिए । लीची के पेड़ फूल आने की अवधि के दौरान 68-86°F (20-30°C) के बीच गर्म तापमान पसंद करते हैं। उन्हें उच्च आर्द्रता स्तर 70-90% की आवश्यकता होती है।पर्याप्त धूप, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और न्यूनतम हवा भी सफल फूल आने के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं।  इसके अतिरिक्त, लीची के पेड़ों को फूल आने के लिए उनके सुप्त चरण के दौरान ठंडे तापमान (68°F या 20°C से नीचे) की अवधि से लाभ होता है। इष्टतम फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए लीची की खेती में फूलों का प्रबंधन महत्वपूर्ण है।

 1. लीची के फूल को समझना

जलवायु और विविधता के आधार पर, लीची के पेड़ आमतौर पर देर से सर्दियों या शुरुआती वसंत के दौरान फूल आते हैं।पुष्पन तापमान, वर्षा, आर्द्रता और पोषण सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।

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 2.कटाई छंटाई

कटाई छंटाई पेड़ के आकार को बनाए रखने, मृत लकड़ी को हटाने और वायु प्रवाह को बढ़ावा देने में मदद करती है, जिससे रोग एवं कीट का आक्रमण कम होता है। युवा पेड़ों की ट्रेनिंग एवं प्रूनिंग करने से मजबूत मचान विकास को बढ़ावा मिलता है, जो परिपक्व पेड़ों में फूल और फल उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।फूलों वाली टहनियों को अत्यधिक हटाने से बचने के लिए छंटाई विवेकपूर्ण तरीके से की जानी चाहिए।

 3. पोषक तत्व प्रबंधन

फूलों की शुरुआत और विकास के लिए उचित पोषण आवश्यक है। मृदा परीक्षण पोषक तत्वों की कमी को समझने और उचित उर्वरक रणनीति तैयार करने में मदद करता है। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ संतुलित उर्वरक स्वस्थ फूलों के विकास में सहायता करता है।लीची में (प्रजाति के अनुसार) मंजर आने के 30 दिन पहले पेड़ पर जिंक सल्फेट की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बना कर पहला छिड़काव करना चाहिए , इसके 15-20 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करने से मंजर एवं फूल अच्छे आते है।फल लगने के 15 दिन बाद  बोरेक्स की 4 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर दो या तीन छिड़काव करने से फलों का झड़ना कम हो जाता है, मिठास में वृद्धि होती है तथा फल के आकार एवं रंग में सुधार होने के साथ-साथ फल के फटने की समस्या में भी कमी आती है।

 4. सिंचाई

लीची के बगीचे में अच्छी फलन एवं उत्तम गुणवत्ता के लिये मंजर आने के सम्भावित समय से तीन माह पहले से लेकर फूल में पूरी तरह से फल लगने से ठीक पहले तक लीची के बाग में सिंचाई कत्तई न करें तथा 10 वर्ष से अधिक पुराने बाग में  कोई भी अंतर फसल को नही लेना चाहिए।बाग़ की बहुत हल्की गुड़ाई साफ सफाई के दृष्टिगत कर सकते है लेकिन फूल आने के पहले से लेकर पूरी तरह से फल लग जाने से पूर्व तक सिंचाई बिल्कुल न करें,अन्यथा नुकसान हो सकता है।फूल बनने और फल लगने के लिए मिट्टी की पर्याप्त नमी महत्वपूर्ण है। मौसम की स्थिति, मिट्टी की नमी के स्तर और पेड़ों की वृद्धि अवस्था के आधार पर सिंचाई शेड्यूल को समायोजित किया जाना चाहिए।

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 5. कीट एवं रोग प्रबंधन

यदि बाग में मंजर अभी तक नही आये हो या 2 प्रतिशत से कम फूल आए हो तो उस बाग में इमिडाक्लोप्राइड @1मीली लीटर प्रति लीटर एवम घुलनशील गंधक की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । एफिड्स, माइट्स और फल छेदक जैसे कीट फूलों को नुकसान पहुंचाते हैं और फलों का बनना कम करते हैं।नियमित निगरानी से कीटों का शीघ्र पता लगाने और कल्चरल, जैविक या रासायनिक नियंत्रण उपायों का उपयोग करके समय पर हस्तक्षेप करने में मदद मिलती है।एन्थ्रेक्नोज और पाउडरी फफूंदी जैसे रोग फूलों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं और फलों की उपज को कम करते हैं।  लीची के बाग में माइट से ग्रसित शाखाओं को काट कर एक जगह एकत्र करके जला देना चाहिए। 

 6. परागण

लीची के फूल मुख्यतः मधुमक्खियों द्वारा कीट-परागित होते हैं।फूल आते समय पेड़  पर किसी प्रकार के किसी भी कीटनाशी दवा का छिड़काव नही करना चाहिए।फूल आते समय लीची के  बगीचे में 15 से 20 मधुमक्खी के बक्शे प्रति हेक्टेयर की दर से रखना चाहिए ,जिससे परागण बहुत अच्छा होता है ,जिससे फल कम झड़ते है एवं फल की गुणवक्ता भी अच्छी होती है एवं बागवान को अतरिक्त आमदनी प्राप्त हो जाती है।आवास संरक्षण और मधुमक्खी पालन प्रबंधन के माध्यम से मधुमक्खियों की आबादी को बनाए रखने से परागण दक्षता में वृद्धि होती है। सीमित मधुमक्खी गतिविधि वाले बगीचों में, पर्याप्त फल सेट सुनिश्चित करने के लिए मैन्युअल परागण की आवश्यकता हो सकती है।

 7. पर्यावरण प्रबंधन

फूल आने के दौरान पाले से सुरक्षा महत्वपूर्ण है, क्योंकि लीची के फूलों को पाले से क्षति होने की आशंका रहती है।ओवरहेड स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से बाग के तापक्रम को 5 डिग्री सेल्सियस कम करने में सहायक होता है । विंडब्रेक प्रदान करने से फूलों और युवा फलों के गुच्छों को हवा से होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है।

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 8. हार्मोनल विनियमन

जिबरेलिन और साइटोकिनिन जैसे विकास नियामकों का अनुप्रयोग फूल आने और फल लगने को प्रभावित कर सकता है। पेड़ों के स्वास्थ्य और फलों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए हार्मोनल उपचार के समय और एकाग्रता को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करने की आवश्यकता है। फल लगने के एक सप्ताह बाद प्लैनोफिक्स की 1 मि.ली.  दवा को प्रति 3 लीटर की दर से पानी में घोलकर  एक छिड़काव करके फलों को झड़ने से बचाया जा सकता है। 

 9. निगरानी और मूल्यांकन

फूलों की प्रगति, फल लगने और पेड़ के स्वास्थ्य की नियमित निगरानी से प्रबंधन प्रथाओं में समय पर समायोजन संभव हो पाता है। विस्तृत रिकॉर्ड रखने से विभिन्न हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने और समय के साथ प्रबंधन रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद मिलती है।

सारांश 

लीची फल उत्पादन और गुणवत्ता को अधिकतम करने के लिए प्रभावी फूल प्रबंधन आवश्यक है।एक समग्र दृष्टिकोण जो कल्चरल, पोषण, कीट और रोग प्रबंधन उपायों को एकीकृत करता है जो सफलता की कुंजी है। लीची की खेती में फूल प्रबंधन रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिए नियमित निगरानी, ​​समय पर हस्तक्षेप और निरंतर सीखना महत्वपूर्ण है। इन प्रथाओं को लागू करने से स्वस्थ लीची के पेड़, प्रचुर मात्रा में फूल और अंततः, उच्च गुणवत्ता वाले फलों की भरपूर फसल में योगदान मिलेगा।



Dr AK Singh
डॉ एसके सिंह प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी,
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
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